हॉकी जगत में अशोक कुमार ध्यानचंद को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे हॉकी जगत के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के पुत्र है। अशोक कुमार ध्यानचंद का जन्म 1 जून 1958 को उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में हुआ था। पिता ही नहीं उनके चाचा रूप सिंह भी हॉकी की दुनिया के नामचीन खिलाड़ी हैं। और इसी बात का सीधा फायदा अशोक कुमार को मिला जिसके फलस्वरूप उन्होंने छः साल की उम्र से ही हॉकी स्टिक पकड़ ली, और अपने पिता और चाचा के पद चिन्हों पर चलते हुए उन्होंने सत्तर के दशक में अपनी हॉकी प्रतिभा से खेल जगत अपना अलग स्थान बनाया। और उन्होंने गति, गेंद पर नियंत्रण और खेल चातुर्य से बेहतरीन खिलाड़ी की छाप छोड़ी।
मेजर ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार ध्यानचंद का जीवन परिचय
अशोक कुमार का हॉकी की ओर झुकाव बचपन से ही होने के बावजूद भी मेजर ध्यानचंद पुत्र के हॉकी खेलने व कैरियर के रूप में अपनाने के पक्ष में नहीं थे। उनके अनुसार इससे अधिक लाभ नहीं मिल सकते थे परंतु अशोक ने अपने निर्णय को नहीं बदला। पिता मेजर ध्यानचंद जी को अशोक के हॉकी खेलने का पता न लगे इसलिए शाम को ड्रेस, हॉकी व अन्य वस्तुएं अशोक घर लाने के स्थान पर दूसरी जगह छिपाकर आते थे।
वे स्कूल से क्लब और फिर उच्च स्तर पर अपने खेल से बड़े खिलाडिय़ों को आकर्षित करते रहे, और इस तरह वे हॉकी के खेल में एक के बाद एक सीढियां चढ़नें लगे। इतनी कम आयु में अशोक का गेंद पर नियंत्रण और खेल की कला सराहनीय थी। हॉकी विशेषज्ञ उनके खेल में उनके महान पिता मेजर ध्यानचंद की छवि देखने लगे। एक जल्दबाजी भरा कदम होने के बावजूद, अशोक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रथम विश्वकप में भाग लिया जो उनके हॉकी जीवन की पहली बड़ी प्रतियोगिता थी। इस अवसर पर भारत तीसरे स्थान पर रहा। अशोक कुमार के बेहतरीन प्रदर्शन से लगातार विश्वकप टूर्नामेंट में उन्हें खेलने का मौका मिला। 1975 में क्वालालंपुर मलेशिया में आयोजित विश्वकप उनके हॉकी जीवन में सर्वाधिक उल्लेखनीय रहा। प्रतियोगिता के इतिहास में पहली बार भारत ने यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त किया। संयोगवश 1975 के इस टूर्नामेंट के बाद भारत जीतना तो दूर विश्वकप के फाइनल मे भी नहीं पहुंचा।
अशोक कुमार ध्यानचंद
सन् 2001 मे क्वालीफाई स्पर्द्धा में भारत पांचवें स्थान पर रहा। कुआलालंपुर में भारत ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को पराजित किया। इस मुकाबले में वह यादगार क्षण था। जब सुरजीत सिंह के मिले पास पर अशोक कुमार ने विजयी गोल किया, इसलिए भी यह उपलब्धि महत्वपूर्ण है। पाकिस्तानी टीम ने इस जीत का असफल विरोध किया क्योंकि मलेशिया के अम्पायर विश्वनाथन को भारत के पक्ष में फैसला देने में कुछ समय लगा था। किंतु बाद में टी. वी. रिप्ले में यह पक्का हो गया था। भारतीय टीम ट्राफी के साथ भारत लौटी तो समस्त देश में उत्साह व खुशी की लहर दौड गई। भारतीय हॉकी में ऐसे अवसर कम आए। असल में इस समय भारत हॉकी जगत में पहले वाली छवि प्राप्त करने के लिए जूझ रहा था।
वर्ल्डकप के अतिरिक्त अशोक कुमार ने ओलंपिक खेलों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। म्यूनिख जर्मनी में आयोजित ओलंपिक खेल उनका इस प्रकार का पहला अनुभव था। हरमीक सिंह की कप्तानी में सेमीफाइनल में पहुंचने से पूर्व भारत ने ग्रेट ब्रिटेन और आस्ट्रिया को हराया था। जबकि हॉलैंड व पोलैंड से मैच अनिर्णीत था। परंतु भारत पाकिस्तान मुकाबले में भारत 0-2 से हार गया। इसके बाद तीसरे स्थान के लिए हुए मैच में भारत ने नीदरलैंड को हराकर कांस्य पदक जीता।
मैक्सिको में भी इससे पहले भारत की यही स्थिति रही। अशोक का मांट्रियल ओलंपिक के लिए चार साल बाद भारतीय टीम में फिर चयन हुआ। जो टीम म्यूनिख में तीसरे स्थान पर थी वह छठे स्थान पर चली गईं। भारत के लिए यह अवसर कडवा साबित हुआ। अशोक कुमार ने ओलंपिक खेलों के अलावा एशियाई खेलों में भी देश का प्रतिनिधित्व किया। अशोक ने तेहरान 1974 और बैंकॉक 1978 में भाग लिया। इन दोनों प्रतियोगिताओं में भारत ने रजत पदक जीता।
अशोक दो तीन साल और भारत की ओर से खेलने में सक्षम था, किंतु राजनीति गुटबंदी, चयन में धांधली के कारण अशोक कुमार ध्यानचंद ने हॉकी से संयास ले लिया। खिलाडिय़ों में टीम भावना के अभाव जैसी भारतीय हॉकी की हमेशा की कमियों से अशोक निराश हो गए थे। इसके अलावा उन्होंने चयनकर्ता की भी भूमिका निभाई पर अपने सुझावों के प्रति चयनकर्ताओं की बेरुखी देखकर अंततः इस्तीफा दे दिया। खेलों से रिटायरमेंट के बाद अशोक कुमार इंडियन एयरलाइंस हॉकी टीम व एयर इंडिया हॉकी टीम के मैनेजर रहे।
खेल जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धियां
• सन् 1974 तथा 1978 के क्रमशः तेहरान व बैंकॉक एशियाई खेलों मे अशोक कुमार ध्यानचंद ने भारतीय टीम की तरफ से भाग लिया जिसमें टीम ने रजत पदक जीते।
• 1972 तथा 1976 मे म्यूनिख व मांट्रियल ओलंपिक में भी उन्होंने भाग लिया और टीम ने दोनों बार कांस्य पदक जीता।
• अशोक कुमार ने 1974 मे आल एशियन स्टार टीम के लिए खेला, फिर वर्ल्ड एकादश टीम के लिए चुने गए।
• 1971 व 1973 मे उन्होंने बार्सीलोना व एम्सटरडम में वर्ल्डकप में खेला जिसमें टीम ने कांस्य व रजत पदक जीते।
• 1975 में भारतीय टीम की ओर से अंतिम विजेता गोल लगाकर कुआलालम्पुर में अशोक कुमार ध्यानचंद ने भारत को वर्ल्डकप में स्वर्ण पदक दिलाया।
• 1974 में अशोक कुमार को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।