करूर का इतिहास और दर्शनीय स्थल

करूर के दर्शनीय स्थल

करूर (karur) भारत के तमिलनाडु राज्य में एक प्रमुख नगर और जिला मुख्यालय है। करूर यह वन्नी नदी के किनारे स्थित है। इसका प्राचीन नाम वंजी है। दूसरी और तीसरी शताब्दी में करूर चेर राजाओं की दूसरी शाखा की राजधानी थी। इस शाखा के राजा केरल में मरंदाई की मुख्य शाखा के समकालीन थे। इसका प्रथम ज्ञात राजा अंडुवन था। वह एक विद्वान था। आय और पारी उसके समकालीन सरदार थे।

करूर का इतिहास – करूर हिस्ट्री इन हिन्दी

आय ने तमिल प्रदेश के कई भागों पर शासन किया। पारी का राज्य कोडुंगुरम अथवा पिरानमलाई नामक पहाड़ी के चारों ओर था। पारी के दरबार में कपिलार नाम का एक कवि रहता था। पारी की मृत्यु के बाद कपिलार अंडुबन के पुत्र सेलवक्कडुगो वाली आदन के दरबार में चला गया। आदन के बाद उसका पुत्र पेंसुजेराल इरुंपोराई (190 ई०) शासक बना। उसने आदिगाईमान सरदारों की राजधानी टगादुर (सेलम जिले में धर्मपुरी) के गढ़ को ढ़ा दिया। उसने कलुवुल नामक विद्रोही का दमन करके उसके किले पर कब्जा कर लिया। उसने अनेक यज्ञ भी किए।

आदिगाईमान, जिसे नेडुमान अंजी भी कहा जाता था, इरुपोराई का शत्रु था। अंजी के दरबार में ओवैयार नामक कवयित्री रहती थी। अंजी ने सात राजकुमारों को हराया और अनेक गढ़ों को ढ़ाया, जिनमें कोवालुर भी शामिल था। इरुंपोराई द्वारा टगादुर के आक्रमण के दौरान उसने पांड्य और चोल राजाओं से सहायता ली, परंतु इससे उसे कोई फायदा न हुआ। अंत में उसे इरुपोराई का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा। बाद में उसने इरुपोराई की तरफ से नन्‍नन की राजधानी पर आक्रमण किया। इस युद्ध में वह तथा एक अन्य चेर सरदार आय एयीनान नन्‍नन के बहादुर सेनापति निमिली अथवा मिनिली के हाथों मारे गए।

करूर के दर्शनीय स्थल
करूर के दर्शनीय स्थल

अगला चेर राजा पेरुजेराल इरुपोराई का चचेरा भाई कुडक्कों इलंजेराल इरुपोराई था। उसने पांड्य और चोल राजाओं के विरुद्ध युद्ध लड़े और पोट्टी के चोल राजा तथा पलैयान मारन को हराया और उनसे काफी धन प्राप्त किया। एक अन्य चेर शासक मांडरंजेराल इरुपोराई (210 ई०) था। उसे उसके समकालीन पांड्य शासक नेडुंजेलियन, जिसने तलैयालंगनम को जीता था, ने कैद कर लिया था, परंतु समय रहते उसने उससे अपने आपको मुक्त करा लिया। अंग्रेजों और हैदर अली के मध्य 1769 में हुई संधि के अनुसार करूर किला और जिला हैदर अली के पास रहा।

करूर के दर्शनीय स्थल – करूर के पर्यटन स्थल

अरूलमिगु कल्याण पसुपथेश्वर मंदिर करूर

अरूलमिगु कल्याण पसुपथेश्वर मंदिर करूर शहर का सबसे प्रमुख मंदिर है, या यूं भी कह सकते है कि यह मंदिर करूर शहर की पहचान है। मंदिर की मूर्ति कला बहुत ही आकर्षित हो। पशुपतेश्वर लिंगम, दूध देने वाली गाय और रंगमाथा यहां का प्रमुख आकर्षण है। जैसा कि करूर के इतिहास में बताया गया है कि करूर संगम युग के शुरुआती चेर राजाओं की राजधानी थी। यह शहर कुटीर और हथकरघा वस्त्रों को लिए भी बहुत प्रसिद्ध है, देश के कोने कोने में यहां के वस्त्र जाते हैं।

