You are currently viewing इलाहाबाद का इतिहास – गंगा यमुना सरस्वती संगम – इलाहाबाद का महा कुम्भ मेला
इलाहाबाद के सुंदर दृश्य

इलाहाबाद का इतिहास – गंगा यमुना सरस्वती संगम – इलाहाबाद का महा कुम्भ मेला

इलाहाबादउत्तर प्रदेश का प्राचीन शहर है। यह प्राचीन शहर गंगा यमुना सरस्वती नदियो के संगम के लिए जाना जाता है। यह खुबसूरत शहर इसी संगम तट पर बसा है। इलाहाबाद का इतिहास इस बहुत पुराना और प्राचीन है। इलाहाबाद संगम तट पर बसे इस शहर का प्राचीन नाम प्रयाग था। प्रयाग की भौगोलिक स्थिति का जिक्र हवेनसांग ने 644 ईस्वी के यात्रा वृत्तांत में किया है। ऐसा कहा जाता है कि उस समय प्रयाग संगम के अति निकट बसा हुआ था। अत: गंगा की बाढ के कारण प्रयाग नगर नष्ट होकर बहुत छोटा हो गया था। 1583 ई० के आसपास बादशाह अकबर ने यहां एक नया नगर बसाया जिसका नाम उसने अल्लाहाबबाद रखा जिसको बाद मे इलाहाबाद के नाम से जाना जाने लगा। संगम पर अकबर ने एक किले का भी निर्माण करवाया ।

सन 1801 में इलाहाबाद पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया तब उनहोने किले के पश्चिम मे यमुना तट पर अपनी छावनियां बनाई। सन 1857 के गदर मे अंग्रेजों द्धारा बनाई गयी छावनिया नष्ट कर दी गई तथा इलाहाबाद को बहुत क्षति पहुची। गदर के बाद 1858 मे इलाहाबाद को उत्तर पश्चिम प्रांतो की राजधानी बनाया गया । भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इलाहाबाद चश्मदीद गवाह रहा है। यहां से अनेक स्वतंत्रता आंनदोलन शुरू किये गए थे। भारतिय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीव भी 1885 मे इलाहाबाद में ही रखी गयी थी। महात्मा गांधी ने 1920 मे अपने अहिंसा आंनदोलन को इलाहाबाद से ही शुरू किया था।

इलाहाबाद के सुंदर दृश्य
इलाहाबाद के सुंदर दृश्य

पर्यटन की दृष्टि से इलाहाबाद शहर की महत्ता अब काफी बढ गई है। हिन्दुओ का प्रमुख तीर्थ होने के कारण यहा कई छोटे बडे प्रसिद्ध मंदिर व तीर्थ स्थल है। इसके अलावा यमुना नदी पर केबल आधारित झूला पुल तथा सरस्वती नदी पर बोट क्लब भी शहहर की गरिमा को बढाता है। इस शहर को शिक्षा एंव साहित्य की धरोहर भी कहा जाए तो गलत नही होगा। मूर्धन्य साहित्यकारो – सूर्यकांत त्रिपाठी, निराला, महादेवी वर्मा आदि ने इस शहर के वातावरण में अपनी साहित्यक लेखनी को स्थिर आयाम दिया था।

इलाहाबाद का इतिहास

इलाहाबाद के पर्यटन स्थल – इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल तीर्थ यात्रा की दृष्टि से

