You are currently viewing एलेग्जेंडर फ्लेमिंग का जीवन परिचय – एलेग्जेंडर फ्लेमिंग की खोज
एलेग्जेंडर फ्लेमिंग

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग का जीवन परिचय – एलेग्जेंडर फ्लेमिंग की खोज

साधारण-सी प्रतीत होने वाली घटनाओं में भी कुछ न कुछ अद्भुत तत्त्व प्रच्छन्न होता है, किन्तु उसका प्रत्यक्ष कर सकने के लिए भी आवश्यक होता है कि पहले हम एक कुशल शिल्पी बन चुके हों, हमें अपने हुनर में दक्षता प्राप्त हो चुकी हो। सर एलेग्जेंडर फ्लेमिंग जो पेनिसिलिन का आविष्कार कर सका, वह केवल इसी लिए कि वह एक असाधारण शिल्पी था, और अपने हुनर में दक्ष था, यद्यपि उसकी अपनी नम्रता उसके मुंह से सदा यही कहलाती आई कि सौभाग्यवश ही मैं यह कुछ कर सका हूं। पेनिसिलिन के आविष्कार में पहली सफलता ही उसके शब्द हैं, भाग्य की कृपा के कारण हुई थी। हो सकता है कि आविष्कार में वह पहला कदम भाग्य की करनी ही हो, किंतु एलेग्जेंडर फ्लेमिंग उसके लिए तैयार था, एक उसी का मस्तिष्क था जो उस घटना के लिए तब तक तैयार हो चुका था।

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग का जीवन परिचय

एलेक्ज़ेण्डर फ्लैमिंग का जन्म लॉकफील्ड फार्म पर दक्षिण पश्चिमीस्कॉटलैंड में 6 अगस्त 1881 के दिन हुआ था। हफ फ्लेमिंग के आठ बच्चों में वह सबसे छोटा था। अभी वह आठ साल का ही हुआ होगा कि पिता की मृत्यु हो गई, किंतु मां ने एक जिन्दा दिल तबियत पाई थी, और वह चरित्र की भी दृढ़ थी। वही अब घर की खेतीबाड़ी की देखभाल करने लगी और उसी की बदौलत इतने बड़े परिवार में भी परस्पर प्रेम यथावत बना रहा। उसके तीन सौतेले लड़के भी उसके प्रति उतने ही अनुरक्त थे जितने कि उसके अपने जाए चार।

दस साल का होने तक एलेग्जेंडर पड़ोस के लूदून मूर स्कूल में पढ़ने जाता रहा। उसके बाद उसे डार्बेल स्कूल में दाखिल कर दिया गया जहां कि उसके बड़े भाई पहले से ही शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। स्कूल जाते हुए इन चार सालों तक एलेग्जेंडर को चार मील एक पहाडी ढलान-सी उतरनी पडती और वापसी पर वही चढाई फिर तय करनी पडती। इस दैनिक पैदल यात्रा के दौरान में उसने प्रकृति का पर्याप्त अध्ययन किया। उसकी बुद्धि कुशाग्र थी और बारह साल का होते-होते उसे किलमरनॉक एकेडमी में भेज दिया गया। दो साल बाद वह अपने बडे भाई टॉमस के यहां जॉन और रॉबर्ट नामक अपने अन्य दो भाइयों से आ मिला। यह वही टॉमस था जो आगे चलकर लन्दन का प्रसिद्ध नेत्र-विशेषज्ञ बना। जॉन और रॉबर्ट नेत्र-परीक्षक बन गए और उन्होने चश्मे वगैरह बनाने व बेचने का अपना स्वतन्त्र धंधा ही शुरू कर दिया। उनकी परीक्षणशाला की भी लन्दन भर मे धाक बैठ गई। चश्मों का यह कारखाना आज भी फ्लेमिंग परिवार के नियन्त्रण में है।

