केशवरायपाटन अनादि निधन सनातन जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर भगवान मुनीसुव्रत नाथ जी के प्रसिद्ध जैन मंदिर तीर्थ क्षेत्र और भागवान केशवराय जी महाराज, तथा भगवान विष्णु के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है जो राजस्थान के बूंदी जिले में चम्बल नदी के तट पर स्थित है। राजस्थान से प्रमुख शहर कोटा से केशवरायपाटन की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। केशवरायपाटन शहर नहीं है लेकिन देहात भी नहीं है लेकिन देहात भी नहीं कहा जा सकता। केशवरायपाटन तहसील है जो बूंदी जिले का कस्बा है। कार्तिक पूर्णिमा पर केशवरायपाटन में विशाल मेला लगता है। इस अवसर पर देश के कोने कोने से आए हजारों श्रृदालु जन श्री केशवराय जी, चारभुजा जी एवं जम्बुकेश्वर महादेव के दर्शन व पूजा अर्चना करते है।
केशवरायपाटन टेम्पल हिस्ट्री इन हिन्दी
केशवरायपाटन के इतिहास पर नजर डाले तो आभास होता है कि किसी समय यह बडी भव्य नगरी रही होगी। क्योंकि वायु पुराण के अनुसार चौरासी कोस के जम्बू भाग के बीच इसका स्थान-विस्तार पांच कोस माना गया है। परशुराम जमदग्नि संवाद के बीच इस प्रसंग पर पर्याप्त चर्चा हुई है। यथा हरिवंश पुराण में भी जम्बुकाराय और केशवरायपाटन के पुण्य महात्मय पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। जैसा की हमने ऊपर जिक्र किया कि किसी समय यह भव्य नगरी रही होगी। यह इससे सिद्ध होता है कि केशवराय पाटन में और उसके आसपास कितने ही देवालय खंडहर हुए पड़े है। और कितने ही समय के साथ भूमि में धंस गए है। और न जाने कितने ही वर्तमान विकास की भेंट चढ़ गए है। और न जाने कितने ही जनसकुल मार्गों से दूर वीरानियत की खामोशी में अपने अतीत की स्मृतियां संजोये पड़े है।
केशवरायपाटन मंदिर के सुंदर दृश्य
केशवरायपाटन की परिधि में मुख्य देवालयों में श्री केशवरायपाटन का मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है। चैत्र की पूर्णिमा पर इसका विशाल प्रांगण श्रृद्धालुओं के पदचाप से भर उठता है। केशवरायपाटन मंदिर में राव राजा रघुवीर सिंह (बूंदी) का विक्रमी सन् 1959 में लगवाया गया एक शिलालेख है। जिसके अनुसार केशवरायपाटन मंदिर का निर्माण बूंदी के राव राजा श्री शत्रुशल्य जी ने सन् 1698 विक्रमी में करवाकर किसी जीर्ण मंदिर से उठाई गई दो प्रतिमाएं इसमें स्थापित की थी। एक प्रतिमा श्री केशवरायजी की जो श्वेत संगमरमर की है और मुख्य मंदिर में है, तथा दूसरी श्री चारभुजा जी की कृष्ण मूर्ति जो परिक्रमा के मंदिर में है।
केशवरायपाटन मंदिर विष्णु तीर्थ से ठीक ऊपर नदी तट से दौ सौ फीट की ऊचाई पर है। जिसमें अंदर बाहर सर्वत्र विविध प्रकार की पशु आकृतियां, मनुष्य आकृतियां, नृत्य मुद्राएं और भगवान श्री कृष्ण संबंधी भागवत कथाएं मूर्ति रूप में उत्कीर्ण है। मंदिर के अंदर की प्रतिमाओं पर चटकीले रंग है, जबकि बाहरी दीवारों की प्रतिमाएं बार बार चूना पोते जाने के कारण दब गई है। मंदिर के बीचोंबीच बने गरूड़ ध्वज से संगमरमर की गरूड मूर्ति हाथ जोडें हुए श्री केशवरायजी को देख रही है।
इसी प्रकार पाटन के दक्षिणी छोर पर भगवान सुव्रतनाथ का जैन मंदिर स्थित है। जिसमें जैन तीर्थंकरों की विविध रंग के पत्थरों की कलात्मक प्रतिमाएं है। मुख्य छतरी के नीचे एक गुहा है जिसे “भैं देहड़ा” कहा जाता है। इसके अलावा केशवरायपाटन के दर्शनीय स्थलों में मैत्री के हनुमान का मंदिर नगर के उत्तर पूर्व में लगभग छः फर्लांग की दूरी पर स्थित है। मंदिर अति प्राचीन शिवालय कहा जाता है। जिसमें महावीर जी की स्थापना होल्कर द्वारा की गई बताते है। पुराण के अनुसार मैत्रावरुण ऋषि ने इस स्थान पर तप किया था। फिर ब्रह्मा जी ने यहां श्वेत वाहन पर आरूढ हो शुभ्ररूप से प्रकट हुए और यज्ञ पूरा होने पर यज्ञकुंड को जल पूर्ण कर शिवलिंग रूप से अवस्थित हुए।
