कन्याकुमारी भरतीय राज्य तमिलनाडु का एक प्रमुख तटीय शहर है, और यह भारत देश की अंतिम दक्षिणी सीमा है। इस शहर का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध कन्याकुमारी मंदिर के नाम पर रखा गया है। इसके एक ओर बंगाल की खाड़ी, दूसरी ओर अरब सागर तथा सम्मुख हिंद महासागर है। इन तीनों का संगम ही एक पवित्र तीर्थ स्थल है।
कन्याकुमारी तीर्थ का माहात्म्य
पदमपुराण के अनुसार— कावेरी में स्नान करके मनुष्य इसके बाद समुद्र तटवर्ती कन्या तीर्थ में स्नान करे। इस कन्याकुमारी तीर्थ के जल का स्पर्श कर लेने मात्र से ही मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
कन्याकुमारी मंदिर की धार्मिक पृष्ठभूमि
कहते है की राक्षस बाणासुर ने तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा। भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया और कहा— कुमारी कन्या के अतिरिक्त तुम सबसे अजेय रहोगे।
अमरत्त्व का यह वरदान पाकर राक्षस बाणासुर त्रिलोकी में उत्पात करने लगा। उसके उत्पात से पीडित देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान ने उन्हें यज्ञ करने का आदेश दिया। देवताओं के यज्ञ करने पर यज्ञ कुंड की चिद् (ज्ञानमय) अग्नि से देवी दुर्गा जी एक अंश से कन्या रूप में प्रकट हुईं।
प्रकट होने के बाद देवी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए दक्षिण समुद्र तट पर तपस्या करने लगी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर जी ने उनका पाणिग्रहण करना स्वीकार कर लिया। देवताओं को यह देखकर चिंता हुई कि यदि देवी का विवाह हो गया तो बाणासुर का अंत नही हो सकेगा।
तब देवताओं की प्रार्थना पर देवर्षि नारद ने विवाह के लिए आते हुए भगवान शंकर को शुचीन्द्रम स्थान पर इतनी देर तक रोक लिया कि विवाह का शुभ मुहूर्त ही टल गया। मुहूर्त टल जाने पर भगवान शिव वहीं स्थाणुरूप में स्थित हो गए। विवाह के लिए प्रस्तुत अक्षतादि समुद्र में विसर्जित हो गए। कहते है, वे ही तिल, अक्षत, रोली अब रेत के रूप में मिलते है।
कन्याकुमारी मंदिर के सुंदर दृश्य
देवी फिर तपस्या में लग गई। बाणासुर ने देवी के सौंदर्य की प्रशंसा सुनी। वह देवी के पास गया तथा उससे विवाह करने का हठ करने लगा। इस कारण देवी से उसका युद्ध हुआ। युद्ध में देवी ने बाणासुर को मार डाला। कहा जाता है कि देवी का भगवान शिव के साथ कलियुग बीत जाने पर विवाह सम्पन्न होगा।
कन्याकुमारी मंदिर दर्शन
कई द्वारो के भीतर जाने पर कुमारी देवी के दर्शन होते है। देवी की यह मूर्ति प्रभावोत्पादक तथा भव्य है। देवी के एक हाथ में माला है। विशेषोत्सव पर देवी का हीरकादि रत्नों से श्रृंगार होता है।
भद्रकाली मंदिर
कन्याकुमारी मंदिर के उत्तर अग्रहार के बीच में भद्रकाली का मंदिर है। ये कुमारी देवी की सखी मानी जाती है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है। यहां देवी सती का पृष्ठभाग गिरा था।
गणेशजी का मंदिर
समुद्र तट पर जहां स्नान घाट है, वहां घाट से ऊपर दाहिनी ओर एक छोटा सा गणेश जी का मंदिर है। गणेशजी का दर्शन करके कन्याकुमारी मंदिर के दर्शन करने लोग जाते है। मंदिर में द्वितीय प्राकार के भीतर इंद्रकांत विनायक नामक गणपति मंदिर है। इन गणेश जी की स्थापना देवराज इंद्र ने की थी।
विवेकानंद शिला
समुद्र में जहां घाट पर स्नान किया जाता है। वहां से आगे बाई ओर समुद्र में दूर जो अंतिम चट्टान दिखाई देती है। उसका नाम श्री पादशिला है। स्वामी विवेकानंद जब कन्याकुमारी आए। तब समुद्र में तैरकर उस शिला तक पहुंच गए। साधारण यात्री ऐसा साहस नहीं कर सकता। उस शिला पर तीन दिन निर्जल व्रत करके वे बैठे आत्मचिंतन करते रहे, फिर नौका द्वारा उन्हें लाया गया।
शुचीन्द्रम
कन्याकुमारी से शुचीन्द्रम की दूरी 13 किलोमीटर है। इस स्थान को ज्ञान वन क्षेत्रम भी कहा जाता है। गौतम ऋषि के शाप से इंद्र को यही मुक्ति मिली थी। यहां इंद्र उस पाप से पवित्र माना हुए, इसलिए इस स्थान का नाम शुचीन्द्रम पड़ा।
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