किन्तु परिवार अभी आर्थिक दृष्टि से कोई बहुत सम्पन्न नही हो पाया था और परिणामत आर्थिक कठिनाइयो के कारण ही एलेग्जेंडर फ्लेमिंग की पढाई-लिखाई रुक गई। सोलह साल की उम्र मे उसे एक शिपिंग कम्पनी में नौकरी मिली, और प्रतीत होता है भाग्य यह सब देख रहा था। वह एलेग्जेंडर को देखकर मुस्कराया और एक आंख मानव जाति को देखकर भी मुस्कराया, सन् 1901 में एक वसीयत में उसे भी कुछ हिस्सा मिल गया और उसकी शिक्षा फिर से शुरू हो गई। एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करने का निश्चय कर लिया। शिपिंग कम्पनी में काम करते हुए एलेग्जेंडर, जॉन और रॉबर्ट के साथ लन्दन स्काटिश वालण्टियर्ज का सदस्य बन गया। इसके साथ ही वह रेजीमेंटल स्विमिंग एण्ड वाटरपोलों टीम का भी सदस्य था।उसकी यह टीम सेंट मैरी के मेडिकल स्कूल के मुकाबले में भी शामिल हो चुकी थी। और तमाशा यह है कि एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने एक खास स्कूल में दाखिल होने का निश्चय भी फकत इसीलिए ही किया था कि वह कभी उस स्कूल के विरुद्ध वाटरपोलो खेल चुका था। यह नामुमकिन है कि उसे यह पहले से ही मालूम हो कि ऑल्मरोथ राइट स्कूल के चिकित्सा-विभाग मे बेक्टीरियॉलोजी (जीवाणु-विज्ञान) पढाने के लिए आ रहा है।

एलेग्जेंडर फ्लेमिंग
एलेग्जेंडर फ्लेमिंग

सेंट मैरी के स्कूल में एलेक्जेण्डर एक ऑनर्ज़ का विद्यार्थी था। स्कूल के रिकार्डो में अभी तक दर्ज है कि वह अपनी श्रेणी मे सदा चिकित्सा के हर विभाग में प्रथम पद पर ही आया करता था फीजियॉलोजी (शारीरिक तंत्र) मे भी, फॉर्मकॉलोजी (औषध प्रभाव) में भी, पैथॉलोजी (रोग-विज्ञान) में भी। हर इनाम उसी के हाथ लगता, किन्तु वह कोई किताबी कीडा नही था। उसमे प्रतिभा थी, विलक्षण बुद्धि थी। पढाई-लिखाई के अतिरिक्त और कामों में भी उसकी दिलचस्पी कम नहीं थी। राइफल टीम का मेम्बर भी वह था, और स्विमिंग और वाटर-पोलो का ज़िक्र तो पहले,ही आ चुका है। यही नही शौकिया नाटय प्रदर्शनों में अभिनय करने के लिए भी उसके पास वक्‍त निकल आता था। पढाई-लिखाई उसे स्वभाव से ही सुगम लगती थी। 1906 में 25 वर्ष की आयु में सेंट मैरी के स्कूल से स्तानक होकर एलेग्जेंडर फ्लेमिंग चिकित्सा सम्बन्धी अनुसन्धान करने के लिए ऑल्मरोथ राइट का सहकारी हो गया। राइट भी केवल एक वेक्टीरियॉलोजी का प्राध्यापक ही नहीं था– रक्‍त के एक अंश फेजोसाइट्स (कृमि-भक्षक श्वेताणु) पर कुछ कार्य करके वह प्रसिद्धि पा चुका था।

लुई पाश्चर ने जीवाणुओं का सर्वप्रथम अन्वीक्षण किया था और यह सिद्ध कर दिखाया था कि ये क्षुद्र जन्तु हर वक्‍त हमारे इर्दगिर्द मंडरा रहे होते हैं और यह भी कि ये हर वक्‍त हमारे शरीर के अन्दर भी विद्यमान होते हैं। वैज्ञानिकों ने यह अनुभव किया कि छोटे-छोटे ये कीटाणु जब हम हवा ले रहे होते हैं, हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाते है,रोटी खाते, पानी पीते भी, और चमड़ी में जब कोई जख्म या खरोंच लग जाती है तब भी तो, इन कीटाणुओं से हमारी मौत क्‍यों नहीं आ जाती, तबाही क्‍यों नहीं आ जाती ? समस्या का कुछ समाधान एली मेचनिकॉफ को पेरिस में पाश्चर इंस्टीट्यूट में काम करते हुए मिल गया। उसने देखा कि खून में जो यह श्वेताणु या फेजोसाइट होता है वह एक सजीव प्राणी हैं जो माइक्रोब को हज़म कर जाता है। उधर रॉबर्ट काँक कितने ही अन्वीक्षणों के आधार पर इस परिणाम पर पहुंच चुका था कि स्वयं रक्‍त-द्रव में ही कीटाणुओं को नष्ट करने की अन्तःशकित होती है।

