कांचीपुरम का इतिहास और दर्शनीय स्थल Naeem Ahmad, February 26, 2023 कांची यह शहर मद्रास के पास आधुनिक कांचीपुरम है। यह तमिलनाडु राज्य का प्रमुख शहर है। तीसरी चौथी शताब्दी में कांचीपुरम में पल्लव शासकों का राज्य था। ये राजा पहले सातवाहनों को अपना अधिपति मानते थे और बाद में स्वतंत्र हो गए थे। सबसे पहला स्वतंत्र राजा सिंहवर्मा प्रथम (275-300) था। उसका एक लेख गुंदूर जिले के पलनाद तालुके में मिला है। यह प्राकृत में है और इसके अक्षर ईक्ष्वांकुओं के लेखों से मिलते हैं, जिससे प्रतीत होता है कि वह ईक्ष्वांकुओं का समकालीन था। कांचीपुरम का इतिहासइस कुल का एक शासक स्कंद वर्मा था। उसने अश्वमेध, वाजपेय और अग्निष्टोम यज्ञ किए और कांचीपुरम को अपनी राजधानी बनाया। उसने तीसरी शताब्दी के अंत में राज्य किया। इस वंश का एक अन्य शासक विष्णुगोप समुद्रगुप्त (335-75 ई०) का समकालीन था। समुद्रगुप्त के दक्षिण अभियान के समय उसने अपने सामंत पालक्क उग्रसेन की सहायता से समुद्रगुप्त का विरोध किया था, परंतु हार गया था। इस वंश के अन्य राजाओं में स्कंद वर्मा (370-85), वीर वर्मा (385-400), स्कंद वर्मा द्वितीय (400-36), सिंह वर्मा द्वितीय (436-40), स्कंद वर्मा तृतीय (460-80), नंदी वर्मा (480-540), कुमार विष्णु द्वितीय (540-30), बुद्धवर्मा (530-40) और कुमार विष्णु तृतीय (540-50) ने कांचीपुरम से शासन किया। छठी शताब्दी के अंत में पल्लव वंश में सिंह विष्णु नाम का प्रसिद्ध राजा हुआ। उसने चोल प्रदेश पर अधिकार करके पल्लवों की शक्ति को बढ़ाया। सन् 600 से 630 ई० तक महेंद्रवर्मा प्रथम के काल में चालुक्य राजा पुलकेसिन ने चोल, केरल और पांडय राजाओं की सहायता से उसे हरा दिया और वेंगी तथा उसके राज्य के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया। उसके बाद नरसिंह वर्मा प्रथम महामल्ल (630-38) ने चालुक्य राजा पुलकेसिन द्वितीय को तीन बार हराया और 642 में उसकी राजधानी बादामी पर अधिकार कर लिया। उसने चोल, चेर और कलमभ्रों को भी हराया और लंका के राजा मान वर्मा को गद्दी पर बैठने के लिए सैनिक सहायता दी। 665 ई० में चालुक्य राजा विक्रमादित्य ने उसे परास्त कर दिया और कुछ समय के लिए कांचीपुरम पर अधिकार कर लिया। उसके राज्यकाल में हयून सांग 640 ई० में कांचीपुरम आया था। उसके उत्तराधिकारी महेंद्र वर्मा द्वितीय (668-70) को चालुक्य राजा विक्रमादित्य प्रथम, मैसूर के गंग राजा और भदुरा के पांड्य राजा ने एक युद्ध में मार दिया। उसके बाद परमेश्वर वर्मा प्रथम (670-92) गद्दी पर बैठा। चालुक्य राजा विक्रमादित्य प्रथम ने उसकी राजधानी कांचीपुरम पर अधिकार कर लिया था। उसे पांड्यों ने भी हराया, परंतु अंततः उसने चालुक्य और पांड्य राजाओं की सेना को पेरुवलनल्लूर में करारी हार दी। उसके बाद नरसिंह वर्मा द्वितीय (695-722) ने चीन के सम्राट के यहां एक शिष्टमंडल भेजा। उसके राज्य में शांति थी। उसने कांची का कैलाशनाथ मंदिर और महाबलीपुरम के तट पर कई मंदिर बनवाए। उसके दरबार में दंडी विद्वान रहता था, जिसने दशकुमार चरित ग्रंथ लिखा था। नरसिंह वर्मा द्वितीय के बाद परमेश्वर वर्मा द्वितीय राजा बना। उसके काल में चालुक्य युवराज विक्रमादित्य द्वितीय ने आक्रमण किया। परमेश्वर वर्मा द्वितीय ने उसे बहुत सा धन देकर विदा किया। कांचीपुरमपरमेश्वर वर्मा द्वितीय के बाद नंदी वर्मा द्वितीय ने 731 से 36 तक शासन किया। उसके काल में पांड्य राजा राजसिंह प्रथम ने राज्य के एक दूसरे दावेदार का साथ दिया था, परंतु नंदी वर्मा ने उदय चंद्र नामक अपने सेनापति की सहायता से विजय प्राप्त कर ली। उदय चंद्र ने उसके लिए उत्तर में भी कुछ प्रदेश जीते। उसने कोंगु और केरल के राजाओं से मिलकर एक संघ बनाया, किंतु पांड्य राजा जटिल परांतक ने उसे हरा दिया और कोंगु को अपने राज्य में मिला लिया। चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने कुछ समय के लिए कांचीपुरम पर अधिकार कर लिया था। 753 के बाद राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग ने भी काँची पर आक्रमण किया नंदीवर्मा ने गंग राजा श्रीपुरुष को हराकर उसके राज्य के कुछ भाग पर कब्जा कर लिया। उसने राष्ट्रकूट राजा गोविंद द्वितीय को ध्रुव के विरुद्ध सहायता दी। ध्रुव के राजा बनने पर नंदीवर्मा ने उसे बहुत सा धन देकर प्रसन्न किया। उसके बाद दंति वर्मा ने 796 से 840 ई० तक 44 साल तक राज्य किया। उसके राज्य काल में राष्ट्रकूट राजा गोविंद तृतीय तथा पांड्य राजा वरगुण प्रथम ने आक्रमण किया। पांड्य राजा ने उसका कावेरी क्षेत्र छीन लिया। दंति वर्मा के बाद नंदीवर्मा तृतीय (840-62) ने पांडय राजा को तेल्लरू नामक स्थान पर हराकर अपना राज्य वापस प्राप्त कर लिया। अपने शक्तिशाली जहाजी बेड़े की सहायता से उसने मलाया द्वीप पर प्रभुत्व स्थापित किया। उसके राज्य काल के अंत में पांड्य राजा ने उसे हरा दिया। उसके उत्तराधिकारी नृपतुंग वर्मा (862-91) ने पांड्य राजा श्रीमार को पराजित किया। उसके काल में अपराजित नामक सेनानायक ने पांड्य राजा वरगुण द्वितीय को चोल सामंत आदित्य प्रथम की सहायता से 880 ई० में कुंभकोणम के पास श्रीपुरंबियम में हराया। इससे प्रसन्न होकर अपराजित ने पांड्यों के प्रदेश आदित्य प्रथम को दे दिए। परंतु आदित्य प्रथम ने 891 में पल्लव राजा अपराजित को हराकर टोंडईमंडलम पर अधिकार कर लिया। कांचीपुरम के आस-पास का इलाका टॉडईमंडलम कहलाता था। इसके पश्चात् कांचीपुरम पर चोल शासकों का प्रभुत्व हो गया। 943 में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय ने अपने बहनोई गंग राजा बुतुग की सहायता से काँची पर अधिकार कर लिया। 1085 में कल्याणी के चालुक्य राजा विक्रमादित्य षष्ठ ने काँची पर अधिकार कर लिया। वारंगल के काकतीय राजा गणपति (1199-1262) ने भी कांचीपुरम पर अधिकार किया, परंतु पांड्य राजा जटावर्मा सुंदर ने इसे उससे 1250 में छीन लिया। दूसरे मैसूर युद्ध के दौरान हैदर अली ने 1780 में यहाँ काफी लूट-पाट मचाई। कांचीपुरम धर्म संस्कृति एवं कला कांचीपुरम देश की सप्तपुरियों में से एक है। शेष छह नगर हरिद्वार उज्जैन, वाराणसी, मथुरा, अयोध्या और द्वारिका हैं। इसे दक्षिण की वाराणसी भी कहा जाता है। प्राचीन काल में काँची धर्म, शिक्षा और वास्तुकला का एक प्रख्यात केंद्र था। यहां तत्कालीन सभी धर्मों के लोग रहते थे तथा यहां विभिन्न धर्मों के 80 मंदिर थे, जिनमें से कुछ पत्थर के ब्लॉकों के बने हुए थे।द्रविड़ शैली में बना आठवीं शताब्दी का वैंकटेश्वर मंदिर और नंदी वर्मन द्वारा बनवाया गया मुक्तेश्वर मंदिर यहां आज भी स्थित हैं। इसके अतिरिक्त नरसिंह वर्मन द्वितीय के काल के राजसिंह शैली में बने कैलाशनाथ, एरावतेश्वर और वैकूंठ पेरूमल मंदिर भी हैं। इन मंदिरों में पल्लवों और चालुक्यों के बीच हुए युद्ध के भित्ति चित्र बने हुए हैं। कांचीपुरम के कई मंदिरों के गोपुरम काफी ऊँचे हैं। इनमें से एक एकंबरेश्वर मंदिर का गोपुरम् 88 फुट ऊँचा और वरदराज स्वामी के मंदिर का गोपुरम् 100 फुट ऊँचा है। वरदराज स्वामी मंदिर के 96 रतंभों पर बहुत बढ़िया मूर्तियाँ बनी हुई हैं। ह्वांग सांग ने लिखा है कि यहां सौ मठों में 40,000 बौद्ध भिक्षु रहते थे। यूँ शैव धर्म राजधर्म था, फिर भी यहाँ जैन और बुद्ध धर्म भी प्रचलित थे। बुद्ध कांची कई बार गए थे। अशोक ने काँची में हर उस जगह स्तूप बनवाए थे, जहाँ बुद्ध ने धर्म प्रवचन किया था। इनमें से एक स्तूप 100 फुट ऊँचा था। पल्लव शासक महेंद्र वर्मन, नरसिंह वर्मन और नंदी वर्मन के काल में यहां कला खूब फली फूली। उत्सवों के दौरान यहां साहित्यकार और कलाकार इकट्ठे होकर भजन गाया करते थे। कांचीपुरम तमिल और संस्कृत के अध्ययन का केंद्र भी था। व्यापारप्राचीन काल में कांचीपुरम दक्षिण भारत की एक बंदरगाह थी। पहली शताब्दी ई० के दौरान यहां से चीन के साथ व्यापार होता था। चीन को यहां से मोती, काँच आदि भेजे जाते थे तथा चीन से सोना और रेशम मंगाए जाते थे। यहां की कांजीवरम साड़ी आज भी बहुत प्रसिद्ध है। कांचीपुरम के पर्यटन स्थल कांचीपुरम में उपर्युक्त प्रसिद्ध मंदिरों के अलावा कामाक्षी अम्मान मंदिर है। यह मंदिर भारत की तीन शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। अन्य दो शक्ति पीठें मदुरै और वाराणसी में हैं। इस मंदिर का निर्माण चोल राजाओं ने चौदहवीं शताब्दी में करवाया था। काँची में सी. ऐन. अन्नादुराई की स्मृति में अन्ना: स्मारक भी है। तमिल में अन्ना से तात्पर्य बड़ा भाई होता है। कांचीपुरम से 5 किमी दूर एनातुर विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय में प्राचीन पांडुलिपियां और आदिशंकर की 60 फुट ऊँची मूर्ति है। 5 किमी दूर ही तिरुपरुति कुंडलम जैन धर्म का केंद्र है। 28 किमी दूर उत्तीरामेरुर में एक शिव मंदिर और अष्टांग विमान वाला एक विष्णु मंदिर तथा 29 किमी दूर श्री पेरुमबुदूर में वैष्णव संत रामानुजन का जन्म-स्थल और श्री राजीव गाँधी का स्मारक हैं। इनके अतिरिक्त वंडालूर (35 किमी) में दक्षिण का सबसे बड़ा चिड़ियाघर, भगवान सुब्रमण्य के छह आवासों में से एक तिरुतानी (42 किमी), वेदांतंगल जल-पक्षी विहार (48 किमी) और जिंजी फोर्ट (110 किमी) भी देखने योग्य स्थल हैं। उपलब्ध सुविधाएं और कैसे पहुंचेकाँची देश के अन्य भागों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहाँ से निकटतम हवाई अड्डा चेन्नई है। ठहरने के लिए यहाँ अनेक होटल हैं। यहां का तापमान गर्मियों में 37° से और 24° से तथा सर्दियों में 28° से और 20° से के मध्य रहता है। यहां वर्ष में कभी भी जाया जा सकता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”16623″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new 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