1798 में फ्रांस की सरकार ने एंटोनी लॉरेंस द लेवोज़ियर (Antoine-Laurent de Lavoisier) के सम्मान में एक विशाल अन्त्येष्टि का आयोजन किया। समारोह में देश-विदेश के वैज्ञानिकों को उस महापुरुष की प्रशंसा में वक्तृताएं देनी थीं। इससे ज़्यादा अब वे और कर भी क्या सकते थे। जिंदा तो उसे वे कर नहीं सकते थे। इस घटनाक्रम के दो साल पहले ही 1794 में क्रांति के आतंकवादियों ने एंटोनी लेवोज़ियर को गिलोटीन पर लटका दिया था, और उसकी देह को एक अज्ञात कब्र में दफना कर छुट्टी पा ली थी।
एंटोनी लेवोज़ियर का जीवन परिचय
एंटोनी लेवोज़ियर का जन्मपेरिस में 26 अगस्त, 1743 को हुआ था. बाप एक समृद्ध व्यापारी था, और पर्याप्त भूमि का स्वामी भी था। अभी वह एक नन्हा बालक ही था कि मां की मृत्यु हो गई। एंटोनी की परवरिश एक निपट स्वार्थहीन और वत्सलहृदय
अविवाहित बुआ ने तथा पिता ने की।
बाप का ख्याल था कि लड़का बड़ा होकर एक कानूृनदां बने वकालत करे। लेवोज़ियर ने तदनुसार कानून में शिक्षा भी ग्रहण की और वकालत की इजाजत भी उसे मिल गई। किन्तु उसकी निजी रुचि विज्ञान के स्वाध्याय की ओर अधिक थी। सो, कालेज में वह साथ ही साथ प्रोफेसर बूरदेलियां के लेक्चर भी सुनता रहा। बूरदेलियां एक समीक्षात्मक रसायन शास्त्री था, और यहां भी उसकी पसन्द की चीज़– इस व्याख्यानों के साथ प्रदर्शित परीक्षण ही अधिक थे (जिनमें व्याख्यान बिलकुल स्पष्ट हो जाते)। इसके अतिरिक्त स्वीडन के प्रकृति-वेत्ता लिनिअस के सम्पर्क ने भी उसके वैज्ञानिक अनुसन्धान को बहुत कुछ विनिश्चित कर दिया।
22 की आयु में पेरिस की गलियों में रोशनी की व्यवस्था सुझाने में लेवोज़ियर की योजना सबसे अच्छी मानी गई, और इसके लिए फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज ने उसे एक स्वर्ण पदक भी प्रदान किया। इसके दो वर्ष पश्चात फ्रांस के भूगर्भ सम्बन्धी अध्ययन तथा जिप्सम और प्लास्टर आफ पेरिस के विषय में रासायनिक अनुसन्धान की बदौलत उसे इस एकेडमी का सदस्य भी चुन लिया गया। गिलोटीन की सजा तो उसके लिए जैसे उसी दिन मुकर्र हो चुकी थी जब कि वह फ्रांस के राजवंश की ओर से ‘फेर्मिए जेनरल’ उनकी जमीनो का प्रमुख टेक्स कलक्टर नियुक्त हुआ था। उस समय वह प्रसन्न था कि मुफ्त की नौकरी है–विज्ञान की खोजें करने के लिए वक्त काफी बचा रहता है। टेक्स क्लैक्टरी में ही किसी साथी ने उसका मेल मारिए एन पाल्जे से करा दिया था। एन्तॉयने खुद 28 साल का एक लम्बे कद-बुत का खूबसूरत नौजवान था। मारिया की खूबसूरती और प्रतिभा पर वह मर मिटा, यद्यपि उम्र मे वह उसकी आधी भी नही थी।