राइट के अनुसन्धान ने ही आखिर इस वाद-विवाद पर अन्तिम निर्णय दिया कि इन कीटाणुओं को हड़प जाने के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं होता कि ये श्वेताणुओं के सम्पर्क में आ जाएं, अपितु रक्त-द्रव पहले उन्हें इस लायक कर दे, अर्थात उन्हें निर्बल कर दे, तभी वे उनका भक्ष्य बन सकते हैं। राइट ने रक्त-द्रव के इस गुण का नाम रखा— ऑप्सोनिन (कृमि-पाचक )। यह खोज परिणामतः एक नूतन चिकित्सा-प्रणाली का प्रस्थान बिन्दु सिद्ध हुई। उस वक्‍त तक बीमारी का पता डाक्टर लोग मरीज़ के जिस्म को छूकर, या उसके हृदय तथा फेफड़ों की गतिविधि को सुनकर किया करते थे। अब माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल मुमकिन हो गया, खून की जांच हो सकती थी। मरीज के खून की दो बूंदे माइक्रोस्कोप की स्लाइड में देखकर बताया जा सकता था कि मरीज में ऑप्सोनिक (कृमि-भक्षक ) क्षमता कितनी है। और मरीज के खून के इन नमूने का मुकाबला एक तन्दुरुस्त आदमी के खून के साथ करके यह भी पता किया जा सकता था कि उसके श्वेताणुओ में कीटाणुओं को निगल जाने की ताकत कितनी है। यदि रक्त मे और उसके श्वेताणुओ मे खुद यह काम करने की ताकत नही है तो मरीज को एक ऐसा टीका लगाया जा सकता है जो उन कीटाणुओ को नष्ट करने में सहायक प्रतिपिंड (एंटीबॉडीज ) पैदा कर दे। यह थी राइट की स्थापना, और राइट को यह लगा कि जो रोग इन कीटाणुओं की बदौलत होते है उनकी समस्या का हल जैसे अब निकलने ही वाला है। ओर इसी अनुसन्धान को पूर्ण करने के लिए उसने कुशाग्रबुद्धि फ्लेमिंग को अपना सहायक चुना था। राइट का आग्रह था कि कीटाणु-विशारद चिकित्सा तथा औषधि के प्रयोग मे दिन-रात रोगी की शय्या के निकट रहे और घडियो की सुईयों के मुताबिक मनोयोग पूर्वक सब कुछ देखते रहे और नोट करते रहे। बडी कडी ड्यूटी थी, किन्तु यही कुछ एक महान अनुसन्धान के लिए दीक्षा हुआ करती है।

इन्ही दिनों फ्लमिंग प्रसगात प्रसिद्ध कलाकार रोनल्ड ग्रे का परम मित्र बन गया। ग्रे को उन दिनो घुटने में एक फोडा (ट्यूबर्कल) निकल आया था, जिसका फ्लेमसिंग ने सफलतापूर्वक इलाज कर दिखाया। और उधर ग्रे की सिफारिश पर फ्लेमिंग को चेलसिया आस ग्रुप का सदस्य चुन लिया गया। इसके लिए ग्रे को खुद प्रतिदान मे एक गेलरी प्रदर्शनी में सेंट मैरीज के बच्चो को वार्ड का एक चित्र उपहार में देना पडा। यह चित्र चित्रकला की आधुनिक शोली में अंकित किया गया था। आलोचकों ने जब चित्र की प्रशंसा की ग्रे को लगा जैसे उसका ध्येय पूर्ण हो गया है, यह दर्शा कर कि “मॉडर्न आर्ट मे कुछ भी गंभीर तत्त्व नही है, किन्तु, साथ ही उसे यह भी अनुभव हुआ कि संभवतः फ्लेमिंग भी एक अच्छा कलाकार है। दिल-बहलाव के लिए फ्लेमिंग कीटाणुओं के और चित्र अंकित करता रहा जिनमें रंग भरने के लिए वह और कुछ नही कीटाणुओं की (खूनी ) समुत्पाद (कल्चर) ही प्रयोग में लाया करता।

