भारत के मध्य प्रदेश राज्य का प्रमुख शहर उज्जैन यहा स्थित महाकालेश्वर के मंदिर के प्रसिद्ध मंदिर के लिए जाना जाता है। यह मंदिर उज्जैन महाकाल के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस नगर को उज्जयिनी भी कहते है। इस स्थान को पृथ्वी का नाभिदेश कहा गया है। द्वादश लिंगो में से एक ” महाकाललिंग” यही पर है। इसके अलावा यहा पर 51 शक्तिपीठो में से एक शक्तिपीठ भी इसी स्थान पर है। यहा पर देवी सती का कूर्पर (कोहुनी) गिरा था। रूद्रसागर सरोवर के पास हरसिद्धि देवी का मंदिर है वही पर यह शक्तिपीठ है और मूर्ति के बदले यहा केहुनी की पूजा ही की जाती है । द्वापर युग में श्री कृष्ण – बलराम यही महर्षि संदीपन के आश्रम में अध्यन करने आए थे। उज्जयिनी बहुत वैभव शालिनी रह चुकी है। महाराज विक्रमादित्य के समय उज्जयिनी भारत की राजधानी थी। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में भी देशांतर की शून्यरेखा उज्जैन से ही प्रारम्भ हुई मानी जाती है। इसके अलावा यह सप्तपुरियो में से भी एक है। यहा बारह वर्ष में एक बार कुंभ का मेला भी लगता है। तथा छ: वर्ष में अर्धकुंभ का भी आयोजन भी यहा होता है। कुल मिलाकर कहा जाये तो धार्मिक दृष्टि से उज्जैन का महत्व बहुत बडा है। कहा जाता है की उज्जैन महाकाल की यात्रा करने से मोक्षं की प्राप्ति होती है।
उज्जैन के सुंदर दृश्य
उज्जैन महाकाल धार्मिक पृष्ठभूमी – उज्जैन महाकाल की कहानी
उज्जैन के बारे में कहा जाता है कि यहा एक धर्मात्मा ब्राह्मण निवास करता था। उसके चार पुत्र थे। एक बार दूषण नाम के एक राक्षस ने नगर को घेरकर जनता को त्रस्त करना आरंभ कर दिया। जनता उस ब्राह्मण की शरण में गई। ब्राह्मण ने तप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान महाकाल पृथ्वी फाडकर प्रकट हुए और राक्षसो का संहार किया। भक्तो ने भगवान से प्राथना की – हे प्रभु! हमे पूजा पाठ की सुविधा देने के लिए आप यही निवास करने की कृपा करें। भक्तो के आग्रह पर महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में यहा स्थित हो गए। और उज्जैन महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन
उज्जैन का महाकाल मंदिर यहा का प्रधान मंदिर है। यह मंदिर स्टेशन से लगभग एक मील की दूरी पर है। महाकाल मंदिर का प्रागण विशाल है और समान्य भूमि की सतह से कुछ नीचे है। इस प्रागण के मध्य में महाकालेश्वर का मंदिर है। इस मंदिर मे दो खंड है। प्रागण की सतह के बराबर मंदिर का ऊपरी खंड है। इसमें जो भगवान शंकर की लिंग मूर्ति है उसे ओंकारेश्वर कहा जाता है। ओंकारेश्वर के ठीक नीचे, नीचले खंड में महाकाल लिंगमूर्ति है।
मुख्य मंदिर के मार्ग में बडा अंधेरा रहता है। अत: निरंतर दीप जलते रहते है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को जो साम्रगी चढाई जाती है, वह निर्माल्य बन जाती है जिससे उसका पुन: प्राप्त करना वर्जित है। परंतु यह बात ज्योतिर्लिंग के साथ नही है। यहा न केवल चढाया हुआ प्रसाद ही लिया जाता है। बल्कि एक बार चढाए गए बिल्वपत्र भी धोकर पुन: चढाए जा सकते है। यात्रीगण रणघाट पर स्नान करने के बाद महाकाल के दर्शन करने जाते है।