संगम तट

इलाहाबाद के पर्यटन स्थलो की सूची मे संगम तट का सबसे प्रमुख स्थान है। इलाहाबाद आने वाला हर सैलानी सबसे पहले इलाहाबाद के संगम तट पर जाना पसंद करता है। जाये भी क्यो नही इलाहाबाद का इतिहास मे संगम तट का महत्वपूर्ण स्थान है। यह स्थल हिन्दुओ का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहां पर गंगां यमुना सरस्वती तीनो नदीयो का संंगम होता है। जिससे इस स्थल को त्रिवेणी घाट के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थल केे धार्मिक महत्व के बारे में कहा जाता है। कि इस संगम स्थल में स्नान| करके प्रााणी पापो से मुक्त होकर स्वर्ग का अधिकारी हो जाता जाता है। इस क्षेत्र मे देह त्याग ने वाले प्राणी प्राणी कि मुक्ती हो जाती है। ऐसा पुराणो मे भी बताया गया है । प्रयाग तीर्थ के नाम से जाने जाने वाले इस स्थल के बारे में पदमपुराण में कहा गया है कि – जैसे ग्रहो में सूर्य तथा तारो में चंद्रमा श्रेष्टठ है वैसे ही तीर्थो में प्रयाग सर्वोत्तम है यहा हर बारह वर्ष बाद कुम्भ मेले का आयोजन होता है जिसमे लाखो श्रृद्धालु भाग लेते है स्कंदपुराण में कुम्भ की सविस्तार कथा है। रोग शोक से छुटकारा पाने के लिए देव और दानवो ने अमृत प्राप्ति हेतु समुन्द्र मंथन किया था। यही उस कथा का सार है। जहांं गंंगा नदी का उज्वल जल यमुना नदी के नीले जल से मिलता है। वही संगम स्थल है। यहां सरस्वती गुप्त है। किले के दक्षिण मै यमुना तट पर एक कुंड है। उसी को पंडे सरस्वती नदी का स्थान बबताकर पूजन कराते है। संगम का स्थान बदलता रहता है। वर्षा के दिनो मे गंगाजल सफेदी लिए हुए मटमैला और यमुना नदी का जल लालिमा लिए हुए होता है। शीतकाल मे गंगा जल अत्यन्त शीतल और यमुना नदी का जलकुछ उष्ण रहता है। संगम पर पानी का यह अंतर साफ दिखे है।

महा कुम्भ मेला

कुम्भ मेला हिन्दु धर्म का एक महत्तवपूर्ण पर्व है। जिसमे करोडो श्रृद्धालु इस पर्व में भाग लेते है। यह महा पर्व कुम्भ भारत के चार प्रमुख शहरो हरिद्धार, इलाहाबाद, उज्जैन, और नासिक के तटो पर आयोजित किया जाता है । यह पर्व हर 3-3 वर्ष में बारी बारी से चारो शहरो में आयोजित किया जाता है। नम्बर वाइज आयोजित होने के कारण यह प्रत्येक शहर में 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है। हरिद्धार में यह गंगा नदी के तट पर नासिक में गोदावरी नदी के तट पर उज्जैन में यह क्षिप्रा नदी तथा इलाहाबाद में यह गंगा यमुना और सरस्वती नदियो के संगम तट इस भव्य पर्व का आयोजन किया जाता है।

इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम तट पर लगने वाला यह मेला सबसे महत्तववपूर्ण माना जाता है क्यो कि यहां पर तीनो पवित्र नदीयो का संगम होता है। और इस स्थल को तीर्थ राज की उपाधि भी प्राप्त है। इस स्थल की धार्मिक मान्यता है कि जब राक्षसो और देवताओ में अमृत के लिए लडाई हो रही थी तब भगवान विष्णु ने एक मोहिनी का रुप लिया और राक्षसो से अमृत को जब्त कर लिया भगवान विष्णु ने गरूड को अमृत पारित कर दिया तब राक्षसो और गरूड के संघर्स में किमती अमृत कीकुछ बुंदे इलाहाबाद नासिक हरिद्धार और उज्जैन में गिर गई तब से हर 12 वर्ष इन सभी स्थानो पर कुम्भ का आयोजन किया जाता

इलाहाबाद के सुंदर दृश्य
इलाहाबाद के सुंदर दृश्य
इलाहाबाद के धार्मिक स्थल – इलाहाबाद के तीर्थ स्थल