प्रथम महायुद्ध के दौरान राइट की परीक्षणशाला को उठाकर बोलोन (फ्रांस) में ले आया गया। यहां पहुंच कर राइट ने रासायनिक एंटिसेप्टिक रोग निरोधक के प्रयोग के विरोध में एक प्रबल आन्दोलन ही खडा कर दिया। एण्टिसेप्टिक का काम होता है कि वह कींटाणुओं को नष्ट कर दे। एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने अनुसन्धान करते हुए देखा कि रसायन-शास्त्र के ये सशक्त रोगाणु निरोधक जहां जख्म के कुछ कीडो को मार देते है वहा वे शरीर के स्वाभाविक रक्षातन्त्र को उसके श्वेताणुओं को भी नष्ट कर देते है। फ्लेमिंग को विश्वास हो गया कि हमारे शरीर मे इन कीटाणुओं को नष्ट करने का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कोई उपाय यदि है तो ये हमारे अपने ही सेल हैं। अब अनुसन्धान का यह कर्तव्य है कि इन जीवनकोशों की शरीर में ही अन्त स्थित इन स्वाभाविक शक्तियों की रोग-नाशक प्रवृत्ति का अध्ययन करे।

13 फरवरी 1922 को लन्दन की रॉयल सोसाइटी के पास एक लेख पहुंचा स्नायुओ तथा स्रावो मे उपलब्ध एक अद्भुत जीवाणु विलायक तत्त्व। निबंध में फ्लेमिंग द्वारा एक प्राकृतिक तत्त्व ‘लाइसोजाइम’ की खोज का जिक्र था। फ्लेमिंग को उन दिनो खुद नासिका-प्रणाली में शोथ की तकलीफ थी और उसके साथ ही कुछ जुकाम भी था। उसने स्राव को समुत्पाद रूप मे बढाते हुए अपनी बिमारी का कारण जानना चाहा। चार दिन बाद उसने देखा कि वह समुत्पाद तो एक अच्छा खासा चमकते पीले रग का उपनिवेश सा बन चुका है। इस कीटाणु-समुत्थ पर अब उसने अपने नजले को कुछ क्षीण करके डालना शुरू किया, और यह देखकर वह हैरान रह गया कि इस तरह कमजोर किए जा चुके नजले की एक बूंद से ही कीटाणुओं का एक क्यूबिक सेंटीमीटर छूमंतर हो गया। फ्लेमिंग ने अपने अनुसन्धान को जारी रखा और पाया कि यह लाइसोजाइम आसुओं में भी मिलता है। थूक में भी और शरीर के कितने ही अन्य अंगो और स्नायु सू़त्रों में भी यह मिलता है। खून में भी यह अद्भुत द्रव्य रहता है। क्या ओर भी कही यह मिल सकता है ? फ्लेमिंग ने मुर्गी के अंडों की परीक्षा की और देखा कि अण्डे की सफेदी में भी यह होता है। गाय के दूध में भी, और माताओं के दूध में भी लाइसोजाइम की पर्याप्त मात्रा होती है। फ्लेमिंग ने लिखा लाइसोजाइम पर्याप्त- प्रकीण कीटाणू नाशक खमीर है, और सभवत सभी जीव-कोशो में प्रकृतित विद्यमान है, और कीटाणुओं को नष्ट करने का शायद मुख्य प्राकृतिक उपाय भी यही है। प्रकृति अपनी रक्षा इन कीटाणुओं से इस प्रकार आप ही कर लेती है।

1928 की गर्मियों में सेंट मैरी के अस्पताल में अपनी अंधेरी परीक्षणशाला में एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने (अब वह 47 साल का हो चुका था) एक तश्तरी का ढक्कन उतारा जिसमे स्टेफीलोकॉक्स का समुत्पाद तैयार किया गया था। अगूरो के गुच्छे की तरह फोडे फुन्सियां पैदा करने वाले कीडो का एक झुरमुट। फ्लैमिंग ने देखा कि समुत्पाद जैसे कुछ सड चुका है, उसपर नीले रंग की कुछ फफूंदी सी उग आई है। खिडकी कुछ खुली रह गई थी और हवा के जरिए उड़कर फफूंदी का एक ‘स्पोर’ शायद इधर आ गया था और यहां एक ही क्षण मे तश्तरी के खुलते ही, पेट्रि के द्रव पर आ बैठा था। एक ही स्पोर अब एक पूरा का पूरा उपनिवेश बन चुका था। इस उपनिवेश में कुछ अजीब चीज भी थी जो फ्लैमिंग की तेज नज़र से बची न रह सकी फफूदी भी तश्तरी में थी, और कीटाणुओं का यह उत्पाद भी तश्तरी के अन्दर ही था, किन्तु फफूंदी के चारो ओर एक वृत्त-सा भी था जो इन कीटाणुओं से सर्वथा विमुक्‍त था। अर्थात फफूंदी ने कीटाणुओं को नष्ट कर दिया था, फफूदी में कीटाणुओ को नष्ठ करने की ताकत थी। नीले रंग की यह कीटाणु-नाशक फफूदी शक्ल में ब्रश-जैसी लगती थी, इसीलिए उसका नाम भी पेनिसिलियम रख दिया गया।

