कैलाश मानसरोवर की यात्रा – मानसरोवर यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी Naeem Ahmad, December 2, 2018March 15, 2023 हिमालय की पर्वतीय यात्राओं में कैलाश मानसरोवर की यात्रा ही सबसे कठिन यात्रा है। इस यात्रा में यात्री को लगभग तीन सप्ताह तिब्बत में ही रहना पडता है। केवल इसी यात्रा में ही हिमालय को पूरा पार किया जाता है। दूसरी यात्राओं में तो केवल हिमालय के एक भाग के ही दर्शन होते है। कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ, गंगोत्री, स्वर्गारोहण जैसे क्षेत्रों की यात्रा में, जहां यात्री को समुद्र स्तर से बारह हजार फुट या उससे अधिक ऊंचाई पर जाना पड़ता है। वहां यात्री यदि ऑक्सीजन मास्क साथ ले जाए तो हवा पतली होने एवं हवा में ऑक्सीजन की कमी होने से होने वाले श्वांस कष्ट से वह बच जाएगा। आइए कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने से पहले हिन्दू धर्म में मानसरोवर के माहत्म्य को जान लेते है। Contents1 कैलाश मानसरोवर का महात्म्य1.1 कैलाश मानसरोवर की धार्मिक पृष्ठभूमि1.2 आवश्यक सामग्री1.3 सावधानियां1.4 कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग1.5 मानसरोवर दर्शन1.6 राक्षसताल1.7 मानसरोवर2 कैलाश दर्शन2.1 कैलाश पर्वत की परिक्रमा2.2 कैलाश पर्वत परिक्रमा मार्ग3 प्रमुख तीर्थों पर आधारित हमारें यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- कैलाश मानसरोवर का महात्म्य श्री मद्भागवत में कैलाश पर्वत को भगवान शंकर का निवास तथा अतीव रमणीय बतलाया गया है। कैलाश पर्वत पर मनुष्यों का निवास संभव नही है। क्योंकि वहा की जलवायु मनुष्यों के अनुकूल नहीं है। कैलाश मानसरोवर की परिक्रमा का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। तिब्बती लोग तीन या तेरह परिक्रमा का महत्व मानते है, और अनेक यात्री दंडप्रणिपात करके परिक्रमा पूरी करते है। माना जाता है कि कैलाश पर्वत की एक परिक्रमा करने से एक जन्म का, तथा दस परिक्रमाएं करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। यहां तक कहा जाता है कि जो मनुष्य 108 परिक्रमाएं पूरी करते है, उन्हें जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है। कैलाश मानसरोवर की धार्मिक पृष्ठभूमि कैलाश पर्वत का यह तीर्थ “मानसखंड” भी कहलाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव व ब्रह्मा, देवगण, मरीच ऋषि तथा रावण व भस्मासुर आदि ने यहां तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के बाद अर्जुन ने इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी। इस क्षेत्र की यात्रा व्यास, भीम, श्रीकृष्ण, दत्तात्रेय, इत्यादि ने भी की थी। और आदि शंकराचार्य ने इसी स्थान के आसपास अपनी देह का त्याग किया था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी ने भी यही निर्वाण प्राप्त किया था। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। इसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह स्थान सदैव बर्फ से ढका रहता है। जैन तीर्थों में इसे सिद्ध क्षेत्र माना गया है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा एक दुर्गम यात्रा है। कैलाश की यात्रा पर जाने के हमें अलग से एक विशेष तैयारी करनी पडती है। और सुरक्षा के हिसाब से भी बहुत सावधानियां बरतनी पड़ती है। जिनके बारे मे हम नीचे सूची बद्ध से बता रहे है। आवश्यक सामग्री सूती व ऊनी गरम कपडे। सिर पर ऊनी टोपी या मंकी कैप आदि। गुलूबंद या मफलर जिससे सिर और कान बांधे जा सके। ऊनी व सूती दस्ताने और मौजे। छाता बरसाती कोट व टोपी। ऐसे जूते जो बर्फ व पत्थरों पर काम दे सके। बल्लम के समान सिर के बराबर लाठी, जिसके नीचे लोहा लगा हो। दो मोटे कम्बल। एक वाटरप्रूफ कपडा जिसमें सामान भीगे नहीं। थोडी खटाई, इमली या सूखे आलूबुखारे, जो जी मचलाने पर खाए जा सके। कुछ आवश्यक दवाइयां, वैसलीन तथा चोट पर लगाने वाला मल्हम इत्यादि। मोमबत्ती, टॉर्च, अतिरिक्त बैटरी तथा लालटेन इत्यादि। भोजन बनाने के हल्के बर्तन व स्टोव इत्यादि। सावधानियां यात्रा में रूई के गददे व रजाई न ले जाएं। एक तो यह आसानी से सूखते नहीं, और दूसरा सामान का बोझ भी बढाते है। सामान अधिक न लेकर जाएं, जहां तक हो हल्के से हल्का और उपयोगी सामान रखे। पीने के पानी का बर्तन साथ रखें। पर्वतीय जल हानिकारक है। खाली पेट न खाएं पिएं। बिना कुछ खाएं यात्रा न करें किसी अपरिचित फल, फूल या पत्ते को सूंघना, छूना या खाना कष्ट दे सकता है। श्वास रोगी, ह्दय रोगी तथा गंभीर बिमारियों से गस्त या अधिक वृद्ध व्यक्ति यात्रा करने से बचे। कैलाश मानसरोवर के सुंदर दृश्य कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग कैलाश पर्वत की यात्रा का समय व स्थान चीन सरकार निश्चित करती है। यात्रा करने से पहले चीन सरकार की अनुमति लेनी पडती है। यात्रा पर पूरे दल को जाने की अनुमति मिलती है। चीन सरकार ही यात्रियों की सुविधाओं का ध्यान रखती हैं। यात्रा आरंभ करने से पहले टनकपुर रेलवे स्टेशन पहुंचकर बस द्वारा पिथौरागढ़ जाया जाता है, जो कि टनकपुर से 180 किलोमीटर है। यहां से अस्कोट तक भी सडक़ मार्ग है। अल्मोड़ा से यदि यात्रा करें तो अस्कोट तक की दूरी 135 किमी है। अस्कोट से अगला पड़ाव बलवाकोट 22 किमी है। यहां से 18 किमी आगे धारचूला नामक स्थान है। धारचूला से 22किमी पर खेला नामक स्थान है। यहां से 5000 फुट तक पैदल सीधी चढाई है। यह चढाई बहुत कठिन है। इस चढाई के बाद टिथिला नामक स्थान है। टिथिला से 8000 फुट की ऊंचाई पर गालाघर पड़ाव पड़ता है। गालाघर से निरपानी नामक स्थान अत्यंत दुर्गम है। मार्ग में दो पड़ाव आते है, मालपा और बुधी। यहां पर यात्री कुछ अधिक विश्राम करते है। इसके बाद का पड़ाव 16किमी दूर एक और रास्ते में खोजर नामक तीर्थ है। गरव्यांग से फिर चढाई शुरू होती है। लिपुलेख तक की ऊंचाई 1670 फुट है। यहां से हिमालय और तिब्बत के ऊंचे प्रदेशों का दृश्य बडा मनोहारी है। तकलाकोट से लगभग 15000 फुट ऊंचाई चढने के बाद बालढांक नामक एक पड़ाव आता है। यहां से दो रास्ते है। एक रक्षताल को जाता है तथा दूसरा गुरल्ला दर्रे को पार करते हुए मानसरोवर तक जाता है। मानसरोवर झील की परिक्रमा का घेरा लगभग 80 किमी है। दूसरी ओर रक्षताल है। इन दोनों सरोवरों का जल जमता नही है। इनके नीचे गर्म पानी