कबूतर बाजी जिसके शौकीन थे लखनऊ के नवाब Naeem Ahmad, July 2, 2022March 2, 2023 लखनऊ की नजाकत-नफासत ने अगर संसार में शोहरत पायी है तो यहाँ के लोगों के शौक भी कम मशहूर नहीं रहे हैं। लखनवी शोकों में मुर्गाबाजी , तीतर लड़ाना, मेंढ़ा युद्ध, बटेरबाजी, बुलबुल, पतंगबाज़ी कबूतर बाजी आदि मुख्य थे। उस समय कबूतर बाजी का शौक इस कदर लोगों के ऊपर छाया हुआ था कि हज़ारों में हार-जीत की बाजियां लग जाया करती थीं। नवाब शुजाउद्दौला को कबूतर बाजी का बड़ा शौक था। एक दिन बरेली जिले से एक आदमी उनके पास आया। सैयद यार अली नाम था। नवाब साहब के सामने पहुँचा और नौकरी की दरख्वास्त की। नवाब साहब ने उससे चल रही गुफ्तगू के दौरान पूछ लिया आपको शौक किस चीज का है। सैयद अली ने कहा, कबूतर बाजी। नवाब साहब बड़े खुश हुए आखिर था तो शौक में उनका जोड़ीदार ही। नौकरी मिल गयी। इस शख्स ने शोहरत व इज्जत को हासिल करने के साथ-साथ कबूतरबाजी के धंधे में भी पैसा खूब बटोरा। कबूतर बाजी जिसके शौकीन थे लखनऊ के नवाब नवाब आसफुद्दौला को केवल बाग लगवाने व इमारत बनवाने का ही शौक नहीं था बल्कि वह कबूृतर बाजी के भी बड़े शौकीन थे। भले ही कबूतर न उड़ाते हों मगर पालते जहूर थे। उनके महल में करीब तीन-चार लाख कबूतर पलते थे। कबूतर बाजी नवाब साहब एक दिन ऐशबाग में सैर कर रहे थे। तभी उनके पास एक लड़का दो कबूतर लेकर आया ओर नवाब साहब को नज़र कर दिया। नवाब साहब ने लड़के को एक जोड़े कबूतर का दाम एक रुपया दिलवा दिला। लड़के ने एक रुपया तो ले लिया मगर वह गया नहीं। नवाब साहब ने कहा, पैसा तो पा चुके हैं अब कौन सी परेशानी है। लड़का आँखों में अश्क भर के बोला, हुजूर मैं कोई चिड़ीमार नहीं सैयदज़ादा हूँ । मेरे वालिद का इन्तकाल हो गया है। दो रोज़ से खाना नहीं नसीब हुआ। नवाब साहब को बड़ा अफसोस हुआ उन्होंने उसे 100 सिक्के दिलवा दिये। लड़का जब उन सिक्कों को लेकर आगे बढ़ा तो दरोगा ने उससे कहा– अमाँ बड़े होशियार निकले दो टके के कबूतर के 100 रुपये ऐंठ लिए’ नवाब साहब ने यह सुन लिया और दरोगा का कान पकड़ कर कहा– क्या मैं यह नहीं जानता हुं ?’ कबूतर बाजी ने लखनऊ में मकबरा सआदत अली खां, नवाब गाजीउद्दीन हैदर व नवाब नसीरुद्दीन के समय में बड़ी उन्नति की। इस शौक के शौकीन तमाम रईसों ने अफगानिस्तान, काबुल तक से ‘पटेत’ नाम के कबूतर मंगाये थे। नवाब नसीरुद्दीन कबूतरों को उड़ते देखना ज्यादा पसन्द करते थे। वह छतर मंजिल और कभी “दिल आराम कोठी’ में बैठ कर घण्टों कबूतर के झुण्डों को उड़ते देखा करते थे। नवाब वाजिद अली शाह ने एक जोड़ा कबूतर 24 हजार रुपये में खरीदा था। उन्होंने मटिया बुर्ज में हजारों की तादाद में कबूतर पाल रखे थे। लखनऊ के जिन कबूतर बाजों ने कबूतर बाजी में शोहरत हासिल की थी उनमें सैयद याद अली मीर अब्बास, मीर अमान अली, गुलाम अब्बास आदि मुख्य थे। मीर अमान अली के बारे में श्री अब्दुल हलीम शेर’ अपनी किताब गुजिश्ता लखनऊ में लिखते हैं कि— “उन्होंने एसा कमाल पैदा किया था कि कबूतर को रंग कर जैसा चाहते बना देते। अक्सर उनके पर (पंख) उखाड़कर दूसरे रंग का पर उसी के सुराख में रख कर इस तरह जमा देते कि वह असली परों की तरह जम जाता और बहुत सी जगहों पर रंग से काम लेते। मगर ऐसा मजबूत और पक्का रंग कि मजाल क्या जो जरा फीका भी पड़ जाये। बरस भर तक रंग कायम रहता । मगर जब कुरीज में पर गिर जाते तो फिर असली रंग निकल आता। उनके इन कबूतरों में से हरेक पन्द्रह-बीस रुपये में बिकता और अमीर लोग बड़े शौक से लेते। वह भ्रान्तियाँ भी बना लिया करते जो लाखों में एक निकलता और रंग की भिन्नता और गली की दृष्टि से बेमिसाल होता। लखनऊ की कबूतर बाजी काफी मशहूर रही इसमें कोई सन्देह नहीं। इस पर एक किस्सा याद आता है कि कुछ सालो पहले जब टेलीविजन दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता जैसे महानगरों में ही था और लोगों ने इसके बारे में केवल सुन ही रखा था। लखनऊ से एक सज्जन दिल्ली गये वहाँ छतों पर टी० वी० के एन्टीने लगे देखे तो पूछ लिया– क्या भई यहाँ के लोग भी कबूतर बाजी के शौकीन हैं। उन्होंने जिस से पूछा वह साहब फौरन भाँप गये–हों न हो यह जनाब लखनऊ से ही तशरीफ लाये हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- [post_grid id=’9530′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized लखनऊ पर्यटन