महाकालेश्वर लिंग मूर्ति विशाल है। चांदी की जलहरी में नाग परिवेष्ठित है। इसके एक ओर गणेशजी है दूसरी ओर पार्वतीजी तथा तीसरी ओर स्वामी कार्तिक है। यहा एक घी का दिया तथा एक तेल का दिया जलता रहता है। महाकाल मंदिर के पास सभामंडप भी है और उसके नीचे कोटितीर्थ नामक सरोवर है। सरोवर के आस पास छोटी छोटी शिव छतरियां है। पास ही देवास राज्य की धर्मशाला है। महाकालेश्वर के सभामंडप में श्री राम मंदिर है ओर रामजी के पिछे अवंतिकापुरी की अधिष्ठात्री अवन्तिका देवी है।
शिप्रा नदी उज्जैन
उज्जैन में शिप्रा नदी बहती है। यह अत्यंत पवित्र मानी गई है। कहा जाता है कि शिप्रा भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई नदी है। उज्जैन स्टेशन से शिप्रा डेढ मील दूर पडती है। इस पर पक्के घाट बने हुए है। जिनमें नरसिंहघाट, रामघाट, पिशाच – मोचन तीर्थ, छत्रीघाट तथा गंधर्वतीर्थ प्रसिद्ध है। लगभग सभी घाटो पर सुंदर मंदिर बने है।
इन घाटो पर गंगा दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा, वैशाखी पूर्णिमा, को यहा मेला लगता है। बृहस्पति के सिंह राशि में होने पर शिप्रा स्नान का बहुत महत्व माना गया है। शिप्रा में गंधर्वतीर्थ से आगे पुल बंधा है। उस पुल के पार जाने पर दत्त का अखाडा, केदारेश्वर और रणजीत हनुमान जी के मंदिर मिलते है। श्मशान से आगे वीर दुर्गादास राठौर की छतरी है। उससे आगे ऋण मुक्त महादेव है।
बडे गणेश
उज्जैन महाकाल के मुख्य मंदिर के पास ही बडे गणेश का मंदिर है। यह मूर्ति आधुनिक है।.और बहुत बडी और सुंदर है। उसके पास ही पंचमुख हनुमिन जी का मंदिर है। हनुमान जी की मूर्ति सप्तधातु की है। इस मंदिर में और भी कई देवमूर्तिया भी दर्शनीय है।
उज्जैन के सुंदर दृश्यहरसिद्धि देवी मंदिर
रूद्रसरोवर के पास चारदीवारी से घिरा यह एक श्रेष्ठ मंदिर है। यह अवंतिका का शक्तिपीठ है। महाराज विक्रमादित्य की आराध्या भवानी ये ही है। हरसिद्धि देवी का एक स्थान सौराष्ठ से मूल द्वारका से आगे समुद्र की खाडी में पर्वत पर है। कहा जाता है कि महाराज विक्रमादित्य वही से देवी को अपनी आराधना के द्वारा संतुष्ट करके अवंतिका ले आए थे। दोनो स्थानो पर देवी की मूर्तियां एक जैसी है।
चौबीस खंभा
उज्जैन महाकाल के मुख्य मंदिर से बाजार की ओर जाते समय यह स्थान है। यह एक प्राचीन द्वार का अवशेष है। यहा भद्रकाली देवी का स्थान है।
गोपाल मंदिर
यह मंदिर उज्जैन के बाजार में स्थित है। इसमे राधा कृष्ण तथा शंकर जी की मूर्तिया है। यह मंदिर महाराज दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजाबाई का बनवाया हुआ है।
गढ़कालिका
यह स्थान नगर से लगभग एक मील दूर है। गोपालजी के मंदिर से यहा जाने का मार्ग है। नगर से यह स्थान एक मील दूर है। कहा जाता है कि इन्ही महाकाली की आराधना करके कालिदास महाकवि हुए थे। महाकाली मंदिर के पास ही स्थित गणेश जी का प्राचीन मंदिर है। पास ही शिप्रा घाट है जहां सतियो स्मारक है। शिप्रा के उस पार शमशान स्थल है।
भर्तृहरि गुफा
कालिकाजी से उत्तर कुछ ही दूरी पर खेत में भर्तृहरि गुफा और भर्तृहरि समाधि है। एक संकुचित मार्ग से भूगर्भ में जाना पडता है। यह स्थान किसी प्राचीन मंदिर का भग्नावशेष जान पडता है।
कालभैरव
नगर से तीन मील दूर शिप्रा किनारे भैरवगढ नामक बस्ती है। यहा एक टीले पर कालभैरव का मंदिर है। भैरवाष्टमी को यहा मेला लगता है।
सिद्धवट
कालभैरव के पूर्व शिप्रा नदी के दूसरे किनारे सिद्धवट है। वैशाख में यहा की यात्रा होती है।.इस वट वृक्ष के नीचे नागबलि, नारायणबलि आदि कार्यो का महात्मय माना गया है।
मंगल नाथ
अंकपाद से कुछ आगे टीले पर मंगलनाथ का मंदिर है। पृथ्वीपुत्र मंगल ग्रह की उत्पत्ति यही मानी जाती है। यहा मंगलवार को पूजन होता है।
यमुनोत्री धाम की यात्रा
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
वेधशाला
इसे लोग यंत्रमहल कहते है। उज्जैन के दक्षिण में यह दक्षिण तट पर है। अब यह जीर्ण दशा में है। पहले यहा आकाशीय ग्रह नक्षत्रो की गति जानने के उत्तम यंत्र थे। कई यंत्र अब भी है।
उज्जैन के आस पास के अन्य दर्शनीय तीर्थ
चित्रगुप्त तीर्थ
अवंतिकापुरी में कायस्थो में परमाराध्यदेव चित्रगुप्तजी का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर अवंतिकापुरी की पंचकोशी परिक्रमा के पास कायथा नामक गांव में है। मंदिर के पास एक चबूतरा है कहा जाता है कि यहा चित्रगुप्त जी ने यज्ञ किया था।
जैन तीर्थ
अवंतिकापुरी का नाम उज्जैन या उज्जैयिनी जैन शासन के समय ही पडा । यह अतिशय क्षेत्र माना जाता है। चौबीसवे तीर्थंतकर महावीर स्वामी ने यहा शमशान में तपस्या की थी। श्रतुकेवली भद्रबाहु स्वामी यहा विचरे है। यहा जैन मूर्तियों के भग्नावशेष कई स्थानो पर मिलते है। स्टेशन से दो मील पर नमक मंडी में जैन मंदिर और जैन धर्मशाला है। नया पुरा में भी एक जैन मंदिर है।
निष्कलंकेश्वर
उज्जैन से दस मील दूर निष्कलंक नामक गांव में यह मंदिर है। ताजपुर स्टेशन से यहां पैदल आना पडता है। मंदिर में दो सीढी नीचे भगवान शंकर की पंचमुख मूर्ति है। समीप ही पार्वती जी की मूर्ति है। मंदिर के द्वार पर गणेश जी तथा सामने नंदी की प्रतिमा है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है। पूरे मंदिर में भित्ति पर बहिर्भाग में देव मूर्तियां बनी है। मंदिर के समीप ही एक सरोवर है। यहां कुछ समाधियां है। पास ही धर्मशाला भी है।
कालिका माता पंचकुला
चामुण्डा देवी कांगडा
नैना देवी बिलासपुर
करेडी माता
संभवत: इनका शुद्ध नाम कनकावती देवी है। आगरा मुंबई रोड पर स्थित शाजापुर नगर से यहा आना सुविधाजनक है। यहा पर करेडी गांव में अष्टभुजा देवी का मंदिर है। कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने इनकी अर्चना की थी। स्वप्न में देवी जी ने शिवाजी को मुकुट पहनाया था। इस स्थान से दस बारह मील की दूरी पर एक ओर उज्जैन की कालिका देवी और दूसरी ओर देवास की भगवती है। देवास की भगवती, उज्जैन की कालिका तथा करेडी की इन अष्टभुजा के दर्शन की यात्रा त्रिकोण यात्रा कही जाती है। क्रमश्: ये कौशिकी, कात्यानी और चंडिका के स्वरूप मानी जाती है।