कोंच का इतिहास आर्थिक व सामाजिक दशा Naeem Ahmad, September 5, 2022February 22, 2023 उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कोंच नगर स्थित है, यह जिले में एक तहसील है जोकि जालौन जनपद का दक्षिणी पश्चिमी चौथाई भाग है तथा यह 25°-51° और 26°-15° उत्तरी अक्षांश एवं 78°-56° और 79°18° पूर्वी देशान्तर के मध्य बसा हुआ है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि कोंच नगर जो कि उरई जिला मुख्यालय से पश्चिम की ओर 28 किमी० की दूरी पर है, 25°-49° उत्तरी अक्षांश तथा 79°10° पूर्वी देशान्तर के मध्य बसा है। Contents1 कोंच का इतिहास2 कोंच की आर्थिक दशा2.1 सामाजिक दशा2.2 भवनो के निर्माण में विभिन्न समकालीन स्थितियां एवं पृष्ठभूमि3 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— कोंच का इतिहास बुन्देलखण्ड के नन्दन वन नाम से विख्यात क्रौंच ऋषि द्वारा बसायी गयी यह कोंच नगरी अत्यन्त प्राचीन है। मेरे विचार से इस स्थान पर क्रोंच पक्षी की विशेष अधिकता थी और क्रोंच पक्षी एक ऐसा पक्षी है जिसके विषय में भविष्य पुराण के मध्यम पर्व के अध्याय 1-2 में वर्णन मिलता है कि इस पक्षी का दर्शन सैकड़ों जन्मों में किये गये पापों को नष्ट करता है। इसको देखकर नमस्कार करने से सैकड़ों ब्रहम् हत्याजित पाप नष्ट हो जाते हैं। उसके पोषण से धन तथा आयु बढ़ती है। क्रोंच पक्षी नारायण का रूप है। स्नान कर यदि प्रतिदिन इसका दर्शन किया जाये तो गृहदोष मिट जाता है। सम्राट अशोक के समय जब समूचा बुन्देलखण्ड बौद्ध की शरण में चला गया था उस समय भी यह स्थान अपने आप को बौद्ध प्रभाव से बचाये रहा और यह तथ्य इस बात से प्रमाणित है कि यहां पर बौद्ध मतावलम्बी बहुत न्यून है तथा बौद्ध प्रस्तर प्रतिमाएं भी नहीं मिलती हैं। ब्राह्मण वंशीय पुष्प मित्र के पश्चात् हर्षवर्धन का काल आया। उसके बाद यह क्षेत्र ब्राह्मण राजाओं के हाथ रहा। कोंच ने नाग, शक, गुप्त, हूण, बर्दून, कछुवाहे, कलाचुरि, चन्द्रल, अफगान, मुगल, गौड़ और बुन्देलों के वैभव और पराभव को भली भाँति देखा है। कोंच का इतिहास साक्षी है कि सन 1197-98 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कोंच और निकटवर्ती क्षेत्र हथिया लिया। कुतुबुद्दीन कालपी से होता हुआ कोंच आया। कोंच (झला पटा) मार्ग की ओर स्थित सबसे पुरानी मस्जिद (बड़ी मसजिद) लगभग उसी समय की है। कोंच का प्रशासन उस समय कालपी सूबा के अन्तर्गत था। कोंच का इतिहास मदन कोषकार के अनुसार दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान मलखान में सिरसागढ़़ पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् कोंच तक आ गया था। घायल दिल्ली सम्राट के सैन्य शिविर में एक बारादरी बनाई गई जहां उसने विश्राम किया। यही बारादरी बाराखंबा नाम से विख्यात है। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में जब बुन्देलों ने मऊ मेहोनी को अपनी राजधानी बनाया उस समय यह कोंच कुरार के खंगारों के अधीन था जिसे बुन्देलों ने अपने अधिपत्य में ले लिया अकबर के समय में एरच सरकार के अन्तर्गत यहां एक महल निर्मित किया गया जोकि मुसलमानों के कब्जे में रहा तथा ये लोग सीधे अथवा आंशिक रूप से बुन्देलों के अधीन रहे। सत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने इस क्षेत्र पर अपना वर्चस्व बना लिया। औरंगजेब छत्रसाल के उपद्रवों से काफी परेशान हो गया था। उसने छत्रसाल के दमन हेतु पहाड़ सिंह व अमानुल्ला खाँ को भेजा। कूटनीतिज्ञ छत्रसाल ने औरंगजेब के समक्ष उपस्थित होकर उसे एक मुहर भेंट की। उस समय कोंच की देखभाल शाही अधिकारी अब्दुल समद खाँ द्वारा की जा रही थी। औरंगजेब के दरबार से लौटकर छत्रसाल ने पुनः यहा पर उपद्रव शुरू किया लेकिन अ० समद खाँ द्वारा स्थिति नियंत्रण में कर ली गई।