एलोरा और अजंता की गुफाएं किस लिए विख्यात है? Naeem Ahmad, May 22, 2022 संसार के महान आश्चर्यों मेंभारत में एलोरा और अजंता के गुफा मन्दिर अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन गुफाओं मे जो चित्रकारी की गई है, उन्हे देखने से ही इनकी महानता का वास्तविक मूल्याकन हो सकता है। संसार के अन्य देशों में भी अनेक गुफा मन्दिर हैं पर एलोरा और अजंता से उनकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। अब तक संसार के भिन्न-भिन्न देशो के हजारों और लाखों कलाकार एव विद्वानों ने इन गुफा मन्दिरों को देखा है और मुक्त कंठ से इनकी प्रशंसा की है। प्राचीनकाल से ही भारत वर्ष कला के क्षेत्र मे संसार का अग्रणी रहा है। जिस प्रकार इस देश ने विश्व के अनेक अंधकूप में पड़े देशों को शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता की सीख दी है, वैसे ही कला के क्षेत्र मे भी इसने संसार का नेतृत्व संभाला हैं। आज भले ही पश्चिम के राष्ट्र अपनी कलम ओर कूंची तथा छेनी और हथौडी का पराक्रम दिखलाते हो, पर आज जो कुछ भी उनके पास है, वह सब उन्हें भारत की ही देन है। संसार के बडे-बड़े विद्वान भी आज यह अस्वीकार करने की हिम्मत नही रखते कि भारत ने ही वास्तव में उन्हें शिक्षित तथा सुसंस्कृत बनाया है।Contents1 एलोरा और अजंता की गुफाएं1.0.1 एलोरा की जुफाएं2 एलोरा और अजंता की गुफाएं2.1 अजंता की गुफाएं3 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-एलोरा और अजंता की गुफाएंएलोरा की जुफाएंहैदराबाद गोदावरी वैली रेलवे लाइन पर एक नगर है औरंगाबाद। औरंगाबादरेलवे स्टेशन के समीप ही एक गांव है, जिसे ‘ऐलोरा’ गांव कहते है। हम यहां जिन गुफाओं का उल्लेख करने जा रहे हैं, वे इसी गांवव में पड़ती हैं।अंग्रेजी की एक पुस्तक है ‘केव टेम्पल्स ऑफ इंडिया’ अर्थात भारत के गुफा मन्दिर इस पुस्तक मे एलोरा और अजंता के गुफा मंन्दिरों का अनूठा एवं विषद चित्रण किया गया है। पुस्तक पढने के बाद ही हमें पता चलता है कि वास्तव मे आदमी ने अपनी कारीगरी का कैसा विचित्र एव प्रभावोत्यादक चित्र प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक के लेखक एक अंग्रेज़ विद्धान हैं। जिन्होने इस पुस्तक के लिये प्रामाणित सामग्री एकत्र करने में वर्षों का समय व्यतीत किया था। वैसे तो इन गुफाओं को देखने के बाद हममें से कोई भी इनकी महानता को समझ सकता है पर इस पुस्तक में हमे इन गुफा मन्दिरों के निर्माण की कहानी का भी सजीव वर्णन पढ़ने को मिलता है।औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से लगभग चौदह मील की दूरी पर एलोरा ग्राम बसा हुआ है इस गांव को लोग कई नामों से पुकारते है। कोई एलापुर, कोई बलरू और कोई यलुरू आदि नाम लेते हैं। पर प्रचलित नाम एलोरा ही है और इसी नाम से यह संसार में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। पहले यह गांव हैदराबाद के निजाम की रियासत में पड़ता था। पर अब स्वतंत्र भारत का एक सुखी ग्राम है।