एक सुखद और सौभाग्यशाली “बन्धन’ था यह– कितनी ही बौद्धिक सन्ततियों को जन्म देने वाला एक प्राज्ञ युगल। मारिया अपने पति की सेक्रेटरी और असिस्टेंट बन गई। एन्तॉयने में विदेशी भाषाओं के प्रति कुछ अभिरुचि नही थी, सो मारिया ने अंग्रेजी और लेटिन सीख ली। वही उनके लिए जोसेफ प्रिस्टले, हेनरी कैवेंडिश, तथा युग के अन्य वैज्ञानिको के विज्ञान सम्बन्धी निबन्धों का अनुवाद किया करती थी। मारिया कार्यकुशल भी थी और मनोज्ञ भी उसने एंटोनी लेवोज़ियर के घर को फ्रांस के तथा देश-विदेश के वैज्ञानिको के लिए एक आकर्षक संकेत स्थान बना दिया। कला में भी उसकी प्रतिभा थी रुचि थी, लेवोज़ियर के ग्रंन्थो के लिए रेखाचित्र भी प्राय वही बनाया करती थी। लेवोज़ियर ने अपने महान ग्रन्थ ‘चीमिआ के सस्मरण’ को गिलोटीन की प्रतीक्षा करते हुए जेल मे पूरा किया था। उसे भी मारिया ने ही पीछे चलकर सम्पादित किया था और मुद्रित कराया था।
कई वर्षो से वैज्ञानिकों के सम्मुख एक महान प्रश्न चला आ रहा था। यह आग क्या चीज़ है ?’ प्राचीन विद्वानों का विचार था कि अग्नि एक तत्त्व है, और सभी भौतिक तत्वों मे श्रेष्ठत्तम तत्व। प्राचीन सभ्यताओं में कितनी ही अग्नि की पूजा, एक देवता मानकर करती भी आई है। चीज़ें जलती क्यो है? इसका एक सर्वेप्रिय सा समाधान लेवोज़ियर के दिनों में ज्वलन का फ्लोजिस्टन सिद्धान्त था।

इस स्थापना के अनुसार वस्तु मे ज्वलन शक्ति का अर्थ यह समझता जाता था कि उसमें फ्लोजिस्टन की मात्रा ज्यादा है। किसी ने भी फ्लोजिस्टन को अलग एक तत्व के रूप में कभी देखा नहीं था, न ही कोई यह कल्पना भी कर सका था कि यह क्या वस्तु हो सकती है। किन्तु मानता इसे बदस्तुर हर कोई आ रहा था। प्रिस्टले जैसा महामतीषी भी जिसने ऑक्सीजन का सबसे पहले पता किया था, फ्लोजिस्टन की कल्पना को मरते दम तक मानता रहा था। प्रस्तुत स्थापना का सबसे बडा प्रमाण था, जल रही वस्तु में से उठती ज्वालाएं, कि सचमुच कुछ चीज़ है जो वस्तु से विमुक्त होकर नमोमुख चल देती है। यह चीज़ जिसे जलती चीज़ें इस प्रकार खो देती है, देखने वालों की बुद्धि में फ्लोजिस्टन थी।
इन्ही दिनों एंटोनी लेवोज़ियर के परीक्षणात्मक अध्ययनों का विषय था, धातुओं में जंग का लगना, और वस्तुजात मे ज्वलन प्रक्रिया। इन परीक्षणों में उसका प्रत्यक्ष इसके बिलकुल विपरीत था–जलते हुए, वस्तुओं का भार घटने की बजाय कुछ बढ़ता ही है। स्वभावत: उसकी आस्था ‘फ्लोजिस्टन’ स्थापना से अब विचलित हो गई कि जलती चीज़ों से कुछ बाहर निकल जाता है। परिणामतः लेवोज़ियर ने एक ऐसे परीक्षण का आविष्कार किया जो रसायन के क्षेत्र में शायद श्रेष्ठतम परीक्षण माना जाता है। ऐसा परीक्षण रसायन के इतिहास में दूसरा कभी नहीं हुआ। एक रिटॉर्ट में उसने कुछ पारा, बड़ा माप तोलकर, डाला इसका सम्पर्क एक उलटे मुंह बन्द बोतल में पड़ी हवा के साथ कर दिया गया। हवा का परिमाण भी अंकित था। इस बोतल को सील करके पारे के एक टब में रखकर, वायु मंडल के सम्पर्क से सर्वथा अस्पृश्य कर दिया गया। अब लेवोज़ियर ने रिटॉर्ट में पड़े पारे को बड़े धीमे-धीमे गरम करना शुरू किया, कुछ तो जलकर लाल- लाल चूर्ण बन गया और उधर बैल-जार की औंधी बोतल में द्रव ऊपर को उठने लगा जिसका अर्थ यह था कि उसके अन्दर बन्द हवा का परिमाण घटता जा रहा है। बारह दिन तक यह घटौती बाकायदा चलती रही और, उसके बाद फिर न रिटॉट में लाल पाउडर ही ओर बने और न बेल-जार में पारा ऊपर को उठे (बन्द हवा में और कमी नहीं आईं) परीक्षण शुरू करने से पूर्व रिटॉर्ट में, ट्यूब में, और बेल-जार में कुल मिलाकर 50 क्यूबिक इंच हवा थी, परीक्षण की समाप्ति पर अब वह केवल 40 क्यूबिक इंच रह गई थी।