बराह तीर्थ पाटन से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह बूंदी रोड़ से लगभग पचास गज दूर स्थित हैं। यह मंदिर भी बहुत पुराना है। धरती पर बहुत पुराने समय का फर्श है। गुम्बद पर सिंह प्रतिमाएं बनी है। मंदिर में वराह भगवान की मूर्ति बड़ी सुडौलता व सावधानी से गढ़ी गई है। जो लगभग साढ़े चार फीट की है। एक और दर्शनीय स्थान है जल के जम्बूजी नदी के मध्य होने से यह स्थान वर्षा काल में जलमग्न हो जाता हैं। यह ठीक उस स्थल पर जहाँ नदी पूर्व की ओर मुडती है। इसे श्वेत वाहन सुखेश्वर तीर्थ भी कहा जाता हैं। यहां दो शिवलिंग व नंदी की प्रतिमा है। अवंतिका पुरी के सुदेव ब्राह्मण की अंतर्कथा इस के साथ जुडी हुई है।
केशवरायपाटन मंदिर के सुंदर दृश्य
इनके अलावा भी केशवरायपाटन के दर्शन योग्य स्थलों में कितने ही देवालय है। जिनका सबका अपना अपना अलग पौराणिक इतिहास है। इनमें रूद्रतीर्थ, ऋणमोचन तीर्थ, स्वर्गद्वार, गौ तीर्थ, पंचरूद्र अथवा अग्नितीर्थ, सौपर्ण तीर्थ, सारवथ, ब्राह्मणी सर, वैकुंठ श्वेतवाहन, विश्राम तीर्थ, मुक्ति तीर्थ, श्री करकरा भैरव आदि प्रमुख है।
केशवराय पाटन का महत्व
हरिवंश पुराण तथा वायु पुराण इन प्रतिमाओं की कीर्ति कथा तथा इस समुचे प्रदेश के आख्यानों से भरे हुए हैं। कहते है कि परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर मानविक शांति के लिए इसी स्थान पर तप किया था। इसके अलावा भगवान विष्णु कल्पवृक्ष लाते समय यहां विश्राम के लिए रूके थे। और पांड़व भी युधिष्ठिर के साथ जंबुकाराय की यात्रा के समय यहां पधारे थे।
श्री केशवरायजी व चारभुजा की मूर्तियों के संबंध मे एक पौराणिक आख्यान यह भी है कि राजा रंतिदेव के यज्ञ व तप से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वर दिया “राजन” जम्बुकाराय में पाटन नामक पुण्य क्षेत्र में जहाँ तुम्हारे यज्ञ से उत्पन्न चर्मरावती नामक गंगा के किनारे जम्बू भार्गेश्वर शिव विराजमान है। वहीं जाकर तुम मेरी आराधना करो तुम्हारे ध्यानानुसार वहां मेरे दो सुंदर विग्रह श्याम और शुभ्र इस नदी से प्रकट होगें। श्याम विग्रह मे तुम्हारी भी प्रतिमाएं होगीं उनकी सेवा कर अंत में तुम मेरी उसी विग्रह में समाविष्ट हो जाओगे। राजा रंतिदेव यह सुनकर कार्तिक कृष्ण अष्टमी को सपरिवार पाटन आएं। तथा नवमी को उन्होंने ऋषि मुनियों सहित परिक्रमा की व यज्ञ किया, फिर जल में फूलों की डालियां भगवान के आदेशानुसार बहाई, वे जहाँ एकत्र हुई वहां भगवान के दो विग्रह एक श्याम वर्तमान चारभुजा जी व दूसरा शुभ्र वर्तमान केशवरायजी प्राप्त हुए। जिन्हें राजा ने कार्तिक शुक्ला 11 शुक्रवार को पधराया तथा पूर्णिमा तक विशेष महोत्सव किया। तथा विक्रमी सन् 1698 में जब शत्रुशल्य जी ने इन प्रतिमाओं को केशवरायजी का वर्तमान मंदिर बनाकर उसमें स्थापित किया।
केशवरायपाटन मंदिर के सुंदर दृश्य
