कुंभकोणम दक्षिण भारत का प्रसिद्ध तीर्थ है। यह तमिलनाडु राज्य में चिदंबरम से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्रति बारहवें वर्ष यहां कुंभ का मेला लगता है। जिसमें लाखों की संख्या में यात्री एकत्र होते है। तथा कावेरी नदी के इस परम पवित्र तट पर स्नान करते है। कुंभकोणम का संस्कृत नामकुंभघोवणहै। कहते है कि ब्रह्मा जी ने एक घड़ा (कुंभ) अमृत से भरकर रखा था। उस कुंभ की नासिका (घोणा अर्थात मुख) के समीप एक छिद्र में से अमृत चूकर बाहर निकल आया, और उससे यहां की पांच कोस तक की भूमि भीग गई। इसी से इसका नाम कुंभघोण ( कुंभकोण) पड़ गया। कावेरी से जल निकाल लिए जाने के कारण गर्मियों में कावेरी पूर्णतः सूखी रहती है। इस तीरथ स्थल पर आनेक मंदिर है। परंतु पांच मंदिर मुख्य माने जाते है।
- कुंभेश्वर (यह इस तीर्थ का सर्वप्रमुख मंदिर है।
- शार्गपाणि
- नागेश्वर
- रामस्वामी
- चक्रपाणी
इसके आलावा इस तीर्थ स्थल में एक महामघम सरोवर जिसका इस तीर्थ स्थान पर काफी बडा महत्व है।
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कुंभकोणम की धार्मिक पृष्ठभूमि
पुराणों में जिस कामकोष्णुपुरी का उल्लेख आता है, वह कुंभकोणम ही है। कहा जाता है कि प्रलयकाल में ब्रह्मा जी ने सृष्टि की उपादान-भूता मूल प्रकृति को एक घड़े में रखकर यहीं स्थापित कर दिया था, तथा सृष्टि के प्रारंभ में यहां से उस घडे को लेकर सृष्टि की रचना की। एक मत यह भी है कि ब्रह्मा जी के यज्ञ में भगवान शंकर अमृत कुंभ लेकर प्रकट हुए थे।

कुंभकोणम दर्शन – कुंभकोणम के दर्शनीय स्थल
कावेरी नदी
रेलवे स्टेशन से लगभग डेढ़ मील पर नगर के उत्तर में कावेरी नदी है। यदि उसमें जल हो तो वहां स्नान किया जा सकता है। कावेरी तट पर पक्का घाट बना हुआ है। तट पर महाकालेश्वर महादेव तथा दूसरे अनेकों देव मंदिर है।
महामाया मंदिर
कावेरी तट से कुछ आगे दाहिनी ओर इंद्र तथा बांयी ओर महामाया का मंदिर है। महामाया मंदिर में जो महाकाली की मूर्ति है, कहा जाता है कि वह स्वयं प्रकट हुई थी। समयपुरम नामक गांव के देवी मंदिर में एक दिन पुजारी ने देखा कि एक ओर भूमि फटी है, और उससे एक मूर्ति का मस्तक दिख रहा है। धीरे धीरे वह मूर्ति स्वयं ऊपर आ गई। वह मूर्ति वहां से लाकर यहां महामाया मंदिर में स्थापित की गई।
महामघम
जब कावेरी नदी में जल नहीं होता है, तो यात्री महामघम सरोवर में स्नान करते है। वैसे भी स्नान के लिए यही पुण्य तीर्थ माना जाता है। यद्यपि साफ सफाई न होने के कारण उसके जल में कीडे पड़ जाते है। सरोवर बहुत बड़ा है। कुंभपर्व के समय यात्री इसी में स्नान करते है।
नागेश्वर मंदिर
महामघम सरोवर से कुंभेश्वर मंदिर की ओर जाते समय यह मंदिर सबसे पहले मिलता है। इसमें भगवान शिव लिंग मूर्ति है। भगवान सूर्य ने यहां शंकर जी की आराधना की थी। इसके प्रमाण रूप में नागेश्वर लिंग पर वर्ष में किसी किसी दिन सूर्य किरणे गिरती देखी जाती है।