एलोरा ग्राम के सम्बन्ध में एक कहानी भी प्रचलित है। कहते है, आठवीं सदी में यहां एक हिन्दू राजा राज्य करता था, उसका नाम “यदु’ था। उसकी राजधानी एलिचपुर में थी। उसी ने “एलोरा” ग्राम को बसाया था। इस कहानी के प्रमाण में इतिहास के पन्ने मौन हैं, पर लोगो में इसी बात का प्रचार है और लोग इसी को सत्य मानते है। जो भी हो, जिस गुफा मन्दिर का हम उल्लेख कर रहे हैं, वह इसी गांव में, आबादी से आधी मील की दूरी पर स्थित है। ये मन्दिर लम्बाई में लगभग डेढ़ मील लम्बे हैं। दसवीं शताब्दी की एक भौगोलिक पुस्तक में भी इन गुफा मन्दिरों का उल्लेख हमें मिलता है। अरब के एक भू-शास्त्री ने एक पुस्तक लिखी है, उसमें मन्दिर की बनावट आदि का कोई वर्णन नहीं दिया गया है। परन्तु स्थान विशेष का उल्लेख पढ़ने से जान पड़ता है कि वह वर्णन एलोरा के गुफा मन्दिरों का ही है। कहा जाता है कि सर्वप्रथम इन गुफा मन्दिरों के संबंध में पूरी जानकारी लोगों को सन् 1306 ई. में हुई। इन दिनो अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली की गद्दी पर शासन करता था। कहते है कि गुजरात के बादशाह की कन्या कमला देवी बचने के लिए भाग कर एलोरा के गुफा मन्दिर में ही छिपी थी। अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर को इसका पता चल जया था। उसने कमला देवी को यही गिरफ्तार कर लिया और दिल्ली भेज दिया था। इससे पता चलता है कि उस जमाने के लोगो को काफी पहले से ही ऐलोरा की गुफाओं की पूरी जानकारी थी यदि ऐसी बात न होती तो गुजरात नरेश की पुत्री वहां कैसे पहुँच पाती। उसने उन गुफा मन्दिर को अपनी सुरक्षा के लिये सर्वोत्तम स्थान समझा था और इसीलिए उसकी शरण में गई थी।एलोरा मे गुफा मन्दिरों की संख्या कुल चौंतीस हैं। इनमे बौद्धों के बारह मन्दिर है, जैनियों के पांच और हिन्दूओं के सत्तरह’ इस प्रकार हिन्दू मन्दिरों की संख्या बौद्ध और जैनियों के मन्दिर के बराबर ही है। इन मन्दिरों की बनावट को देखकर लोग दांतों तले अंगुली दबाते है। वैसे तो भारत में पर्वतों को काटकर मन्दिर बनाने का रिवाज बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है, प्राचीन काल में ऐसे अनेक मन्दिर बनाये गये है, पर एलोरा के टक्कर के कोई भी मन्दिर नहीं बन पाये हैं।हिन्दुओं, बौद्धों तथा जैनियों के मन्दिर सब एक दूसरे से सटे हुए है। बौद्धों के मन्दिर दक्षिण की ओर बनाये गये हैं और जैनियों के मन्दिर उत्तर की ओर बने हुए है। हिन्दुओं के मन्दिर बौद्ध और जैन मन्दिरों के बीच में बने हुए हैं। ये सभी मन्दिर पहाड को काट कर गुफाओ के भीतर बनाये गये हैं। गुफाओं की लम्बाई उत्तर से दक्षिण तक लगभग डेढ मील की है मन्दिर गुफाओं के भीतर एक ढलुये पर्वत को काटकर बनाये गये हैं। प्रत्येक गुफा के सामने एक सुन्दर मनोरम आंगन-सा बना हुआ है। गुफा के भीतर घुसने पर, उनकी दीवारों की चित्रकारी और बनावट को देखकर हम आश्चर्य चकित रह जाते हैं। आजकल के बड़े-बड़े कारीगरों का सिर इनको देखते ही विस्मय से चकराने लगता है। गुफाओं के भीतर को दीवारों पर विभिन्न रंगों में चित्रकारी की गई है। रंग बिरंगे बेल-बूटों, चित्रों और फूल-पत्तियो को देखते ही बनता है।