अरुलमिगु मरियममन मंदिर करूर

यह मंदिर भी शहर का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर श्री मरियम्मन को समर्पित है, और करूर शहर के मध्य में स्थित है। हर साल मई के महीने के दौरान यहां कुंबुम महोत्सव मनाया जाता है। जिस में जाति, पंथ के लोगों के सभी समूह भाग लेते। इस दौरान अमरावती नदी के पवित्र जल से मंदिर में पूजा करने का विशेष महत्व है।

अरुलमिगु कल्याण वेंकटरमण स्वामी मंदिर

यह करूर शहर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है, और एक पहाड़ी जैसे उभरे हुए किले पर स्थित है। मंदिर भगवान कल्याण वेंकटरमण स्वामी को समर्पित है। इस मंदिर को दक्षिण तिरुपति के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की मूर्ति कला चित्ताकर्षक है, मंदिर के समीप ही एक पवित्र सरोवर है।

वेन्नामलाई

यह स्थान करूर शहर से 5 किमी की दूरी पर करूर-सलेम मार्ग पर स्थित है। यह स्थान भगवान मुरुगन को समर्पित मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय लोगों में मंदिर का बहुत बड़ा महत्व है। मंदिर छोटा और साधारण बना हुआ है। अरुणगिरिनाथर और अवैयार जैसे प्रसिद्ध भजन गायकों ने इस भगवान की स्तुति करने के लिए अपने भजन गाए है। मंदिर के आगे एक स्तंभ हैं जोकि पूजनीय है।

नेरूर

यह स्थान करूर शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान यहां स्थित अरुलमिगु काशी विश्वनाथ मंदिर और अरुलमिगु सदाशिव ब्रह्मेंद्र अधिष्ठानम मंदिर के लिए जाना जाता है। नेरूर गांव करूर जिले में ही कावेरी नदी के तट पर स्थित है। यहां की एक विशिष्ट विशेषता कावेरी नदी है, जो यहाँ से शुरू होती है और दक्षिण की ओर जाती है। यह एक सुंदर स्थान है जो देश भर से आगंतुकों को आमंत्रित करता है।

करूर पर्यटन स्थल
करूर पर्यटन स्थल

करूर म्यूजियम

यह एक सरकार द्वारा संचालित म्यूजियम है, जो करूर शहर के मध्य ओल्ड डिंडीगुल रोड़ जवाहर बाजार में स्थित है। इस संग्रहालय को सन् 2000 में जनता को समर्पित किया गया था। संग्रहालय में कांस्य आइटम, धातु-बर्तन की वस्तुएं, संगीत वाद्ययंत्र, सिक्के, चट्टानें और खनिज, जीवाश्म, वनस्पति नमूने, मोलस्कन गोले और अन्य समुद्री नमूनों को संग्रहित किया गया हैं। संग्रहालय की शैक्षिक गतिविधियों में गाइड सेवाएं, लोकप्रिय व्याख्यान आदि शामिल हैं।

पुहाझीमलाई

यह स्थान करूरतमिलनाडु से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पुगलुर के पास वेलायुथमपलयम में एक छोटी सी पहाड़ी पर भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित एक मंदिर अपनी मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। यह कावेरी नदी के तट पर करूर के उत्तर पश्चिम में स्थित है।

अरुलमिगु कदंबनेश्वर मंदिर

यह मंदिर करूर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर कुलिथलाई शहर में स्थित है, जो भगवान कदंबनेश्वर को समर्पित है। थाईपोसम एक त्योहार है जो हर साल यहां तमिल माह थाई (जनवरी) के दौरान भव्य तरीके से मनाया जाता है।

अय्यरमलई

यह स्थान करूर से 56 किलोमीटर तथा करूर जिले के कुलीथलाई से 8 किमी दूर स्थित है। अरुलमिगु रथिनग्रीश्वर को समर्पित एक मंदिर है। हर साल 15 दिनों का ब्रह्मोत्सवम महोत्सव चिथिरई महोत्सव, थाईपूसम महोत्सव, कार्तिगई महोत्सव, पंगुनी उथिरम महोत्सव और तेप्पम महोत्सव यहां भव्य तरीके से मनाया जाता है।

पोन्नानियार बांध

यह स्थान करूर से 59 किलोमीटर दूर करूर जिले के कदावूर पहाड़ी क्षेत्र के पुंछोलाई गाँव के पास स्थित एक पिकनिक स्थल को पोन्नानियार बांध के नाम से जाना जाता है। सेम्मलाई के तल पर एक बांध का निर्माण किया गया है। इस बांध ने आसपास की उपजाऊ मिट्टी को सिंचाई की सुविधा प्रदान की है। लोक निर्माण विभाग बांध स्थल का संरक्षण करता है।

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