इवान पावलोव जिसने खोजा था बच्चे के चिड़चिड़ापन और ज़िद्दीपन का कारण? Naeem Ahmad, June 8, 2022March 26, 2024 भड़ाम! कुछ नहीं, बस कोई ट्रक था जो बैक-फायर कर रहा था। आप कूद क्यों पड़े ? यह तो आपने सोचा ही नहीं था कि कोई खतरा है, सोचने की नौबत ही नहीं आई। सोचने को वक्त ही कहां था, बस आप एकदम से कूद पड़े। धूल का एक कण जब आंख के पास पहुंचने को होता है, हमारी आंख खुद-ब-खुद बन्द हो जाती है। जरा-सी भी मिट्टी नाक में घुसी कि हम छींक देते हैं। खाते हुए कोई भी चीज़ श्वास-नली में गलती से चली गई कि खांसना शुरू हों जाता है और वह टुकड़ा वहां से निकल बाहर आ जाता है। ये सभी क्रियाएं रिफ्लेक्स एक्शन अथवा “रिफ्लेक्स’ स्वतः प्रतिक्रियाएं कहलाती हैं। ये हमें सीखनी नहीं पड़ती नवजात शिशु में भी वे उसी स्वाभाविकता के साथ विद्यमान होती हैं जैसे एक अधेड़-उम्र के आदमी में। ये स्वाभाविक प्रतिक्रियाएं हमारे अंदर में जन्म के साथ ही आ जाती हैं, और इसे हमारी खुश किस्मती ही समझना चाहिए क्योंकि यही प्रतिक्रिया हैं वस्तुत: जो हमें जिन्दा रखे रखती हैं। इन रिफ्लेक्स क्रियाओं में हमें कुछ सोच विचार नहीं करना पड़ता, किन्तु, स्वयं इनके विषय में काफी सोच विचार चिन्तन-मनन, वैज्ञानिकों ने किया है। इस क्षेत्र में शायद सबसे अधिक अध्ययन रूस के एक खोजकर्ता इवान पावलोव ने किया है।इवान पावलोव का जीवन परिचयइवान पावलोव का जन्म 14 सितम्बर, 1849 को, मध्य रूस के एक छोटे-से कस्बे रियाजान में हुआ था। पिता गांव का एक पादरी था। मां-बाप ने बच्चे को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित ही नहीं किया, अपितु विषय के चुनाव में भी उसे पूर्ण स्वतंत्रता दी। इवान पावलोव की शिक्षा का आरंभ एक धार्मिक पाठशाला में हुआ जहां एक पादरी शिक्षक की छत्रछाया में बालक में विज्ञान के प्रति अभिरुचि जागरित हुई।पाठशाला के बाद पावलोव सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ नैचुरल साइन्सेज मे दाखिल हुआ। यहां एक पुस्तक मस्तिष्क की स्वाभाविक प्रतिक्रियाएं उसके हाथ लगी, जिसने उसका भविष्य निर्धारित कर दिया। पुस्तक का विषय था, मनुष्य की शारीरिक तथा मानसिक क्रियाओं मे परस्पर सम्बन्ध। पावलोव ने निश्चय किया कि बडा होकर वह एक डाक्टर बनेगा। शरीर विज्ञान का प्रोफेसर। 1879 में उसकी चिकित्सक बनने की शिक्षा-दीक्षा समाप्त हो गई। सैनिक चिकित्सा एकेडमी से स्नातक होकर, बचपन में लिए अपने स्वप्न के अनुसार पावलोव ने सेंट पीटर्सबर्ग मे एक प्रयोगशाला स्थापित की ताकि वह शरीर-तन्त्र सम्बन्धी अनुसन्धान को अनवरत रख सके।इवान पावलोवप्रयोगशाला बहुत ही साधन-विहीन थी। कोई नियमित सहायक नही, और जो थोडे-बहुत साधन उपकरण आवश्यक होते वे भी पावलोव को खुद अपनी थोडी-सी तनख्वाह के अन्दर ही जुटाने पड़ते। किन्तु वह घबराया नही अपने ध्येय की पूर्ति में लगा ही रहा। धीरे-धीरे आसपास उसका कुछ नाम भी होने लग गया। 