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क्यूबा की क्रांति

क्यूबा की क्रांति कब हुई थी – क्यूबा की क्रांति के नेता कौन थे

फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में हुई क्यूबा की क्रांति संग्राम ने अब लोक कथाओं में स्थान पा लिया है। मात्र 82 क्रांतिकारियों ने तानाशाह बटिस्टा की सुसज्जित सेना से लोहा लेना शुरू किया और तीन साल से भी कम समय में बेमिसाल जीत हासिल की। इस जीत में कास्त्रो के लेफ्टिनेंट थे– चे गुएवारा, राउल कास्त्रो और सिमेलो। क्यूबा के किसानों ने क्रांतिकारियों का दिल खोलकर साथ दिया।अमेरिकी साम्राज्यवाद की गर्व से तनी रीढ़ पर क्यूबा की क्रांति एक बहुत बड़ी ठोकर थी। यह क्रांति सन 1959 में हुई थी। अपने इस लेख में हम क्यूबा की इसी जन क्रांति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—-

  • क्यूबा की क्रांति का इतिहास?
  • क्यूबा की क्रांति के नेता कौन थे?
  • क्यूबा की क्रांति क्या है?
  • क्यूबा की क्रांति के बारे में जानकारी?
  • क्यूबा की क्रांति के जनक कौन थे?
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  • क्यूबा में कैसी शासन प्रणाली थी?
  • क्यूबा की क्रांति कब हुई थी?
  • क्यूबा क्रांति के समय क्यूबा में किसका शासन था?
  • क्यूबा की क्रांति के क्या कारण थे?
  • क्यूबा की क्रांति के परिणाम?

क्यूबा की क्रांति के कारण

सन् 1956 के मध्य में लातीनी अमेरिकी देश क्यूबा बटिस्टा (Batista) के अमेरिका समर्थित कुशासन के नीचे बुरी तरह पीसता हुआ कराह रहा था। पुलिस बटिस्टा के किसी भी विरोधी को बेहद सख्ती से कुचलती। गिरफ्तार लोगों को बेहद अमानवीय यातनाएं दी जाती। उनकी कटी फटी लाश सड़कों पर या समुंद्र में पड़ी हुई मिलती। बटिस्टा ने सोवियत संघ और दूसरे समाजवादी देशों से अपने राजनीतिक संबंध पूरी तरह तोड़ लिये थे। वह अब अमेरिका के हाथों की कठपुतली मात्र बनकर रह गया था। क्यूबाई कम्यूनिस्टो की पार्टी पॉर्टिडो सोशलिस्ट पॉपुलर (Portido socialist popular) पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। अमेरिकी पूंजीपति पूरे देश में छा गए थे। फौज अमेरिकी अफसरों से भरी हुई थी, और पुलिस की लगाम भी सी आई ए (CIA) के साथ में थी। कुल मिलाकर क्यूबा की स्थिति एक अमेरिकी उपनिवेश जैसी हो चुकी थी।

क्यूबा की क्रांति की शुरुआत

लेकिन क्यूबा के लोगों में अपने अधिकारों और आजादी लेकर विद्रोह की पुरानी परंपरा अब भी मौजूद थीं। 19वीं शताब्दी में वे आधी सदी तक स्वतंत्रता संघर्ष चला चुके थे। सन् 1933 में उन्होंने घृणित तानाशाह मचाडो (Machado) को सत्ता से उतार दिया था। एक युवा वकील फिदेल कास्त्रो (Fidel Castro) के नेतृत्व में कुछ दुस्साहसिक क्रांतिकारियों ने माकाडो (Moncado) बैरको पर हमला किया था। इस कार्यवाही में छात्रों, युवा मजदूरों सरकारी कर्मचारियों और कारीगरों ने भाग लिया था। राजनीतिक अनुभव की कमी और किसी ठोस कार्यक्रम के अभाव ने इन लोगों को नाकामयाब बनाया। सभी गिरफ्तार कर लिये गये। फिदेल कास्त्रो पर मुकदमा चला और उन्होंने अदालत में अपना ऐतिहासिक भाषण हिस्ट्री विल एव्जाल्व मी (History will absolve me) दिया। बाद में सभी को माफी दे दी गयी। ये क्रांतिकारी मैक्सिको चले गये और वही से क्रांति की अगली तैयारी करने लगे।