प्रतिमाओं के चेहरों पर जिन भावों की अभिव्यक्ति होती है, जो तरह-तरह की आकर्षक जालियां आदि बनी है, उन्हें देखकर बड़ा से बड़ा कलाकार भी आश्चर्य में डूबे बिना नहीं रहता है।जब से भारत की इस कलाकारी का पता पश्चिम के राष्ट्रों को चला है तब से लाखो यूरोपीय विद्वानों ने इन्हे देखा है और इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। विलायत के एक प्रसिद्ध विद्वान तथा कलामर्मज्ञ ने एलोरा के गुफा मन्दिरों को देखने के बाद जो उद्गार व्यक्त किए वह वास्तव में उन महान कलाकारो के प्रति उनकी हार्दिक श्रद्धांजलि थी, जिन्होंने संसार के सामने ऐसे आश्चर्यों को विचित्र किया। उस अंग्रेज कला पारखी ने कहां-‘एलोरा के चित्र प्राचीन भारतीय कला के अद्भुत उदाहरण है ‘ संभवतः उस समय जब पश्चिम के अनेक देश और प्रत्याक्रमण की आग मे झुलस रहे थे। भारत के कलाकार पत्थरों में जान डालने मे व्यस्त रहे थे। इन कला-कृत्तियों के मुकाबले में आज संसार मे दूसरा उदाहरण दृष्टिगत नही होता। यद्यपि वे महान कलाकार जिन्होने अपनी छेनी और हथौडें से पत्थरों मे जान डाल दी, अब नहीं रहे पर उनकी इन कृतियों के देखने मात्र से उनकी आत्मा का स्पन्दन सुनाई पडता है।एलोरा और अजंता गुफा मंदिरों की चित्रकारी को देखकर कोई भी आश्चर्य प्रकट किये बिना नहीं रह सकता। कलाकारों ने इनके निर्माण में जिस अद्भुत कला का परिचय दिया है, उन्हे देखने से पुराणों की बडी-बडी प्राचीनतम कहानियों का प्रत्यक्ष चित्र आंखो के सामने झलकने लगता है। इन्हीं मंदिरों में “कैलास” नाम का एक मन्दिर है। विद्वानों का मत है कि इस मन्दिर के मुकाबले संसार के किसी भी कोने में दूसरा कोई मन्दिर नहीं है। आज तक पह़ाडों को काटकर जितने भी मन्दिर भारत अथवा संसार के दूसरे हिस्सों में बने है, कैलास’ का यह मन्दिर उन सभी में बढ चढकर है। उसके टक्कर मे दूसरा कोई भी मन्दिर नहीं है। एलोरा के चौंतीस मन्दिरों में कैलास का मन्दिर कला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है। वैसे तो वहां जितने भी मन्दिर है, वे सब अपना अलग-अलग विशिष्ट स्थान रखते है। पर हिन्दुओं के मन्दिर सामान्यतया बौद्धों और जैनियों के मन्दिरों से अधिक सुन्दर तथा आकर्षक है।हमने पहले ही बताया है कि एलोरा के इन गुफा मन्दिरों में हिन्दुओं के मन्दिरों की संख्या सत्रह है। उनमें आठ मन्दिर मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं। ये आठों मन्दिर-कैलाश मन्दिर या रणमहल, लंकेश्वर, रामेश्वर, नीलकंठ धुमारलेन अथवा सीता की चापडी, दशावतार, देवबाड़ा और रावण की खाई नाम के हैं। ये ही आठों मन्दिर विशेष रूप से प्रसिद्ध तथा आकर्षक हैं। इन मंदिरों मे से सबसे अधिक मूर्तियां ‘रावण की खाई? नामक मन्दिर में है। अनेक मूर्तियां अभी भी ऐसी हैं जिनमें कही से कोई कमी नहीं आई है। उनको देखने से ऐसा जान पड़ता है, मानो अभी हाल ही मे उन्हें बनाया गया हो।एलोरा और अजंतापुरातत्ववेत्ताओं का कहना है कि एलोरा में जो बौद्ध मन्दिर हैं उनका काल 450 और 550 ई सन् के भीतर का है। बौद्ध मन्दिरों में ‘सुनार का झोपडा’ अथवा ‘विश्वकर्मा’ नाम का मन्दिर अत्यधिक भव्य और सभी मे सुन्दर है। इस मन्दिर के चारों तरफ बरामदा है, और इसके आगे का आंगन खुला हुआ है मन्दिर के भीतर का हिस्सा 65 फुट लम्बा और 45 फुट चौड़ा है। मन्दिर के स्तम्भों की ऊँचाई चौदह फुट है। उन मन्दिरों में दोनों ओर अवलोकितेश्वर बुद्ध की प्रतिमाएं है। कही-कही पर सरस्वती और मंजुश्री की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित की हुई है। विद्याधर को इन प्रतिमाओं की पूजा करते हुए दिखलाया गया है। बुद्ध की मूर्ति बडी ही सुन्दर एवं आकर्षक है। उनके एक हाथ में माला तथा दूसरे हाथ में कमल तथा कंधे पर मृगछाला सुशोभित है। उनकी मुद्रा देखने से ही पता चल जाता है कि वे अभय तथा धर्म-चक्र की स्थिति में है। बौद्धों के बारह मन्दिरों मे इसी ढंग की अनेक मूर्तियां है पर विश्वकर्मा” मन्दिर की मूर्तियां अधिक आकर्षक और सुन्दर हैं।जैन-मतावलम्बियों के पाँच मन्दिरों में दो मन्दिर सबसे बडे और अधिक सुन्दर है। इन मन्दिरों के नाम “इन्द्र सभा” और “जगन्नाथ सभा है। पर इन मंदिरों को देखने से ऐसा जान पडता है जैसे इनका निर्माण पूर्ण नहीं हो पाया हो। कही-कही से इनमें काम के अधूरा ही छोड दिये जाने का पता चलता है। ‘इन्द्र सभा’ मंदिर बडा ही भव्य है। इसमें कई एक बरामदे, कई आंगन आदि हैं। इसकी छत की बनावट बड़े आश्चर्यमय ढंग से की गई है। मन्दिर के स्तम्भ, भी बड़े आकर्षक ढंग से काटे छांटे गये हैं और देखने में बड़े विचित्र मालूम पड़ते है। इन मंदिरों में पार्श्वनाथ महावीर आदि की अनेक आकर्षक भव्य मूर्तियां हैं। दिगंम्बर जैनियों के मन्दिरों में जोमतेश्वर की भी एक प्रतिमा स्थापित है। मूर्तियों के आस-पास और भी कई मूर्तियां हैं जो संभवत बाद की स्थापित की हुई है।इन मंदिरों के निर्माण कार्य का अभी तक कोई निर्णय नही हो पाया है। विद्वानों में इस विषय पर पूर्ण मतभेद है। अधिकतर लोग इसी कथा को प्रमाण समझते हैं कि आठवी शताब्दी के आस-पास यदु नामक राजा के राज्य काल में ही इन मन्दिरों का निर्माण हुआ होगा। इस विषय पर लोगों का मतभेद भले ही हो, पर इन मंदिरों के अद्वितीय होने में विश्व के सभी विद्वान तथा कलार्मज्ञ एक मत है। भारत की प्राचीन कला की ये स्मृतियां आज भी विद्यमान हैं और आज भी संसार के लिये अत्यन्त आकर्षण का केन्द्र है।एलोरा और अजंता की गुफाएंअजंता की गुफाएंएलोरा की गुफा मन्दिरों की तरह दक्षिण हैदराबाद मे अजंता की पहाड़ियो में अनेक गुफाएं हैं जिनमें भारतीय चित्रकला अपना अपार वैभव लेकर देदीप्यमान हो उठी है। अजंता की गुफाओ मे तत्कालीन एव प्राचीन भारत के वैभव की कथा बडे ही रोचक ढंग से चित्रित की गई है। इन गुफाओं में कलाकारों ने जिस कला का जीवित चित्र प्रस्तुत किया है वह धरती पर अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। अजंता के इन चित्रों में भारत के प्राचीन समाज का साक्षात्कार तो देखने को मिलता ही है, साथ ही साथ उस जमाने में भारतीय कला किस प्रकार एक शिखर पर पदस्थ थी इसका भी परिचय मिलता है। अजंता की गुफाओं की चित्रकारी को देखकर भारत का प्राचीन गौरवपूर्ण इतिहास मस्तिष्क के पटल पर चित्रित हो उठता है और तब अनायास ही आज की अपनी दयनीय अभिज्ञ स्थिति को देखकर हमे मौन रह जाना पडता है।अजंता की इस प्रसिद्ध अलौकिक चित्रकारी के सम्बन्ध में प्रसिद्ध अंग्रेज गेफिथ साहब ने कहा है, “करूण और मनोवेग एवं अपनी कथा की अभिव्यक्ति करने की यह निर्भान्त शैली विश्व में अन्यत्र दुर्लभ है। इस दृष्टि से अजंता की चित्रकला का इतिहास में अप्रतिम स्थान है। यह सभव था कि फ्लोरेन्टा के कलाकार इनमें सुन्दर रेखायें डाल देते, और वेनिस के कलाकार आकर्षक रंग भर देते पर उनमें से कोई भी इससे सुन्दर भाव इनमे नहीं भर सकता था।”प्रसिद्ध अंग्रेंज विद्वान के उपर्युक्त उद्गारों को पढ़कर हम सहज ही अजंता की चित्रकारी की महानता का आभास पा सकते है। जिस समय यूरोप के प्रसिद्ध देश रोम और यूनान विलासिता और लडाई झगडे के मध्य अपने विनाश की होली खेल रहे थे, उस समय भारतीय कला अनेक रूपो में हमारे देश में स्वर्ण युग की रचना करन मे व्यस्त थी। अनेक शिल्पकारों ने एलोरा और अजंता को कन्दराओं में अपनी छेनी और हथौड़े से हमारे स्वर्ण युग के इतिहास का निर्माण कर संसार के सम्मुख अपनी कला का अपूर्व रूप प्रस्तुत किया था। न जाने तब से कितने ही बार भारत की धरती रक्त की धारा से लाल-लाल हो उठी, कितने ही लुटेरों और आक्रमणकारियों के क्रूर प्रहारों का आघात इस देश की छाती पर पड़ा पर हमारे देश के गौरव का चित्रमय इतिहास अपनी गोद में छिपाए अजंता और एलोरा की पहाड़ियां अनगिनत प्रहारों को सहती रही है।जिन दिनो का जिक्र हम लिख रहे है, उन दिनो भारत में गुप्त वंश का राज्य था। गुप्त वंश के यशस्वी सम्राटों का आश्रय पाकर ही भारतीय कलाकारो ने इस युग के इतिहास का मार्मिक एव प्रभावोत्यादक चित्रण प्रस्तुत किया था। वास्तव में अजंता की चित्रकारी गुप्त साम्राज्य के सौन्दर्य, और अपरिमित गुण राशि का सजीव संग्रहालय है। अजंता में अनेक गुफाएं है। इनमें संख्या सत्रह की गुफा की एक दीवार पर एक बडा ही आकर्षक चित्र देखने को मिलता है। इस चित्र को अनेक विदेशी कला शास्त्रियों ने “प्रियतमा राज कव्या” की संज्ञा दी है। उनका कहना है कि यह चित्र किसी राजकन्या का है। इस चित्र में जिस मार्मिक आशय की अभिव्यक्ति कलाकार ने की है, वह अद्वितीय है। चित्र मे राजकन्या की झुकी हुई पलकों में सांसारिक ज्योति का अपहरण हो चुका है। प्यार मिश्रित अंतिम विदा के प्रतीक रूप उसकी उंगलियां समीप बैठी हुई एक कन्या के हाथ पर झूल गई है और वह बालिका अविश्वास, आशंका और जिज्ञासा के भाव लेकर अपनी व्यग्रता प्रकट करती हुई विपत्ति का फल जानने के लिये उत्सुक सी दिखाई पड़ती है। अन्तिम क्षणों में झुके हुए अंगो के कारण हाथ खीच लेने से मृत्यु की जीत निश्चित हो जाती है। यह अवर्णनीय दुख चारों तरफ बैठी हुई सेविकाओं के मुखों पर परिलक्षित भावों से और भी स्पष्ट हो जाता है।कला की दृष्टि से अजन्ता का यह चित्र सर्वोत्तम तथा विश्व मे अग्रणय है। खोज करने के पश्चात् इतिहास वेत्ताओ ने यह निर्णय किया है कि यह चित्र सम्राट प्रवर सेन की पुत्री नयनिका का है। यह चित्र कैसे बना, किसने बनाया? इस सम्बन्ध में इतिहास वेत्ताओं का कहना है कि इसे भारत के यशस्वी कलाकार आचार्य सुनन्द ने बनाया था। कहते है कि सम्राट प्रवर सेन के राजकीय विद्यालय के आचार्य सुनन्द ही थे। महाराज प्रवर सेन काठण्डनायक नागदत्त था जो बौद्ध मतावलंबी था। राजकुमारी नयनिका आचार्य सुनन्द के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करना चाहती थी। नागदत्त को यह जानकर आचार्य के प्रति ईर्ष्या हो गई। वह सन्देह करने लगा था कि राजकुमारी का झुकाव आचार्य को ओर दिन-प्रतिदिन बढता ही जा रहा है, तभी से वह आचार्य सुनन्द को आश्रम से निकलवाने का प्रयत्न करने लगे। अंत में उसे इस काम में सफलता भी मिल गई | नागदत्त ने ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी कि आचार्य सुनन्द को आश्रम को छोडकर चला जाना पडा। राजकुमारी को जब यह खबर मिली तो वह बहुत ही दुखी हुई। तभी से वह विक्षिप्त सी रहने लगी। उधर आचार्य आश्रम त्याग कर अजंता की गुफाओं मे चले गये। उन दिनो अजंता बौद्धों के विहार के रूप में था राजकुमारी को जब यह पता चला तो व आचार्य के पास गुफाओं में पहुच गई। वहा पहुंचने पर राजकुमारी ने देखा कि एक भीत पर उसकी मूर्छित अवस्था का चित्र अंकित है। उसने आचार्य से प्रार्थना की कि मुझे अपनी शिष्या स्वीकार करें। पर आचार्य ने अस्वीकार कर दिया।इस महान आश्चर्यजनक चित्र के निर्माण की यही कथा है। आचार्य सुनन्द के हाथो का वह चित्र आज विश्व के कलाकारों के लिये श्रद्धा और आश्चर्य का विषय बना हुआ है। अजंता के सभी गुफा मन्दिर एक से एक बढकर सुन्दर हैं। जिस प्रकार पहाडों को काट कर इन गुफा मन्दिरों को बनाया गया है, उससे हमे उस समय के भारत की गुप्त कालीन कला का सर्वोत्तम उदाहरण मिलता है। सर्वप्रथम जब इन गुफा मन्दिरों का पता चला, तो लोगों ने यह अनुमान लगाया था कि संभवतः ये संसार मे मूर्ति एवं शिल्पकला के सब से प्राचीन उदाहरण है। उस समय ये गुफाएं मिट॒टी और पत्थर के छेंदो से भर गई थी, और उन्हें देखकर उनके निर्माण काल का अन्दाज लगाना संभव नहीं था। अतः उनकी आकृतियों और स्थिति को देखकर लोगो ने यही समझा कि ये विश्व की सर्व-प्राचीन कला-कृतियों हैं। पर बाद में गुफाओं की सफाई होने पर बुद्ध की मूर्तियों एवं बौद्ध विहारों को देखा गया और निर्णय किया गया कि गुप्त-कालीन समय में ही इनका निर्माण हुआ था।हेमाद्री की पहाड़ियों में, हैदराबाद रियासत में, अजंता नामक ग्राम से थोडी दूर पर ये गुफाएं अवस्थित हैं। सर्वप्रथम लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व अग्रेजों को इनका पता चला और सन् 1843 ई मे जेम्स फरग्यूसन नाम॒क प्रसिद्ध अंग्रेंज विद्वान ने इन गुफा मन्दिरों के सम्बन्ध मे संसार के सामने लेख आदि प्रस्तुत किये। जिस समय फरग्यूसन साहब ने इन गुफाओं को देखा था, तो इन्हें देखकर वे दंग रह गये थे। उनके विचार में प्राचीन रोम की मूर्ति कला एवं मध्य कालीन रोम की शिल्पकला का भी वैसा विकास नही हुआ था, जैसा कि अजंता की मूर्तियों को देखने से मालूम पड़ता था। उन्होने लिखा है–‘अजन्ता की प्रतिमाओं में में जो सौन्दर्य है, उनके चेहरे के भावों मे जो अभिव्यक्ति भरी हुई है, वह संसार मे अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। मूक पत्थर की मूर्तियों को देखने से जान पडता है, वे अब बोलना ही चाहती हैं। दो हजार वर्ष पूर्व भी भारत मे शिल्प कला का इतना व्यापक विकास हुआ था कि वे संसार के कलाकारों का नेतृत्व करने का दावा कर सकते थे। पर दुख है कि काफी समय तक संसार को भारत के इस गौरव की जानकारी नहीं हो सकी। यद्यपि निश्चित रूप से इनके निर्माण की तिथि नहीं बताई जा सकती पर इनको देखने से साफ पता चलता है कि बौद्ध धर्म का भारत से लोप होने से पूर्व ही इनका निर्माण हुआ था। प्राय सातवी शताब्दी के पश्चात् से बौद्धों का यह अत्यन्त ही रमणीक विहार वीरान और सूनसान पडा रहा था अजंता के चित्र आदमी की कला के सर्वोत्तम पृष्ठों मे सजोने योग्य है, इसमे तनिक भी संदेह नही।जेम्स फग्यूसन साहब के शब्दों से स्पष्ट है कि अजंता के चित्र संसार में विशिष्ट स्थान रखते है। अजंता की गुफा में कुल मिलाकर पांच मन्दिर है और चौबीस बौद्ध विहार है। ये मंदिर और बौद्ध विहार पहाडी के ढलुये हिस्से को लम्बे रूप में काट कर बनाये गये हैं। गुफाओं की ऊँचाई 250 फीट की बताई जाती है। सर्वप्रथम जब गुफाओं का पता चला था, तो वे जगह जगह से कीचड आदि से भर गई थी, पर अब उनकी सफाई कर दी जई है। जिस पर्वत को काटकर गुफा बनी हुई है, उसके ऊपर एक सुन्दर पानी का झरना है। बनाने वालो ने स्थान का चुनाव करते समय अत्यधिक बुद्धिमानी से काम लिया था। ऊपर कल-कल निनाद से झरना प्रवाहित होता है और नीचे अत्यन्त ही रमणीक गुफा के भीतर आकर्षक मन्दिर और बिहार बने हुए हैं।इन गुफा मन्दिरों में कुछ हिन्दुओं के मन्दिर भी हैं। विद्वानों का कहना है कि इनका निर्माण बाद में हुआ था। क्योंकि एक तरफ जो बौद्ध मन्दिर तथा बिहार हैं वह हिन्दुओं के मन्दिरों से अधिक पुराने मालूम पड़ते है। बौद्धों के मंदिरों का निर्माण काल ईस्वी सन् से दो सौ वर्ष पूर्व वर्णीत किया गया हैं। परन्तु इस बात पर विद्वानों का मतभेद है। चाहे जो भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि जब भारत में बौद्ध धर्म का पूर्ण विकास हो चुका था, तभी इन गुफा मन्दिरों का निर्माण हुआ था। उस काल में यहां पर बडे-बड़े बौद्ध-भिक्षुक रहा करते थे ओर बौद्ध मतावलम्बियों का यह प्रसिद्ध विहार रहा होगा।अजंता के मंदिरों का निर्माण बडी दक्षतापूर्ण ढंग से किया गया है। विहार चौकोने वाले बने हुए हैं। उनमें तीन तरफ भिक्षुकों के रहने के लिये सुन्दर आवास बने हुए हैं। सामने की तरफ एक बरामदा है जिनमे कई स्तंभ है। मंदिरों पर जो चित्रकारी आदि की गई है उन्हें देखने से बडा आश्चर्य होता है। बडे-बडे कारीगर उन्हें देखकर आश्चर्य चकित रह जाते है। मन्दिरों की काट छाट, चित्रकारी आदि को देखकर एक बार एक कुशल यूरोपीय कारीणर ने कहा था–‘ जो चित्रकारी इन पत्थरों पर की गई है वह तो किसी अच्छे से अच्छे कारीगर के लिये लकडी पर कर सकना भी असम्भव है।” मन्दिर के भीतरी हिस्सो