साम्प्रदायिक सद्भाव, हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में विंध्याचल के समीप ओझला से पश्चिम कंतित मे ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की मजार है। जिसे कंतित शरीफ कहा जाता है। यहां पर आठ नवम्बर को प्रतिवर्ष कंतित शरीफ उर्स मेले का आयोजन किया जाता है। यह बहुत पुराना मेला है। तीन दिन के इस मेले में दो लाख से अधिक हिन्दू, मुसलमान नर-नारी, बालक-वृद्ध सभी हाजिरी दर्ज कराते है। यहां पांच बजे भोर में ही मजार पर गुसुल कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। गुसुल में गुलाब जल, केवडा, चंदन आदि मजार पर चढाया जाता है। इसके बाद पहली चादर किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा चढाई जाती है जो किसी भी जाति का हो सकता है।
कंतित शरीफ का उर्स
कंतित शरीफ में उर्स के मौके पर मजार का दरवाजा पांच वक्त के नमाज की अवधि मे बन्द रखा जाता है, क्योकि वहां बेशुमार भीड एकत्र हो जाती है। कंतित शरीफ मजार की देखभाल मुजावर और गद्दीनशीं द्वारा की जाती है। मजार तौसी इन्तमामिया कमेटी बाहर की व्यवस्था देखती है।
कंतित शरीफ
कंतित शरीफ का यह पवित्र स्थान गंगा के तट पर एक ऊंचे स्थान पर सुरम्य वातावरण मे स्थित है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से मजार पर जाकर शीश नवाता है, उसकी इच्छाएं पूरी होती है। इस मेले मे बाबा की मजार पर पहली चादर किसी हिन्दू भक्त द्वारा ही चढायी जाती है। कहते है, यह मजार अज़मेर शरीफ के ख्वाजा मोइनुद्वीन चिश्ती के भांजे ख्वाजा इस्माइल चिश्ती की है जिसकी देखभाल मुजावर द्वारा किया जाता है। इस मेले मे इतनी भीड हो जाती है कि पुलिस प्रशासन के अलावा स्वयसेवी सगठनो के लोगो को भी जुटना पडता है।
घोड़े शहीद बाबा का उर्स
हजरत ख्वाजा अलाउलहक चिश्ती रहमत उल्लाह अलैह उर्फ घोड़े शहीद बाबा का उर्स प्रत्येक वर्ष 25 नवम्बर को मिर्जापुर मे सिविल लाइन्स के पास धूमधाम से मनाया जाता है। इस मुबारक अवसर पर गागर चादर कुल और महफिले मिलाद शरीफ और कव्वाली का भी आयोजन किया जाता है, जिसमे दूर-दराज के कव्वाल सहभाग करते है। जनाब खादिम दरगाह मुबारक ने बताया कि इस उर्स में हजारों हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई भाग लेते है। लोग यहां मनोतियां मानकर आते है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है।