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ऐवोगेड्रो

ऐवोगेड्रो का जीवन परिचय – अमेडिये ऐवोगेड्रो की खोज

वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी समस्याओं में एक यह भी हमेशा से रही है कि उन्हें यह कैसे ज्ञात रहे कि उनके साथी वैज्ञानिक क्या कुछ कर रहे हैं। सामान्यतया, वैज्ञानिक अपने अनुसन्धानों को छिपाकर नहीं रखते। उलटे, उन्हें अपने अन्वेषण तथा चिन्तन को सामान्य सम्पत्ति बनाते हुए प्रसन्नता ही होती है। सच तो यह है कि विज्ञान के व्रतियों में यह परस्पर आदान-सम्प्रदान स्वतन्त्रता पूर्वक चलते रहने से ही विज्ञान में आशातीत प्रगति संभव हुआ करती है। एक जमाना था कि वैज्ञानिक अपनी गवेषणाओं का प्रकाशन लैटिन के माध्यम से ही किया करते थे क्योंकि विद्वत्समाज की यही उस युग की सम्मत भाषा थी। आज भी विज्ञान के विद्यार्थी को एक विदेशी भाषा आवश्यक तौर पर अपने पाठ्यक्रम में पढ़नी पड़ती है। आज तो इलेक्ट्रॉनिक मशीनें भी इस काम के लिए तैयार हो चुकी हैं कि विदेशी भाषाओं, विशेषत: रूसी, जबानों में उपलब्ध वैज्ञानिक सामग्री को अंग्रेज़ी में अनूदित किया जा सके। और एक दूसरी किस्म की इलेक्ट्रानिक मशीनें भी बन चुकी हैं जो हर देश में हो रही वैज्ञानिक प्रगति की अनगिनत रिपोर्टों को संक्षिप्त कर सकेंगी। वैज्ञानिकों का बहुत-सा समय इन रिपोर्टों के अध्ययन में ही गुज़र जाता है। वैज्ञानिक शायद कोई भी नहीं चाहता कि देश देशान्तर में हो रही खोजें उससे नजरंदाज हो जाएं। किन्तु कभी-कभी गफलत भी हो जाती है। एक लेख नज़र में न आया, या उसका तात्पर्य समझने में कुछ गलतफहमी हो गई। ऐसा एक निबन्ध फ्रांस में कभी प्रकाशित हुआ था। किन्तु 50 साल से ज्यादा हो गए थे और किसी की निगाह उस पर नहीं पड़ी। उसमे प्रस्तुत विचारो का महत्त्व भौतिकी और रसायन मे प्रगति लाने के लिए बहुत अधिक था। 1811 में अमेदियो ऐवोगेड्रो (Amedeo Avogadro) ने अणु और कण में परस्पर अन्तर को स्पष्ट किया था। इस अन्तर की तब तक उपेक्षा ही होती आ रही थी, हालांकि विज्ञान मे यह भेद बहुत ही मौलिक महत्त्व का है।

अमेदियो ऐवोगेड्रो का जीवन परिचय

अमेदियो ऐवोगेड्रो का जन्मइटली के तूरीन शहर मे 9 जून, 1776 को हुआ था। पिता एक वकील था और ख्याल था कि पुत्र भी बडा होकर बाप के ही कदमों पर चलेगा। बचपन से बालक होनहार था और 16 बरस का होते-होते उसने बी० ए० पास कर लिया। और बीस बरस का ऐवोगेड्रो तो ‘चर्च ला’ में डाक्टरेट भी हासिल कर चुका था।

तीन साल की प्रेक्टिस करके उसे विश्वास हो गया कि यह ‘कानून’ उसके बस का रोग नही है। परिणामत अब वह गणित, रसायन, तथा भौतिकी के अध्ययन मे प्रवृत्त हो गया | विद्युत पर कुछ मौलिक अनुसन्धान की बदौलत स्थानीय वैज्ञानिकों में उसकी पूछ होने लगी। 33 बरस की उम्र मे ऐवोगेड्रो को इटली के उत्तर में वेर्सेली के रॉयल कॉलिज मे फीजिक्स की प्रोफेसरी मिल गई। दो साल बाद 1811 में अणुओं के सम्बन्ध में उसका वह प्रसिद्ध लेख, जिसपर तब किसी की भी निगाह नहीं पड़ी थी, फ्रांस के ‘जर्नाल दे फिजीक’ मे छपा।

ऐवोगेड्रो
ऐवोगेड्रो

ऐवोगेड्रो का शेष जीवन विज्ञान के अध्ययन-अध्यापन में ही बीता। विश्वविद्यालय मे शान्ति पुर्वक गुजर रही उसकी इस ज़िन्दगी में युद्ध और क्रांतियां आ-आकर बीच में दखल डाल जाती। इटली में आज कोई नेता था तो कल कोई। नतीजा यह होता कि आज यूनिवर्सिटी खुल जाती और कल बन्द हो जाती। 1820 से 1850 तक बीच-बीच में जब यूनिवर्सिटियां शाही फरमान से बन्द कर दी गई, उन दिनो को छोड दें तो ऐवोगेड्रो तूरीन के विश्वविद्यालय में ही भौतिकी का प्रोफेसर रहा। 80 साल की उम्र मे जब ऐवोगेड्रो मृत्यु हुई, दुनिया को उसकी वैज्ञानिक प्रतिभा के विषय में अभी कुछ भी ज्ञान था।