क्यूबा के अंदर भी तमाम जुल्म सहते हुए भी मजदूर बुद्धिजीवी विश्वविद्यालयों और हाई स्कूलों के छात्र बटिस्टा और उसके अमेरीकी रक्षकों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। भूमिगत प्रेस बटिस्टा के अपराधों का पर्दाफाश कर रही थी। हुकूमत के खिलाफ सभाएं प्रदर्शन और हड़ताल बढ़ती जा रही थी। तानाशाह ने उच्च शिक्षा के सारे संस्थान बंद कर दिये थे। रिश्वत ब्लैकमेल और धमकियों के जरिए बटिस्टा विपक्ष का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा था। बटिस्टा अपने भाषणों में आजादी स्वतंत्रता और प्रगति की चर्चा करता और जास मार्ती (Jose marti) जैसे कवि, क्रांतिकारी और शहीद के नाम का इस्तेमाल भी करता। फौज का यह पूर्व सार्जेंट दरअसल झूठ और बदकारी का घिनौना पुतला था।

क्यूबा की क्रांति
क्यूबा की क्रांति

क्यूबा के अंदर की इसी क्रांतिकारी परिस्थिति को देखकर फिदेल कास्त्रो और उनके साथियों ने क्यूबा पर हमला करने की योजना बनायी। उन्हें स्पेनिश फौज के एक पूर्व कर्नल अल्बर्टो बायो (Alberto bayo) की मदद भी मिल गयी। बायो गुरिल्ला युद्ध में
विशेषज्ञ होने के साथ साथ कवि भी थे। मैक्सिको सिटी से 35 किमी दूर सांटा रोजा (Santa Rosa) नामक जगह पर बायो ने फिदेल के क्रांतिकारियों को जंगल युद्ध का प्रशिक्षण देना शरू किया। उन्हें हथियारों का इस्तेमाल करना और कठोर से कठोर जीवन जीने का अभ्यास कराया। बायो को उनके छात्र प्रोफेसर ऑफ इंग्लिश के गुप्त नाम से बुलाते थे। इन छात्र में अरनैस्टो च गुएवारा, राउल कास्त्रो, डारिया लोपेज़, सिमला और कार्लोस यमडज जैसे लोग शामिल थे जो बाद में फिदेल के साथ आधुनिक क्यूबा के निर्माता बने।

22 जून 1957 को सीआईए (CIA) के कहने पर मैक्सिकन सीक्रेट पुलिस ने सांटा रोजा पर छापा मारकर क्रांति की तैयारी में संलग्न इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया। मैक्सिकन समाज ने क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी का कडा विरोध किया। मैक्सिको के पूर्व राष्ट्रपति पूर्व नौसेना मंत्री और एक बडे नेता समेत कई कलाकारों और विद्वानों की कोशिश से एकमहीने बाद ये लोग रिहा कर दिये गये। मैक्सिको और क्यूबा की सरकार ने इनकी योजनाओं को नष्ट हुआ मान लिया था, परंतु रिहा होते ही फिदेल कास्त्रो ने स्वीडन निवासी वेनर ग्रेन (Wennor gren) से ग्रेनमा (Granma) नामक बोट (समुंद्री नौका) 12 हजार डॉलर में खरीदा लिया। 12 मुसाफिरों की क्षमता वाले इस बोट में बैठकर क्रांति के 82 सिपाही क्यूबा में बटिस्टा के गढ़ पर हमला बोलने चल दिए। इस दौरान उन्हें कई बार गद्दारियों और हताशा का सामना करना पड़ा पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। ग्रैनमा जैसे जैसे समुंद्र में आगे बढ़ता वैसे वैसे क्रांतिकारियों का उत्साह और उफनता। वे क्यूबा का गीत और 26 जुलाई आंदोलन का गाना गाते आगे बढ़ते जा रहे थे। 26 जुलाई के दिन ही माकाडो बैरकों पर फिदेल कास्त्रो ने असफल हमला किया था। फिदेल का कहना था कि अब या तो वे हीरो बनेंगे या शहीद होंगे।

