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खस जनजाति

खस जनजाति कहां की है और जनजाति का बहुपति विवाह

खस जनजाति वास्तव मेंभारत के उत्तराखंड राज्य, हिमाचल, तथा नेपाल के क्षेत्रों में निवास करती हैं। इसमें कुमाऊ गढ़वाल आदि पर्वतों के आस पास का ही क्षेत्र सम्मिलित है। वास्तव में यह प्रदेश बड़ा ही रमणीक तथा प्राकृतिक सौन्दर्य का भण्डार है। जिन लोगों ने कभी इस प्रदेश की यात्रा की है, वे अवश्य ही इस के सौन्दर्य का गुणगान किये बिना नहीं रह सकते। ऊंची ऊंची पर्वत मालाएं, बरसाती झरने, अनेक प्रकार के फलदार वृक्ष, हरी भरी ऊंची नीची भूमि, आकर्षक दृश्य तथा शीतल जलवायु मन को इस प्रकार मोह लेती है, कि फिर वहां से लौटने को जी नहीं चाहता। खस प्रदेश में अधिक जनसंख्या खस जनजाति अथवा पहाड़ी राजपूतों की ही पाई जाती है, वैसे ब्राह्मण तथा कोल्ट्रेटडम (कोहली वंश के लोगों की एक अछुत जाति) आदि लोग भी यहां पाये जाते हैं। कोल्टे्रडम अधिकतर खस जनजाति के लोगों के ही सेवक होते हैं, तथा उनकी सेवा करने के अतिरिक्त और कोई अन्य जीविका उन्हें प्राप्त ही नहीं हो पाती। पुरातन काल से ही ये लोग खस जनजाति की सेवा का व्यवसाय अपनाये हुए हैं। यही कारण है, कि यह व्यवसाय एक प्रकार से इनका मौरोसी धन्धा बन चुका है। एक ही मालिक के यहां बहुत से दास-लोगों ने अनेक पीढ़ियां बिता दी हैं। तथा आज भी उसी प्रकार अपने स्वामियों की सेवा करते चले आ रहे हैं।

खस जनजाति कहां की है

पर आज भारत स्वतन्त्र हो चुका है, और हमारी सरकार इनके इस घृणित पेशे को छुडा कर इन्हें उन्नत करने की ओर ध्यान दिया है। अनेक स्थानों पर इन लोगों को शिक्षित करने के लिए मुफ़्त पाठशालाएं खोल दी गई हैं। ताकि शिक्षित हो कर ये लोग भी अपनी दासता के बन्धनों को काट सकें, जोकि भारत के प्रत्येक नागरिक को अधिकार है।

इस क्षेत्र के पर्वत काफ़ी विशाल तथा ऊंचे आकार के है। कोई भी शिखर 8000 फुट से अधिक नीचा नहीं। जाड़े के दिनों में प्रायः बर्फ भी पड़ जाती है। ऊंची चोटियों पर बर्फ की काफी अधिकता हो जाती है। कहते हैं, बर्फ़ानी क्षेत्रों में रहने से स्वास्थ्य बड़ा संतोष जनक रहता है, और यदि जाड़ों के दिनों में भी इन्हीं क्षेत्रों में रह कर यहां के प्रचण्ड शीत को सहन कर लिया जाए, तो मुख का रंग साफ़ तथा लाल हो जाता है। यह बात प्राय: सत्य है, क्योंकि यहां के लोगों के मुख, चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष, सेब की तरह लाल होते हैं।

कालसी इस क्षेत्र का एक अत्यन्त महत्त्व-पूर्ण स्थान है। इस स्थान पर अशोक के युग के अनेक शिला-लेख प्राप्त होते हैं, जिन्हें यहां के लोग “चतर-साला’ कहते हैं। चतर-साला’ असल चित्रशाला’ शब्द का ही विकृत रूप है। जमना, अमला तथा टौंस आदि नदियां इन्हीं पर्बतों से निकलती हैं। तथा इसी स्थान पर एक दूसरे से आकर मिल जाती हैं। जौनसार इस क्षेत्र की बड़ी प्रसिद्ध जगह है, जिसकी यात्रा को देश के अनेक प्रदेशों से यात्री ग्रीष्म की ऋतु में आते हैं।

यहां की अधिकतर जनता खेती के सहारे ही अपनी जीविका चलाती है। किन्तु पर्वतों पर खेती करना भी बड़ी जटिल समस्या है। प्रत्येक स्थान पर तो खेती हो नहीं पाती, केवल पर्वतों को काट कर एक सा कर के ही धरती खेती योग्य बनाई गई है। ये खेत छोटे छोटे होते हैं, तथा सीढ़ियों की तरह पहाड़ी पर नीचे को उतरते चले जाते हैं। जिस स्थान पर पथरीली चट्टानें आ जायें, वहां खेत नहीं बनाये जाते, ओर न ही अधिक ऊंची चोटियों पर बनाये जाते हैं। यहां रहने वाले लगभग सभी लोग, चाहे वे खस हो अथवा ब्राह्मण या कोल्ट्रेडम माँस खाने में विशेष रुचि रखते हैं। स्त्रियों को तम्बाकू या सिगरेट पीने की अधिक लत होती है। यह लत इन के समाज में कोई बुरी बात नहीं समझी जाती हैं।

