मध्य प्रदेशके विदिशा के बडोह गांव में नवी शताब्दी का गडरमल मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर को एक गडरिये ने बनवाया था, इसी वजह से इस मंदिर को गडरमल मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की छत के दोनों तरफ नौ देवियां बनी हुई हैं, यह उसी तरह है जैसे कि पंचकूला के देवी मंदिर में हैं या फिर ग्वालियर किले के तेली का मंदिर में बने हुए हैं। बलुआ पत्थर के बने इस मंदिर की वास्तुकला प्रतिहार और परमार शैली की है। मुख्य मंदिर के चारों ओर सात अन्य छोटे मंदिर बने हुए हैं। मंदिर अपनी क्षीण हालत में है और बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है।
गडरमल मंदिर विदिशा मध्य प्रदेश
इस मन्दिर से सम्बन्धित अनेक कथानकों के विवरण बेग्लर ने
दिये हैं। कर्निघम के द्वारा दी गई कथा निम्नलिखित है:– गडरमल मंदिर का निर्माण एक गड़रिये द्वारा हुआ था। एक बार जब यह गड़रिया अपनी बकरियां ज्ञाननाथ पर चराने के लिए लेकर गया था, उसने सन्त ज्ञाननाथ की बकरियों को बिना रखवाले के वहां विचरण करते पाया। अतः दिनभर उनकी देखभाल करने के पश्चात् उसने बकरियों को सन्त के पास पहुँचा दिया। सन्त ने प्रसन्न होकर गड़रिये को एक मुट्ठी भर जौ के दाने दिये किन्तु उसने उन दानों को संत के निवास के बाहर की चट्टान पर गुस्से में फेक दिया। जब गड़रिये की पत्नी, ने यह वृतान्त सुना, वह तुरन्त ही गड़रिये के कम्बल को उठाकर चलने को तत्पर हुई, किन्तु आश्चर्य चकित स्त्री ने कम्बल से ढके उपलों को स्वर्ण रूप में पाया।
गडरमल मंदिर विदिशाउन दोनों को यह समझने में विलंब नही हुआ कि यह आश्चर्य संत की अनुकम्पा से ही हुआ है क्योंकि उसके दिये हुये जौ के कुछ दाने कम्बल में ही चिपक गये थे। गड़रिये ने फेके हुए दानों के पास जाकर देखा कि सम्पूर्ण चट्टान जिस पर उसने वह दाने फंके थे स्वर्ण की हो गई। इस प्रकार धन सम्पन्न गड़रिये ने संत की कृतज्ञता प्रकट करने के लिये एक विशाल मंदिर तथा तालाब का निर्माण करवाया। किन्तु तालाब में पानी न रहने के कारण उसने अपने दो पुत्रों, पुत्रवधू तथा पौत्र को बलि देकर तालाब को जलपूर्ण कर लिया।
यहां के मंदिरों में गडरमल मंदिर सबसे विशाल है। मूल रूप में यह हिंदू मंदिर था, जिसे इसके भग्न होने पर जैन मतावलंबियों ने इसका पुनरुद्धार किया। यही कारण है कि इसका निचला भाग, जो लगभग नवीं शताब्दी में निर्मित हुआ था, 10-12 फीट की ऊँचाई से शिखर वाले भाग से भिन्न है। पुनरुद्धार करते समय हिन्दू तथा जैन प्रतिमाओं को अलग-अलग करने का प्रयास नहीं किया गया।
यहां तक कि आमलक को भी विभिन्न छोटे-छोटे आमलकों के अंशों से मिलाकर बनाया है। प्रमुख सभामंडप की बनावट ग्वालियर के तैली के मंदिर के सदृश है। गडरमल मंदिर का सर्व श्रेष्ठ भाग इसका अलंकृत तोरण द्वार था। अभाग्यवश, इसका अधिकांश भाग विनष्ट हो चुका है। इस मंदिर का पूर्ण रूप बहुत ही सुन्दर है।
गडरमल मन्दिर सात अन्य छोटे मंदिरों के मध्यस्थ था, जिनके कुछ अवशेष मात्र ही दृष्टिगोचर होते हैं। इन छोटे मंदिरों में एक गणेश मंदिर था, जैसा कर्निघम द्वारा देखी गई आले में स्थापित एक गणेश मूर्ति से अनुमान लगाया जा सकता है। यहां से प्राप्त अन्य मूर्तियों में नवग्रह तथा सप्तमातृकायें हैं। आखेट के दृश्यों में मनुष्य व श्वान, मनुष्य व मृग तथा शूकर पर आक्रमण करते हुये मनुष्य विशेष उल्लेखनीय हैं।
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