30 नवंबर को जब ग्रैनमा क्यूबा के तट से दो दिन की दूरी पर था कि बटिस्टा के विमानों ने उसे देख लिया। 2 दिसबर को ग्रैनमा क्यूबा के तट पर पहुंचा। बटिस्टा की गश्ती नावों ने क्रांतिकारियों को देखकर धुआंधार गोलियां चलानी शुरू कर दी। आसमान से विमान फायरिंग कर रहे थे। वे किमी तरह बचकर दलदली रास्ते से होते हुए आगे बढ़ते रहे। प्यास से उनके गले सूखकर छुहारा बन जा रहे थे। वे जैसे-तैसे गन्नेचूस-चूसकर अपनी प्यास बुझा रहे थे। 4 दिसबंर की पूरी रात उन्हानें गन्ने के खेतों में दौड़ते हुए गुजारी। अलीज्रिया दि पिआ (Aligria de pio) पर पहुंच कर अपने गाइड की गद्दारी के कारण उन्हें दुश्मन के भयानक हमलों का सामना करना पडा। आधे लोग मारे गये और 20 गिरफ्तार कर लिये गये। इनमें से कई को यातनाएं देने के बाद गोली मार दी गयी। बाकी क्रांतिकारी बचकर निकल गये और सीएरा मिस्ट्रा (Sierra maestra) की पहाड़ियों की तलहटी में एक किसान की झोपड़ी में जमा हुए। क्यूबा के किसानों ने इन क्रांतिकारियों की मदद की।

अब आम जनता का विश्वास जीतने के लिए छापामारों को छोटी छोटी जीत हासिल करनी थी। 16 जनवरी 1957 को ला प्लाटा (La Plata) नदी पर बनी फौजी चौकी पर उन लागो ने हमला किया और दो फौजियों को मारकर चौकी पर कब्जा कर लिया। इसी वक्त फिदेल ने सीएरा मेस्ट्रा की पहाड़ियों को विद्राहियों का गढ बनाने का निर्णय लिया। इन्ही पहाड़ियों में पनाह लेकर 19वीं सदी के स्वतंत्रता सेनानियों ने भी अपनी क्रांतिकारी कारवाइयां की थी। यह ऐसा चटटानी इलाका था जहा से एक मशीनगन अकल एक हजार सैनिकों की गारद का सामना कर सकती थी। और तो और इन पहाड़ियों के ऊपर विमान उडाना भी खतरे से खाली नही था।

22 जनवरी 1957 को विद्रोहियों ने बटिस्टा के फौजियों की एक और टुकड़ी को हराया 26 जुलाई आते-आते हवाना (क्यूबा की राजधानी) के भूमिगत नेता से विद्रोहियों का सम्पर्क स्थापित हो गया। वे पहाड़ियों में आकर फिदेल से मिले। उन्होंने क्रांतिकारियो के लिए हथियार गोला-बारूद, कपडा, दवाएं और धन जुटाने का जिम्मा लिया। इससे पहले 17 फरवरी 1957 को न्यूयार्क टाइम्स के प्रतिनिधि हेवट मथ्यूज ने पहाड़ियों में फिदेल से मुलाकात की। अमेरीकी अखबारों में विद्रोहियों की बडी बडी तस्वीर छपी। देखते ही देखते वे सारी दुनिया में मशहूर हो गये। सारे ज़माने में अमेरीकी साम्राज्यवाद और बटिस्टा की थू-थू होने लगी। हवाना में छात्रों ने विद्रोह कर दिया। मार्च के मध्य में 50 छमपामार फिदेल से आ मिले। अब विद्रोही तीन पलटनों में बट गये। किसानों के बीच फिदेल के साथी दाडी वाले क्रांतिकारियों के रूप में मशहूर हो चके थे। उवेरो (Uvero) गांव की बैरकों पर हमला किया गया। इसमें 15 विद्राही तो अवश्य शहीद हो गये पर जीत ने फिदेल के साथियों का उत्साह बढ़ाया। जल्दी ही सीएरा मिस्ट्रो के निचले हिस्से में बनी शत्रु की चौकियों को साफ कर दिया गया।