कुंभेश्वर मंदिर
नागेश्वर मंदिर से थोडी ही दूरी पर कुंभेश्वर मंदिर है। यही इस तीर्थ का मुख्य मंदिर है। इसका गोपुर बहुत ऊंचा है। मंदिर का घेरा बहुत बड़ा है। इसमें कुंभेश्वर लिंग मूर्ति मुख्य पीठ पर है। यह मूर्ति घड़े के आकार की है। मंदिर में ही पार्वती का मंदिर है। पार्वती जी को मंगलाम्बिका कहते है।
शार्गपाणि मंदिर
मार्ग ऐसा है कि पहले महामघम सरोवर से शार्गपाणि मंदिर दर्शन करके तब कुंभेश्वर के दर्शन के लिए जा सकते है, या कुंभेश्वर के दर्शन करके इस मंदिर में आ सकते है। शार्गपाणि मंदिर विशाल है। इसके भीतर स्वर्ण मंडित गरूड स्तंभ है। मंदिर की रथाकृति इस बात को घोषित करती है, कि भगवान शार्गपाणि इसी रथ में आसीन होकर वैंकुंठ धाम से यहां पधारे थे।
यहां की कथा है कि भृगु ने जब भगवान की छाती पर लात मारी तब भगवान ने भृगु को कोई दंड तो दिया ही नहीं, उलटे उनसे क्षमा मांगी। तब लक्षमीजी नारायण से रूठ गई। वे रूठकर यहां आयी। यहां हेम ऋषि के यहां कन्या रूप में अवतीर्ण हुई। भगवान नारायण भी अपनी नित्य प्रिय लक्ष्मी जी का वियोग सहन नहीं कर सके। वे भी यहां पधारे तथा उन्होंने ऋषि कन्या से विवाह कर लिया। तभी से शार्गपाणि और लक्ष्मी जी यहां श्री विग्रह रूप में स्थित हैं। शार्गपाणि मंदिर के पास एक सुंदर सरोवर है। इसे हेमपुष्करिणी कहते है।
वेदनारायण मंदिर
यह मंदिर कुंभकोणम के समीप ही है। कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में यहीं ब्रह्मा जी ने नारायण का भजन किया था। उस यज्ञ में वेदनारायण प्रकट हुए थे। भगवान ने वहां अवभृथ स्नान के लिए कावेरी नदी को बुला लिया था। वह अब भी वहां हरिहर नदी के रूप में है।
भगवान शंकराचार्य का कामकोटि पीठ यवनकाल में कांची से यहां आगया था और अब भी यही है। वर्तमान पीठाधिपति आजकल कांची में रहते है।
त्रिभुवनम
यह तंजौर जिले में कुंभकोणम के निकट एक छोटी सी बस्ती है। मंदिर के अधिष्ठाता श्री कम्पहरेश्वर देव के नाम से विख्यात है। कहा जाता है, यह नाम एक राजा के पिशाचजनित कम्प को दूर करने से पड़ा। राजा से अनजाने में एक ब्राह्मण की हत्या हो गई थी, और इसी से वह पिशाचग्रस्त हो गया। यही शरभदेव की, (भगवान शिव के शरभावतार, जो नरसिंह भगवान को शांत करने के लिए हुआ था,) एक धातु प्रतिमा है, जो अत्यंत आकर्षक है।
दारासुरम
दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर कुंभकोणम से दक्षिण पश्चिम की ओर केवल दो मील की दूरी पर है। यह इधर के 18 प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान शंकर यहां एक रूद्राक्ष वृक्ष के रूप में प्रकट हुए थे, तथा पत्तियां विभिन्न ऋषि, महर्षि तथा देवताओं की आकृतियां थी। यहां एक सरोवर भी है, कहा जाता है कि यहां सरोवर का जल भगवान शंकर के त्रिशूल से प्रकट हुआ था। इस तालाब को यमतीर्थ कहा जाता है।
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