खस जनजाति
खस जनजाति

खस जनजाति का बहुपति विवाह

खस जनजाति के लोगों के समाज में अनेक विचित्र रीति-रिवाज प्रचलित हैं। विवाह की रीति भी बड़ी अनोखी है। इसमें जाति- पाति का कोई भी भेदभाव नहीं समझा जाता। ब्राह्मण तथा राजपूतों में भी परस्पर विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं। एक स्त्री एक ही समग्र में अनेक पुरुषों की पत्नी बन कर रहती है। भाइयों में यदि एक भाई का विवाह हो जाये, तो अन्य भाईयों का विवाह नहीं होता। एक की स्त्री ही अन्य भाईयों की भी स्त्री समझी जाती है। इस प्रकार के पुरुष तथा नारी के सम्बन्धों को इन लोगों में बुरा नहीं समझा जाता बल्कि यह लोग इसी को शुभ मानते हैं।इन का विश्वास है कि यदि पांच भाई हों और पांचों ही यदि अपना अलग अलग विवाह कर लें तो घर का नाश हो जाये। क्योंकि पहाड़ों पर खेती के अतिरिक्त और कोई जीविका का साधन नहीं मिलता परन्तु खेती के लिये पर्याप्त धरती का अभाव है। यदि थोड़ी सी ज़मीन के स्वामी सभी भाई अपना अलग अलग विवाह कर लें, तो अधिक गृहस्थियों का भार आ पड़ता है, और सभी को अपनी अपनी अलग अलग व्यवस्था करनी पड़ती है। स्त्रियों की परस्पर कलह से भी भाई भाई आपस में शत्रु बन जाते हैं। और इस भेदभाव का फल यह होता है, कि अन्त में धरती के भी बंटवारे हो जाते हैं, और इस प्रकार किसी को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यकतानुसार कृषि योग्य भूमि नहीं मिल पाती।

इसके अतिरिक्त एक कारण और भी है कि पहाड़ी क्षेत्रों में खेती करने के लिये विशेष परिश्रम तथा सहयोग की आवश्यकता होती है। और प्रायः विवाह कर लेने पर देखा गया है, कि घर की स्त्रियों से नई दुलहन की नहीं पटती, जिससे अपने पति के साथ वह अलग हो कर अपनी एक नई गृहस्थी बना लेती है। इस प्रकार एक गृहस्थी के खण्ड होने पर परिवार के बल का खण्डित हो जाना निश्चित है। एक बात यह भी है कि स्त्री नियत पुरुष के साथ जितनी अधिक संताने उत्पन्न कर सकती है, उतनी वह अनेक पुरुषों के साथ रह कर नहीं कर पाती। बच्चे कम पैदा करने अथवा समाज सुधार हेतु जनसंख्या पर नियंत्रण रखने के दृष्टिकोण से ही यहां के पूर्वजों ने एक घर के सभी पुरुषों के लिये एक ही स्त्री पत्नी रूप में नियत की है। हमारे लिए खस जनजाति की यह रीति वास्तव में विचित्र प्रकार की है। पर ये लोग इसे एक सामाजिक रीति तथा एक शुभ रिवाज समझते हैं।

खस जनजाति की नारियां शराब पीने में भी संकोच नहीं करती। पर एक विशेष गुण इन में यह होता है, कि यह बडी परिश्रम करने वाली होती है। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करती हैं। वृक्षों पर चढ़ जाना, तथा पहाड़ी नदियों को पार कर लेना इन्हें बड़ा सरल सा लगता है। शिक्षा से तो यहां के लोग पूर्ण अनभिज्ञ हैं। यहां तक कि गिनना तक नहीं जानते। ये लोग अपनी वस्तुओं तक का हिसाब किताब ठीक से नहीं कर पाते। वैसे शिक्षा के प्रचार के कारण से अब इनमें थोड़ा बहुत परिवर्तन अवश्य आ गया है। आशा की जाती है कि भविष्य में इनकी अवस्था काफ़ी सुधर जायेगी।

खस जनजाति के लोगों का पहनावा भी बड़ा सरल है। गर्मियों में यहां के लोग केवल एक ही लंगोटी पहन कर अपना समय बिता देते हैं, परन्तु जाड़े के दिनों में ऊनी चुस्त पजामा, लम्बा अंगरखा (यह शब्द अंग-रक्षक शब्द से विकृत हो कर बना है) तथा एक गोल टोपी पहनते हैं। स्त्रियां केशों को ढकने के लिए एक काले रंग का रूमाल जिसे यह लोग “दुयांद्र’ कहते हैं, बांधे रहती हैं। इसके अतिरिक्त एक कुर्ती तथा पेटीकोट नुमा घाघरे का उपयोग भी करती हैं। जाड़े की ऋतु में ऊनी सदरी अथवा जाकेट का प्रयोग भी कर लेती हैं। यही इन लोगों का एक साधारण सा पहनावा है। खस स्त्रियों को आभूषण पहनने का बड़ा चाव होता है। नये नये आभूषणों की प्राप्ति के लिए प्रायः ये लालायित रहती हैं। वैसे ये आभूषण भद्दे से दिखाई देते हैं, किन्तु यह नारियां इसी में प्रसन्‍न रहती हैं। नाक में एक बड़े आकार की लोंग तथा बुलाक आदि पहनती हैं। कानो में बालियाँ, हाथों में कड़े तथा गले में कण्ठ- चिक आदि अलंकारों का उपयोग करती हैं।

खस जनजाति का धर्म

खस जनजाति के लोग अधिकतर देवी देवताओं में ही अपना विश्वास रखते हैं। पर शिवजी को भी अपना परम-देव मान कर उसकी बड़ी पूजा करते हैं। अपने मान्य देवीं देवताओं पर बकरे की बली चढ़ाना इन के यहां बड़ा शुभ माना जाता है जिस बकरे की बलि देनी होती है, उस पर सब से पहले अपने मान्य अथवा देवता का नाम ले कर पानी की छीटें दी जाती हैं। ऐसा करने के पश्चात यदि वह बकरा कांप उठे, तब तो यह समझ लिया जाता है, कि देवी अथवा देवता इस भेंट से प्रसन्‍न हो उठे हैं, तथा एक ही वार में उसका कार्य समाप्त कर दिया जाता है। अन्यथा न कांपने पर देवी या देवता को रुष्ट जान कर उसे छोड़ दिया जाता है। यह सब कार्य केवल देवी या देवता की बेदी पर ही किए जाते हैं। जितनी श्रद्धा ये लोग इन देवी देवताओं में रखते हैं, उतनी ईश्वर में नहीं रखते। ईश्वर के प्रति इन में श्रद्धा नहीं है। इनके समक्ष तो देवता आदि ही जग को पालने तथा मारने वाले हैं।

इतिहासकारों का विचार है, कि कौरवों तथा पांडवों के समय में खस लोगों का राज्य हिमालय पर्वत पर पूर्व से पश्चिम तक फैला हुआ था। उस समय ये लोग उन्नत माने जाते थे। पर न जाने किन कारणों से ये न केवल अपना राज्य ही नष्ट कर बैठे, अपितु अपनी प्राचीन संस्कृति से भी हाथ धो बैठे।

हरयाली का त्यौहार यह लोग बड़े हर्ष-पूर्वक मानते हैं। किसी निश्चित स्थान पर मेले में सम्मिलित होने के लिये दूर दूर से खस लोग आते हैं, देवी अथवा देवता के मन्दिर पर बलियां चढ़ाई जाती हैं। स्त्री, पुरुष साथ साथ गाते बजाते तथा नृत्य आदि करते हैं। हरयाली का त्यौहार जिन दिनों होता है, उन दिनों इस क्षेत्र में वर्षा का प्रारम्भ होता है। और फिर मजे की बात तो यह है कि ज़रा बादल दिखाई दिया, और पानी की धारें छूटने लगीं।

ये लोग अतिथि-सत्कार करने में अपनी बड़ी बड़ाई समझते हैं। यथा- सम्भव अतिथि सेवा में कोई कसर उठा नहीं रखते। जब भी कोई महमान घर पर आता है, तो घर की कन्या अथवा अन्य स्त्री बड़े आदर से अतिथि के हाथ पैर धुलाती है। फिर उसके लिये भोजन तैयार किया जाता है। जब भोजन तैयार हो जाता है। तो अतिथि के हाथ पैर धुला कर उसे भोजन के लिये बिठाया जाता है। जब खाने के लिये सब प्रकार की वस्तु परोस दी जाती हैं, तो उन वस्तुओं में से सभी प्रकार का थोड़ा थोड़ा भोजन निकाल कर पहले घर की स्त्री स्वयं खाती है, इसके पश्चात ही अतिथि को खाने का आदेश दिया जाता है। यह सब इसलिये किया जाता है, कि हमने आपके भोजन में आरान्तरिक शत्रुता वश कोई विष आदि नहीं मिलाया, यदि हम ने कोई ऐसा नीच कार्य किया हो, तो आपसे पहले इसे खा कर हम ही मर जायेंगी। धन्य हैं खस प्रदेश के ये निवासी, जिन में अपने अतिथि के लिये इतना अपूर्व प्रेम तथा श्रद्धा होती है। भारत को इन के इस आचरण पर गौरव क्यों न हो ? भले ही ये लोग अशिक्षा वश हम से बहुत ज्यादा पिछड़े हुए हैं, किन्तु फिर भी हमें इन पर गर्व है, जिन्होंने हमारे देशवासी हो कर भारत की हमारी अतीत संस्कृति को मिटने नहीं दिया। इतिहासकार तथा अन्य महान पुरुषों ने इन लोगों के आचार विचार, रहन-सहन आदि का अध्ययन करके हमारे नष्ट हुए अतीत में एक अभिन्‍न ज्योति जलाने की भरपूर चेष्टा की है।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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