ऐलीफेंटामहाराष्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई के निकट अरब सागर में एक छोटा सा टापू है। यह टापू यहां स्थित एलिफेंटा की गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है। यद्यपि इस टापू पर अभी भी लोग ज्यादा संख्या में नहीं रहते और यह मुख्य रूप से पर्वतीय तथा निर्जन वन क्षेत्र ही है, फिर भी इस टापू पर मानव जाति के छठी शताब्दी ई० में ही पहुँच जाने के अकाट्य प्रमाण मिल गए थे। पहाड़ी में उस काल की कुछ गुफाएँ पाई गई हैं, जो देवी-देवताओं की शिला प्रतिमाओं से भरी हुई हैं। यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि कला के क्षेत्र में इस अकूत संपदा एलिफेंटा की गुफाएं किसने बनवाई थी, परंतु यह निश्चित है कि इन गुफाओं का शिल्प कौशल एक लंबी परंपरा का परिणाम है, जो देश में इन के निर्माण से 4000 वर्ष पहले से चली आ रही थी।
यह क्षेत्र गुप्त काल के शिल्पियों का हस्त कौशल और कालीदास जैसे सांस्कृतिक कवि की चेतनता को हृदयंगम कर चुका था। निश्चय ही इन दोनों के मेल से ऐलीफेंटा गुफाओं का जन्म हुआ। जो भी हो, यह निर्विवाद है कि शाही संरक्षण के बिना इनका निर्माण नहीं हो सकता था और तत्कालीन हिंदू राजाओं ने इस नवसूर्जन को पूरा प्रोत्साहन दिया। इन गुफाओं में शिव और उनसे संबंधित प्रतिमाएँ अधिक होने से लगता है कि एलिफेंटा गुफाओं का निर्माण उस समय हुआ होगा, जब इस क्षेत्र में शैव धर्म का प्रचार जोरों पर था और जब इसे राजशाही सर्मथन भी मिल रहा होगा।
एलिफेंटा की गुफाएं
इन प्रतिमाओं से दैवी शक्ति, प्रेम, आध्यांत्मिक शांति जैसे भाव स्पष्ट दिखाई देते हैं। मुख्य गुफा के बाहरी हिस्से में स्तंभों पर टिका 30 फुट चौड़ा एक बरामदा है, जिसमें हाथी की प्रतिमाएँ हैं। गुफा की दीवारों से उभरे स्तंभ दीवारों के पास खड़े द्वारपाल के रूप में बनाए गए हैं। इन गुफाओं में त्रिमूर्ति, नटराज,अर्धनारीश्वर, शिव-पार्वती, शिव की जटाओं से बहती हुई गंगा तथा शिव का योगीश्वर रूप दिखाया गया है। एक प्रतिमा में शिव को अंधका दैत्य को मारते हुए उग्र रूप में दिखाया गया है। अन्य प्रतिमाओं में शिव-पार्वती के विवाह की प्रतिमा, कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास करते हुए रावण की प्रतिमा तथा अन्य देवी-देवताओं की छोटी-छोटी प्रतिमाएँ हैं।
एलिफेंटा की गुफाएंइस प्रकार शिव के विभिन्न रूपों को अपने में समेटी एलिफेंटा की गुफाएँ उन दिनों के लोगों की हिंदू धर्म के महादेव शिव के प्रति आस्था को सुदृढ़ रूप में प्रकट करती हैं। यह स्थान हिंदुओं के लिए ही नहीं, बल्कि कला के क्षेत्र में देश-विदेश के हर धर्म के लोगों के लिए आकर्षक और रोमांचक है और इस स्थान का पर्यटन अपने आप में एक नई अनुभूति छोड़ता है। सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने इनमें से बहुत सी प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया था, परंतु ये आज भी उस काल के लोगों के हस्त कौशल, भाव प्रवणता, विष्य की गहरी जानकारी और धर्म के प्रति आस्था तथा लगन को पूरी तरह प्रकट करने में सक्षम हैं।
एलिफेंटा गुफाओं पर कैसे पहुंचें
ऐलीफेंटा गुफा जाने के लिए मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया से छोटी-छोटी नावें मिलती हैं, जो वहाँ एक घंटे में पहुँचा देती हैं। इन्हें देखकर तीन बजे तक मुंबई वापस भी आया जा सकता है। पहाड़ी पर गुफाओं के पास ही ऐमटीडीसी का टूरिस्ट लॉज है। गुफा के पास खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था है और
कलात्मक वस्तुओं की दुकानें हैं। पोलैराइड कैमरे से फोटो खींचने वाले अनेक फोटोग्राफर तथा गाइड भी मिल जाते हैं। यहाँ वर्ष भर 18° से° से 33°से के मध्य तापमान रहने के कारण वर्ष भर सामान्य मौसम रहता है और यहाँ कभी भी जाया जा सकता है। महाराष्ट्र पर्यटन विभाग यहां फरवरी में रात्रिकालीन शास्त्रीय संगीत, गीत तथा नृत्य महोत्सव आयोजित करता है। मुंबई में भारत सरकार के पर्यटन कार्यालय, 123 महर्षि कर्वे रोड, चर्च गेट, वी टी स्टेशन, छत्रपति शिवाजी एवं सांताक्रुज हवाई अड्डों पर हैं। महाराष्ट्र राज्य का पर्यटक सूचना केंद्र ऐल आई सी बिल्डिंग के सामने मैडम भीकाजी कामा रोड पर तथा ऐमटीडीसी का कार्यालय एक्सप्रैस टावर, नौवी मंजिल, नरीमन प्वाइंट एवं दादर (पश्चिम) में प्रीतम होटल के सामने है।
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