आगरा जैन मंदिर – आगरा के टॉप 3 जैन मंदिर की जानकारी इन हिन्दी
आगरा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है। मुख्य रूप से यह दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के लिए जाना जाता है। आगरा धर्म का भी आतिशय क्षेत्र रहा है। मुगलकाल से पूर्व और मुगलकाल में भी यहां जैनों का प्रभाव रहा है। अकबर के दरबारी रत्नों मे एक जैन समाज के ही थे। आगरा में अनेक जैन मंदिर है। इस समय आगरा जैन मंदिर और धर्मशालाओं की कुल संख्या 36 है। पंडित भगवतीदास ने अर्गलपुर जैन वन्दना में जिन 48 जैन मंदिरों व चैत्यालयों का उल्लेख किया है। उसमें से कुछ रहे नहीं कुछ नये बन गये है। किंतु इन आगरा के जैन मंदिरों में से यहां आगरा के तीन प्रसिद्ध जैन मंदिरों का उल्लेख हम अपने इस लेख में करेगें। जो मूर्तियों की प्राचीनता और अतिशय के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है। इनमें से एक है ताजगंज के मंदिर की चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा। दूसरी शीतलनाथ भगवान की भुवनमोहन मूर्ति है। और तीसरा मोती कटरा का पंचायती बड़ा मंदिर है।
आगरा जैन मंदिर – आगरा के टॉप 3 जैन मंदिर

श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर ताजगंज आगरा :—–
पं. भगवतीदास ने सुल्तानपुर की जिस चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा का उल्लेख किया है। विश्वास किया जाता है कि वह प्रतिमा ताजगंज आगरा जैन मंदिर में विराजमान है। यह प्रतिमा यहाँ मूलनायक है। पालिशदार कृष्ण पाषाण की इस प्रतिमा की आवगाहना सवा दो फुट है। यह पद्यासन मुद्रा में है। इसकी प्रतिष्ठिता संवत् 1677 फागुन सुदी 3 बुधवार को की गई थी। पं. बनारसीदास, पं. भूधरदास आदि प्रतिदिन इसकी पूजा उपासना करते थे। उस काल में इसकी बड़ी ख्याति थी और लोग मनोकामना पूर्ति के लिए इसके दर्शन को आते थे।
कविवर बनारसीदास ने कई स्थानों पर इस प्रतिमा के महात्म्य का वर्णन किया है। उन्होंने चिन्तामणि पार्श्वनाथ की एक स्तृति की भी रचना की हैं। जो इस प्रकार है:–
चिन्तामणि स्वामी सांचा साहिब मेरा।
शोक हरै तिहुँलोक को उठ लीजउ नाम सवेरा।।
विम्ब विराजत आगरे धिर थान थयो शुभ बेरा।
ध्यान धरै विनती करै बनारसि बन्दा तेरा।।
इससे ज्ञात होता है कि बनारसीदास जैसे अध्यात्म रसिक व्यक्ति भी जिस प्रतिमा को तीनों लोको का शोक हरने वाली बताते है वह कितनी चमत्कार पूर्ण होगी।

कविवर भूधरदास ने भी इस चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा की एक स्तुति रची है। उसमें वे कहते है—-
सुख करता जिनराज आजलो हिय न आये।
अब मुझ माथे भाग चरन चिन्तामणि पाये।।
श्रीपसिदेव के पदकमल हिये धरत विनसै विघन।
छुटै अनादि बन्धन बेधे कौन कथा विनसै विघन।।
वस्तुतः यह प्रतिमा इतनी मनोरम है कि इसके दर्शन करने मात्र से मन में भक्ति की तरंगे आन्दोलित होने लगती है।
श्री शीतलनाथ जैन मंदिर रोशन मुहल्ला आगरा:——
इस आगरा जैन मंदिर में भगवान शीतलनाथ स्वामी की यह प्रतिमा जामा मस्जिद के पास रोशन मुहल्ले के जैन मंदिर में विराजमान है। यह कृष्ण वर्ण है। और लगभग साढ़े चार फुट आवगाहना की पद्यासन मुद्रा में आसीन है। ऐसी भुवनमोहन रूप वाली प्रतिमा अन्यत्र मिलना कठिन है। इसका सौंदर्य अनिन्द्य है। बीतरागता प्रभावोत्पादक है। इसके अतिशयों की अनेक किवंदतियां बहुप्रचलित है। जैन ही नहीं अन्य समुदाय के लोग भी मनोकामना लेकर इसके दर्शन को आते है।