में जो चित्रकारी विभिन्न रंगों मे की गई है वह तो और भी अद्भुत और आश्चर्य में डालने वाली है। भीतर की दीवारों पर पत्थरों को खोदकर और रंगों से भी अनेक प्रकार के मोहक चित्र बनाए गए है, जिन्हे देखकर देखने वाला अवाक् रह जाता है। भीतर महात्मा बुद्ध का संपूर्ण जीवन चरित्र एक भिक्षुक के साथ उनकी वार्तालाप आदि की विभिन्न भावोत्पाठक मुद्राओं मे देखने को मिलता है। युद्ध, घरेलू कार्यों आदि के भरी कितने ही चित्र अंकित हैं जिनसे तत्कालीन भारत के इतिहास की भी झलक मिलती है। दुर्भाग्यवश अब इनमें से कई सुन्दर चित्रों में भरा गया रंग कही- कहीं से झीना पड़ गया है, पर अभी भी उनकी महानता और कला विशिष्ठता में कोई अन्तर नहीं आया है।गुफा के भीतर बाहर से प्रकाश पहुंचाने मे कारीगरों ने जिस बुद्धिमता का परिचय दिया है, वह तो निश्चय ही सराहनीय है। इस सम्बन्ध में जेम्स फरग्यूसन साहब लिखते है- गुफा में एक छिद्र से प्रकाश आता है और उसी से सारी गुफा मानों जगमग हो उठती है। मन्दिरों और उनके भीतर की मूर्तियों पर भी उसी से प्रकाश पहुँचता है और भीतर घुस कर देखने वाले को कही अंधकार का सामना नहीं करना पडता है। वेदी पर प्रकाश पूर्ण रूप से पडता है| दर्शक स्वंय तो उसकी छाया में खडा हो जाता है। गुफा का समस्त भाग उसी एक छिद्र के प्रकाश से मानों जगमगा उठता है! इस प्रकार की रोशनी की यह व्यवस्था संसार में अनूठी है। कारीगरों ने किस खूबी के राय उस छेद का निर्माण किया है, कि हर समय सूर्य की रोशनी बराबर रूप से उस छेद से होकर गुफा में पहुंचती है। वास्तव मे यह विश्व की महान आश्चर्यजनक वस्तु है।सौभाग्य से भारत की यह कृति अभी तक अक्षुण्य है। तब से आज तक अनणिनत गुफाएँ और गुफा मन्दिर विश्व के अन्य देशों मे बने होगे पर उनमें न कोई कला-चैचित्र्य है और न वे सुन्दर ही है। अनेक दृष्टियों से एलोरा और अजंता के गुफा मन्दिर विश्व मे सर्वोत्तम है, संसार के अब तक हजारों प्रसिद्ध कला-मर्मज्ञों एव विद्वानों ने एलोरा और अजंता गुफाओं को देखा है और इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। अब से दो-ड़ेढ़ हजार वर्ष पूर्व भारत में शिल्प कला का कितना विकास हुआ था इसका पता हमें एलोरा और अजंता के गुफा मन्दिरों को देख कर चल जाता है जब से इन गुफा मन्दिरों का पता चला है, तव से अब तक कितने ही कवियों और लेखकों ने उन अमर कलाकारों के गुणगान से अपनी लेखनी को धन्य किया है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- रूस में अर्जुन का बनाया शिव मंदिर हो सकता है? आखिर क्या है मंदिर का रहस्य संसार के हर हिस्से मे वहां की प्राचीन कला-कृतियों की कोई न कोई निशानी देखने को मिलती है। उन्हे देखकर Read more गोल्डन गेट ब्रिज - सेंफ्रांससिसकों का झूलता पुल गोल्डन गेट ब्रिज--- सभ्यता के आदिकाल से ही आदमी ने अपने आराम के लिये तरह-तरह के सुन्दर-पदार्थों का अन्वेषण किया Read more पीसा की झुकी मीनार कहा है - पीसा की मीनार किसने बनवाया अठारहवीं शताब्दी के भ्रमणकारियों 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