कौशांबी का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ कौशांबी बौद्ध तीर्थ स्थल Naeem Ahmad, September 19, 2019March 19, 2024 कौशांबी की गणना प्राचीन भारत के वैभवशाली नगरों मे की जाती थी। महात्मा बुद्ध जी के समय वत्सराज उदयन की राजधानी के रूप में इस नगरी ने अद्वितीय गौरव प्राप्त किया। उदयन की गौरवपूर्ण गाथा से संस्कृत साहित्य भरा पड़ा है। कौशांबी के महान श्रेष्ठियों के निमंत्रण और आग्रह पर महात्मा बुद्ध इस नगरी में पधारे थे। जहां उनके वास के लिए कई विशाल विहारो का निर्माण कराया गया था। बौद्ध साहित्य में वर्णित प्रसिद्ध घोषिताराम विहार इसी नगरी में स्थापित था। जिसके भग्नावशेष कौशांबी की खुदाई मे प्राप्त हुए है। कौशांबी पुरास्थल पर प्रयागराज विश्वविद्यालय द्वारा संचालित इस खुदाई के कारण इतिहासकारों एवं विद्वानों, भक्तों, और पर्यटकों का ध्यान इस ओर बडी संख्या आकर्षित हो रहा है। आज के अपने इस लेख में हम कौशांबी का प्राचीन इतिहास, कौशांबी पर्यटन स्थल, कौशांबी बौद्ध मंदिर, बौद्ध तीर्थ कौशांबी का महत्व, हिस्ट्री ऑफ कौशांबी आदि के बारें मे विस्तार से जानेगें। कौशांबी का प्राचीन नाम कोसम था। यह प्रयागराज से 33 मील की दूरी पर यमुना नदी के बायें तट पर स्थित है। अब यह उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध जिला है और जिसका जिला मुख्यालय मझंनपुर है। कौशांबी का प्राचीन इतिहास, पुरानी कौशांबी का इतिहास, हिस्ट्री ऑफ कौशांबी Koshambi history in hindi कौशांबी का इतिहास बहुत प्राचीन है। इसके अनेक साहित्यिक प्रमाण मिलते है। शतपथ और गौपथ ब्राह्मणों में इसका उल्लेख अप्रत्यक्ष रूप से आया है। इन दोनों ग्रंथों से पता चलता है कि उद्दालक आरूणि का एक शिष्य कौशाम्बेय अर्थात कौशाम्बी का रहने वाला भी कहलाता था। उसके बाद इस स्थान का उल्लेख हमें महाभारत, रामायण, तथा हरिवंश पुराण में भी प्राप्त होता है। महाभारत के अनुसार कौशांबी की स्थापना चेदिराज के पुत्र उपरिचर वसु ने की थी। जबकि रामायण में इस नगरी को कुश के पुत्र कुशम्ब द्वारा स्थापित बताया गया है। संकिसा का प्राचीन इतिहास – संकिसा बौद्ध तीर्थ स्थलदीर्घ निकाय में महात्मा बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंद ने कौशाम्बी की गणना तत्कालीन सम्पन्न विख्यात एवं वैभवपूर्ण नगरों में की है। दीर्घ निकाय पर भाप्य लिखते हुये बुद्धघोष ने तत्कालीन प्रसिद्ध नगरों जैसे– चम्बा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, एवं वाराणसी के वर्णन के साथ साथ कौशाम्बी के कुछ प्रसिद्ध श्रेष्ठियों का भी उल्लेख किया है।गया दर्शन बौद्ध गया तीर्थ – बौद्ध गया दर्शनीय स्थलप्राचीन ग्रंथों में विख्यात होने पर भी कौशाम्बी का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व राजा उदयन के समय से आरम्भ हुआ था। राजा उदयन के पूर्व जिन राजाओं ने कौशाम्बी पर शासन किया उनका उल्लेख पुराणों में किया गया है। अर्जुन के पौत्र राजा परिक्षित से लेकर पांचवीं पीढ़ी में राजा विचक्षु ने अपनी राजधानी हस्तिनापुर से हटा कर कौशाम्बी को बनाया था। विचक्षु और राजा उदयन के बीच 16 राजाओं ने कौशाम्बी पर शासन किया। इस प्रकार से उदयन हस्तिनापुर के कुरूवंश की शाखा के शासक थे। राजा उदयन संस्कृत साहित्य में एक प्रसिद्ध नायक के रूप में भी चित्रित किये गये है। प्रकृति से ही वे वीर तथा विलासी थे। युद्ध, हाथी, वीणा, और सुंदरी उनके प्रिय विषय थे। इसलिए संस्कृत भाषा के विख्यात नाटककार भाप ने उदयन को अपने दो नाटकों स्वप्न वासनदत्ता तथा प्रतिज्ञा-यौगंधरायण में नायक के रूप में प्रस्तुत किया।