राजस्थान के शिव मंदिरों में एकलिंगजी टेम्पल एक महत्वपूर्ण एवं दर्शनीय मंदिर है। एकलिंगजी टेम्पल उदयपुर से लगभग 21 किलोमीटर दूर उदयपुर-नाथद्वारा-ब्यावर के राजमार्ग पर स्थित है। जहाँ के लिए बस सेवा नियमित रूप से उपलब्ध है। यह राजस्थान के प्रमुख मंदिरों में से एक है, औथ बडी संख्या में भक्तों द्वारा एकलिंगजी मंदिर के दर्शन किए जाते है।
एकलिंगजी मंदिर का निर्माण
एकलिंगजी मंदिर का निर्माण किसने किया इस संबंध में कई रोचक कथाएं प्रचलित है। जिनका सार यह है कि बाप्पा रावल ने हारीत राशि नामक साधु की बडी सेवा की। उक्त साधु की प्ररेणा से उसने राज्य विस्तार किया, कहते है कि जब साधु हारीत राशि विमान में बैठकर स्वर्ग की ओर जाने लगे तो उन्होंने बाप्पा रावल को बुलाया। किन्तु बाप्पा रावल निश्चित समय से कुछ देर बाद आएं, एवं विमान कुछ ऊपर ऊठ चुका था। साधु हारीत राशि, बाप्पा रावल के शरीर को अमर करना चाहते थे। अतएवं उन्होंने एक बीड़ा बाप्पा रावल के मुंह की ओर ऊपर उठते हुए विमान से डाला। किन्तु वह मुंह पर नहीं गिर कर पांव में जा गिरा। तब उक्त साधु ने कहा कि यह तो पांवो पर गिरा है। अतएवं मेवाड़ का राज्य तेरे वंशज बराबर भोगेंगे। इन कथाओं मे इतना अवश्य सत्य है कि एकलिंगजी टेम्पल का निर्माण हारीत राशि की प्रेरणा से बाप्पा रावल ने ही करवाया होगा।
एकलिंगजी टेम्पल के सुंदर दृश्य
एकलिंगजी टेम्पल स्थापत्य
मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है। और चारों ओर एक परकोटा बना हुआ है। जिसका आधुनिकीकरण महाराणा मोकल (1477 – 1490 ई०) के समय में किया गया था। मंदिर में प्रवेश करते समय सामने एक मठ दिखाई देता है। इस मठ के उत्तरी ओर स्थित मार्ग मंदिर का मुख्य भाग है। इसमें प्रवेश करते ही कई छोटे बडे मंदिर दिखाई देते हैं। जो देधकुलिकाओ की तरह है। एकलिंगजी नाथ का मुख्य मंदिर पश्चिमाभिमुख है। इसके सामने भगवान शिव की सवारी नंदिकेश्वर की मूर्ति एवं कई सुदृढ़ लेख है। मंदिर के दाहिनी ओर के भाग की रथिका में 16 हाथों वाली त्रैलोक्य मोहन की प्रतिमा है। इस मंदिर का निर्माण निस्संदेह सूत्रधार मंडन ने किया था। क्योंकि मूर्तियों का स्वरूप उसके रूपमंडन आदि ग्रंथों के आधार पर बनाया गया है। मुख्य मंदिर के पीछे की ओर दो कुंड है। और कई छोटे छोटे शिव मंदिर है। दक्षिण की ओर सबसे उल्लेखनीय मंदिर “नाथ मंदिर” है। यह ऊपर की ओर बना हुआ है। इसके बाहर की रथिका में 1028 ईसवीं का शिलालेख खुदा हुआ है। तथा बाहर की दूसरी रथिका में सरस्वती जी की सुंदर प्रतिमा बनी हुई है। जो 10 वी शताब्दी की एक उत्कृष्ट कलाकृति है।
एकलिंग जी के दर्शनीय स्थल
एकलिंगजी में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त आसपास और भी कई स्थान दर्शनीय है जिनमें विंध्यवासिनी का मंदिर, राष्ट्र सेना का मंदिर, भतृहरि की गुफा, वाहोला तालाब, बाप्पा रावल स्थान, चीरवा का मंदिर, नागदा के प्राचीन देवालय, सास बहु का मंदिर, खुमाण रावल, दिगंबर जैन मंदिर, श्वेतांबर जैन मंदिर आदि प्रमुख है।
एकलिंगजी टेम्पल के सुंदर दृश्य
एकलिंगजी टेम्पल हिस्ट्री इन हिन्दी – एकलिंगजी मंदिर का इतिहास
एकलिंगजी टेम्पल हिस्ट्री के अनुसार प्रारंभ में यह मंदिर लकुलीश सम्प्रदाय का केंद्र रहा है। साधु हारीत राशि जिनका का उल्लेख ऊपर किया गया है। इनकी शिष्य परंपरा का पूरा उल्लेख नहीं मिलता है। सन् 1331 और 1335 के चित्तौड़ के शिलालेखों में प्रसंगवश इनका उल्लेख किया गया है। अतएवं ऐतिहासिकता में संदेह नहीं है। सन् 1028 का एकलिंगजी मंदिर का शिलालेख लकुलीश सम्प्रदाय के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। इस लेख की शुरूआत ओम नमों लकुलीशय से हुई है। उक्त लेख की 12 वी पंक्ति से स्पष्ट होता है कि ये साधु शरीर पर भस्म लगाते, वृक्षों की छाल पहनते और सिर पर जटाओं का जूडा रखते थे। महाराणा कुम्भा के शासन काल मे बनी हारीत राशि की प्रतिमा भी उल्लेखनीय है। यह विंध्यवासिनी के सामने गुफा में रखी हुई है। इसके सिर पर जटाओं का जूडा आदि बना हुआ है। उक्त लेख के अंत कई साधुओं के नाम है जैसे सुपूजित राशि, सयोराशि आदि,
वंदागमुनि नामक साधु का बड़े गौरव के साथ उल्लेख किया गया है। जिसने बौद्धों और जैनों को हराया था। सौभाग्य से जैनों की लाट, बागड़ की गुवविली मे भी इस घटना का वर्णन है। एकलिंगजी के समीप पालड़ी गांव से सन् 1171 ईसवीं का एक शिलालेख मिला है। जिसमें खंडेश्वर नामक साधु की परंपरा में हुए जनक राशि, त्रिलोचन राशि, वसंत राशि, वल्कलमुनि आदि के नाम है। एकलिंगजी के समीप स्थित चिरवा गांव से प्राप्त 1330 ईसवीं के शिलालेख में शिव राशि का उल्लेख है। जिसे पाशुपत-तपस्विपतिः कहा गया है। यह महेश्वर राशि का शिष्य था। ये साधु महाराणा कुम्भा (1490-1525) के शासन काल तक बराबर कार्य करते रहेथे। शिवानंद नामक साधु महाराणा कुम्भा का समकालीन था। ऐसी मान्यता है कि इसका कुम्भा से संघर्ष हो गया था, और यह काशी चला गया था। इसी कारण महाराणा कुम्भा के लेखों, एकलिंगजी महात्मय, एकलिंग पुराण, रायमल की एकलिंग प्रशस्ति आदि में इन साधुओं की बड़ी उपेक्षा की गई है। वापस नरहरि नामक साधु यहां आया प्रतीत होता है। इसका एक शिलालेख सन् 1592 ईसवीं का यहां से मिला है। सन् 1602 ईसवीं के एक गर्गाचार्य नामक साधु का उल्लेख है। कालांतर में इन साधुओं के स्थान पर दण्डी स्वामी साधु यहां लगाएं गए। इनमें रामानंद नामक साधु सबसे पहले यहां आये थे। आज भी इनकी परंपरा मे हुए महंत रहते है।
एकलिंगजी टेम्पल के सुंदर दृश्य