बटिस्टा ने किसानों और छापामारों का संपर्क तोड़ने के लिए सीएरा मिस्ट्रो के गांवों से किसानों को निकाला चाहा पर इसका कडा प्रतिरोध हुआ इसी दौरान कई किसान विद्रोहियों की कतारों में मिल गये। बटिस्टा के अखबार क्रांतिकारियों को मास्को के कम्युनिस्ट ऐजेंट कहकर अपमानित करने की चेष्टा करते। फिदेल का विश्वास मार्क्सवाद लेनिनवाद था भी। चे गुएवारा जैसे लोग लडने के साथ साथ क्रांतिकारी विचारधारा का प्रचार भी करते थे। सन 1957 के खत्म होते होते विद्रोहियों का सीएरा मिस्ट्रो पर पूरी तरह कब्जा हो गया। मार्च 1958 में राउल कास्त्रो के नेतृत्व में पहाड़ियों से उतर दूसरा मोर्चा खोला गया। 12 मार्च 1958 को फिदेल कास्त्रो ने एक घोषणा पत्र जारी किया जिसमें तानाशाही के खिलाफ एक आम जिहाद छेड देने की अपील की गयी थी। 16 मार्च को फौजों से अपील की गयी की वे विद्रोहियों का साथ दे। अगस्त 1958 में फिदेल कास्त्रो ने अपने आखिरी हमले की योजना बनायी।

इस समय बटिस्टा के पास 20 हजार सेना, टैंक और विमान थे। विद्रोहियों के पास कुछ सौ योद्धा थे। उनके हथियार भी पुराने और खराब हालत में थे। नयी योजना के तहत फिदेल और राउल के नेतृत्व वाले छापामारों को सटियागो शहर की घेराबंदी करनी थी। समिला रहनुमाई वाले छापामारों को पिनान डल रिया प्रांत के पश्चिमी इलाके पर हल्ला बोलना था और च गुएवारा के छापामारों को लास वेगास हाते हुए हवाना का रास्ता साफ करना था। यह भी तय किया गया कि जिस समय च गृएवारा के छापामार सांटा क्लारा होते हुए हवाना की तरफ बढ़ने लगेंगे। इसी समय पश्चिम से सेमिला की फौज हमला करेगी। जंग शुरू हो गयी उपरोक्त रणनीति के कारण बटिस्टा की फौजों को एक साथ चार मोर्चो पर लड़ना पड़ा। सब साथियों ने बहादुरी और कुशलता से लड़ते हुए सांटा क्लोरा पर कब्जा करके क्रांतिकारी विजय की शुरूआत की। बटिस्टा ये खबर सुनते ही मुल्क छोड़कर भाग गया। उसकी जगह जनरल सण्टिला ने सत्ता संभाली और झूठ बोला की उसे फिदेल कास्त्रो का समर्थन प्राप्त है। फिदेल कास्त्रो ने सण्टिला के इस कदम की निन्दा की।
2 जनवरी 1959 को चू और समिला की फौज हवाना में घुसी। जनता ने उनका भव्य स्वागत किया, तानाशाह के बचे हुए सैनिकों ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। और इस प्रकार क्यूबा की क्रांति की जीत हो गई।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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