41 वर्ष की आयु में उसकी नियुक्ति मेडिकल एकेडमी में फॉर्मकॉलोजी के प्राध्यापक के रूप मे हो गईं। एक वर्ष पश्चात, उसे सेंट पीटर्सबर्ग के प्रयोगात्मक विधि संस्थान में खुली नई प्रयोगशाला का अध्यक्ष भी बना दिया गया।अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन का जीवन परिचय और खोजइवान पावलोव को सबसे पहले अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान उसके पाचन सस्थान सम्बन्धी अनुसंधानों पर मिला था। 1904 मे इवान पावलोव को नोबल पुरस्कार दिया गया। शरीर के नाडी-तन्त्र में तथा पाचन तंत्र मे परस्पर सम्बन्ध क्या होता है यह उसने सिद्ध कर दिखाया। वैसे पावलोव का विश्वास था कि शरीर की सभी क्रियाएं-प्रतिक्रियाए हमारे नाड़ी तन्त्र द्वारा ही चालित होती है। तब तक वैज्ञानिको को यह मालूम नही था कि पाचन-क्रिया में कुछ महत्त्वपूर्ण योग हार्मोन्स का भी हुआ करता है।पावलोव का धैर्य असीम था, और उत्साह और आत्मविश्वास का भी कोई अन्त नही। पाचन-क्रिया पर परीक्षण करते वक्त उसने कुत्ते ही हमेशा लिए। उसे ख्याल रहता कि बेचारे पशु की स्वाभाविक क्रियाओं में कुछ भी अन्तर इन परीक्षणों से नही आना चाहिए। इसके लिए उसने एक ऑपरेशन का आविष्कार किया कि कुत्ते के मेदे मे जो कुछ हो रहा है उसे साफ-साफ प्रतिक्षण दिखाई देता रहे। पहले 30 परीक्षणो मे उसे असफलता ही मिली। किन्तु वह कहा मानने वाला था। अगले परीक्षण में जब उसे सफलता मिली, पावलोव यही उसकी आदत थी, खुशी में खुलकर नाच उठा नोबल पुरस्कार तो पावलोव को पाचन-संस्थान सम्बन्धी इन परीक्षणो की बदौलत ही मिला था, लेकिन जो चीज़ उसे विश्व-भर मे प्रसिद्ध कर गई, वह थी उसका कंडीशन्ड रिफ्नैक्सेज’ परक कार्य। कुत्तों के पाचन-तन्त्र पर अनुसन्धान करते हुए उसका ध्यान इस बात की ओर खिंचने लगा कि खाना सामने आने पर कुत्ते मे क्या-क्या प्रतिक्रियाएं शुरू हो जाती है। उसने देखा कि कुत्ते के मुंह मे पानी आना शुरू हो जाता है।खाना मिलने पर ही नही, सामने आने पर ही। वैज्ञानिको को यह तो पता था ही कि खाने को पचाने के लिए जैसे हमे भी ज़रूरत पड़ती है, जानवर के मुंह मे भी लार का निकल आना जरूरी होता है। लेकिन वैज्ञानिकों का ख्याल यही था कि लार निकलने की यह हालत एक विशुद्ध शारीरिक प्रतिक्रिया है। किन्तु खाना आंखो के सामने आते ही यह लार क्यों टपकने लग गई ?अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय – अल्बर्ट आइंस्टीन के आविष्कार?तभी इवान पावलोव ने अपना वह क्रांतिकारी वैज्ञानिक अनुमान प्रस्तुत किया कि यह सब पिछले सचित अनुभवों के कारण होता है, अर्थात ऐसी प्रतिक्रियाएं केवल मात्र शारीरिक ही हो यह जरूरी नही, वे मानसिक भी हो सकती है। और अब इस अनुमान की परीक्षा के लिए उसने एक परीक्षण का आविष्कार किया। एक कमरे को खाली करके उसमे एक कुत्ते को लाया गया। घंटी बजी, और रोटी सामने आ गई, और कुत्ते के मुंह से लार टपकनी शुरू हो गई। कितनी ही बार यही कुछ किया गया, और होता यह गया कि घंटी बजते ही लार टपकना शुरू हो जाता, रोटी साथ आए या न आए। अर्थात वह स्वाभाविक जन्मजात प्रतिक्रिया भी पावलोव ने बदल डाली थी। कुत्ते में वही प्रतिक्रिया घंटी की आवाज़ के सामने भी सिद्ध कर दिखाई जो आम तौर पर उसमें रोटी सामने आने पर ही प्रत्याशित थी।