आज हर कोई जानता है पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का मिश्रण है, और यह भी कि दो परमाणु उदजन तथा एक परमाणु ओषजन के मिलन से जल का एक अणु H2, O1 बनता है। ये परमाणु और अणु दोनो ही निहायत छोटे व सुक्ष्म होते हैं। आज तो वैज्ञानिकों ने इन अणुओं को परिगणित करने की विधि भी निकाल ली है और उन्हे पता हैं कि एक क्वार्ट भरी बोतल में किसी भी गैस के 28,00,00,00,00,00,00,00, 00,00,000 अणु विद्यमान होते है। किन्तु वैज्ञानिकों द्वारा अणु-गणना प्रणाली के आविष्कृत किए जाने से बहुत पहले ऐवोगेड्रो ने यह विचार विज्ञान-जगत के सम्मुख उपस्थित कर दिया था कि किन्ही भी दो गैसों के समान परिमाणों मे इन अणुओं की संख्या भी समान ही होती है, बशर्तें कि उनका तापमान और दबाव वही हो। आज रसायन-शास्त्र में इस सिद्धान्त को ऐवोगेड्रो का नियम कहा जाता है।

अणु-विज्ञान का जनक था डाल्टन, किन्तु वह भी जल को H1, O1 मान कर ही संन्तुष्ट था। और सामान्यत रसायनविद इतने से ज्ञान-वर्धन से ही सन्तुष्ट हो भी जाते हैं। कि जिस वस्तु को हम इतने अरसे से एक तत्त्व मानते आए थे वह वस्तुतः एक यौगिक है। किन्तु इतना ही ज्ञान हर चीज़ की व्याख्या कर सकने के लिए पर्याप्त नहीं होता। वैज्ञानिकों के लिए अवयवों की निश्चित मात्रा का ज्ञान भी आवश्यक होता है।

1808 में एक फ्रांसीसी रसायनविद यूसफ गे-ल्यूसैक ने कुछ परीक्षण कर दिखाए जिनमें डाल्टन के सिद्धांत का खण्डन होता प्रतीत होता था। किन्तु अपनी-अपनी जगह डाल्टन और ल्यूसैक, दोनों सही थे। यह बात ऐवोगेड्रो ने अपने उस प्रसिद्ध निबन्ध में
1811 में अभिव्यक्त भी कर दी थी। किन्तु किसी ने वह लेख पढ़ा ही नहीं, वैज्ञानिक पुस्तकालयों की अलमारियों में ही वह सुरक्षित पड़ा रहा, और रसायनविदों के सम्मुख एक समस्या बाकायदा बनी ही रही। 1860 में जर्मनी में काल्स रूहे शहर में एक विज्ञान
परिषद इसी प्रश्न को सुलझाने के लिए बुलाई गई। कितने ही विद्वानों ने अपने विचार इस विषय पर अभिव्यक्त किए। विचार विमर्श हुआ। एक इटेलियन रसायनविद स्तालिनस्लाओ केनिजारो ने ऐवोगेड्रो की स्थापना को प्रस्तुत किया। “देखो कितना आसान है यह सब उसने परिषद को बतलाया, अब हमारे लिए बस एक यही तथ्य स्वीकार करना बाकी रह गया है कि ये अणु आवश्यक नहीं कि एक प्रकार के ही परमाणुओं का समुत्य हों। ये दो विभिन्‍न अणुओं के मिलने से भी बन सकते हैं। ऑक्सीजन के एक अणु में ही दो परमाणु होते हैं। पहली बार ही वैज्ञानिकों के कान में कुछ पड़ा था, किन्तु किसी भी निश्चय पर पहुंचने से पूर्व ही सभा विसर्जित हो गई।

किन्तु कैनिजारो चुप नहीं बैठा। उसने कक्षाओं में पढ़ाया, लेख लिखे, और ऐवोगेड्रो की स्थापना का जगह-जगह प्रचार किया। परिणाम यह हुआ कि दुनिया ने आखिर उसे सुना भी, और सब मानने लग गए कि जल का रासायनिक सूत्र H2O है। 1891 में रॉयल सोसाइटी की ओर से कैनिजारों को काप्ले मेडल मिला।

1911 में विश्व के कोने-कोने से सकड़ों वैज्ञानिक इटली में आकर तूरीन में एकत्रित हुए। वे ऐवोगेड्रो के नियम के प्रकाशन का शती समारोह मनाने यहां आए थे। आखिर कभी तो दुनिया को अणुओं का रासायनिक विश्लेषण कर दिखाने वाली प्रतिभा को स्वीकार करना था।

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