परीक्षण के प्रथम अंश की परिसमाप्ति पर लेवोज़ियर ने रिटॉर्ट में इकट्ठे हुए चूर्ण को बड़ी सावधानी के साथ समेटा और उसे बहुत ही ज़्यादा गरमी देना शुरू कर दिया। जो गैस उससे निकली वह (पिछले परीक्षण में गुमशुदा ) 10 क्यूबिक इंच (हवा) ही निकली । उसने इन निष्कर्षों की व्याख्या में भी तनिक गलती नहीं आने दी। मूल वायु का यह दसवां हिस्सा एक गैस थी जो पारे के साथ मिलकर शिगरफ़ बन गई थी। प्रिस्टले ने इसी को आदर्श गैस कहा था, और एंटोनी लेवोज़ियर ने इसे नाम दिया— ऑक्सीजन। यह नाम ग्रीक भाषा की दो धातुओं से मिलकर बनता है जिसका अर्थ होता है—अम्ल-जनक। किन्तु लेवोज़ियर की तदनुसार यह कल्पना गलत थी कि सभी अम्लों में ऑक्सीजन की सत्ता अपरिहेय है।
अपने परीक्षणों में लेवोज़ियर एक बहुत ही फूंक-फूंककर कदम उठाने वाला वैज्ञानिक था। सही-सही परीक्षण करने के लिए उसने कुछ निहायत ही नाजुक तराजुएं तैयार की थीं। उसका कहना था कि रसायनशास्त्र की उपयुक्तता एवं उपयोगिता का आधार ही क्योंकि उपादानों एवं विपरिणामों के सही-सही परिमाणों का विनिश्चय होता है, इसमें जरा सी भी गलती अक्षम्य हो सकती है, इसी लिए हमारे उपकरण निहायत ही सुथरे होने चाहिएं।
एंटोनी लेवोज़ियर की गणना आधुनिक रसायनशास्त्र के प्रवर्तकों में की जाती है। और उसकी इस प्रतिष्ठा का आधार, उसके किए परीक्षण ही हैं जिन्होंने द्रव्य की अनश्वरता का मूल सिद्धान्त प्रतिपादित कर दिखाया था कि हम न किसी वस्तु का नाश कर सकते हैं, न निर्माण। यह नियम आधुनिक रसायन सूत्रों में दिशान्तरण का द्योतक है कि हानि और लाभ अन्तत:, दोनों, समतुलित ही हो जाते हैं।
एंटोनी लेवोज़ियर ने एक और अद्भुत परीक्षण भी किया। शुद्ध ऑक्सीजन में हीरे को जलाकर उसने कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा कर दिखाई। अर्थात कोयला और हीरा रासायनिक दृष्टि से दोनों एक ही तत्त्व हैं, दोनों कार्बन हैं। हमारे शरीर में जो निर्माण और विनाश की निरन्तर प्रक्रिया चलती रहती है,रोटी खाते हुए, और अवशिष्ट-वस्तु को बाहर फेंकते वक्त जो रासायनिक, एवं शक्ति सम्बन्धी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं, विज्ञान में उसे मिटाबोलिज्म’ (संचय-अपचय ) नाम दिया जाता है। हां, अलबत्ता, यह बात सच है कि विश्राम की अवस्था में हमें उतनी शक्ति की आवश्यकता नहीं होती। डाक्टर लागों की दिलचस्पी शरीर की मूलभूत आवश्यकताओं में मौलिक चयापचयन में ही अधिक होती है कि जीवित रहने के लिए हमें कितनी खुराक की जरूरत है। लेवोज़ियर ने शरीर तन्त्र में तथा जीव रसायन में अनुसन्धान किए जिससे कि शरीर की मूलभूत चयापचयन विधियों की यथावत परीक्षा की जा सके। गिनी-पिग्ज़ पर उसने कुछ परीक्षण किए कि वे सांस में कितनी ऑक्सीजन अन्दर ले जाते हैं और, उसके मुकाबले में कितनी कार्बन डाई ऑक्साइड उगलते हैं।
