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अगा खान पैलेस कल्याणी नगर

कल्याणी नगर का इतिहास और अगा खान पैलेस

कल्याणी नगर पूणेमहाराष्ट्र में नर्मदा नदी के दक्षिण में है। यह नगर एक ऐतिहासिक नगर है। समुंद्री किनारे पर होने के कारण सातवाहनों के शासन के समय कल्याणी सबसे बड़ी निर्यात बंदरगाह थी। कन्हेरी और जुनार लेखों में इसका एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में उल्लेख है। कल्याणी नगर 19वीं सदी के आगा खान महल के लिए भी जाना जाता है। यह महल हरे-भरे मैदानों के बीच स्थित में है। 1940 के दशक में महात्मा गांधी को इस महल में नज़रबंद किया गया था। वर्तमान में इसे संग्रहालय में रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गांधी नैशनल मेमोरियल सोसायटी नाम के संग्रहालय में उनकी तस्वीरें और निजी चीज़ें रखी हुई है। कस्तूरबा गांधी का निधन भी इसी भवन में हुआ था, उनकी समाधि भी यहां स्थित है, अपने इस लेख में हम पूणे के इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक नगर कल्याणी के इतिहास पर नजर नजर डालेंगे।

कल्याणी नगर का इतिहास

कल्याणी का ऐतिहासिक महत्त्व देखने से पता चलता है कि चालुक्य शासक तैलप द्वितीय ने 973 ई० में मान्यखेट के
अंतिम राष्ट्रकूट राजा कर्क्क द्वितीय को हराकर कल्याणी में स्वतंत्र शासन स्थापित कर लिया। उसने 997 ई० तक राज्य किया। उसने पश्चिमी चालुक्यों के राज्य के अधिकतर भाग और पाँचाल पर अधिकार कर लिया। उसने चेदि, उड़ीसा, नेपाल, कुंतल, 980 ई० से पूर्व चोल राजा उत्तम और परमार राजा मुंज को हराया। मुंज की युद्ध में मृत्यु हो गई। उसने लाट को जीतकर अपने सेनापति बारप्प को वहां का राज्यपाल नियुक्त किया। उसने महाराजाधिराज, परमेश्वर और चक्रवर्ती विरुद धारण किए। 997 में सत्याश्रय उत्तराधिकारी हुआ।

अगा खान पैलेस कल्याणी नगर
अगा खान पैलेस कल्याणी नगर

उसे कलचूरी राजा कोक्कल द्वितीय और परमार राजा सिंधुराज ने हराया। सिंधुराज ने उससे वे प्रदेश वापस ले लिए, जो तैलप ने मुंज से छीने थे। उसने चोल शासक राजराजा के आक्रमण का सामना किया और उसे हराकर उससे कुर्नूल और गुंटूर जिले छीन लिए। उसने कोंकण के शिलाहार राजा को भी हराया। उसके बाद विक्रमादित्य पंचम्‌ (1008-15) तथा जयसिंह द्वितीय (1015- 42) राजा बने। जयसिंह द्वितीय ने कलचूरी राजा गांगेयदेव, परमार, भोज और राजेंद्र चोल के संगठन से अपने राज्य की रक्षा की। उसके उत्तराधिकारी सोमेश्वर प्रथम (1042-68) के काल में राजाधिराज चोल ने चालुक्य सेना को हराकर कल्याणी को लूटा, परंतु सोमेश्वर प्रथम ने 1050 ई० तक उसे अपने राज्य से बाहर कर दिया। उसने वेंगी के राजराजा को अपना आधिपत्य स्वीकार करने को विवश किया।

तब राजा राजाधिराज ने उस पर 1054 ई० में कोप्पम नामक स्थान पर उससे युद्ध किया, परंतु मारा गया। सोमेश्वर ने इस विजय के उपल्क्ष में कोल्हापुर में एक विजय स्तंभ बनवाया। 1063 ई० में वह चोद शासक से हार गया। उसने कोकंण प्रदेश को जीता तथा गुजरात मालवा कलचूरी के राजा कर्ण, दक्षिण कौशल और केरल पर आक्रमण किया तथा यादवों के विद्रोह को दबाया।

उसके बाद 1068 ई० में सोमेश्वर द्वितीय राजा बना। चोल राजा वीर राजेन्द्र उसके छोटे भाई विक्रमादित्य (जो उसका दामाद था) को राजा बनाना चाहता था। परंतु सोमेश्वर द्वितीय ने उसे हरा दिया। उसने मालवा पर भी अधिकार किया, परंतु 1076 में विक्रमादित्य षष्ट ने उसे हराकर बंदी बना लिया और स्वयं राजा बन गया। विक्रमादित्य षष्ट ने द्वारसमुद्र के होयसल, सेयुण के यादव, कोंकण के शिलाहार, और गोवा के कदंब शासक को हराया। 1085 ई० के आसपास उसने कांची पर भी अधिकार किया। उसने चोल राजा कुलोत्तुंग प्रथम और होयसल राजा विष्णुवर्धन को हराया। उसने त्रिभुवनमल्ल का विरूद धारण किया।

उसके बाद 1126 ई० में सोमेश्वर तृतीय गद्दी पर बैठा। उसने
आंध्र, तमिल, मगध और नेपाल के राजाओं को हराया। उसके बाद 1138 में पेरम जगदेवमल्ल द्वितीय राजा बना। उसने चोल राजा कुलोतुंग द्वितीय और कलिंग के अनंतवर्मन चौड़ गंग को हराया। 1151 में तैलप तृतीय राजा बना। चालुक्य राजा कुमारपाल और चोल राजा कुलोतुंग द्वितीय ने उस पर आक्रमण किया, परंतु उसने उन्हें खदेड़ दिया। उसे काकतीय शासक प्रोल ने हरा दिया, जिससे उसकी शक्ति क्षीण हो गई। उसके मंत्री विज्जल ने इस स्थिति का लाभ उठाकर 1156 में उसे भगा दिया और कल्याणी में कलचूरी वंश के शासन की स्थापना की। परंतु विज्जल के बाद कलचूरी शासकों की शक्ति कमजोर पड़ गई और चालुक्य वंश के गंडनायक ब्रह्मम ने कल्याणी पर फिर अधिकार कर लिया, परंतु देवगिरि के यादवों और होयसल वंश के वीर बल्‍लाल प्रथम के आक्रमणों के सामने चालुक्य राजा टिक न सके। 1163 से 1183 तक जगदेवमल्ल तृतीय ने शासन किया। बाद में चोल राजाओं ने कल्याणी पर आक्रमण किया। यहां का राजा सोमेश्वर चतुर्थ (1189-1200) कल्याणी छोड़कर गोआ की तरफ भाग गया। औरंगजेब ने मीर जुमला की सहायता से कल्याणी पर 1657 में कब्जा किया।

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