ईश्वरी सिंह की छतरी – महाराज सवाई ईश्वरी सिंह Naeem Ahmad, September 15, 2022February 21, 2024 बादल महल के उत्तर-पश्चिम मे एक रास्ता ईश्वरी सिंह की छतरी पर जाता है। जयपुर के राजाओ में ईश्वरी सिंह के साथ उसकी वीरता, गुण-ग्राहकता और कला-प्रेम के बावजूद जो कुछ बीती उसे विधि का विधान मानकर ही सब्र करना पडता है। अन्य राजाओं की छतरियां जहां गेटोर (ब्रहमपुरी) मे हैं, वहां ईश्वरी सिंह की छत्री सीटी पलैस के अहाते में ही तालकटोरा के पास समाधिस्थ है। चार स्तम्भो पर बनी गुम्बजदार छतरी जिसके पलस्तर मे नीले अलकरण ”लोई” मे रगडकर चमकाये गये है, वह स्थान है जहा सवाई जय सिंह के इस लाडले बेटे को चैन और आराम नसीब हुआ।ईश्वरी सिंह की छतरी1721 ई में दिल्ली के जय सिंहपुरा मे रानी सुख कंवर के गर्भ से जन्मे ईश्वरी सिंह को जय सिंह कितना प्यार करता था, यह इसी से सिद्ध है कि दो साल के चीमाजी” (ईश्वरी सिंह का बचपन का प्यार का नाम) को “चबेणी” के लिये लगभग पांच हजार रुपये की वार्षिक आय की जागीर निकाल दी गई थी। इस बालक को राजधानी से दूर बसवा मे रखा गया और जब वह चार साल का था तो पिता ने जय सिंहपुरा (दिल्ली) से ही उसके लिए जेवर, हथियार और लवाजमा भेजा। अपने मरने के दस बरस पहिले 1733 ई मे जय सिंह ने बाकायदा राज-दरबार जोडकर ईश्वरी सिंह को अपना युवराज घोषित किया। 1743 ई मे जयसिंह की मृत्यु के समय युवराज ईश्वरी सिंह राजसूय यज्ञ कर रहा था। उसने पिता की मृत्यु का समाचार सुना तो तुरन्त आया और वह यज्ञ पूरा नही हो सका। गद्दी पर बैठने के बाद ईश्वरी सिंह ने अपनी जिन्दगी के अगले सात साल अपने सौतेले भाई माधो सिंह और उसका साथ देने वाले पडौसी राजाओ के षडयन्त्रो का सामना करने और लडने-झगडने मे ही बिताये। 1750 ई मे जब होल्कर ने जयपुर पर धावा बोला तो उसके ढीठ मसाहिब हरगोविन्द नाटाणी ने उसे अधेरे मे रखा और धोखा दिया। इस नाटाणी ने।जयसिंह को उसकी मृत्यु शैय्या पर ईश्वरी सिंह का साथ देने का वादा किया था और उसके साथ दीवान विद्याधर ने भी। नाटाणी तो साफ मुकर गया और वृद्ध तथा अशक्त विद्याधर तटस्थ रह गया। अब ईश्वरी सिंह के सामने पराजय या मौत मुंह बायें खडी थी। उसने पराजय और आत्मग्लानि की जिन्दगी से मौत ही बेहतर समझी और विषपान कर अपना जीवन समाप्त कर दिया। सवाई जयसिंह के चहेते बेटे का अन्त बादशाह शाहजहा के लाडले दाराशिकोह के अन्त जैसा दर्दनाक तो नही, किन्तु मर्मान्तक अवश्य है।ईसरलाट जयपुर – मीनार ईसरलाट का इतिहाससात साल का कुल समय और उसमे भी बडी-बडी लडाइयां, षडयन्त्र और कुचक। लेकिन इतने से अरसे मे ईश्वरी सिंह ने गेटोर मे अपने महान पिता की स्मृति मे संगमरमर की भव्य छतरी बनवाई, चौगान मे मोती बुर्ज खडी करवाई और ईसरलाट या सरगासूली के निर्माण से जयपुर वी आकाश-रेखा स्थापित की। ईश्वर विलास महाकाव्य उसके साहित्य प्रेम और मोती बुर्ज कीडा- प्रेम के परिचायक हैं। उसे बचपन से ही हाथियो की लडाई देखने का बडा शौक था और वह खुद घोडे पर सवार होकर ”साटमारी ” करता था। जयपुर के निकट गेटोर में सवाई जयसिंह की छतरी के इजारे पर इश्वरी सिंह को साटमारी करते हए बताया गया हैं। कागज पर अत्यन्त बारीक कटाई करके चित्र बनाना भी उसकी ‘हॉवी’ थी, और जयपुर के मानसिंह संग्रहालय मे उसके बनाये हुए ये कमनीय चित्र देखकर वाह-वाह करना पडता है। सागानेर का हाथ कागज उद्योग ईश्वरी सिंह की ही देन हे। विशेष प्रकार से घोट कर तैयार की जाने वाली कागज की गडिडयां ईश्वरसाही पाठो’ के नाम से जानी जाती रही है। उसके समय में इन पाठो को कौडियों से घिसने की तकनीक विकसित की गईं थी और क्वालिटी कट्रोल के लिए मुहर लगती थी। तब के सागानेरी पाठे ‘डेढ मोहरिया’ और ‘दो मोहरिया’ कहलाते थे।सीताराम मंदिर जयपुर – सीताराम मंदिर किसने बनवायाजैसा हमारे देश मे दस्तूर है, इश्वरी सिंह को मरने के लिए मजबूर करने ओर स्वयं राजा बनने के बाद माधोसिंह ने अपने सौतेले अग्रज को ”ईश्वरावतार” कह कर पूजा। गणीजनखाने के गायक ओर वादक उसकी छतरी पर जाकर गाते-बजाते। सुरम्य जय निवास बाग के एक कोने में खडी यह उदास छतरी इस गाने- बजाने के समा मे जैसे और भी उदास नजर आती। सीटी पैलैस मे ईश्वरी सिंह की समाधि ही एकमात्र समाधि है।ऐसो हू न और कोई भूप पातसाहन के सुनयो होन देख्यो हम सगरे जहान में।। मुरलीधर कहे सवाई प्रतापसिंह को. चचल गज ठाडो दिन-रात चोगान मे।।ईश्वरी सिंह की छतरीदूसरी बुर्ज है “मोती बुर्ज” जो सिटी पैलेस के अहाते की मुख्य दीवार से सटी हुई है। यह ईश्वरी सिह ने बनवाई थी। इसमें जयपुर के राजा खुद बैठकर चोगान में होने वाले खेल-तमाशों ओर करतबों को देखते थे। यहां ने घुमकर उत्तर-पूर्व के कोने में चतर- महल ओर चतर की बुर्ज भी है। चतर महल के मेहराबदार दालान बड़े अनुपात से बने हैं ओर सादा होने पर भी शानदार हैं। यह सवाई जयसिंह के समय की इमारत बताई जाती है जिसका प्रवेश द्वार ‘चतर की डयोटी’ इसके सामने के खुले चौक के पूर्व की ओर है। चतर को कोइ-कोई सवाई जयसिंह के काल में बडी प्रभावशालिनी “वडारण ‘ या प्रधान दासी भी बताते हें जिसकी याद आज तक इन इमारतों से कायम है। इस महल के दालानो से राजपरिवार के लोग नीचे चोक में हाथियों की लड़ाई देखा करते थे जो उन्नीसवी सदी के अन्त तक एक बडा मनोरजन था।गिरधारी जी का मंदिर जयपुर राजस्थानमहाराजा राममिद्र पहला राजा था जिसने बात-बात में ओपचारिकता बरतने से इंकार किया था। वह खातीपग, झालाना या रामसागर के जंगलो में शिकार के लिए जाता तो यह बडा अटपटा लगता कि जब भी चंद्रमहल से निकले तो सिरह ड्योढ़ी के रास्ते से ही परे लवाजमे के साथ निकले। इसलिये वह अक्सर घोडे पर सवार होकर अपने दो- चार विश्वस्त साथियो-सेवकों को साथ लेकर चतर की डयोढी से बाहर आ जाता ओर बिना धुमधाम के चला जाता।जयपुर राज्य का इतिहास – History of Jaipur stateमोती बुर्ज के उत्तर में “श्याम बुर्ज है। इस बुर्ज के भीतर एक विशाल कुआं है जिसका पानी रहट या परशियन ब्हील द्वारा ऊपर बने हुए एक हौज में भरा जाता था। इस पानी से कभी जयनिवास बाग के सारे फव्वारे चलाये जाते थे। बुर्ज की ऊपरी मंजिल एक अष्टकोणीय बरामदा है जिसकी मेहराबों में चारो ओर जालियां लगी है। यहां रानिवास की औरते बैठकर नीचे मैदान में होने वाले खेल-तमाशे देख सकती थी और छत से महाराजा और उनके सामंत।लक्ष्मण मंदिर जयपुर – लक्ष्मण द्वारा जयपुरइन बुर्जों और चतर महल तक ऊपर ही ऊपर आने-जाने के लिए चंद्रमहल ओर जनानी ड्योढी तक जो मार्ग बने हुए हैं, उन्हे सुरंग” कहते है। इन एक-एक सुरंग पर कोई भी बडी इमारत बनाने जितनी लागत आईं होगी जिसकी अब कल्पना ही की जा सकती हैं। यह भी कल्पना का ही विषय है कि जब यह महल-मालिये पूरी तरह आबाद होगे, चोगान में हाथियों की लडाई ओर दूसरे मनोरजन होते होगे ओर इन सुरंगो मे होकर बराबर स्त्री-पुरुषो का आवागमन रहता होगा तो आज सुने ओर वीरान पडे हुए इन स्मारकों में केसा रंग, कैसी चहल-पहल ओर कैसी जिन्दगी अठखेलियां करती होगी।चंद्रमहल सिटी पैलेस जयपुर राजस्थाननवीनतम अध्ययनों से इस बात का पता चलता है कि जयपुर का संस्थापक सवाई जयसिह भी चोगान के खेल का शौकीन था और एक बार जब वह अपनी ससुराल उदयपर में था तो उसने वहा इस खेल मे भाग लिया था।? जयपुर के चौगान मे जो सवाई जयसिंह ने ही बना दिया था, उसकी किसी ऐसी गतिविधि के सम्बन्ध मे अभी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हुइ है, किन्तु कुछ वर्षों पूर्व कुछ बडे आकार के चित्र उपलब्ध हुए हैं जिनमे उसके उत्तरा- धिकारी ओर पुत्र इश्वरी सिंह को चोगान मे जानवरों की लडाइयां देखते हुए बताया गया है। महाराजा सवाई मानसिंह संग्रहालय की प्रदर्शनी दीर्घा मे 1978 मे ये चित्र पहली बार प्रदर्शित किये गये थे। अब ऐसा ही एक चित्र वर्तमान महाराजा ने संग्रहालय को प्रदान किया है, जिसमे ईश्वरी सिंह के बाद राजा बनने वाले उसके सौतेले भाई माधोसिंह को चौगान मे ऐसी ही लडाइयां देखते हुए चित्रित किया गया है।मुबारक महल कहां स्थित है – मुबारक महल सिटी प्लेससंग्रहालय के एक अधिकारी यदुएन्द्र सहाय ने इन चित्रों के आधार पर अपने अध्ययन मे कहा है कि ये सभी चित्र बडे सजीव और फिल्म की तरह है, एक नजर मे तो यह एक ही कलाकार की तूलिका के प्रतीत होते है, किन्तु वास्तविकता यह है कि हर चित्र सूरतखाने के किसी सिद्धहस्त चित्रकार की कृति है। इनमे एक चित्र है शिकार अगड की,जो सतराम और ऊदाराम की संयुक्त कलाकृति है। सवाई ईश्वरी सिंह इसमे काले फूलो की बूंटियो वाले पशमीने का आतम-सुख पहिने है और चीनी की बुर्ज मे बैठा है। बुर्ज के नीचे ही एक गोलाकार घेरे मे एक शेर बंधा है और उस पर सब ओर से शिकारी कुत्तो का दल झपट रहा है। चौगान के चारो ओर बनी सभी बुर्जे, दीवारे और मैदान महाराजा के मेहमानो और दूसरे तमाशबीनो से भरे हैं। एक मस्त हाथी ने भी बडा बखेडा मचा दिया है और उससे कुचले जाने के भय से लोग भाग रहे है। अनेक लोग कोडे और कपडो के टुकडे हाथ मे लिये उसे नियत्रित करने मे लगे है। सारा चित्र ऐसी सजीवता और तन्मयता से बनाया गया है कि फोटो की तरह एक-एक बात को उजागर करता है ओर लगता है जैसे कलाकार ने किसी विमान या हैलीकॉप्टर मे बैठकर इसे बनाया हो।City place Jaipur history in hindi – सिटी प्लेस जयपुर का इतिहास – सिटी प्लेस जयपुर का सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थलसुख निवास (चंद्रमहल) के इजारो पर भी पशुओ की लडाई के ऐसे ही चित्र बने है और यह कहना मुश्किल है कि पहले ये बने या वे और कौन किसकी अनुकृति है? और तो और, चित्र मे प्रदर्शित मकानो और दीवारो का रंग भी वही गाढा गुलाबी रंग है जिसके लिए जयपुर प्रसिद्ध हुआ। जयपुर को सवाई रामसिंह द्वितीय ने गुलाबी रंग दिया था, यह एक जानी-मानी बात है, किन्तु इस चित्र को देखकर अनुमान होता है कि जयपुर मे यह रंग कही-कही तो 1750 ई मे ही हो गया था अथवा होने लगा था।एक अन्य चित्र मे, जो जगरूप का बनाया हुआ है, ईश्वरी सिंह मोती बुर्ज मे बैठा दिखाया गया है। इसमे चतर की आड के दोनो ओर से अपने सवारों सहित हाथी आकर एक-दूसरे से भिड रहे हैं। इसी प्रकार एक चित्र मे, जो ऊदा का बनाया हुआ है, मोती बूर्ज के नीचे घोडो के दो जोडो की लडाई दिखाई गई है। दर्शको की भीड मे कुछ यूरोपीय पादरी भी साफ नजर आते है। अन्य चित्रो मे ईश्वरी सिंह इसी प्रकार भैसो और ऊंटों की लडाई भी देखता है। ये सभी पशु उत्तेजना और क्रोध की प्रतिमूर्ति बने हुए है।जयपुर पर्यटन स्थल – जयपुर टूरिस्ट प्लेस – जयपुर सिटी के टॉप 10 आकर्षणएक चित्र जयसिंह, ईश्वरी सिंह और प्रताप सिंह, तीनो को देखने वाले अनुभवी चितेरे साहबराम का बनाया हुआ है, जिसमे एक शेर और हाथी की लडाई है। मैदान को बहिश्ती लोग अपनी मशको से बराबर छिडक रहे है। आकाश मे तरह-तरह के पतंग भी उड रहे है। इन चित्र मे यूरोपियन पादरियो की उपस्थिति उल्लेखनीय है। यूरोपियन लोग इस नगर मे इसके निर्माण के बाद से ही आने लगे थे और मनोरजन के लिए उस जमाने मे चौगान से बेहतर और क्या था।Hawamahal history in hindi- हवा महल का इतिहासजिस चित्र मे माधोसिंह प्रथम दस जोडे हाथियो की लडाई देख रहा है, वह भी उपरोक्त चित्रों के आकार का ही है। चौगान से गणगौरी दरवाजे मे होकर सिटी पैलेस या चौकडी सरहद के बाहर निकला जा सकता है। राज-दरबार और रानिवासों की इस उपनगरी का वह पश्चिमी द्वार है। किन्तु, अभी सिटी पैलेस का एक बैभव तो छुट ही गया, जिसका वर्णन किये बिना यह समूचा वर्णन अधूरा ही माना जायेगा। जयपुर को मंदिरों का नगर भी कहा गया है और सिटी पैलेस की परिधि मे ही ऐसे अनेक मन्दिर हैं जो स्थापत्य की दृष्टि से तो दर्शनीय है ही, ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। जिनका उल्लेख हम अपने आगे के लेखों में करेंगे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to 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