अब फ्लैमिंग ने पेनिसिलियम की फफूंदी की वैज्ञानिक और नियमित रूप में परीक्षा आरंभ कर दी। उसने कुछ स्पोरों को एक भोज्य (पोषक) द्रव्य पर उगाया और कुछ दिन बढने के लिए छोड दिया। इसके बाद उसने तरह-तरह के कीटाणु तश्तरी पर उतारे और उन्हें फफूंदी के सम्पर्क में लाने की कोशिश की। परिणाम की जांच करते हुए उसने देखा कि कुछ किस्म के कीटाणु तो बढकर फफूंदी तक पहुंच गए है किन्तु एक किस्म के कीटाणु हैं कि उनकी यह अभिवृद्धि कुछ दूर आकर ही रुक गई है। अर्थात फफूंदी से कुछ चीज़ ऐसी उपजी थी जो एक किस्म के कीटाणुओं के लिए मौत साबित हुई। खोज जारी रही। एलेग्जेंडर फ्लेमिंग ने अब इस फफूंदी को एक द्रव माध्यम में उगाया। इस द्रव में भी कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति आ गई। उसे प्रत्यक्ष हो चुका था कि यह तत्त्व, जिसे आज हम पेनिसिलिन कहते है, फफूंदी में से पैदा होकर कीटाणुओं को बढने से रोक सकता है, उन्हे नष्ट कर सकता है, उन्हे घोलकर खत्म कर सकता है। पेनिसिलिन पेट्रि डिश में पडे बैक्टीरिया को नष्ट कर सकती है। कही ऐसा तो नही हो कि यह शरीर के जीवकोशों को हानि पहुचा जाए? यह जहरीली निकली तो ? और परीक्षण किए गए, इस बार खरगोशो पर और सफेद चूहों पर। परिणाम उत्साहवर्धक थे। फ्लेमिंग ने कहा, परीक्षणों द्वारा सिद्ध इसकी यह अविषाक्तता ही थी जिसे देखकर मेरी यह आस्था हो गई कि एक न एक दिन पेनिसिलिन एक स्वतंत्र चिकित्सा के रूप में प्रयोग में आने लगेगी।

पेनिसिलिन की खोज में और परीक्षाओं में जो सहायक वर्ग उसके साथ काम कर रहा था, फ्लेमिंग उसके साथ जहा तक सम्भव था, चलता गया जितने भी सुन्दर रूप में हो सका अपने अनुसन्धान को उसने प्रकाशित भी किया, किन्तु सारी की सारी खोज को वही ठप कर देना पडा, क्योकि पैसा खत्म हो चुका था। इसी समय उधर ऑक्सफोर्ड में प्रो० एच० डब्ल्यू० होवी तथा डाक्टर ई० बी०
चेन लाइस्सोजाइम पर अपने अनुसन्धान समाप्त कर चुके थे और गवेषणा-जिज्ञासा के लिए एक नये क्षेत्र की तलाश में थे। यह 1937 की बात है। उन्होने पेनिसिलिन पर प्लेमिंग की रिपोर्ट पढ़ी और निश्चय किया कि इस नूतन द्रव्य के रसायन-तन्त्र की परीक्षा होनी चाहिए। थोडे-थोडे परिमाणों में उन्होंने पेनिसिलिन का निर्माण किया और पशुओं पर उसके साथ परीक्षण करते हुए उन्हे अद्भुत सफलता भी मिली।

