ब्रिटिश खगोलविद सर विलियम हर्शेल ने 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक प्रयोग किया, जिसे अवरक्त विकिरण (infra red radiation) की खोज का श्रेय जाता है। हर्शेल ने स्पेक्ट्रोस्कोप की मदद से पहले सूर्य के श्वेत प्रकाश की उसके घटक रंगो में तोड़कर स्पेक्ट्रम प्राप्त किया और फिर थर्मामीटर जैसे उपकरणों को इन स्पेक्ट्रमों के साथ विभिन्न जगहों पर रखा। इन उपकरणों ने बताया कि सूर्य से एक इतनी अधिक तरंग दैध्य पर ऊर्जा आती है, जिसे मानवीय दृष्टि द्वारा नही पहचाना जा सकता और यह ऊर्जा भी प्रकाश की तरह ही इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम का ही अंग होती है।
सन् 1920 के दशक में अवरक्त विकिरण की खोज का काम अमेरिकी खगोलविद्डब्ल्यू, डब्ल्यू. कोब्लेट्ज, एडीसन पेट्ट तथा सेठ बी. निकल्सन ने गंभीरतापूर्वक प्रारंभ किया। इन अनुसंधानकर्ताओं ने थर्मोकपुल्स का इस्तेमाल करके यह जाना
कि अपेक्षाकृत अधिक लाल तारों से अधिक अवरक्त विकिरण होता है। विकिरण की वर्णक्रम संबंधी सीमा को ये वैज्ञानिक ठीक से सुनिश्चित नहीं कर पाए।
सन् 1960 के दशक मे आधुनिक अवरक्त खगोलविज्ञान का विकास अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंचा और उत्तरी गोलार्ध में आकाश का संपूर्ण सर्वेक्षण सन् 1965 में सम्पन्न हुआ जिसे 2.2 माइक्रोन तरंग दैर्ध्य के अंतर्गत किया गया था। इसके
परिणामस्वरूप अवरक्त विकिरण के हजारों स्रोतों की खोज हो गई। इस सर्वेक्षण द्वारा पता चला कि ठण्डे तारों से अधिकांश अवरक्त विकिरण होता है। इस सर्वेक्षण का श्रेय जी. न्यूरोबोर तथा आर. वी. लीटॉन को जाता है।
अवरक्त विकिरण क्या है?
अंतरिक्ष-किरणें, गामा किरणें, एक्सरे किरणें, पराबैंगनी विकिरण, दृश्य प्रकाश, अवरक्त विकिरण, सूक्ष्म तरगें और रेडियो तरंगें क्रमशः विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम बनाते हैं, जिनकी तरंग दै्ध्य बढ़ते क्रम में होती है। अवरक्त किरणें प्रकृति से विद्युत चुम्बकीय ही होती हैं। इनकी गति सरल रेखा में होती है। यह ठोस, द्रव, गैस,. हवा आदि के माध्यमों और निर्वात (vacuum) में संचरण करती हैं। अवरक्त विकिरण की आवृत्ति दस लाख बैंड और पचास करोड़ मेगासाइकिल के सन्निकट होती है। अवरक्त विकिरण अपने गमन पथ में किसी भी पदार्थ द्वारा अवशोपषित होने पर उसमे ऊष्मा उत्पन्न कर देता है। अवरक्त विकिरण लैंस या दर्पण की सहायता से फोकस किया जा सकता है। रेडियो तरंगों की तरह भवरवंत विकिरण अपारदर्शी पदार्थों के पार किया जा सकता है। प्रिज्म की सहायता से अवरक्त विकिरण परिपेक्षित भी किया जा सकता है।
महान् वैज्ञानिक सर न्यूटन ने सन् 1666 में प्रिज्म की सहायता से श्वेत प्रकाश को देश्य स्पेक्ट्रम के अनेक रंगों में विभक्त करने में सफलता प्राप्त की। यह रंग बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल होता है। हिन्दी में इन रंगो को ‘चै जानहपीनाला” से प्रदर्शित किया जाता है। इन्हीं दिनों यह भी पता चला स्पेक्ट्रम के लाल भाग के पार भी कुछ विकिरण है। लगभग एक शताब्दी बाद सन् 1752 में वैज्ञानिक थांमस पैलविले सोडियम ज्वाला में अवरक्त उत्सर्जन प्राप्त करने में सफल हुए। परंतु आधुनिक अवरक्त स्पेक्ट्रमिकी का आधार सन् 1814 में फ्राउनहोफर द्वारा अवरक्त स्पेक्ट्रम में सात सौ से अधिक गहरी अवशोषण रेखाओं की खोज पर निर्भर है। सन् 1835 में टाल्वोट, सन् 1905 में कौबोलेडज और इसके बाद किरखोफ, बुंसनस टीण्डाला, लैग्ले, रूबेस, निकोल्स बुड, रेंडाल और अन्य वैज्ञानिकों ने इस संबंध में खोज आगे बढ़ाई।
अवरक्त विकिरण के स्रोत
प्राकृतिक स्रोत : प्रकृति में अवरक्त विकिरण के अनेक स्रोत हैं। मानव का इन स्रोतों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। प्राकृतिक स्रोतों को तीन भागों में विभाजित किया
(!) पार्थिव स्रोत
(2) वायुमण्डलीय स्रोत
(3) खगोलीय स्रोत
पार्थिव स्रोत पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्राकृतिक स्रोत होते हैं। प्रत्येक से अधिक ताप वाला पदार्थ अवरक्त ऊर्जा उत्सर्जित करता है। सभी वृक्ष, चट्टाने, झाडियां, रेल, चुना, पानी और अन्य पदार्थ अवरक्त विकिरण के स्रोत हैं। इन वस्तुओं से
निकलने वाले विकिरण की स्पेक्ट्रमी विशेषता उनके ताप और सतह को उत्सर्जनशीलता के साथ-साथ परावर्तकता पर निर्भर करती है।

वायु मण्डल स्रोत धूल-कण, जल बिन्दु, पृथ्वी के वायुमंडल में पायी जाने वाली गैसों के अणु, बादल, धुव्रीय ज्योति आदि अवरक्त विकिरण के द्वितीयक स्रोत हैं। यह सब पार्थिव और खगोलीय स्रोतों से इन्हें प्रकाशित करने वाले प्राथमिक विकिरण को प्रकीर्णित, परावर्तित और अवशोषित तथा पुनः उत्सर्जित करते हैं।
खगोलीय स्रोत प्रकृति का तृतीय विकिरण स्रोत है। यह मुख्य रूप से सूर्य, चंद्र, तारे, ग्रह और नीहारिकायें होती हैं।
कृत्रिम स्रोत
अवरक्त विकिरण के कृत्रिम स्रोत में गैस विसर्जन नलिकाएं,आर्क फ्लैश लैम्प, संस्फुर और कृत्रिम कृष्णिका प्रमुख हैं।
अवरक्त स्पेक्ट्रोमिकी
आधुनिक विज्ञान में अवरक्त स्पेक्ट्रोमिकी एक महत्वपूर्ण तथा उच्च दक्षता युक्त तकनीक है। विभिन्न अणुओं का अवरक्त अवशोषण स्पेक्ट्रम विशिष्टता युक्त होता है, जिनमें अनेक व्यक्तिगत रेखाएं होती हैं जो कि कम्पंन घृर्णन अनुनाद व
आवृत्ति से संबंधित होती हैं। कार्बनिक रसायन में प्रयुक्त बहुयौगिक अणुओं का अवरक्त स्पेक्ट्रम व्यक्तिगत यौगिक के स्पेक्ट्रमों का योग होता हैं। अतएव यौगिको के अवरक्त स्पेक्ट्रमों की संदर्भ सूची तैयार की जा सकती है, जिससे सम्मिश्र कार्बनिक पदार्थों का विश्लेषण किया जा सकता है।
प्रारंभ में अवरक्त स्पेक्ट्रम में खनिज लवण का उपयोग होता था तथा पोटेशियम क्लोराइड प्रयुक्त होता था। अवरक्त स्पेक्ट्रम गेल्वानोमापी का उपयोग कर अंकित किया जाता था। इस प्रकार के प्रयोग त्रुटि युक्त और अधिक समय लेने वाले होते थे। आजकल ताप विद्युत युग्म में ताप विद्युत पुंज, लेसरमापी और ग्लास का विकास किया गया है, जिससे अत्यल्प समय में अवरक्त स्पेक्ट्रम प्राप्त किया जा सकता है। अवरक्त विकिरण का आधुनिक उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है। जैसे सीमेंट मे
सोडा और पोटाश का प्रतिशत रासायनिक विधि से ज्ञात करने मे दो दिन तक लग जाते हैं। परंतु अवरक्त फ्लेम फोटोमीटर की सहायता से यह चंद मिनटो में निकाल लिया जाता है, जिससे सीमेंट की उत्पादन विधि पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
इसके अलावा छपाई उद्योग मे भी इसका कारगर उपयोग किया जा रहा है।
रबर उद्योग में उच्च गुणवत्ता रबर का उपयोग कार-टायरों में किया जाता है। यह ठंडा रबर बुटाडीन और स्टीरीन का सहबहुलक होता है, जिसमें समानता के उच्च गुण पाए जाते हैं। इसकी जांच केवल अवरक्त स्पेक्ट्रोमीटर की सहायता से की जा सकती है। मिट्टी और पादप ऊतक विश्लेषण और उसमें पोषण के लिए आवश्यक पदार्थों की कमी जानने मे अवरक्त रेकार्डिंग स्पेक्ट्रोमीटर का उपयोग किया जाता है। अवरक्त फ्लेम फोटोमीटर की सहायता से उनमें सोडियम, कैल्शियम पोटेशियम आदि की मात्रा का यर्थाथ ज्ञान अल्पसमय में किया जा सकता है और आवश्यक तत्वों की कमी खाद द्वारा पूरी की जा सकती है। इस तरह कृषि के क्षेत्र मे इस विकिरण की भूमिका स्पष्ट होती है।
कपड़ा उद्योग में नये सश्लिप्ट रेशों के विश्लेषण, संरचना, दिक् विन्यास और मणिभता के अध्ययन में अवरक्त प्राविधि उपयोगी सिद्ध हुई है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारी जल के उत्पादन मे अवरक्त तकनीक का ड्यूटेरियम की उपस्थिति के उच्चतम् वैश्लेपिक नियंत्रक के तरह प्रयोग होता है। इसी प्रकार घोरान ट्रायफ्लोराइड की शुद्धता जांचने में और अन्य उपयोगों में अवरक्त तकनीक का उपयोग किया जाता है। वाय प्रदूषण का अध्ययन अवरक्त तकनीक और गैस वर्ण लेखन द्वारा शीघ्रता से कम खर्च में किया जा सकता है। औद्योगिक प्रदूषण में व्याप्त तत्वों का वर्गीकरण और विश्लेषण उपरोक्त तकनीक द्वारा ही किया जाता है। फैक्ट्रियो से निकलने वाले कार्बन मोनोक्साइड, वायुमण्डलीय फ्लोराइड, हाइड्रोजन सल्फाइड, गंधक के आक्साइड का अध्ययन और नियंत्रण भी अवरक्त तकनीक द्वारा ही किया जाता हैं। साथ ही पैट्रोलियम पदार्थ से निकली गैसों और प्रदूषणकारी पदार्थों के और मात्रात्मक विश्लेपण में अवरक्त प्रावधि का उपयोग किया जाता हैं।
पेट्रोलियम उद्योग में अवरकत स्पेक्ट्रीमकी का उपयोग सम्मिश्र कार्वोनिक यौगिको की पहचान और मात्रात्मक विश्लेषण में किया जाता है। अवरक्त स्पेकट्रीमिकी की सहायता से अशुद्धियों का ससचन, अभिक्रिया समझने, सॉम्मिश्र अणओं की संरचना और बहुलकीकरण और समावयवीकरण का अध्ययन भी किया जाता है। अवरक्त स्पेक्ट्रीम की विधियों हरा नदियों और झरनों के जल में हाइड्रोकार्यन तेल और फीनाल सदपण का पता लगाया जाता है। अवरक्त स्पेक्ट्रोमीटर द्वारा दस खरब में एक भाग तक सूक्ष्मग्राहिता प्राप्त की जा सकती हैं। इस प्रकार हम देखते है कि अवरक्त विकिरण विज्ञान और उद्योग में विशिष्ट स्थान रखता हैं। उसका उपयोग समस्त मानव जाति के लिए विभिन्न प्राविधियों (Tecnology) द्वारा किया जा रहा है। प्रकृति में दृश्य प्रकाश के सन्निकट इस अवरक्त विकिरण की उपस्थिति समस्त मानव समुदाय के लिए उपयोगी साबित हो रही है।
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