के सोते है। मानसरोवर झील से 18 किमी नीचे उतरकर तारचीन नामक स्थान है। यही से कैलाश पर्वत की परिक्रमा आरंभ होती है। कैलाश पर्वत की परिक्रमा में लगभग तीन दिन का समय लग जिता है। कैलाश मानसरोवर तीन बड़ी नदियों सतलुज, सरयू, ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थल भी है। मानसरोवर दर्शन पूरे हिमालय को पार करके तिब्बती पठार में लगभग 10 मील जाने पर पर्वतों से घिरे दो महान सरोवर मिलते है। वे मनुष्य के दोनों नेत्रों के समान स्थित है। और उनके मध्य में नाक के समान ऊपर ऊठी पर्वतीय भूमि है, जो दोनों को अलग करती है। इन दोनो सरोवरों मे से एक राक्षसताल है दूसरा मानसरोवर। राक्षसताल राक्षसताल विस्तार में बहुत बड़ा है। वह गोल या चकोर नहीं है। इसकी कई भुजाएं मीलों दूर तक टेढ़ी मेढ़ी होकर पर्वतों में चली गई है। कहा जाता है कि किसी समय राक्षसराज रावण ने यही खड़े होकर देवाधिदेव भगवान शंकर की आराधना की थी। मानसरोवर मानसरोवर का आकार लगभग गोल या अंडाकार है। उसका बाहरी घेरा लगभग बाइस मील है। मानसरोवर 51 शक्तिपीठों में से भी एक है। यहां पर सती की दाहिनी हथेली इसी में गिरी थी। इसका जल अत्यंत स्वच्छ और अद्भुत नीलापन लिए हुए है। मानसरोवर में हंस बहुत है। राजहंस भी है और सामान्य हंस भी। सामान्य हंसों की भी दो जातियां है। एक मटमैले सफेद रंग के तथा दूसरे बादामी रंग के है। ये आकार में बत्तखों से बहुत मिलते है, परंतु इनकी चोंचें बत्तखों से बहुत पतली है। पेट का भाग भी पतला है और ये पर्याप्त ऊंचाई पर दूर तक उड़ते है। मानसरोवर में मोती होते है या नहीं, इसका पता नहीं, परंतु तट पर उनके होने का कोई चिन्ह नही है। कमल उसमें सर्वथा नहीं है। एक जाति की सिवार अवश्य है। किसी समय मानसरोवर का जल राक्षसताल में जाता था। जलधारा का वह स्थान तो अब भी है, परंतु वह भाग अब ऊंचा हो गया है। प्रत्यक्ष में मानसरोवर से कोई नदी या छोटा झरना भी नहीं निकलता, परंतु मानसरोवर पर्याप्त उच्च प्रदेश में है। मानसरोवर के आसपास कहीं कोई वृक्ष नहीं है। कोई पुष्प नहीं है। इस क्षेत्र मे छोटी घास और अधिक से अधिक सवा फुट तक ऊंची उठने वाली एक कंटीली झाडी को छोड़कर और कोई पौधा नहीं है। मानसरोवर का जल सामान्य शीतल है। इसमें आराम से स्नान किया जा सकता है। इस तट पर रंग बिरंगे पत्थर और कभी कभी स्फटिक के छोटे टुकड़े भी पाएं जाते है। कैलाश मानसरोवर के सुंदर दृश्य कैलाश दर्शन मानसरोवर झील से कैलाश पर्वत की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। इसके दर्शन मानसरोवर पहुंचने से पहले ही होने लगते है। तिब्बत के लोगों में कैलाश पर्वत के प्रति अपार श्रृद्धा है। अनेक तिब्बत निवासी पूरे कैलाश की परिक्रमा दंडवत प्रणियात करते हुए पूरी करते है। कैलाश पर्वत शिवलिंग के आकार का है। यह आसपास के सभी शिखरों से ऊंचा है। यस कसौटी के ठोस काले पत्थरों का है। यह ऊपर से नीचे तक दूध जैसी सफेद बर्फ से ढ़का रहता है। कैलाश के शिखर के चारों कोनों में ऐसी मंदिराकृति प्राकृतिक रूप से बनी है, जैसे बहुत से मंदिरों के शिखरों पर चारों ओर बनी होती है। कैलाश पर्वत एक असामान्य पर्वत है। यह समस्त हिम शिखरों से सर्वथा भिन्न और दिव्य है। कैलाश पर्वत की परिक्रमा कैलाश पर्वत की परिक्रमा लगभग 50 किमी की है। जिसे यात्री प्रायः तीन दिनों मे पूरा करते है। यह परिक्रमा कैलाश शिखर के चारों ओर के कमलाकार शिखरों के साथ होती है। कैलाश शिखर अस्पृश्य है। यात्रा मार्ग से लगभग ढाई किमी की सिधी चढ़ाई करके ही इसे स्पर्श किया जा सकता है। यह चढ़ाई पर्वतारोहण की विशिष्ट तैयारी के बिना संभव नहीं है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 22 हजार फुट बताई जाती है। कैलाश के दर्शन एवं परिक्रमा करने पर शांति एवं पवित्रता का अनुभव होता है। आइए आगे कैलाश पर्वत कि परिक्रमा मार्ग के बारें में भी जान लेते है। कैलाश पर्वत परिक्रमा मार्ग तारचीन से लंडीफू:– चार मील मार्ग से, परंतु मार्ग से एक मील तथा सीधी चढ़ाई करके उतर आना पड़ता है। डेरफू:– 8मील, यहां से सिंध नदी का उद्गम एक मील और ऊपर है। गौरीकुंड:– 3मील, कडी चढ़ाई बर्फ समुद्र स्तर से 11 हजार फुट ऊंचाई पर। जंडलफू:– 11मील, दो मील कडी उतराई। दरचिन:– 6मील। प्रमुख तीर्थों पर आधारित हमारें यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- हरिद्वार ( मोक्षं की प्राप्ति) haridwar sapt puri teerth in hindi उतराखंड राज्य में स्थित हरिद्धार जिला भारत की एक पवित्र तथा धार्मिक नगरी के रूप में दुनियाभर में प्रसिद्ध है। राधा कुंड यहाँ मिलती है संतान सुख प्राप्ति – radha kund mthura राधा कुंड :- उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर को कौन नहीं जानता में समझता हुं की इसका परिचय कराने की सोमनाथ मंदिर का इतिहास somnath tample history in hindi भारत के गुजरात राज्य में स्थित सोमनाथ मदिर भारत का एक महत्वपूर्ण मंदिर है । यह मंदिर गुजरात के सोमनाथ अजमेर शरीफ दरगाह ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ajmer dargaah history in hindi भारत के राजस्थान राज्य के प्रसिद्ध शहर अजमेर को कौन नहीं जानता । यह प्रसिद्ध शहर अरावली पर्वत श्रेणी की वैष्णो देवी यात्रा माँ वैष्णो देवी की कहानी veshno devi history in hindi जम्मू कश्मीर राज्य के कटरा गाँव से 12 किलोमीटर की दूरी पर माता वैष्णो देवी का प्रसिद्ध व भव्य मंदिर बद्रीनाथ धाम – बद्रीनाथ मंदिर चार धाम यात्रा का एक प्रमुख धाम – बद्रीनाथ धाम की कहानी उत्तराखण्ड के चमोली जिले मे स्थित व आकाश की बुलंदियो को छूते नर और नारायण पर्वत की गोद मे बसे भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का महत्व -भीमशंकर मंदिर भारत देश मे अनेक मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। लेकिन उनमे 12 ज्योतिर्लिंग का महत्व ज्यादा है। माना जाता कैलाशनाथ मंदिर कांचीपुरम – शिव पार्वती का नृत्य भारत के राज्य तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर की पश्चिम दिशा में स्थित कैलाशनाथ मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और भव्य मल्लिकार्जुन मंदिर की कहानी – मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास हिन्दी में प्रिय पाठको पिछली 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