अब समय मनुष्यो पर भी इसकी परीक्षा करने का आ गया है उन्हें ऐसा लगा। पहला मरीज जिस पर एक नई दवाई का तजुर्बा किया जाता है हमेशा एक ऐसा केस ही हुआ करता है जिस पर आज तक ज्ञात कोई औषध कारगर साबित नही हो सकी हो। किन्तु पेनिसिलिन का इस्तेमाल जिस शख्स पर पहले-पहल किया गया वह भला-चंगा होने लग गया था तभी एकाएक दवा ही खत्म हो गई। कुछ हो चेन और होवी के लिए इतना ही बहुत था जितना वे प्रत्यक्ष कर चुके थे उसी में इस नई दवा की अद्भुत सम्भावनाएं कम से कम उन्हे स्पष्ट थी। 1941 में ब्रिटेन उधर युद्ध में शामिल हो चुका था। इसलिए होवी अमेरीका पहुंचा कि वहा के औषध निर्माताओं की अभिरुचि इस ओर जगाए। पेनिसिलिन को शुरू शुरू में युद्ध की आवश्यकताए पूर्ण करने के लिए ही बनाया गया। बेशुमार लोगो की जान बचाई इसने। और शान्ति के दिनों तो और भी ज्यादा बेशुमार लोग इसकी बदौलत मरते-मरते बच चुके हैं।

पेनिसिलिन की उपयोगिता आविष्कृत करने के 17 साल बाद एलेग्जेंडर फ्लेमिंग को नोबेल पुरस्कार दिया गया था। 1944 में ब्रिटेन के बादशाह ने भी कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए उसे नाइट का खिताब भेंट में दिया। एलेग्जेंडर फ्लेमिंग स्वयं मरते दम तक कीटाणु-विज्ञान मे अन्वेषण-रत ही रहा। सर एलेग्जेंडर फ्लैमिंग ने अन्वेषण के लिए एक सर्वथा नूतन क्षेत्र ही विज्ञान-जगत को खोल दिया था। अमेरीका में रूटूजस विश्वविद्यालय के डाक्टर सैल्मान ए०वाक्समान ने स्ट्रेप्टोमाइसीन का विकास किया। आज ऑरिओमाइसीन तथा टेर्रामाइसीन दो और एंटिबायोटिक भी है जिन्हे बच्चा-बच्चा जानता है, दोनो का अपना-अपना क्षेत्र है, अपने ही भोज्य कीटाणु है। इस प्रकार प्राय एक अन्वेषक एक और अन्वेषण को जन्म दे जाया करता है। सर एलेग्जेंडर फ्लेमिंग का कहना था एक भले काम की परीक्षा ही शायद इसी मे होती है कि वह एक और भी ज्यादा भलाई की चीज को पीछे छोड जाता है और इस तरह खुद को खत्म कर जाता है। अनुसन्धान का उद्देश्य होता है–ज्ञान में प्रगति। युग के इस महान वैज्ञानिक की लंदन में 11 मार्च 1955 एलेग्जेंडर फ्लेमिंग की मृत्यु हो गई।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—–