छत्रसाल चुप नहीं बैठे और उन्होंने चित्रकूट जाकर हमीद खां मुगल सेनापति को परास्त कर भगा दिया। अब्दुल समद खाँ कोंच में व हमीदखाँ द्वारा चित्रकूट में हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था जोकि छत्रसाल को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था और इसी कारण छत्रसाल ने इन दोनों का जमकर विरोध किया। सन 1630 ई० में कोंच परगना छत्रसाल के अधिकार में आ गया था। महाराज छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव को दिया गया वचन निभाया और अपनी सम्पत्ति का 1/3 भाग उन्हें सौंप दिया और कोंच मराठों के अधिपत्य में आ गया। सन 1838 ई० में कोंच अंग्रेजों के अधिकार में आ गया था। सन 1857 में अप्रैल माह में सर हयूरोज की पलटन ने कोंच पर हमला किया और क्रान्तिकारियों को कोंच छोड़ना पड़ा। कोंच में ही तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई आदि अनेक क्रान्तिकारी पुनः इकत्रित हुए। अतः पुनः सर हयूरोज ने कोंच पर हमला किया। अग्रेजों ने चारों ओर से कोंच को घेर लिया। भयानक युद्ध हुआ। दोनों ओर से काफी लोग मारे गये। कैप्टन इन-फीड की इसी जंग में खोपड़ी खुल गई। अंग्रेजों ने कोंच को पुनः जीत लिया तथा क्रान्तिकारी कालपी की ओर बढ़ गये। कोंच की आर्थिक दशा मध्यकाल में कोंच की आर्थिक दशा समुत्रंत थी। यहां का सामान्य उधम कृषि था। कृषि के सहायक उधोग धन्धे भी यहाँ पर चलते थे। कपास के साथ साथ यह कोंच नगरी गेहूँ की भी एक अच्छी मन्डी थी। इस मंडी में गुड तम्बाकू तथा चावल का भी अच्छा व्यापार होता था। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में कोंच एक विकासशील नगर के रुप में उभर रहा था। सन 1840 में यह उच्च कोटि का वाणिज्यक केन्द्र था। यहां पर 52 बैकिंग घर थे। 1860 में जब कस्टम लागू हुआ तब उससे यहां का व्यापार प्रभावित हुआ और तभी से इस कोंच नगर का व्यापार कम होने लगा। अलबत्ता इससे पूर्व कोंच के द्वारा दक्षिण भारत में नमक शकर तथा गन्ने के शीरा का उन्मुक व्यापार होता था। अच्छे व्यापार के कारण यहां पर समृद्धि थी। यहां के लोगो में अमन चैन था। इसी से लोगो ने यहां पर अपने अपने विशाल बगीचे बनवाये थे जिससे प्रदूषण तो दूर होता ही था अपितु आमदनी का स्रोत भी खुलता था। आर्थिक समृद्धि से सभी ओर खुशहाली थी। सामाजिक दशा मध्यकाल में कोंच की सामाजिक दशा भी अच्छी थी। कोंच आर्थिक रुप से सम्पन्न था जिसके कारण यहां का जन मानष शांति पूर्वक अपना जीवन यापन करता था। यहां के लोग धर्मभीरू थे तथा धार्मिक कार्यों में विशेष रुचि लेते थे और इसी कारण विभिन्न धार्मिक उत्सवों का आयोजन विशेष उल्लास के साथ यहां पर सम्पन्न होते थे। गणेश उत्सव इन उत्सवों में से एक है। शिक्षा का प्रचार प्रसार व्यक्तिगत स्तर पर ही था। पाठशालाओं का तो आभाव था परन्तु विद्या अध्ययन की रुचि अवश्य समाज में थी जिसके कारण गुरुओं के घरों पर ही विद्या अभ्यास होता था तथा समाज में गुरुजनों का अति सम्माननीय स्थान था। वर्तमान समय में तो यहां पर प्रारम्भिक कक्षाओं से स्नातक तक विद्या अध्ययन की सुविधा उपलब्ध है। समाज में स्त्रियों का सम्मान होता था तथा उश्रृंखलता का बोलबाला नहीं था। समाज के सभी वर्गों में आपस में सुन्दर ताल मेल था तथा आपसी लडाई झगडे नगण्य थे। भवनो के निर्माण में विभिन्न समकालीन स्थितियां एवं पृष्ठभूमि भवनो के निर्माण पर समाज की समकालीन स्थितियों का विशेष प्रभाव होता है। जब दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान सिरसागढ़ पर विजय प्राप्त के पश्चात् घायल अवस्था में कोंच में आये तब उनके विश्राम हेतु रातों रात एक बारादरी का निर्माण हुआ जोकि आज बारह खम्भा के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ पर समाज ने बौद्ध धर्म स्वीकार नही किया था जिसके कारण यहां पर बौद्ध भवनों का निर्माण नही हो सका। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बौद्ध स्मारकों के अभाव में यहां पर वैष्णव मन्दिरों को बहुतायत में देखा जा सकता है। यहां लक्ष्मी नारायण मन्दिर, रामलला मन्दिर, गणेश मन्दिर आदि हैं। जब 1684-85 में यहां का सूबेदार अब्दुल समद हिन्दुओं को तलवार की नोंक पर इस्लाम कबूल करने को विवस कर रहा या तो उस समय तमाम हिन्दू मन्दिरों को तोड़ कर उन्हे तकियों मस्जिदों तथा मजारों में परिवर्तित करने का भी दुश्चक्र चल रहा था यहां का जनसामान्य समृद्ध था अतः उसने समाज में आध्यात्मिक चेतना जगाए रखने की दृष्टि से विभिन्न मन्दिरों आदि का निर्माण कराया तथा सुन्दर: मजबूत अपने निवास ग्रहों का भी निर्माण कराया। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जो दतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा Uncategorized उत्तर प्रदेश के जिलेउत्तर प्रदेश पर्यटनहिस्ट्री