वैज्ञानिकों में लेवोज़ियर ने ही सर्वप्रथम यह प्रत्यक्ष कर दिखाया था कि हमारे अन्दर ज्वलन की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है, जिसका अर्थ होता है भोज्य द्रव्य में तथा ऑक्सीजन में परस्पर रासायनिक प्रतिक्रिया की संततता। लेवोज़ियर शरीर द्वारा व्यक्त अग्राह्य वस्तु जात के सम्बन्ध में ही एक परीक्षण कर रहा था जबकि फ्रांसीसी क्रान्ति के उपरान्त आई आपाधापी में उसे लोग कैद कर ले गए। इंग्लैंड में अनुसन्धान करते हुए कैवेंडिश एक ज्वलन-प्रकृति गैस के सम्बन्ध में परीक्षण कर रहा था। और उसने इस गैस का नाम भी ‘जलने वाली गैस’ रख छोड़ा था। 1781 में उसने प्रत्यक्ष सिद्ध कर दिखाया कि इधर यह गैस जलती है और उधर पानी बनना शुरू हो जाता है। लेवोज़ियर ने कैवेंडिश के इन परीक्षणों को अपने घर में करके देखा और उसके तात्पर्य को विद्वान जगत के सम्मुख रखा, कि पानी एक तत्त्व नहीं अपितु, दो तत्त्वों का एक मिश्रण है, एक समान है। जमाने के कुछ साइंस दान इतना ज़्यादा कैसे बरदाश्त कर सकते थे, उनमें एक बौखला भी उठा। “और अब जादूगरों का यह सरदार हमारी भोली अक्ल को यह कबूल करने के लिए अपना सारा जोर लगा रहा है कि पानी जो हमें कुदरत का दिया हुआ जो आग को बुझा देने वाला शायद सबसे ताकतवर तत्व है, वह पानी दो गैसों का एक व्यामिश्रण है, और इन दोनों तत्वों में भी एक वह है जिसको जलाने को ताकत और किसी तत्व में है ही नहीं।
किन्तु आज भी तो प्रकृति का यह आश्चर्य असमाधेय ही है कि पानी में दो अवयव होते हैं, जिनमें एक तो हाइड्रोजन है जो जल जाने में जरा देर नहीं लगाता और दूसरा ऑक्सीजन जिसके अभाव में कोई चीज जल नहीं सकती, और इनका मिला यही पानी है जो जलती आग को तत्क्षण बुझा देता है। एंटोनी लेवोज़ियर ने ही इस ज्वलनशील तत्व को उसका आधुनिक नाम हाइड्रोजन (जल-जनक ) दिया था। सारा जीवन लेवोज़ियर बीच बीच में अपनी गवेषणाओं को बरतरफ करके, लोकसेवा में भी रत होता रहा। अमेरीका के बेंजामिन फ्रेंकलिन की तरह वह भी कुछ कम सर्वेतोमुख न था, रसायन में, शरीर तन्त्र में, वैज्ञानिक कृषि में, वित्त-व्यवस्था में, अर्थशास्त्र में, राज्य अनुशासन में और सार्वजनिक शिक्षा में, सभी क्षेत्रों में वह एक माना हुआ प्रवर्तक था।
अमेरीकी क्रांति के दिनों में लैवोजियर ने फ्रांस की एक सेवा की, जिसका कुछ आनुषांगिक लाभ अमेरीकी क्रांतिकारी सेना को भी हुआ। फ्रांस में एक प्राइवेट संस्था के पास बारूद बनाने के एकाधिकार थे। किन्तु यह संघ अपने कर्तव्य को ठीक-ठीक निभा नहीं रहा था। एक तो मसाला इष्ट मात्रा में उत्पन्न न करके और दूसरे, घटिया दर्जे का मसाला तैयार करके लेवोज़ियर ने इस कार्य के लिए एक सरकारी एजेन्सी बना ली जिसने आते ही बारूद की किस्म भी बढ़िया कर दी और उसकी पैदावार को भी दुगने से ज्यादा कर दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि फ्रांस अब इन नये उपनिवेश वालो के साथ खुलकर लडाई लड सकता था। बारूद पर ये परीक्षण करते हुए एन्तॉयने और मारिया की लगभग जान ही जाती रही थी, दोनो बाल-बाल बच गए, जबकि उनके दो साथी परीक्षण करते हुए मर भी गए।