अक्षयवट

इलाहाबाद के तीर्थ स्थलो मेंअक्षयवट मुख्य है। त्रिवेणी संगम तट से थोडी दूरी पर किले के भीतर अक्षयवट है। पहले किले की पातालपुरी गुफा में एक सूखी डाल गाडकर उसमे कपडा लपेटा रखा जाता था और उसी को अक्षयवट कहकर दर्शन कराया जाता था। परंतु अब किले के यमुना किनारे वाले भाग में अक्षयवट का पता लग चुका है। इस अक्षयवट का दर्शन सप्ताह में दो दिन सबके लिए खुला रहता है। जिसके अमृत जल में श्रृद्धालु स्नान व अमृतपान करते है। इसके अलावा दो स्थानो हरिद्धार और प्रयाग में हर छ:वर्ष में अर्द्ध कुम्भ का भी आयोजन होता है जिसमें भारी संख्या में श्रृद्धालु भाग लेते है। यहा पर माष मेले का भी आयोजन होता है जोकि एक वार्षिक उत्सव है।

हनुमान जी का मंदिर

यह हनुमान मंदिर किले के पास स्थित है। यहां भूमी पर लेटी हुई हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है। वर्षा ऋतु में बाढ आने पर यह स्थान जलमग्न हो जाता है।

मनकामेश्वर मंदिर इलाहाबाद

किले से थोडी दूर पश्चिम मे मनकामेश्वर शिव मंदिर है। किले के यात्री नौका द्धारा ही यहा पहुचते है

नागवासुकि मंदिर इलाहाबाद

दारागंज मुहल्ले मे श्री बिंदुमाधव जी के दर्शन वहा से लगभग एक मील जाने पर बक्सी मुहल्ले मे गंगातट पर नागवासुकि का मंदिर है। नागपंचमी को यहा मेला लगता है।

इलाहाबाद के सुंदर दृश्य
इलाहाबाद के सुंदर दृश्य

बलदेव जी मंदिर

नागवासुकि से आे लगभग दो मील पश्चिम मे गंगा किनारे यह मंदिर स्थित है।

शिव कुटी

यह एक कोटि तीर्थ है। जिसे अब शिवकुटी कहते है। बलदेव जी से दो मील आगे गंगा तट पर यह तीर्थ स्थल स्थल है। यहां एक शिव मंदिर तथा धर्म शाला है। सावन के महिने मे यहा मेला भी लगता है।

भारद्वाज आश्रम इलाहाबाद

नगर के करनल गंज इलाके मै यह स्थान| है। यहां मंदिर मे भारद्वाजेश्वर शिवलिगं है। एक मंदिर में हजारो फनो वाली शेषनाग जी की मूर्ति देखने योग्य है।

अलोपीदेवी

दारागंज से कुछ ही दूरी पर अलोपीदेवी का मंदिर है। यहां प्राय मेले लगते रहते है। अलोपीदेवी वस्तुत: ललितादेवी है।

बिंदुमाधव

संगम से सोमेश्वरनाथ का दर्शन करके गंगा पार हो जाने पर मुंशी के बाग में बिंदुमाधव का दर्शन होता है।

झूसी

बिंदुमाधव से कुछ दूरी पर झूसी नामक स्थान है। इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यह पुरूरवा की राजधानी थी । त्रिवेणी संगम के सामने गंगा पार एक पुराना किला है जो अब एक टीला ही रह गया है। उस टीले पर समुन्द्र कूप नामक एक कुआं है। जो बडा पवित्र माना गया है। वहा से उत्तर की ओर चलने पर पुरानी झूसी झूसी के मध्य में हसकूप नामक कुआं है। इसके पास हंसतीर्थ नामक कुंडलिनी योग के आधार पर बना मंदिर है। जिसके पूर्व द्वार के पास संध्यावट तथा संकष्ठहरमाधव की भग्न मूर्तियां है। आगे नई झूसी के झूसी में तिवारी का शिवालय अच्छा मंदिर है। यही पर संकीर्तन भवन है जहां नित्य कथाकीर्तन होते रहते है।

ललिता देवी

तंत्र चूडामणि के अनुसार – प्रयाग में 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है।यहां सती की हस्तांगुली गिरी थी । यहां की शक्ति ललिता देवी है। तथा भव नामक भैरव है। प्रयाग में ललिता देवी की दो मूर्तियां है। एक मूर्ति अक्षयवट के पास है तथा दूसरी मीरपुर की ओर है। किले में ललिता देवी के समीप ही ललितेश्वर शिव है। ललिता देवी का ठीक स्थान जो शक्ति पीठ है। वो अलोपीदेवी ही है।