एनरिको फर्मी
एनरिको फर्मी--- इटली का समुंद्र यात्री नई दुनिया के किनारे आ लगा। और ज़मीन पर पैर रखते ही उसने देखा कि Read more
नील्स बोर
दरबारी अन्दाज़ का बूढ़ा अपनी सीट से उठा और निहायत चुस्ती और अदब के साथ सिर से हैट उतारते हुए Read more
अल्बर्ट आइंस्टीन
“डिअर मिस्टर प्रेसीडेंट” पत्र का आरम्भ करते हुए विश्वविख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने लिखा, ई० फेर्मि तथा एल० जीलार्ड के Read more
हम्फ्री डेवी
15 लाख रुपया खर्च करके यदि कोई राष्ट्र एक ऐसे विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध कर सकता है जो कल Read more
मैरी क्यूरी
मैंने निश्चय कर लिया है कि इस घृणित दुनिया से अब विदा ले लूं। मेरे यहां से उठ जाने से Read more
मैक्स प्लांक
दोस्तो आप ने सचमुच जादू से खुलने वाले दरवाज़े कहीं न कहीं देखे होंगे। जरा सोचिए दरवाज़े की सिल पर Read more
हेनरिक ऊ
रेडार और सर्चलाइट लगभग एक ही ढंग से काम करते हैं। दोनों में फर्क केवल इतना ही होता है कि Read more
जे जे थॉमसन
योग्यता की एक कसौटी नोबल प्राइज भी है। जे जे थॉमसन को यह पुरस्कार 1906 में मिला था। किन्तु अपने-आप Read more
अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन
सन् 1869 में एक जन प्रवासी का लड़का एक लम्बी यात्रा पर अमेरीका के निवादा राज्य से निकला। यात्रा का Read more
इवान पावलोव
भड़ाम! कुछ नहीं, बस कोई ट्रक था जो बैक-फायर कर रहा था। आप कूद क्यों पड़े ? यह तो आपने Read more
विलहम कॉनरैड रॉटजन
विज्ञान में और चिकित्साशास्त्र तथा तंत्रविज्ञान में विशेषतः एक दूरव्यापी क्रान्ति का प्रवर्तन 1895 के दिसम्बर की एक शरद शाम Read more
दिमित्री मेंडेलीव
आपने कभी जोड़-तोड़ (जिग-सॉ) का खेल देखा है, और उसके टुकड़ों को जोड़कर कुछ सही बनाने की कोशिश की है Read more
जेम्स क्लर्क मैक्सवेल
दो पिन लीजिए और उन्हें एक कागज़ पर दो इंच की दूरी पर गाड़ दीजिए। अब एक धागा लेकर दोनों Read more
ग्रेगर जॉन मेंडल
“सचाई तुम्हें बड़ी मामूली चीज़ों से ही मिल जाएगी।” सालों-साल ग्रेगर जॉन मेंडल अपनी नन्हीं-सी बगीची में बड़े ही धैर्य Read more
लुई पाश्चर
कुत्ता काट ले तो गांवों में लुहार ही तब डाक्टर का काम कर देता। और अगर यह कुत्ता पागल हो Read more
लियोन फौकॉल्ट
न्यूयार्क में राष्ट्रसंघ के भवन में एक छोटा-सा गोला, एक लम्बी लोहे की छड़ से लटकता हुआ, पेंडुलम की तरह Read more
चार्ल्स डार्विन
“कुत्ते, शिकार, और चूहे पकड़ना इन तीन चीज़ों के अलावा किसी चीज़ से कोई वास्ता नहीं, बड़ा होकर अपने लिए, Read more
फ्रेडरिक वोहलर
“यूरिया का निर्माण मैं प्रयोगशाला में ही, और बगेर किसी इन्सान व कुत्ते की मदद के, बगैर गुर्दे के, कर Read more
जोसेफ हेनरी
परीक्षण करते हुए जोसेफ हेनरी ने साथ-साथ उनके प्रकाशन की उपेक्षा कर दी, जिसका परिणाम यह हुआ कि विद्युत विज्ञान Read more
माइकल फैराडे
चुम्बक को विद्युत में परिणत करना है। यह संक्षिप्त सा सूत्र माइकल फैराडे ने अपनी नोटबुक में 1822 में दर्ज Read more
जॉर्ज साइमन ओम
जॉर्ज साइमन ओम ने कोलोन के जेसुइट कालिज में गणित की प्रोफेसरी से त्यागपत्र दे दिया। यह 1827 की बात Read more
ऐवोगेड्रो
वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी समस्याओं में एक यह भी हमेशा से रही है कि उन्हें यह कैसे ज्ञात रहे कि Read more
आंद्रे मैरी एम्पीयर
इतिहास में कभी-कभी ऐसे वक्त आते हैं जब सहसा यह विश्वास कर सकता असंभव हो जाता है कि मनुष्य की Read more
जॉन डाल्टन
विश्व की वैज्ञानिक विभूतियों में गिना जाने से पूर्वी, जॉन डाल्टन एक स्कूल में हेडमास्टर था। एक वैज्ञानिक के स्कूल-टीचर Read more