आइरीनी दु पोत लेवोज़ियर की फैक्टरी में उन दिनो एक शागिर्द था, और यह लेवोज़ियर ही था जिसने आगे चलकर डिलावेयर में एक स्वतंत्र बारूद फैक्ट्री चलाने में आइरीनी दू पोत की सहायता भी की थी। आइरीनी की इच्छा थी कि वह अपने इस कारोबार को लेवोज़ियर मिल्स नाम दे, किन्तु परिवार वालो ने कहा नही, दु पोत मिल्स। वही बारूद फैक्टरी आज एक विशाल उद्योग रसायन कम्पनी बन चुकी है जिसे आज भी हम ‘ई०आई० दु पोत द नेमूर्स’ के नाम से जानते है।
एंटोनी लेवोज़ियर को खेती में भी बडी ज्यादा और व्यक्तिगत दिलचस्पी थी। ला बूर्जे में उसकी अपनी मिल्कियत का एक खासा बडा फार्म था जिसे उसने एक प्रकार से विभिन्न किस्मों की खाद, और चरागाह के लिए और खेतीबाडी के लिए, जमीन को अलग-अलग बांटकर रख देने की उपयोगिता आदि समझाने के लिए, एक परीक्षणशाला ही बना छोड़ा था। अपेक्षाकृत बहुत ही थोडे समय मे उसने यहां कृषि सम्बन्धी वैज्ञानिक नियमों के प्रयोग द्वारा गेहूं को पैदावार को दुगुना, और पशुधन को पांच गुना कर दिखाया।
एंटोनी लेवोज़ियर एक माना हुआ राजनीतिज्ञ भी था। आर्लिएन्स की प्रान्तीय परिषद मे वह तीसरा एस्टेट (जनता ) का प्रतिनिधि था। उसकी अपनी दृष्टि प्रजातन्त्र-पूरक थी जिसका मूल-सूत्र उसके अपने शब्दों मे यह है कि “सब सुख-सुविधाए, कुछ ही व्यक्तियो तक सीमित न होकर, सार्वजनिक होनी चाहिए। उसकी धारणा थी कि मनुष्य मात्र व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकारी है। 1789 में लेवोज़ियर को फ्रांस के बैंक का प्रेजिडेंट चुन लिया गया। नेशनल असेम्बली के सम्मुख उसने एक रिपोर्ट पेश की जो वित्त के मामलों से आकस्मिक वृद्धि के सम्बन्ध मे एक त्रिकाल मौलिक विश्लेषण मानी जाती है। 1791 में फ्रांस ने उसके ‘फ्रांस का भू-धन’ शीर्षक निबन्ध का पुनः र्मुद्रण किया। फ्रांस के लिए एक प्रकार की राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था भी उसने प्रस्तुत की थी जो प्रायः अमेरीका की आधुनिक शिक्षा-प्रणाली के अनुरूप है।
लेवोज़ियर की एक बदकिस्मती यह थी कि वह क्रान्ति के अनन्तर उठ खडे हुए आतंक के एक नेता पॉल मारात, का कोप-पात्र बन गया, फकत इसलिए कि कभी उसने फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंसेज मे आए मारात के एक निबन्ध को अस्वीकृत कर दिया था। मारात ने लेवोज़ियर को जनता की निगाहों मे गिराने मे कोई कसर न छोड़ी और राजकीय टेक्स कलेक्टरेट के सभी सदस्यों को बन्दी करवाने में भी वह सफल हो गया कि ये सब चोर हैं, डाकू है, सदा से अवाम को लूटते आए हैं। लेवोज़ियर और उसके श्वसुर को एक ठसाठस भरे जेलखाने में ठूस दिया गया। कितने ही प्रार्थना पत्र रोज आते कि लेवोज़ियर एक महान वैज्ञानिक है जिसकी सेवाएं राष्ट्र की अन्तव्यवस्था में भी कुछ उपेक्ष्य नहीं हैं, किन्तु कौन सुनता था ? 8 मई, 1794 के दिन एंटोनी लेवोज़ियर की मृत्यु हो गई।