एक और अजीब परीक्षण पावलोब ने अब यह किया कि रोटी के साथ एक वृत्ताकार प्रकाश-रेखा भी दीवार पर पडती। अण्डाकार प्रकाश के साथ रोटी न आती। इस प्रकार जानवर यह जान गया कि रोटी की उम्मीद प्रकाश दिखाई देने पर करना बेवकूफी है। अब यह किया गया कि प्रकाश की इस अण्डाकृति को धीमे-धीमे वृत्ताकार किया जाने लगा कि आखिर दोनो आकृतियों में विवेक करना मुश्किल हो गया। बेचारे को मालूम न हो कि उसे रोटी मिलेगी या नही। नतीजा यह हुआ कि कुत्ते का दिमाग फिर गया और वह बेचेनीं मे कमरे मे चक्कर काटने लगा और भौंकने लगा। सौभाग्य से पावलोव ने यह भी कर देखा था कि इस प्रकार की सीखी कृत्रिम प्रतिक्रियाओं को विस्मृत करा कर पशु को और मनुष्य को भी पुन उसकी स्वाभाविक स्थिति में वापस भी लाया जासकता है। यही इस बेचेनीं का इलाज है।जे जे थॉमसन का जीवन परिचय और जे जे थॉमसन की खोज?आज के शरीर वैज्ञानिकों ने पावलोव के परीक्षणों से बहुत कुछ सीखा है। इवान पावलोव के सिद्धांतो का कुछ उपयोग मनुष्यों पर भी किया जा चुका है। कुत्ते में जिस प्रकार कुछ प्रतिक्रिया कृत्रिम रूप में स्थिर की जा सकती हैं, इन्सान के बच्चे में भी उसी आसानी के साथ कुछ कृत्रिमता आहित की जा सकती है। मां अगर बच्चे के मन में कुत्ते का, बिजली का, समुद्र का डर डालना चाहे, तो बच्चा इन चीजों से डरने लग भी जाएगा। किंतु मां के अपने मन पर इन भय का कुछ प्रभाव यदि नहीं पडता, बच्चे पर भी नही पडे़गा। यही चाल उलटे बच्चा खुद भी अपने मां-बाप के साथ खेल सकता है। एक बार उसे पत्ता चल जाए सही कि चिड़चिडापन दिखाने से उसका मतलब सिद्ध हो जाता है, वह अब जब चाहे चिडचिडा होकर दिखा देगा और मां-बाप का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया करेगा। पावलोव ने तो यह भी कर दिखाया कि एक ‘स्थिर प्रवृत्ति को अस्थिर करके उसे पुन स्थिर भी किया जा सकता है, पशुओं में भी और मनुष्यों में भी। लेनिन की अध्यक्षता मे सोवियत सरकार ने पावलोव को पर्याप्त आर्थिक सहायता दी। शायद उसे इन परीक्षणो की उपयोगिता यह नजर आई हो कि मनुष्यों में भी वांछित शिक्षा भरी जा सकती है।87 वर्ष की आयु मे 1936 में इवान पावलोव की मृत्यु हुई। कुत्तों के साथ परीक्षण करते हुए जब उसने घंटी बजाने की विधि निकाली थी, मनोवैज्ञानिकों के हाथ वह एक नया उपकरण मनुष्य के दैनिक व्यवहार को समझने के लिए दे चला था। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—-[post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी