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गंगोत्री धाम के सुंदर दृश्य

गंगोत्री धाम यात्रा, गंगोत्री तीर्थ दर्शन, महत्व, व रोचक जानकारी

गंगाजी को तीर्थों का प्राण माना गया है। गंगाजी हिमालय से उत्पन्न हुई है। जिस स्थान से गंगा जी का प्रादुर्भाव हुआ है, उसे गंगोत्री कहते है। उत्तरकाशी से गंगोत्री की दूरी पांच किलोमीटर है। गंगोत्री धाम हिमालय के प्रसिद्ध चार धामों- गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ में से एक धाम है। यहां पर डोडीताल से निकली असिगंगा भागीरथी में मिलती है। यही से एक मार्ग डोडीताल जाता है। यहां से 18 मील दूर यह ताल है, जो दो मील घेरे का है। यह मार्ग सुगम है। डोडीताल एक मनोहर स्थान है। ऐसा माना जाता है कि गंगाजी भगवान नारायण के चरणों से निकलकर भगवान शंकर के मस्तक पर गिरी और वहां से पृथ्वी पर आई।

गंगोत्री धाम के दर्शन – गंगोत्री धाम के दर्शनीय स्थल

गंगा मंदिर

गंगोत्री धाम का मुख्य मंदिर यही है। इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित गंगाजी की मूर्ति है। राजा भगीरथ, यमुना, सरस्वती एवं शंकराचार्य जी की मूर्तियां भी है। मंदिर में गंगाजी की मूर्ति व छत्र इत्यादि सड सोने के है। गंगाजी के मंदिर के पास एक भैरव मंदिर है। गंगौत्री में सूर्यकुण्ड, विष्णुकुंड, ब्रह्मा कुंड आदि तीर्थ भी है।

गंगोत्री धाम के सुंदर दृश्य
गंगोत्री धाम के सुंदर दृश्य

भागीरथ शिला

गंगाजी के मंदिर के पास विशाल भागीरथ शिला है, जिस पर राजा भगीरथ ने तप किया था। इस शिला पर पिंडदान किया जाता है। यहां गंगाजी को विष्णु तुलसी चढ़ाई जाती है।

मार्कण्डेय क्षेत्र

शीतकाल में गंगोत्री धाम का स्थान बर्फ से ढक जाता है, इसलिए पंडे चल मूर्तियों को मुखबा गांव से एक मील दूर मार्कण्डेय क्षेत्र में ले जाते है। वही शीतकाल मे उनकी पूजा होती है। कहा जाता है कि मार्कण्डेय क्षेत्र मार्कण्डेय ऋषि की तपस्थली है।

गंगोत्री

गंगाजी तट स्थान समुद्र तल से लगभग दस फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह गंगाजी के दक्षिण तट पर है। यहां कई धर्मशालाएं है। यात्रियों को यहां सदावर्त भी मिलता है। गंगाजी यहां केवल 44फुट चौडी है, और गहराई लगभग तीन फुट है।

गौरीकुंड

गंगोत्री से लगभग दो किलोमीटर नीचे गौरीकुंड है। वहां जाने के लिए गंगाजी को पुल से पार करना पड़ता है। इस कुंड में होती हुई केदार गंगा भागीरथी में मिलती है। गंगाजी में मिलने वाली यह पहली नदी है। केदार गंगा के पानी का रंग भूरा है।

गोमुख

गंगोत्री से गोमुख का मार्ग अत्यंत कठिन है। मार्ग में रीछ और चीते भी मिल सकते है। यदि जाने का साहस हो तो पूरी तैयारी से जाएं। गंगौत्री से लगभग दस मील की दूरी पर देवगढ़ नामक एक नदी गंगाजी में मिलती है। वहां से साढ़े चार मील पर चीडोवास (चीड़ के वृक्षों का वन) है। यात्री को यही वन के अंत में रात्रि विश्राम करके प्रातः बडे सवेरे गोमुख जाना चाहिए। चीड़ोवास से लगभग चार मील दूर गोमुख का स्थान है।

हिमधारा (ग्लेशियर)

गोमुख से हिमधारा के नीचे से गंगाजी की धारा प्रकट होती है। इस स्थान की शोभा अतुलनीय है। यहां भगवती भागीरथी के दर्शन करके ऐसा लगता है कि जीवन धन्य हो गया। यात्रा की सारी थकान मिट जाती है। भुवन पावनी गंगा के इस उद्गम में स्नान कर पाना मनुष्य का अहोभाग्य है।

गोमुख में इतनी शीत है कि जल में हाथ डालते ही वह हाथ सुन्न हो जाता है। अग्नि जलाकर तब यात्री स्नान करता है। गौमुख से लौटने में शीघ्रता करनी चाहिए। धूप निकलते ही हिमशिखरों से भारी चट्टानें टूट टूटकर गिरने लगती है। अतः धूप चढ़े, इससे पूर्व चीडोवास के पडाव पर पहुंच जाना चाहिए। इस प्रकार गंगोत्री से गोमुख की यात्रा में तीन दिन लगते है।

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