इलाहाबाद के आस पास के धार्मिक तीर्थ स्थल

अभी तक हमने इलाहाबाद के प्रमुख तीर्थ स्थलो के बारे में जाना जैसा कि हम बता चूके है इलाहाबाद का प्राचीन नाम प्रयाग था और प्रयाग हिन्दुओ का प्रमुख तीर्थ है इस तीर्थ के आसपास भी अनेक तीर्थ व धार्मिक स्थल है। प्रयाग तीर्थ ( इलाहाबाद ) की यात्रा के दौरान अगर उसके आस पास के धार्मिक स्थलो की यात्रा न कि जाये तो प्रयाग तीर्थ की यात्रा अधूरी सी लगती है आगे हम उनही प्रमुख स्थलो के बारे में जानेगें

हरिद्वार तीर्थ यात्रा का विवरण

शाकुम्भरी देवी सहारनपुर की यात्रा

दुर्वासा आश्रम

त्रिवेणी संगम पर गंगा नदी को पार करके संगम से लगभग 6 मील की दूरी पर काकरा गांव है। यहा पर दुर्वासा मुनि का मंदिर और आश्रम है। जिसके दर्शन शुभ माने जाते है।

ऐन्द्रीदेवी

दुर्वासा आश्रम से लगभग आधा मील की दूरी पर ऐन्द्रीदेवी का मंदिर है। इन्हे आनंदीदेवी के नाम से भी पुकारा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि दुर्वासा मुनि के तप की राक्षसो से रक्षा करने के लिए ऐन्द्रोदेवी का आवाहन तथा स्थापन महार्षि भारद्धाज ने किया था।

लाक्षागृह

इसका वर्तमान नाम लच्छागिर है। यहीं दुर्योधन ने पांडवो को धोखे जला देने के लिए लाक्षागृह का निर्माण कराया था। यह स्थान गंगा किनारे के मार्ग से दुर्वासा आश्रम से 18 मील की दूरी पर है।

सीतामढ़ी

महार्षि वाल्मीकि का आश्रम देश में कई स्थानो पर बताया जाता है। परंतु बाल्मीकि रामायण देखने से लगता है कि वह गंगा किनारे था और कही चित्रकूट की दिशा में था जहा लक्ष्मणजी माता सीता को छोड आए थे और जहा लव कुश का जन्म हुआ था। सीतामढी को ही बाल्मिकि आश्रम कहा जाता है।

ऋषियन

इस स्थान का नाम मऊछीबो है। भगवान श्रीराम ने महर्षि भारद्धाज से मार्गदर्शन के लिए जो चार ब्रह्मचारी साथ मांगे थे उन्हें इसी स्थान से विदा किया गया था।

राजापुर

इलाहाबाद जंक्शन से इस स्थान की दूरी 24 मील है। इलाहाबाद से यहा आने के लिए सिधी बसे चलती है। गोस्वामी तुलसीदास जी की यह एक मत से जन्मभूमि और दूसरे मत से साधना भूमी है। यहा उनके हाथ की लिखी हुई श्री रामचरितमानस के अयोध्या कांड की प्रति सुरक्षित है। इसी जगह तुलसी स्मारक की योजना की जा रही है।

श्रंगवेरपुर

इलाहाबाद से इस स्थान की दूरी 25 किलोमीटर है। इलाहाबाद से यहा सिधी बसे आती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने वनवास के समय गुह का आग्रह मानकर यहा रात्री विश्राम किया था । यहां श्रंगी ऋषि तथा उनकी पत्नी दशरथ-सुता शांता देवी का मंदिर है। यहां से कुछ दूरी पर रामचौरा गांव है जहां गंगा किनारे एक मंदिर में भगवान श्रीरामजी के चरण चिन्ह है।

इलाहाबाद पर्यटन की दृष्टि से – इलाहाबाद के दर्शनीय स्थल – इलाहाबाद के पर्यटन स्थलो की जानकारी हिन्दी में