अनेक व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जिनका प्रातःकाल छः बजे भगवान के अभिषेक के समय उनकी मोहनी छवि के दर्शन करने और शाम को आरती कर के दीपक चढाने का नियम है। अष्टमी, चतुर्दशी और पर्व के दिनों में मंदिर में प्रातः और संध्या के समय दर्शनार्थियों की भारी भीड़ रहती है।
इस मंदिर में दिगंबर और श्वेतांबर दोनों ही सम्प्रदायों की प्रतिमाएं विराजमान है। दिगंबर प्रतिमा तो केवल एक है। शीतलनाथ स्वामी की। किंतु श्वेताम्बर प्रतिमाएं और वेदियाँ कई है। शीतलनाथ भगवान का पूजा प्रक्षाल दोनों ही सम्प्रदाय वाले अपनी ही आम्नाय के अनुसार करते है।

शीतलनाथ जी के मंदिर में गर्भगृह के दांयी ओर दीवार पर लाल पाषाण का 2×1 फुट का एक शिलालेख श्वेतांबरो ने कुछ समय पहले लगा दिया है। जिसमें सात श्लोक संस्कृत के है। तथा हिन्दी के दो सवैया है। सवैया की प्रथम दो पंक्तियाँ इस प्रकार है —-
प्रथम बसन्त सिरी सीतल जु देवहुकी प्रतिमा नगनगुन दस दोय भरी है।
आगरे सुजन सांचे अठारह से दस आठे माह सुदी दस च्यार वुध पुष धरी है।।
यह शिलालेख कुल 18 पंक्तियों में है। इसके आगे चार यन्त्र बने हुए है।
पंचायती बड़ा दिगंबर जैन मंदिर मोतीकटरा आगरा:——
यह आगरा का बड़ा मंदिर कहलाता है। यह मंदिर जैसा ऊपर बना है इसका भोंयरा (तलघर) भी हूबहू वैसा ही बना हुआ है। यहां तक की वेदी भी वैसी ही बनी है। संकट काल में प्रतिमाएं नीचे पहुंचा दी जाती थी। इसमें मूल वेदी भगवान सम्भवनाथ की है। गंधकुटी में कमलासन विराजमान सम्भवनाथ भगवान की प्रतिमा श्वेत पाषाण की एक फुट आवगाहना की है। भगवान पद्मासन में विराजमान है। नीचे घोड़े का लाछन है। मूर्ति लेख के अनुसार इस प्रतिमा की प्रतिष्ठिता संवत् 1147 माघ मास की शुक्ल पंचमी गुरुवार को हुई थी। इस प्रतिमा में बडे अतिशय है। ऐसा माना जाता है कि देव लोग रात्रि में इसकी पूजा के लिए आते है।


इसके अलावा मंदिर मे बांयी ओर की पहली वेदी में भगवान पार्श्वनाथ की सवा तीन फुट आवगाहना पद्मासन मुद्रा, श्वेत पाषाण की फणमंडित प्रतिमा है। यह संवत् 1272 माघ सुदी 5 को प्रतिष्ठित हुई थी। दायें हाथ की वेदी में मटमैले पाषाण की दो भव्य चौबीसी है। एक शिलाखंड में बीच में एक भव्य तोरण के नीचे पार्श्वनाथ मूर्ति है। इधर उधर दो दो पंक्तियों में दस दस प्रतिमाएं है। इनके ऊपर एक एक प्रतिमा विराजमान है। ये चौबीसी संवत् 1272 माघ सुदी 5 को प्रतिष्ठित हुई थी। यहां का हस्तलिखित शास्त्र भंडार अत्यंत समृद्ध है। इसमें लगभग दो हजार हस्तलिखित ग्रंथ है। यहाँ पाषाण और धातु की मूर्तियों की संख्या लगभग छः सौ है। आगरा जैन मंदिर समूह मे काफी प्रसिद्ध मंदिर है।
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