आपने कभी बिजली ‘चखी’ है ? “अपनी ज़बान के सिरे को मेनेटिन की एक पतली-सी पतरी से ढक लिया और चांदी के चमचे के अगले सिरे को ज़बान के पिछले सिरे से छुआकर उसके हत्थे से टिन को छुआ। इटली के पाविया विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर एलेसेंड्रो वोल्टा (Alessandro Volta) ने एक परीक्षण का वर्णन इन शब्दों में किया है। वोल्टा का ख्याल था कि ज़बान कुछ सिकुड़ने की कोशिश करेगी (जैसे उसे कुछ काट खाया हो ),किन्तु उसकी बजाय उसे बस कुछ खट्टा-खट्टा स्वाद ही आया। अपने इस लेख में हम इसी महान वैज्ञानिक का उल्लेख करेंगे और जानेंगे कि– एलेसेंड्रा वोल्टा किस लिए प्रसिद्ध है? एलेसेंड्रा वोल्टा की बैटरी कैसे काम करती है? एलेसेंड्रा वोल्टा को बैटरी बनाने में कितना समय लगा? एलेसेंड्रा वोल्टा का जन्म कब हुआ था? एलेसेंड्रा वोल्टा की मृत्यु कब हुई,
एलेसेंड्रो वोल्टा का जीवन परिचय
एलेसेंड्रो वोल्टा का जन्मइटली के कोमो शहर में 18 फरवरी, 1745 को हुआ था। कोमो आल्प्स पर्वत श्रृंखला के चरणों में लोटता, कोमो झील पर बसा सबसे बड़ा शहर है। इस प्रसिद्ध और सुन्दर झील पर अमीर लोग जहां आकर बस गए हैं, वहां यूरोप के साधारण जन मौसम-मौसम में यात्री के रूप में प्राय: आते रहते हैं। वोल्टा का परिवार कोई बहुत धनी परिवार नहीं था। किन्तु बालक होनहार था। चर्च में कुछ प्रतिष्ठित सम्बन्धियों के प्रभाव से उसकी शिक्षा का कुछ प्रबन्ध हो ही गया। विश्वविद्यालय की पाठ्य विधि समाप्त करके और 17 साल की उम्र में ही ग्रेजुएट होकर, वोल्टा को कोमो के हाई स्कूल में पढ़ाने की नौकरी मिल गईं। सन् 1779 तक वह एक स्कूल-टीचर ही रहा और तब, 34 वर्ष की आयु में, पाविया विश्वविद्यालय में उसे भौतिकी विभाग की स्थापना के लिए बुलावा आया। विभाग की स्थापना करते हुए, कुछ न कुछ वक्त अनुसंधान के लिए भी निकल आता था।
कोमो में स्कूल टीचरी करते हुए ही एलेसेंड्रो वोल्टा ने इलेक्ट्रोफोरस का आविष्कार कर लिया था। जिसका बयान इंग्लैंड मे जोसेफ प्रिस्टले को लिखे उसके एक खत में मिलता है। इलेक्ट्रोफोरस कोई बहुत काम की चीज नही है किन्तु आज भी उसका इस्तेमाल हम कक्षा में स्थिर विद्युत के प्रदर्शन में करते है। किन्तु वोल्टा ने इलेक्ट्रोफोरस का प्रयोग विद्युत निर्माण में कैपेसिटर अथवा कंडेन्सर के कार्य में कौन से नियम काम में आते हैं, यह जानने के लिए किया था। वोल्टा ने इस उपकरण का नाम “कंडेन्सेटर’ रखा था किन्तु लन्दन की रॉयल सोसाइटी के ट्रान्जेक्शन्ज के अनुवादक ने संक्षिप्त करते हुए उसे “कंडेल्सर’ कर दिया। वोल्टा ने इसके प्रयोग मे एक और कुशलता यह भी दिखाई कि बिजली को नापने के लिए उन दिनों जो स्थूल यन्त्र इलेक्ट्रोस्कोप तथा इलेक्ट्रोमीटर इस्तेमाल मे आते थे उन्हें क्रियाशील करने के लिए विद्युत के आवेश को प्रगुणित भी किया जा सकता है। इलेक्ट्रोस्कोप को चार्ज करके उसने उसकी प्लेटों को अलग कर दिया, जिससे हुआ यह कि प्लेटों की पोटेन्शल या वोल्टेज बढ गई। इस उपकरण के लिए उसने एक नया नाम भी सुझाया— माइक्रो इलेक्ट्रोस्कोप अर्थात सुक्ष्म विद्युत प्रदर्शक।
एलेसेंड्रा वोल्टाएलेसेंड्रा वोल्टा की खोज
सन् 1791 में बोलोना विश्वविद्यालय मे प्राणि शास्त्र तथा शरीर तन्त्र के प्राध्यापक लुइंजि गैल्वेनि विश्वविद्यालय की परीक्षणशाला में कुछ मेंढकों की चीरा फाड़ी करके अध्ययन कर रहा था। पीतल के एक नुकीले हुक को जबरदस्ती मेंढक की रीढ मे घुसेड़ दिया गया, और एक सहायक ने लोहे के स्केल्पल द्वारा उसकी टांग को छुआ। ज्यों ही हुक और स्केल्पल अन्दर पहुंच कर परस्पर स्पर्श मे आएं, मेंढक की जांघ बडी बुरी तरह से सिकुडने लगी। गैल्वेनि ने फिर करके देखा, फिर वही कुछ मेंढक की जांघ फिर अटक गई। गैल्वेनि ने अपने इन प्रत्यक्षों को प्रकाशित कर दिया। उसका विचार था कि खुद मेंढक में ही एक किस्म की विलक्षण बिजली पैदा हो जाती है जिससे यह झटका आ जाता है। वोल्टा ने भी परीक्षण के निष्कर्षो को पढा, किन्तु उसे उन पर विश्वास नहीं आया। लेकिन जब उसने खुद उन्हे दोहरा कर देखा तो वह भी कहने लगा, “बात ही कुछ ऐसी है कि अजुबे मैं भी खुद कम नही करता आया हू और पूर्ण अविश्वास से खिसककर कितनी ही बार मै भी विश्वास के नये उल्लास से पुलकित होता आया हुं।
कुछ हो, वोल्टा को फिर भी यह विश्वास नही आया कि यह विद्युत पशु की देह से उत्पन्न हुई थी। उसने वस्तुस्थिति का और गहन अध्ययन किया। और 20 मार्च, 1800 को उसने एक प्रसिद्ध पत्र रॉयल सोसाइटी के नाम लिखा जिसमे एक प्रकार की वोल्टाइक
पाइल का वर्णन था। कोई भी इस पाइल को बना सकता है वोल्टा ने चांदी और जस्त के कुछ सूखे तवे लिए और कुछ गत्ते के कटे हुए तवे खूब नमक घुले पानी में गीले किन्तु टपकते हुए नही लिए और उन्हे चांदी-गत्ता-जस्त-चादी के निरन्तर-क्रम मे रख दिया। पाइल के सिरों से विद्युत का अबाध संचार संभव था। एलेसेंड्रो वोल्टा ने इस प्रकार पहला इलेक्ट्रिक सैल तैयार कर लिया जो हमारे रेडियो बगैरह मे प्रयुक्त ड्राई-सेल बैटरी का एक प्रकार से पूर्वाभास है। विज्ञान के इतिहास मे विद्युत के निरन्तरित प्रवाह का यह प्रथम प्रदर्शन था। और जब वह टिन और चांदी के दो चमचों को एक साथ अपने मुंह में ले गया तो उनसे भी बिजली पैदा होने लगी। यहां भी तो वही दो धातुएं थी, और विद्युत के संचरण के किए एक द्रव माध्यम था।
इस अनुसंधान का फल यह हुआ कि विद्युत और रसायन में गवेषणा के कितने ही नये क्षेत्र एकदम खुल आए, एक चीज़ तो यह हुई, शायद सबसे पहली कि वोल्टाइक पाइलों का प्रयोग करके वैज्ञानिक पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में फाड़ने में सफल हो गए, और इसके अतिरिक्त डेवी ने सोडियम और पोटेशियम की खोज कर ली, और विद्युत तथा चुम्बक शक्ति विषयक अध्ययन में अब कुछ असाधारण प्रगति आ गई।
देश विदेश से वोल्टा को सम्मानित किया जाने लगा। नेपोलियन ने उसे पेरिस की इन्स्टीट्यूट में एक व्याख्यानमाला देने के लिए निमंत्रण भेजा। एक स्वर्ण-पदक उसके सम्मान में तैयार किया गया। और जब वोल्टा ने कहा कि अब मेरी उम्र बहुत अधिक हो गई है, मुझे त्यागपत्र दे देना चाहिए, तो उससे प्रार्थना की गई कि नही, वर्ष में एक ही लेक्चर देने के लिए सही, वह विश्वविद्यालय में ही बदस्तूर प्रोफेसर बना रहे, तब भी उसे वही तनख्वाह मिलती रहेगी। यही नही, लम्बार्दी के प्रतिनिधि रूप में उसे सिनेट का सदस्य भी चुन लिया गया। आस्ट्रिया के बादशाह ने वोल्टा को पेदुआ के दर्शन विभाग का महानिदेशक बन जाने के लिए प्रार्थना की। सन् 1819 में 74 साल की उम्र में क्रियात्मक जीवन से निवृत्त होकर वोल्टा अपनी जन्मभूमि कोमो मे लौट आया जहां 1827 में एलेसेंड्रो वोल्टा की मृत्यु हुई।
कोमो में वोल्टा की एक भव्य मूर्ति, मानो उसके अनुसन्धान-रत जीवन के स्मारक रूप में आज भी खडी है। किन्तु एक और स्मारक जो दुनिया मे हर कही व्याप चुका है, वह है विद्युत के क्षेत्र में सभी कही वोल्टा के नाम का विश्वजनीन प्रयोग। 1893 में विद्युत विशारदों की कांग्रेस ने इलेक्ट्रोमोटिव फोर्स की इकाई का नाम ही वोल्ट निर्धारित कर दिया। वोल्टा की पहली पाइल ही थी जो मानव जाति को विद्युत के युग मे प्रवेश पत्र दे गई।
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