अभी तक के अपने लेख में हमने इलाहाबाद को तीर्थ यात्रा की दृष्टि से जाना और वहा के धार्मिक तीर्थ स्थलो के बारे में विस्तार से जाना और इलाहाबाद जोकि प्रयाग तीर्थ के रूप में जाना जाता है उसके तीर्थ स्थलो के महत्व को समझा। इस शहर का जितना तीर्थ व धार्मिक महत्व तो बहुत अधिक है ही परंन्तु पर्यटन की दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व है आगे के अपने लेख में हम यहा के पर्यटन के महत्व को और पर्यटन स्थलो के बारे में जानेगें

इलाहाबाद के सुंदर दृश्य
इलाहाबाद के सुंदर दृश्य

इलाहाबाद का किला

यह किला रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किलोमीटर संगम घाट पर स्थित है। इस प्राचीन किले का निर्माण सम्राट अशोक ने तथा जीर्णोदार औरंगजेब ने कराया था। यह किला अब सेना के अधिकार में है जहा अनुमति पत्र लेकर जाया जाता है।

खुसरो बाग

इस बाग का निर्माण जहांगीर के बडे पुत्र खुसरो ने करवाया था । इसमे खुसरो और उसकी बहन सुल्तानुनिशा की कब्रे है दोनो की कब्रे काव्य और कला के सुंदर नमुने है।

मिन्टो पार्क

इस पार्क का नया नाम मदन मोहन मालवीय पार्क है। यह सरस्वती घाट के निकट स्थित है। सन 1910 विक्टोरिया का घोषणा पत्र जिसमें भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की समाप्ति कही गई थी इसी स्थान पर लॉर्ड मिंटो द्वारा पढ़कर सुनाया गया था।

सरस्वती घाट

मिंटो पार्क के पास ही सरस्वती घाट है। जो एक रमणीक पिकनिक स्थल है। यहां एक बोट क्लब भी है जहा वाटर स्पोर्टस का प्रशिक्षण दिया जाता है। तथा यहा तैराकी प्रतियोगिताए भी होती है।

आजाद पार्क

पहले इस पार्क को विकटोरिया पार्क के नाम से जाना जाता था किन्तु अब इसका नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद पार्क कर दिया गया है। चंद्रशशेखर जहा शहीद हुए थे वहा एक स्मारक बना हुआ है। इसके अलावा यहा ब्रिटिशकालीन लाईब्रेरी और आधुनिक नर्सरी यहा के मुख्य आकर्षण है।

म्यूजियम

यह म्यूजियम आजाद पार्क के पास ही कमला नेहरू मार्ग पर स्थित है । यहा पर 13 वी सदी की वस्तुए संग्रहित करके करके रखी गई है। इस म्यूजियम मे मिटटी व पत्थर की मूर्तिबनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है यहा समय समय पर सेमिनार व समारोह आयोजित होते रहते है।

संगीत समिति

म्यूजियम के पास ही संगीत समिति है यहा संगीत नृत्य की उच्च शिक्षा दी जाती है तथा समारोह भी आयोजित किये जाते है।

आनंद भवन और स्वराज भवन

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नहरु का यह पैतृक निवास आनंद भवन वर्तमान में एक स्मारक है और स्वराज भवन कांग्रेस पार्टी के अधिकार में है।आनंद भवन में नहरु परिवार की यादे धरोहर के रूप में सुरक्षित है।

विश्वविद्यालय

आनंद भवन से एक किलोमीटर की दूरी पर सन 1887 मे स्थापित विश्वविद्यालय है। 1921 मे इसमे आवासीय व्यवस्था की गई थी। इसका सीनेट हॉल वास्तुकला का अनमोल नमुना ।है

नहेरु गार्डन

शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर मैकफर्सन लेक के पास यह एक खुबसूरत पिकनिक स्थल है । फव्वारे झरने रेस्तरां इस स्थान की खुबसूरती में चारचांद लगाते है। यहा के खुशबूदार हरे भरे बागीचे सैलानियो का मन मोह लेते हे।

कैसे जाएं

इलाहाबाद रेल व सडक मार्ग द्वारा देश के सभी प्रमुख शहरो से जुडा है अत:यहा आसानी से पहुचा जा सकता है।

हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—

Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

Leave a Reply