नाथ पंथ, सम्प्रदाय की विशेषता, परिचय और इतिहासउदयन की कथा कथा सरित्सागर, रतनावली, प्रियदर्शिका, स्कंदपुराण, तथा जैनियों के धर्म ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प, ललितविस्तर, तिब्बत में पाये गये बौद्ध धर्म संबंधी साहित्य तथा चीनी यात्री हवेनसांग द्वारा लिखित अपने यात्रा वृतांत में मिलती है। साहित्य तथा धर्म ग्रंथों के अनुसार उदयन एक परम प्रतापी शासक थे। जिनके ऐश्वर्य को देखकर तत्कालीन राजा उनसे ईर्ष्या करते थे। अवन्ती के राजा चंद्र प्रद्योत ने एक बार छल से उदयन को बंदी बना लिया। लेकिन बाद में उदयन उन्हीं की पुत्री वासवदत्ता की सहायता से उसके साथ भाग निकले और उसको अपनी रानी बनाया। कथा सरित्सागर में उदयन के दिग्विजय का भी विवरण मिलता है। हर्ष विरचित प्रियदर्शिका से यह ज्ञात होता हैं कि उदयन ने एक बार कंलिंग पर भी विजय प्राप्त की थी।कांग चिंगबा रथयात्रा – Kang Chingba Festival in Hindiपरंतु बौद्ध ग्रंथों में उदयन का चरित्र कलुषित रूप से चित्रित किया गया है। इसका प्रमुख कारण यही था कि वह बौद्ध न होकर हिन्दू धर्म का पोषक एवं अनुयायी था। कहा जाता हैं कि प्रथम बार जब महात्मा बुद्ध अपने धर्म प्रचार के लिए कपिलवस्तु, वैशाली, एवं राजगृह होते हुए कौशाम्बी पधारे तब राजा ऊदयन अपनी सेनाओं के साथ कंकावली नगरी पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान कर रहा था। अतः शांति के इस दूत को देखकर वह अत्यंत क्रोधित हुआ और महात्मा बुद्ध पर एक बाण भी छोडा। परंतु महात्मा बुद्ध के चमत्कार से उस बाण से यह आवाज निकली — क्रोध और क्षोभ से दुख उत्पन्न होता है, इस लोक में जो त्याग न करता हुआ युद्ध करता है, उसको मृत्यु के पश्चात नर्क की यंत्रणाओं में पडना पडता है, अतः दुख एवं युद्धों को दूर रखो” इस चमत्कार का महाराज उदयन पर बडा प्रभाव पड़ा और वे महात्मा बुद्ध से उपदेश सुनकर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। राजा उदयन के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने की इसी प्रकार की कथा तिब्बती बौद्ध ग्रंथों में भी मिलती है। इन कथाओं से यह सिद्ध होता है कि राजा उदयन पहले बौद्ध धर्म के प्रति शत्रुता की भावना रखता था, परंतु बाद में उस धर्म का अनुयायी हो गया। कौशांबी पुरास्थल के सुंदर दृश्यमहाराजा उदयन के बौद्ध धर्म में दीक्षित हो जाने के बाद कौशाम्बी में विहारो और विश्रामगृहों की रचना होने लगी। महात्मा बुद्ध के विश्राम करने के लिए घोषितराम सबसे अधिक भव्य और सुंदर बनवाया गया था। यह स्थान यमुना नदी के तट पर कौशाम्बी के दक्षिण पूर्व भाग में बना हुआ था, और जिसको फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी देखा था।मणिपुर धर्म – मणिपुर में धार्मिक स्थिति क्या हैबौद्ध कथानकों के आधार पर महात्मा बुद्ध का कम से कम दो बार कौशाम्बी आना सिद्ध होता हैं। इस अवसर उन्होंने कई उपदेश दिये थे। इनमे से कोसम्बियसुत्त, स्कंदसुत्त, बोधिराज कुमारसुत्त आदि अत्यंत प्रसिद्ध माने जाते है। इनमे विशेष रूप से पारंपरिक कहल तथा ढ़ोंगी गुरूओं से सचेत किया गया है। बुद्ध के समय में ही कुछ अहंकारी भिक्षुओं ने संघ में भेद डालने की चेष्टा की थी तब इस प्रवृत्ति को दूर करने की चेष्टा से महात्मा बुद्ध ने कोसम्बियसुत्त का उपदेश दिया था। कुछ बौद्ध ग्रंथों में इस बात का भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि कौशाम्बी के तीन प्रमुख सेठो- घोषित, कुक्कुट और पवारीय के निमंत्रण पर महात्मा बुद्ध कौशाम्बी पधारे थे। इन्हीं तीन भक्तों ने महात्मा बुद्ध के आवास के लिए अपने नाम से तीन विहारो को बनवाया था। तिपल्लत्थमिग जातक के अनुसार महात्मा बुद्ध के ठहरने का कौशाम्बी मे एक और स्थान था। जो बद्रीकाराम के नाम से विख्यात था, इ प्रकार से कौशाम्बी या उसके आसपास में बनाये गये चार विहारो की सूचना मिलती है। जिनकी रचना महात्मा बुद्ध के समय मैं ही हो गई थी। कौशाम्बी में दिये गए बुद्ध के उपदेशों को पढ़ने से ऐसा लगता है कि वे अपने अनुयायियों की कलह से बहुत दुखी थे। अतः कहा जाता है कि एक बार वे अपने शिष्यों से रूठ करके पारिलेयक वन में भूखे प्यासे एकांतवास करने लगे। उस समय द्रवित होकर एक बंदर ने उन्हें प्याला भर शहद प्रदान किया। तत्पश्चात उसने कुएँ में कूद कर देवयोनि प्राप्त की, इस चमत्कार का उनके शिष्यों पर बड़ा प्रभाव पड़ा और कुछ दिन तक संघ में फूट एवं कलह कम रही।कन्हेरी गुफाएं क्यों प्रसिद्ध है तथा कितनी हैराजा उदयन के पश्चात उसका पुत्र बोधिकुमार अथवा नरवाहन कौशाम्बी का राजा हुआ। वह भी बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने यहा एक भव्य प्रासाद की रचना करवायी थी। जब प्रासाद बनकर तैयार हो गया तो महात्मा बुद्ध की चरण धूलि से उसे पवित्र करने के लिए उसने उन्हें शिष्यों सहित आमंत्रित किया एवं भिक्षा दी। रणकपुर जैन मंदिर समूह – रणकपुर जैन तीर्थ का इतिहासइसके पश्चात कुछ काल तक कौशाम्बी के इतिहास का पता नहीं चलता, इसका वास्तविक इतिहास हमें सम्राट अशोक के समय से मिलता है। जब यह स्थान उसके विशाल सम्राज्य का एक प्रदेश था। और एक महामात्र द्वारा शासित होता था। उस समय यहां बौद्ध संघ की दशा सुचारू न थी। जैसा कि कौशाम्बी के महामात्रों को दी गई राज आज्ञा से प्रतीत होता है। यह राज आज्ञा इलाहाबाद के किले में स्थित अशोक की लाट पर उत्कीर्ण है। तदनंतर यह प्रदेश शृगों की राज्यसत्ता मे आया जैसा कि यहां से प्राप्त लेखों एवं मुद्राओं से ज्ञात होता है।उज्जैन महाकाल – उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर – अवंतिका तीर्थ में सप्तपुरी,इस काल में वहसतिमित नाम से किसी राजा ने पभोसा की पहाड़ियों में कौशाम्बी से दो मील दूर कस्यपोच आहर्तो के निवास के लिए गुफाएं बनवाई थी। सन् 1934 मे यहां से प्राप्त एक बुद्ध मूर्ति पर उत्कीर्ण लेख से यह ज्ञात होता है कि कनिष्क ने कौशाम्बी को अपने शासन काल के दूसरे वर्ष में ही अपने राज्य में मिला लिया था। कुषाणों की सत्ता समाप्त होने के बाद कुछ दिन कौशाम्बी भाराशिवो के राज्य का अंग रहा। किंतु यह दशा अधिक दिन न रही, और केन्द्रीय सत्ता कमजोर होने के साथ साथ कौशाम्बी स्वत्रंत हो गया। इस बीच अनेक राजाओं ने यहां राज्य किया जिनका नाम हमें यहां से प्राप्त लेखों और सिक्कों से होता है। 320 ईसवीं में गुप्तों का जब उत्कर्ष हुआ तो कौशाम्बी उनके राज्य में हो गया। 5 वी शताब्दी मे जब फाह्यान नामक प्रसिद्ध चीनी यात्री ने भारत की यात्रा की तो उसने कौशाम्बी का वर्णन करते हुए लिखा है कि मृगदाव.(सारनाथ) से 13 योजन उत्तर पश्चिम दिशा में कौशाम्बी नामक देश है। उस स्थान पर एक मंदिर है जिसका नाम घोषितराम है। वहां एक बार महात्मा बुद्ध ने निवास किया था। आजकल भी वहां बहुत से भिक्षु रहते है। जिनमें से अधिकांश हीनयान सम्प्रदाय के है। इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि 5 वी शताब्दी में कौशाम्बी उन्नत अवस्था में था, परंतु जब 7 वी शताब्दी में दूसरा चीनी यात्री ह्वेनसांग वहा पहुंचा तो उसे यह विहार भग्नावस्था में मिला। ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा के समय कौशाम्बी में दस विहारों को भग्नावस्था में देखा था। हालांकि उस समय भी वहा हीनयान शाखा के 300 भिक्षु निवास करते थे। उसने कौशाम्बी के 60 फुट ऊंचे बौद्ध मंदिर का भी उल्लेख किया है। जिसमें उदयन द्वारा बनाई गई एक चन्दन की बुद्ध मूर्ति स्थापित थी। इसके अतिरिक्त उसने घोषितराम के निर्माता सेठ घोषित के भवनों के ध्वसावशेष एक अन्य बौद्ध टेम्पल एवं स्तूप तथा महात्मा बुद्ध का स्नानागार भी देखा था। इसके ऊपरी भाग में महायान शाखा के प्रसिद्ध आचार्य वसुबन्धु रहते थे। वसुबंधु के बडे भाई असंग योगाचार विचारधारा के मूल प्रवर्तक थे। उन्हीं की विचारधारा के प्रभाव से दिण्डनाग एवं धर्मकीर्ति जैसे अतुलिक तार्किक उत्पन्न हुए। वसुबन्धु और असंग के यहां निवास करने से यह सिद्ध होता है कि इस काल में कौशाम्बी बौद्ध दर्शन का प्रधान केन्द्र था।देवगढ़ का इतिहास – दशावतार मंदिर, जैन मंदिर, किला कि जानकारी हिन्दी मेंसातवीं शताब्दी से 11 वी शताब्दी तक कौशाम्बी का प्रदेश किसी न किसी रूप में कन्नौज के राजाओं के अधिकार में रहा किंतु उनका राजनीतिक महत्व धीरे धीरे फीका पड़ता चला गया और जो कुछ बचा कुचा महत्व था वह 12 वी शताब्दी के अन्त में यवनों के आक्रमणों से लुप्त हो गया।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं कौशांबी का पता कैसे चला, कौशांबी का पता किसने लगायातब से 1836 ईसवीं तक कौशाम्बी का इतिहास अंधकार के गर्त में विलीन रहा। जब श्री कर्निघम ने खोज कर इसके प्राचीन गौरव को प्रकाश में लाये। इसके बाद सन् 1921-22 में दयाराम सहानी तथा सन् 1934-35 में ननी गोपाल मजूमदार ने यहां खुदाई की और कुछ महत्वपूर्ण इमारतें तथा मूर्तियां आदि निकाली, जिसके फलस्वरूप कौशाम्बी की पुरातत्व संबंधी वस्तुओं में जन अभिरुचि बहुत बढ़ी और लोगों ने यहां कलाकृतियों को एकत्रित करना आरम्भ किया। इनमें अधिकांश वस्तुएं प्रयागराज के संग्रहालय में है। ये वस्तुएं बडे ऐतिहासिक महत्व की है। जिसका कारण इनसे कौशाम्बी ही नही वरन सारे उत्तरी भारत के इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश पडता है। केवल मुद्राओं से ही दो दर्जन ऐसे राजाओं का नाम ज्ञात हुआ है जो अन्य किसी सूत्र से ज्ञात नहीं थे। कौशांबी के पुरास्थल से कई ऐतिहासिक इमारतों के अवशेष प्राप्त हुए है। जो आज कौशांबी के दर्शनीय स्थल बने हुए है। जिनके बारें में हम नीचे विस्तार से जानेंगेकौशांबी के पर्यटन स्थल, कौशांबी बौद्ध तीर्थ स्थल, कौशांबी पुरास्थल के दर्शनीय स्थल उदयन के किले का परकोटाकौशाम्बी के क्षेत्र में प्रवेश करते ही चारों ओर दूर तक जो टीला सा दिखाई देता है। उसे लोग उदयन के किले की चारदीवारी बताते है। इस दीवार के बाहर एक खाई थी। जिसका आभास स्थान स्थान पर बने गड्डो से होता है। इस चारदीवारी में विभिन्न परिमाणों की ईटें मिली है। जिनसे इसका अति प्राचीन होना सिद्ध होता है।अशोक स्तंभयहां भग्नावशेषों के मध्य एक 22 फुट लम्बा स्तंभ मिला है। जिसका शीर्ष भाग नष्ट हो गया है। स्तंभ चमकदार पालिश से जगमगाता है। जिससे यह अशोक के समय का ज्ञात होता है। हांलाकि इस पर अशोक का कोई लेख नहीं है। इस स्तंभ के अतिरिक्त इलाहाबाद के किले में स्थित अशोक स्तंभ भी पहले कौशाम्बी में ही था। जिस पर महामात्रों में फूट डालने वाले भिक्षु भिक्षुणियों को कौशाम्बी से निकाल देने का आदेश सम्राट अशोक ने उत्कीर्ण कराया था। उत्तर प्रदेश पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें[post_grid id=”6023″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new 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