भगवान एकलिंगजी को मेवाड़ का अधिपति और महाराणा को दीवान कहा जाता रहा है। इसलिए इस मंदिर की सारी व्यवस्था आज भी महाराणा द्वारा संचालित एकलिंग ट्रस्ट द्वारा होती है। महाराणा जब भी मंदिर में प्रवेश करते थे, हाथ में सोने की छड़ी लेकर जाते थे। यह इस बात का घोतक हैकि वह एकलिंगजी का प्रतिहारी है। दीर्घकाल से मेवाड़ के शासक इस मंदिर की व्यवस्था के लिए कार्य करते रहे है। महाराणा हमीर के बाद के शिलालेखों में बराबर इसका उल्लेख मिलता है। महाराणा खेता ने इस मंदिर की व्यवस्था के लिए पनवाड़ नामक गांव भेंट किया था। महाराणा लाखा ने चीरवा गांव एवं उनके पुत्र मोकल ने वाधनवाड़ा, और रामा नामक गांव भेंट किए थे। मोकल के अंतिम दिनों में गुजरात के सुल्तान ने इस मंदिर पर आक्रमण किया और इसके कुछ भाग को खंडित कर दिया था। इसे महाराणा कुम्भा ने वापस बनवाकर सुशोभित किया। मंदिर की स्थिति गुजरात से दिल्ली जाने वाले मुख्य मार्ग पर होने के कारण यहा सदैव आक्रमणकारियों का भय बना रहता था। मालवे के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने महाराणा रायमल के शासन काल मे भी इसे खंडित किया था। जिसका जिर्णोद्धार वापस उक्त महाराणा ने करवाया था। महाराणा कुम्भा ने एकलिंगजी टेम्पल की पूजा व्यवस्था के लिए नागदा, कठड़ावाणा, मलखेड़ा, और भीममाणा गांव भेंट किए थे। महाराणा रायमल ने नौवापुर गांव भेंट किया था। इस प्रकार लगभग सारे महाराणा इस प्रकार की व्यवस्था करते आ रहे थे। महाराणा भीमसिंह के समय जब मराठा के आक्रमण बहुत अधिक होने लगे और आंतरिक अव्यवस्था हो गई तब एकलिंगजी तालुक गांव पर भी दूसरों का अधिकार हो गया तब उक्त महाराणा ने लगभग तीन फीट लम्बा तामपत्र खुदवाकर के सारे गांवों को वापस भेंट किए थे। मंदिर में कई शिलालेख लग रहे है। इनमें सबसे प्राचीन 1028 ईसवीं का है। जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त महाराणा मोकल, रायमल, जगतसिंह, राजसिंह, संग्रामसिंह दितीय, भीमसिंह आदि के कई शिलालेख लगे हुए है। तथा 40 से भी अधिक तामपत्र यहां संग्रहित है। मंदिर की स्थिति नागदा और देलवाड़ा के प्रसिद्ध प्राचीन स्थानों के मध्य है। ये दोनों जैन और वैष्णव तीर्थ स्थल है। अतएवं इसका महत्व बहुत ही अधिक है।
एकलिंगजी टेम्पल दर्शन टाइम – एकलिंगजी टेम्पल उदैपुर दर्शन टाइम
एकलिंगजी टेम्पल दर्शन टाइम व पूजा की व्यवस्था भी उल्लेखनीय हैं। प्रतिदिन तीन बार पूजा है। एक बार सुबह, दूसरी बार दोपहर, तथा तीसरी बार सांयकाल। तीनों बार तीन तीन आरतीया होती है। मंत्रोच्चार के साथ इस प्रकार की पूजा बहुत ही कम जगह देखने को मिलती है। साल में कई बार उत्सव होते है। इनमें अक्षय तृतीया तथा शिवरात्रि आदि के उत्सव उल्लेखनीय है।
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