काउंट रूमफोर्ड
कुछ लोगों के दिल से शायद नहीं जबान से अक्सर यही निकलता सुना जाता है कि जिन्दगी की सबसे बड़ी Read more
एडवर्ड जेनर
छः करोड़ आदमी अर्थात लन्दन, न्यूयार्क, टोकियो, शंघाई और मास्कों की कुल आबादी का दुगुना, अनुमान किया जाता है कि Read more
एलेसेंड्रा वोल्टा
आपने कभी बिजली 'चखी' है ? “अपनी ज़बान के सिरे को मेनेटिन की एक पतली-सी पतरी से ढक लिया और Read more
एंटोनी लेवोज़ियर
1798 में फ्रांस की सरकार ने एंटोनी लॉरेंस द लेवोज़ियर (Antoine-Laurent de Lavoisier) के सम्मान में एक विशाल अन्त्येष्टि का Read more
जोसेफ प्रिस्टले
क्या आपको याद है कि हाल ही में सोडा वाटर की बोतल आपने कब पी थी ? क्‍या आप जानते Read more
हेनरी कैवेंडिश
हेनरी कैवेंडिश अपने ज़माने में इंग्लैंड का सबसे अमीर आदमी था। मरने पर उसकी सम्पत्ति का अन्दाजा लगाया गया तो Read more
बेंजामिन फ्रैंकलिन
“डैब्बी", पत्नी को सम्बोधित करते हुए बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा, “कभी-कभी सोचता हूं परमात्मा ने ये दिन हमारे लिए यदि Read more
सर आइज़क न्यूटन
आइज़क न्यूटन का जन्म इंग्लैंड के एक छोटे से गांव में खेतों के साथ लगे एक घरौंदे में सन् 1642 में Read more
रॉबर्ट हुक
क्या आप ने वर्ण विपर्यास की पहेली कभी बूझी है ? उलटा-सीधा करके देखें तो ज़रा इन अक्षरों का कुछ Read more
एंटोनी वॉन ल्यूवेनहॉक
सन् 1673 में लन्दन की रॉयल सोसाइटी के नाम एक खासा लम्बा और अजीब किस्म का पत्र पहुंचा जिसे पढ़कर Read more
क्रिस्चियन ह्यूजेन्स
क्रिस्चियन ह्यूजेन्स (Christiaan Huygens) की ईजाद की गई पेंडुलम घड़ी (pendulum clock) को जब फ्रेंचगायना ले जाया गया तो उसके Read more
रॉबर्ट बॉयल
रॉबर्ट बॉयल का जन्म 26 जनवरी 1627 के दिन आयरलैंड के मुन्स्टर शहर में हुआ था। वह कॉर्क के अति Read more
इवेंजलिस्टा टॉरिसेलि
अब जरा यह परीक्षण खुद कर देखिए तो लेकिन किसी चिरमिच्ची' या हौदी पर। एक गिलास में तीन-चौथाई पानी भर Read more
विलियम हार्वे
“आज की सबसे बड़ी खबर चुड़ैलों के एक बड़े भारी गिरोह के बारे में है, और शक किया जा रहा Read more
महान खगोलशास्त्री योहानेस केप्लर
“और सम्भव है यह सत्य ही स्वयं अब किसी अध्येता की प्रतीक्षा में एक पूरी सदी आकुल पड़ा रहे, वैसे Read more
गैलीलियो
“मै गैलीलियो गैलिलाई, स्वर्गीय विसेजिओ गैलिलाई का पुत्र, फ्लॉरेन्स का निवासी, उम्र सत्तर साल, कचहरी में हाजिर होकर अपने असत्य Read more
आंद्रेयेस विसेलियस
“मैं जानता हूं कि मेरी जवानी ही, मेरी उम्र ही, मेरे रास्ते में आ खड़ी होगी और मेरी कोई सुनेगा Read more
निकोलस कोपरनिकस
निकोलस कोपरनिकस के अध्ययनसे पहले-- “क्यों, भेया, सूरज कुछ आगे बढ़ा ?” “सूरज निकलता किस वक्त है ?” “देखा है Read more
लियोनार्दो दा विंची
फ्लॉरेंस ()(इटली) में एक पहाड़ी है। एक दिन यहां सुनहरे बालों वाला एक नौजवान आया जिसके हाथ में एक पिंजरा Read more
गैलेन
इन स्थापनाओं में से किसी पर भी एकाएक विश्वास कर लेना मेरे लिए असंभव है जब तक कि मैं, जहां Read more
आर्किमिडीज
जो कुछ सामने हो रहा है उसे देखने की अक्ल हो, जो कुछ देखा उसे समझ सकने की अक्ल हो, Read more
एरिस्टोटल
रोजर बेकन ने एक स्थान पर कहा है, “मेरा बस चले तो मैं एरिस्टोटल की सब किताबें जलवा दू। इनसे Read more
हिपोक्रेटिस
मैं इस व्रत को निभाने का शपथ लेता हूं। अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार मैं बीमारों की सेवा के Read more
यूक्लिड
युवावस्था में इस किताब के हाथ लगते ही यदि किसी की दुनिया एकदम बदल नहीं जाती थी तो हम यही Read more

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger