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ईद उल फितर

ईद उल फितर क्यों मनाया जाता है – ईद किस महिने के अंत में मनाई जाती है

ईद-उल-फितर या मीठी ईद मुसलमानों का सबसे बड़ा पर्व है। असल में यहरमजान के महीने के समाप्त होने की खुशी में मनाया जाता है। मुस्लिम महीने चांद के कैलेंडर से चलते हैं, इस कारण से मुस्लिम त्योहार अलग-अलग मौसमों में आते रहते हैं।

ईद उल फितर क्यों मनाई जाती है

रमजान का महीना, इबादत, नफ्शक॒शी (सांसारिक इच्छाओं का दमन) और परहेजगारी का महीना होता है। गर्मी हो या सर्दी सूरज निकलने से पहले सेहरी खा ली जाती है। सेहरी में आमतौर पर दूध, सेवइयां और दूसरी हल्की-फुल्की चीजें खायी जाती हैं। सुबह की अजान होने से दिन डूबने तक खाना यहां तक कि पानी, सिगरेट, बीड़ी पीना तक मना होता है। रोज़ादार के लिए दुनिया की सारी जिम्मेवारिया पूरी करना भी आवश्यक हैं क्‍योंकि इस्लाम तकें-दुनिया (सांसारिक मोह से अलग होना) की शिक्षा नहीं देता ।

गर्मियों के रोज़े प्यास के कारण बहुत सख्त महसूस होते हैं। रोज़ा मनुष्य को उन गरीबों का दुःख-दर्द महसूस करना सिखाता है, जिनको दो वख्त की रोटी नहीं मिल पाती । इस महीने में संपन्‍न मुसलमानों पर अपनी जायदाद, नगदी और जेवर इत्यादि के मूल्य का ढाई प्रतिशत भाग जकात के रूप में गरीबों में देना भी फर्ज है। रमज़ान का महीना बड़ी धूम-धाम से गुजरता है

ईद उल फितर
ईद उल फितर

सेहरी के समय लोग अधिकतर खुदा-रसूल की शान में मुनाजात और नातें गाते हुए, गली-गली रोजादारों को जगाते फिरतें हैं। रोजा खोलने अर्थात्‌ इफ्तार का नजारा देखने योग्य होता है। रोजादार और यहां तक कि जो रोजा नहीं रहते वह भी फलों, पकोड़ों, चाट और खजूर इत्यादि की इफ्तारी पूरी खुशी से तैयार करते हैं। और मुहल्ले वालों, गरीबों को और मस्जिदों में भिजवाते हैं।

दिल्‍ली की मस्जिदों में इफ्तार समय होते ही प्रकाश किया जाता है और गोले दागे जाते हैं। सायरन भी बजते हैं। सभी छोटे-बड़ों का एक साथ रोजा खोलना बड़ा भला लगता है। इफ्तार के बाद मगरीब की नमाज पढ़ी जाती है। फिर रोजेदारर आराम करके रात का खाना खाते हैं।

इन दिनों रात की विशेष नमाज भी पढ़ी जाती है, जिसे तरावीह कहते हैं। इसके दौरान हाफिज लोग कुरआन सुनाते हैं। मस्जिद में जब कुरआन करीम पुरा होता है तो मिठाई बांटी जाती है और हाफिज साहब को कपड़े और उपहार दिए जाते हैं।

ईद कैसे मनाई जाती है

रमजान का महीना खत्म होने पर ईद का चांद दिखाई देता है। बच्चे विशेष रूप से छतों पर चढ़ कर चांद देखने के लिए आसमान पर नजर रखते हैं। अगर बादल वर्षा के कारण एक शहर में चांद दिखाई नहीं देता तो दूसरे शहरों के आलिमों की गवाही पर भी चांद का एलान कर दिया ज़ाता है। चांद का एलान होते ही हर ओर हलचल मच जाती है।

औरतें और लड़कियां अपने जोड़े, चूडियां, मेंहदी और आभूषण सही करने लगती हैं। बच्चे नए कपड़े, जूते, टोपी, रूमाल मिलने की खुशी में मगन होते हैं। चांद रात को सारे बाजार रात भर खुले रहते हैं। सुबह-सवेरे उठकर मर्द और बच्चे सिवाइयां, मिठाई और फल खा कर शहर से बाहर ईदगाह /बडी मस्जिदों में ईद की विशेष नमाज पढ़ने जाते हैं।

नमाज के बाद लोग गले मिल कर पिछले गिले-शिकवे दूर करते हैं। बच्चे बड़ों से अधिक पैसे ईदी” के नाम पर वसूल करते हैं। संबंधी और मित्र एक दूसरे के घर ईद मिलने जाते हैं। हर ओर “ईद-मुबारक’ का शोर, दावतों की भरमार और मिठाइयां ही मिठाइयां होती हैं। और दो तीन दिनों तक दावतों और सैर-सपाटों का वातावरण रहता है।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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