और इनकी सेवा पूजा के लिए ब्रजनाथ जी की पद्धति का वल्लभ संप्रदाय वाला विधान घोषित किया और अब तक इनकी पूजा उसी ब्रजनाथ जी के विधान से चली आ रही है। जिसके अंतर्गत मंगल आरती, स्नान, श्रृंगार, कीर्तन, कथा पुराण, श्रवण, श्रृंगार विसर्जन, राजभोग, शयन, उत्थापन, महाभोग, श्रृंगार धारण, सांयकाल आरती, भजन कीर्तन, मृगादिगान, व्यालू भोग, नर्तकियों का गान व शयन के कार्यक्रम दिनचर्या के रूप में होते है। यह क्रम प्रातःकाल तीन बजे से रात्रि नौ बजे तक चलता रहता है। इतिहास के अनुसार हम्मीर रणथंभौर वाले ने श्री जम्बुकेश्वर का रत्नों से पूजन कर राज महिषी सहित तुलादान किया था। यह राज्य बूंदी के अंतर्गत आता है किन्तु बूंदी के राव राजा उम्मेद सिंह ने सन् 1801 विक्रमी मे केशवरायपाटन तथा बरौधन के परगने ब्रजनाथ जी को भेंट कर दिये थे। बाद में यह स्थान मरहठों के अधिकार में चला गया जिसमें मालगुजारी के दस मे से छः हिस्से सिन्धिया लेता था और चार हिस्से होल्कर इस समय यह बूंदी जिले में है। इस प्रकार केशवरायपाटन आध्यात्मिक पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व की लोक नगरी है।
प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताए। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है।
राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-
पश्चिमी राजस्थान जहाँ रेगिस्तान की खान है तो शेष राजस्थान विशेष कर पूर्वी और दक्षिणी राजस्थान की छटा अलग और
जोधपुर का नाम सुनते ही सबसे पहले हमारे मन में वहाँ की एतिहासिक इमारतों वैभवशाली महलों पुराने घरों और प्राचीन
भारत के राजस्थान राज्य के प्रसिद्ध शहर अजमेर को कौन नहीं जानता । यह प्रसिद्ध शहर अरावली पर्वत श्रेणी की
प्रिय पाठकों पिछली पोस्ट में हमने हेदराबाद के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल व स्मारक के बारे में विस्तार से जाना और
प्रिय पाठकों पिछली पोस्ट में हमने जयपुर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल
हवा महल की सैर की थी और उसके बारे
प्रिय पाठको जैसा कि आप सभी जानते है। कि हम भारत के राजस्थान राज्य के प्रसिद् शहर व गुलाबी नगरी
प्रिय पाठको जैसा कि आप सब जानते है। कि हम भारत के राज्य राजस्थान कीं सैंर पर है । और
पिछली पोस्टो मे हमने अपने जयपुर टूर के अंतर्गत
जल महल की सैर की थी। और उसके बारे में विस्तार
इतिहास में वीरो की भूमि चित्तौडगढ का अपना विशेष महत्व है। उदयपुर से 112 किलोमीटर दूर चित्तौडगढ एक ऐतिहासिक व
जैसलमेर भारत के राजस्थान राज्य का एक खुबसूरत और ऐतिहासिक नगर है। जैसलमेर के दर्शनीय स्थल पर्यटको में काफी प्रसिद्ध
अजमेर भारत के राज्य राजस्थान का एक प्राचीन शहर है।
अजमेर का इतिहास और उसके हर तारिखी दौर में इस
अलवर राजस्थान राज्य का एक खुबसूरत शहर है। जितना खुबसूरत यह शहर है उतने ही दिलचस्प अलवर के पर्यटन स्थल
उदयपुर भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख शहर है। उदयपुर की गिनती भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलो में भी
वैष्णव धर्म के वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख तीर्थ स्थानों, मैं
नाथद्वारा धाम का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। नाथद्वारा दर्शन
चंबल नदी के तट पर स्थित, कोटा राजस्थान, भारत का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। रेगिस्तान, महलों और उद्यानों के
राजा राणा कुम्भा के शासन के तहत, मेवाड का राज्य रणथंभौर से
ग्वालियर तक फैला था। इस विशाल साम्राज्य में
झुंझुनूं भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख जिला है। राजस्थान को महलों और भवनो की धरती भी कहा जाता
भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर जिले मे स्थित
पुष्कर एक प्रसिद्ध नगर है। यह नगर यहाँ स्थित प्रसिद्ध पुष्कर
बीकानेर जंक्शन रेलवे स्टेशन से 30 किमी की दूरी पर,
करणी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक शहर
जोधपुर से 245 किमी, अजमेर से 262 किमी, जैसलमेर से 32 9 किमी, जयपुर से 333 किमी,
दिल्ली से 435
भारत की राजधानी दिल्ली से 268 किमी की दूरी पर स्थित जयपुर, जिसे गुलाबी शहर (पिंक सिटी) भी कहा जाता
सीकर सबसे बड़ा थिकाना राजपूत राज्य है, जिसे शेखावत राजपूतों द्वारा शासित किया गया था, जो शेखावती में से थे।
भरतपुर राजस्थान की यात्रा वहां के ऐतिहासिक, धार्मिक, पर्यटन और मनोरंजन से भरपूर है। पुराने समय से ही भरतपुर का
28,387 वर्ग किमी के क्षेत्र के साथ
बाड़मेर राजस्थान के बड़ा और प्रसिद्ध जिलों में से एक है। राज्य के
दौसा राजस्थान राज्य का एक छोटा प्राचीन शहर और जिला है, दौसा का नाम संस्कृत शब्द धौ-सा लिया गया है,
धौलपुर भारतीय राज्य राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में स्थित है और यह लाल रंग के सैंडस्टोन (धौलपुरी पत्थर) के लिए
भीलवाड़ा भारत के राज्य राजस्थान का एक प्रमुख ऐतिहासिक शहर और जिला है। राजस्थान राज्य का क्षेत्र पुराने समय से
पाली राजस्थान राज्य का एक जिला और महत्वपूर्ण शहर है। यह गुमनाम रूप से औद्योगिक शहर के रूप में भी
जोलोर जोधपुर से 140 किलोमीटर और
अहमदाबाद से 340 किलोमीटर स्वर्णगिरी पर्वत की तलहटी पर स्थित, राजस्थान राज्य का एक
टोंक राजस्थान की राजधानी जयपुर से 96 किमी की दूरी पर स्थित एक शांत शहर है। और राजस्थान राज्य का
राजसमंद राजस्थान राज्य का एक शहर, जिला, और जिला मुख्यालय है। राजसमंद शहर और जिले का नाम राजसमंद झील, 17
सिरोही जिला राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित है। यह उत्तर-पूर्व में जिला पाली, पूर्व में जिला उदयपुर, पश्चिम में
करौली राजस्थान राज्य का छोटा शहर और जिला है, जिसने हाल ही में पर्यटकों का ध्यान आकर्षित किया है, अच्छी
सवाई माधोपुर राजस्थान का एक छोटा शहर व जिला है, जो विभिन्न स्थलाकृति, महलों, किलों और मंदिरों के लिए जाना
राजस्थान राज्य के जोधपुर और बीकानेर के दो प्रसिद्ध शहरों के बीच स्थित,
नागौर एक आकर्षक स्थान है, जो अपने
बूंदी कोटा से लगभग 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शानदार शहर और राजस्थान का एक प्रमुख जिला है।
कोटा के खूबसूरत क्षेत्र से अलग बारां राजस्थान के हाडोती प्रांत में और स्थित है। बारां सुरम्य जंगली पहाड़ियों और
झालावाड़ राजस्थान राज्य का एक प्रसिद्ध शहर और जिला है, जिसे कभी बृजनगर कहा जाता था, झालावाड़ को जीवंत वनस्पतियों
हनुमानगढ़, दिल्ली से लगभग 400 किमी दूर स्थित है। हनुमानगढ़ एक ऐसा शहर है जो अपने मंदिरों और ऐतिहासिक महत्व
चूरू थार रेगिस्तान के पास स्थित है, चूरू राजस्थान में एक अर्ध शुष्क जलवायु वाला जिला है। जिले को। द
गोगामेड़ी राजस्थान के लोक देवता गोगाजी चौहान की मान्यता राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल, मध्यप्रदेश, गुजरात और दिल्ली जैसे राज्यों
भारत में आज भी लोक देवताओं और लोक तीर्थों का बहुत बड़ा महत्व है। एक बड़ी संख्या में लोग अपने
शीतला माता यह नाम किसी से छिपा नहीं है। आपने भी शीतला माता के मंदिर भिन्न भिन्न शहरों, कस्बों, गावों
सीताबाड़ी, किसी ने सही कहा है कि भारत की धरती के कण कण में देव बसते है ऐसा ही एक
गलियाकोट दरगाह राजस्थान के डूंगरपुर जिले में सागबाडा तहसील का एक छोटा सा कस्बा है। जो माही नदी के किनारे
यूं तो देश के विभिन्न हिस्सों में जैन धर्मावलंबियों के अनगिनत तीर्थ स्थल है। लेकिन आधुनिक युग के अनुकूल जो
प्रिय पाठकों अपने इस लेख में हम उस पवित्र धरती की चर्चा करेगें जिसका महाऋषि कपिलमुनि जी ने न केवल
मुकाम मंदिर या मुक्ति धाम मुकाम विश्नोई सम्प्रदाय का एक प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है। इसका कारण
माँ कैला देवी धाम करौली राजस्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यहा कैला देवी मंदिर के प्रति श्रृद्धालुओं की
राजस्थान के दक्षिण भाग में उदयपुर से लगभग 64 किलोमीटर दूर उपत्यकाओं से घिरा हुआ तथा कोयल नामक छोटी सी
राजस्थान के शिव मंदिरों में एकलिंगजी टेम्पल एक महत्वपूर्ण एवं दर्शनीय मंदिर है। एकलिंगजी टेम्पल उदयपुर से लगभग 21 किलोमीटर
भारत के राजस्थान राज्य के सीकर से दक्षिण पूर्व की ओर लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर हर्ष नामक एक
राजस्थान की पश्चिमी धरा का पावन धाम रूणिचा धाम अथवा
रामदेवरा मंदिर राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोक तीर्थ है। यह
नाकोड़ा जी तीर्थ जोधपुर से बाड़मेर जाने वाले रेल मार्ग के बलोतरा जंक्शन से कोई 10 किलोमीटर पश्चिम में लगभग
राजस्थान राज्य के दक्षिणी भूखंड में आरावली पर्वतमालाओं के बीच प्रतापगढ़ जिले की अरनोद तहसील से 2.5 किलोमीटर की दूरी
सती तीर्थो में राजस्थान का झुंझुनूं कस्बा सर्वाधिक विख्यात है। यहां स्थित
रानी सती मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यहां सती
राजस्थान के पश्चिमी सीमावर्ती जिले जोधपुर में एक प्राचीन नगर है ओसियां। जोधपुर से ओसियां की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है।
डिग्गी धाम राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर टोंक जिले के मालपुरा नामक स्थान के करीब
सभी लोक तीर्थों की अपनी धर्मगाथा होती है। लेकिन साहिस्यिक कर्मगाथा के रूप में रणकपुर सबसे अलग और अद्वितीय है।
भारतीय मरूस्थल भूमि में स्थित राजस्थान का प्रमुख जिले जैसलमेर की प्राचीन राजधानी लोद्रवा अपनी कला, संस्कृति और जैन मंदिर
नगर के कोलाहल से दूर पहाडियों के आंचल में स्थित प्रकृति के आकर्षक परिवेश से सुसज्जित राजस्थान के जयपुर नगर के
राजस्थान के सीकर जिले में सीकर के पास सकराय माता जी का स्थान राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक
केतूबाई बूंदी के राव नारायण दास हाड़ा की रानी थी। राव नारायणदास बड़े वीर, पराक्रमी और बलवान पुरूष थे। उनके
जयपुर के मध्यकालीन सभा भवन, दीवाने- आम, मे अब जयपुर नरेश सवाई
मानसिंह संग्रहालय की आर्ट गैलरी या कला दीर्घा
राजस्थान की राजधानी जयपुर के महलों में
मुबारक महल अपने ढंग का एक ही है। चुने पत्थर से बना है,
राजस्थान की राजधानी जयपुर के ऐतिहासिक भवनों का मोर-मुकुट
चंद्रमहल है और इसकी सातवी मंजिल ''मुकुट मंदिर ही कहलाती है।
राजस्थान की राजधानी और गुलाबी नगरी जयपुर के ऐतिहासिक इमारतों और भवनों के बाद जब नगर के विशाल उद्यान जय
राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर प्रासाद और
जय निवास उद्यान के उत्तरी छोर पर तालकटोरा है, एक बनावटी झील, जिसके दक्षिण
जयपुर नगर बसने से पहले जो शिकार की ओदी थी, वह विस्तृत और परिष्कृत होकर
बादल महल बनी। यह जयपुर
जयपुर में आयुर्वेद कॉलेज पहले महाराजा संस्कृत कॉलेज का ही अंग था। रियासती जमाने में ही सवाई मानसिंह मेडीकल कॉलेज