इरपु जलप्रपात दक्षिण – पश्चिम कर्नाटक में नागरहोल नेशनल पार्क के निकट ब्रह्मागिरी श्रेणी के तल पर स्थित है। यह केरल में तोलपटटी अभारण्य से सटा हुआ है और बैंगलोर से 222 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में है। इरपु को ब्रह्मागिरी के द्धार के रूप में जाना जाता है। यहा के पहाड दुर्लभ आर्किड फूलो खूबसूरत तितलियो और पक्षियो तथा जडी बूटियो से भरे हुए है। इसे देखने के लिए हर साल काफी तादाद में देश विदेश से सैलानी यहा आते है। अधिकांश जलप्रपातो की तरह इरपु जलप्रपात का सौंदर्य भी वर्षा के बाद निखर जाता है। जब वर्षा वन अत्यंत हरे भरे होते है। तब 60 मीटर की ऊचांई से गिरता इसका पानी प्रचंड रूप धारण कर लेता है। ऐसे में इसकी बौछारे सैलानियो को खूब भाती है। अगर आप इरपु जलप्रपात जाये और उसके आस पास स्थित सुंदर दर्शनीय स्थलो पर ना जाये तो यात्रा का मजा अधूरा सा रह जाता है आगे इस पोस्ट में हम इरपु जलप्रपात के आस पास के दर्शनीय स्थलो के बारे में जानेगें और उनकी सैर करेगें।
ब्रह्मागिरी अभारण्य इरपू जलप्रपात से 5 किलोमीटर दूर कुटटा से मुकुटटा तक फैला हुआ है। इस प्राकृतिक स्थल में मुकुटटा के निचले वर्षा वनो से लेकर श्रीमंगला वन्य जीवन श्रृंखला में अधिक ऊचांई वाले शोला घातभूमि तक है । यह अभ्यारण्य केरल में जरालय वन्य अभ्यारण्य से सटा हुआ है । बीच बीच में काफी नागान वाला एक घना वनाच्छादित गलियारा इसे वायनाड और नागरहोल से जोडता है। ब्रह्मागिरी पक्षियो को देखने के लिए बेहद उपयुक्त जगह है। इस अभ्यारण्य में प्रवेश के लिए वन विभाग की अनुमति लेनी पडती है।
इरपु जलप्रपात के सुंदर दृश्य
ब्रह्मागिरी चोटी
ब्रह्मागिरी अभ्यारण्य के अंदर आप नारिमलै कैंप हाऊस में रात को ठहर भी सकते है। इस कैंप से 4 किलोमीटर ट्रेकिंग करके आप यहा की सबसे ऊंची चोटी ब्रह्मागिरी चोटी तक पहुंच सकते है। यह चोटी समुंद्र तल से 5709 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहा से आप प्राकृति के खुबसूरत नजारे जी भरकर देख सकते है।
इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि लंका से लौटते हुए विजयी भाई राम और लक्ष्मण ब्रह्मागिरी पहाडो के ऊपर से केरल से कोडगु जा रहे थै। तब लक्ष्मण को अचानक क्रोध आया और उन्होने अपने बडे भाई को तीर कमान लौटा दिए। पर जिस समय उन्होने कोडवा भूमि पर कदम रखा उनका क्रोध गायब हो गया और वे पछतावा करने लगे। तब श्री राम ने उन्हें शांतिपूर्वक समझाया कि केरल की धरती आवेगो को उत्तेजित करती है। पश्चाताप में जल रहे लक्ष्मण ने ब्रह्मागिरी की धरती में एक तीर मारा और उसकी ज्वाला में खुद को जला देना चाहा। तब भगवान श्री राम ने लक्ष्मण तीर्थ उत्पन्न किया। आग को बुझाया और उसके पानी को व्यक्ति के पाप समाहित कर लेने की शक्ति प्रदान की। कुछ लोगो का यह भी कहना है। कि पश्चाताप में बहे लक्ष्मण के आंसुओ से लक्ष्मण तीर्थ बना है।
ईश्वर मंदिर
इस मंदिर को रामेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान राम ने भगवान शिव के लिंग को स्थापित किया था। इसकी लोकप्रियता शिवराज्त्रि के दौरान आकाश छूने लगती है। क्योकि माना जाता है कि इसे पापो से मुक्त करने की शक्ति प्राप्त है। लक्ष्मण तीर्थ में डुबकी लगाने से पहले यहा अपनी श्रृदद्धा प्रकट करना एक रिवाज है।
मुनिकल
यह स्थान इरपु जलप्रपात से 12 किलोमीटर दूर है। यहा प्राचीन गुफाए है। जिसकी वजह से इसे मुनिकल की गुफाओ के नाम से जाना जाता है। यह गुफाए इतनी शांत है कि यहा से कोई ध्वनि बाहर नही जाती और सबसे बडी बात यह है कि बाहर की भी कोई ध्वनि यहा प्रवेश नही करती । इसी वजह से मुनिकल ध्यान के लाए संतो की सर्वप्रथम पसंद रहा है। इसिलिए इसे मुनिकल अर्थात संतो की चटटान के नाम से जाना जाता है।
इरपु जलप्रपात कैसे पहुंचे
मैसूर हाइवे बाईपास से रंगनायिटटू होते हुए स्टेट हाइवे 88 के द्वारा हुंसुर पहुंचे। हुंसुर बस सकटैंड के पास से हेज्गडाडेवान कोटे की ओर बाएं मुडें। 8 किलोमिटर दूर जाने के बाद आप नेल्लोर पाला जंक्शन पहुंचेगें यहा से नागरहोल नेशनल पार्क के वीरनहोसाहल्ली द्वार की ओर दाहिने मुडे यहा से 9 किलोमीटर दूरी तय करने के बाद मुस्काल गेट है कुटटा की ओर दाहिने मुडे और फिर सीधे इरपु जलप्रप्त पहुंचे।