अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तम्भ – सिकन्दर ने क्यों बसाया अलेक्जेंड्रिया Naeem Ahmad, May 23, 2022February 17, 2023 समुद्र मे आने जाने वाले जहाज़ों को संकटों के समय चेतावनी देने के लिये तथा समुद्र के विनाशकारी पर्वतीय चट्टानों से अपनी रक्षा करने के लिये जहां-तहां अनेक प्रकाश स्तम्भ बने हुए हैं। यहां पर हम ऐसे ही एक अति विशाल एवं आश्चर्यजनक प्रकाश स्तम्भ का उल्लेख करेंगे। वह प्रकाश स्तम्भ है अलेक्जेंड्रिया का ‘लाइट हाउस’ या अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तम्भ जिसे हमने आकाशदीप की संज्ञा दी है। यह प्रकाश-स्तम्भ विश्व के उन महान सात आश्चर्यों मे से एक है जिनकी ख्याति संसार मे फैल चुकी है। इनको देखकर तथा इनके वृत्तान्त को पढ़कर हम प्राचीन काल के आदमियों की कला और कारीगरी का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं। आज भी पश्चिमी राष्ट्रों ने समुंद्री यातायात में सुविधा के लिये स्थान-स्थान पर कई विशाल प्रकाश स्तम्भ बनवाये हैं। भारत के समुद्रों में भी ऐसे कई प्रकाश स्तम्भ हमें देखने को मिलेंगे। जिन लोगों ने बम्बई के गेट वे ऑफ इंडिया’ का समुद्री तट देखा है, उन्हे दूर समुद्र में बने वे प्रकाश स्तम्भ अवश्य ही दिखाई पड़े होंगे जो बन्दरगाह में आने वाले जहाजों को मार्ग निर्देशन देते रहते है। परन्तु वे प्रकाश स्तम्भ एक दम छोटे हैं और उनमें कोई आश्चर्य की विशेष बात दिखाई नहीं देती है। Contents1 अलेक्जेंड्रिया को किसने बसाया था2 अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तम्भ किसने बनवाया था3 अलेक्जेंड्रिया के प्रकाश स्तम्भ की विशेषताएं4 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- अलेक्जेंड्रिया को किसने बसाया था सिकन्दर महान ने जब मिश्र देश पर विजय प्राप्त की थी तब उसने वहां की धरती को बहुत उपजाऊ पाकर वहां एक बन्दरगाह बनाना चाहा था। उसने देखा कि मिस्र की भूमि बड़ी उपजाऊ है और यहां पर एक सुन्दर बंदरगाह बसाया जा सकता है उसने अपने इस संकल्प को कार्यान्वित किया। उसने अलेक्जेंड्रिया के नाम से एक बंदरगाह बसाया। इस बंदरगाह को बनाने के लिए उसने अच्छे, योग्य और उम्दा कारीगरों का चुनाव किया। सिकंदर महान में एक महान गुण था। वह आदमी की योग्यता को पहचानता था और किस काम के योग्य कौन व्यक्ति है इसकी परख उसमे बडी तेज थी। उसकी इसी बुद्धिमत्ता का फल यह हुआ कि अलेक्जेंड्रिया नाम का बन्दरगाह बडे ही सुन्दर ढंग से बन सका। बंदरगाह के बन जाने पर सिकंदर बडा प्रसन्न हुआ। उसने उसके बनाने वाले चुने हुए कारीगरों को बहुत सारे पुरस्कार भी दिए। अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तम्भ किसने बनवाया था जिस समय सिकंदर मरने लगा उसने अपने जीते हुए राज्यों को अपने वीर तथा चतुर सेनापतियों में बांट दिया। टेलिमिस्टर नामक वीर सेनापति को उसने मिस्र का राज्य दिया। इसी टेलिमिस्टर ने अलेक्जेंड्रिया के समुद्र में ऐसा प्रकाश स्तम्भ बनवाया जो संसार में अद्वितीय था। इतिहास लेखकों का मत है कि अपने जीवन काल मे टेलिमिस्टर उस प्रकाश स्तम्भ को पूर्ण नहीं करवा सका। उसके मरने के पश्चात् उसके पुत्र टेलेनी फिलाडेल्फस ने उस स्तम्भ को पूर्ण कराया। जो भी हो, इतना स्पष्ट हैं कि टेलिमिस्टर ने ही प्रकाश स्तम्भ की नींव रखवाई थी। अलेक्जेंड्रिया के प्रकाश स्तम्भ की विशेषताएं अलेक्जेंड्रिया के इस प्रकाश स्तम्भ का नाम फेरोस’ रखा गया था। उसी काल से अब तक वहा जितने भी प्रकाश स्तम्भ बने उनको फेरोस ही कहते हैं। उन दिनों, जिस समय का उल्लेख हम यहां पर कर रहे हैं, जहाजियों को समुद्र में तरह-तरह की आपदाओं का सामना करना पडता था। अतः जहाजियों को उन आपदाओं से बचाने के लिये टेलिमिस्टर ने एक बहुत ही ऊंचा तथा अद्भुत प्रकाश-स्तम्भ बनवाया। कहते है कि इस प्रकाश स्तम्भ की ऊंचाई तीन सौ हाथ की थी और एक सौ मील की दूरी तक उसमे जलते हुए दीपक का प्रकाश दिखलाई पडता था। अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तम्भ प्रकाश स्तंभ के नीचे का भाग काफी चौड़ा था। परन्तु जैसे-जैसे ऊंचा होता गया उसका घेरा कम होता गया था। उसके सबसे ऊपरी हिस्से में एक दीप जला करता था। स्तम्भ मे कितने ही खण्ड बने हुए थे। पहले, दूसरे और तीसरे खण्डो की बनावट छः कोनों वाली थी। परन्तु चौथा खण्ड चौकोर बनावट का था और पांचवां खंड एक दम गोल हो गया था। इसके पश्चात् शिखर तक स्तम्भ की बनावट गोल ही थी। ऊपर तक जाने के लिए चक्राकार सीढ़ियां बनी हुईं थीं। उन सीढियों के सहारे लोग आसानी से नीचे से ऊपर तक जा सकते थे। स्तम्भ के एकदम ऊपरी हिस्से पर कई एक रंग-बिरंगें शीशे लगे हुए थे। बहुत दूर तक के जहाजों का प्रतिबिंब इन शीशों मे उतर आता था। स्तम्भ के ऊपरी हिस्से में सदा दीप जला करता था और एक सौ मील की दूरी के जहाजो को उस प्रकाश स्तम्भ से अपना सही मार्ग निर्धारण एवं चयन करने मे बड़ी सहायता मिलती थी। उस प्रकाश को देखकर जहाज के चालक भयानक मार्गो को छोडकर सही रास्ते की ओर बढकर चले आते थे। कहते है कि विश्व प्रसिद्ध उस प्रकाश स्तम्भ को पत्थरों से तैयार किया गया था। समुद्र की निर्मम लहरों की प्रलयकारी थपेडों से स्तम्भ की रक्षा करने के लिये चारों तरफ से एक चारदीवारी बनवाई गई थी। इस प्रकार समुद्र की लहरे उसी चारदीवारी पर अपना प्रहार करती और स्तम्भ उनके चपेटों से बच जाता। प्राचीन काल के अन्वेषकों का कहना है कि इस स्तम्भ को बनवाने मे लगभग पचास लाख रुपये खर्च हुए थे। उस जमाने मे, आज से हजारों वर्ष पूर्व एक स्तम्भ के निर्माण में पचास लाख रुपये खर्च किया जाना कोई मामूली बात नही थी। आज कल की तुलना में उस पचास लाख रुपयों का मूल्यांकन कई करोड रूपयो मे किया जा सकता है। हमने पहले कहा है कि विद्वानों का मत है कि सेनापति टेलिमिस्टर के जीवन काल मे वह प्रकाश स्तम्भ पूरा नहीं बन सका था। उसके पश्चात् उसके पुत्र टेलनी फिलाडेल्फस ने उसे पूर्ण कराया था और उस पर अपना नाम खुदवा दिया। पर कुछ प्रसिद्ध विद्वानो का कहना है कि सेनापति टेलिमिस्टर ने अपने जीवन काल मे ही इस प्रकाश स्तम्भ को पूर्ण करवा दिया था। क्योंकि उसके शासन काल के इतिहास में इस प्रकाश स्तम्भ से समुद्र में आने जाने वाले जहाजों के मार्ग निर्देशन का पता चलता है। उनका कहना है कि उसकी मृत्यु के कुछ समय बाद प्रकाश स्तम्भ का कुछ हिस्सा ध्वस्त हो गया था। उसकी फिलाडेल्फस ने मरम्मत करवाई और उसने उस पर अपना नाम खुदवा दिया। हम भी विद्वानों के इसी कथन को सत्य मानते है। प्राचीन काल के इतिहास में हमें मिलता है कि सेनापति टेलिमिस्टर ने ही अलेक्जेंड्रिया के फेरोस का निर्माण करवाया था। मनुष्य की वह अद्भुत कृति जिसका स्थान आज भी विश्व के सात महान आश्चर्यो में लिखा जाता है, अब नही है। उसके कुछ अवशेष आज भी वर्तमान में हैं, जिन्हें देखने से उसकी विशालता और लोगो की सराहनीय कारीगरी का अन्दाजा हम लगा सकते हैं। स्पष्ट है कि तीन सौ हाथ ऊंचा वह प्रकाश स्तम्भ जो पांच खंडों मे बना हुआ था, समुद्र के अथाह जल-राशि में किन कठिनाईयो का सामना करते हुए बनाया गया होगा। इसकी कल्पना करना भी कठिन है। आज इतने अद्भुत वैज्ञानिक साधनों के होते हुए भी उसकी तरह का प्रकाश स्तम्भ नहीं बन पाया है। पर काल के गाल में आदमी की वह कृति मिट गई है। आज तो उस प्रकाश स्तम्भ के कुछ छिट-पुट अवशेष भर शेष बचे है जो हमें उसके गौरव की स्मृति दिलाते है। कब और कैसे उस प्रकाश स्तम्भ का विनाश हुआ, इसका कोई प्रमाण हमे नहीं मिलता है। संभवत किसी समय अपने आप ही समुद्र की तेज लहरों के प्रहार से वह गिर गया होगा और अनन्त जल राशि में सदा-सदा के लिए समा गया होगा। कहते हैं कि इस प्रकाश-स्तंभ को अलेक्जेंड्रिया से एक बांध के द्वारा मिलाया गया था। यह बांध पत्थर का बना हुआ था और बड़ा ही मजबूत था। बांध के टूटे हुए हिस्से अभी भी समुद्र के भीतर दिखलाई पड़ते हैं। पहले जहां यह प्रकाश स्तम्भ बना हुआ था, उसके समीप ही आजकल एक दूसरा प्रकाश स्तम्भ बना हुआ है। कुछ लोगों का कहना है कि आजकल अलेक्जेंड्रिया का बन्दरगाह जहां बना हुआ है, पुराना बन्दरगाह वहां पर नहीं था। पुराने बंदरगाह के खंडहरों के देखने से भी इस बात की पुष्टि होती है। अभी भी वहां पुराने जमाने की अनेक स्मृतियां हैं, जिन्हे देखकर उन कुशल कारीगरों की कारीगरी की याद हो आती है, जिन लोगों ने सर्वप्रथम अलेक्जेंड्रिया का बन्दरगाह बनाया था। एक जमाना था कि अलेक्जेंड्रिया का बंदरगाह बडे नगरों में गिना जाता था। उस समय यहां छः लाख की आबादी थी। जिनमें तीन लाख नगर के निवासी थे और तीन लाख खरीदे हुए दास रहा करते थें। नगर में कई अच्छी-अच्छी सडकें थीं, और बडे-बडे आलीशान महल बने हुए थे। दो सडकें बडी चौड़ी थी, इनमे से प्रत्येक सड़क की चौड़ाई एक हजार फीट के लगभग थी। सडकें नगर के एक छोर से दूसरे छोर तक चली गई थीं। अब वह हराभरा अलेक्जेंड्रिया का प्राचीन नगर नही रहा है। उसके कुछ हिस्से तो समुद्र में समा गये और शेष हिस्से खंड॒हर के रूप मे आज भी विद्यमान है। प्राचीन काल के जिन रोमन अन्वेषकों ने इस नगर और उस आश्चर्यजनक प्रकाश स्तम्भ को देखा था। उनके खोज पूर्ण लेखों से हमें उस समय की पूरी जानकारी प्राप्त होती है। एक स्थान पर लिखा गया है कि प्रसिद्ध प्रकाश स्तम्भ के बनाने में कई हजार लोगों को मृत्यु की गोद में जाना पडा था। कभी-कभी ऐसा होता था कि स्तम्भ बनते-बनते समुद्र की लहरों के टकराने से अचानक उसका कोई हिस्सा गिर पडता था। परिणामतः जितने भी मजदूर उस पर रहते हुए काम करते रहते थे, वे सभी समुद्र की अनन्त जलराशि मे डूबकर अपने जीवन की लीला समाप्त कर देते थे। ऐसा कई बार हुआ था। कभी जोरों का तूफान उठता और कई आदमी तूफान के झोकों से दूर बीच समुद्र में चले जाते और फिर उनका पता नहीं चलता था। इस प्रकार हजारों आदमियों ने अपने प्राणों की आहूति दी और तब कही संसार का वह आश्चर्यजनक प्रकाश स्तम्भ बनकर तैयार हुआ। संसार मे और भी कई जगह समुद्र में प्रकाश स्तम्भ हैं पर अलेक्जेंड्रिया का वह स्तंभ सबमें अद्वितीय था। इतिहास में नेपुल्स के समुद्र में बने एक प्रकाश स्तंभ का उल्लेख भी हमे पढ़ने को मिलता है। यह प्रकाश स्तम्भ भी बहुत अनूठा था। कहते हैं कि ईसा के जन्म से दो सौ वर्ष पूर्व नेपुल्स के समुद्र तट पर पिजोली नाम का एक सुन्दर बन्दरगाह बसाया गया था। यह बंदरगाह भी ग्रीस निवासियों ने ही बसाया था। यही पर समुद्र मे जहाजियों की सुविधा के लिए एक प्रकाश स्तम्भ भी बनवाया गया था। एक समय संसार मे इस बन्दरगाह की बडी प्रसिद्ध थी। व्यापारिक दृष्टिकोण से इस समुद्री तट की बडी उपयोगिता थी और प्रतिदिन अनेक जहाज यहां से आते जाते रहते थे। किनारे तक यहां का समुद्र बहुत ही गहरा था और बड़े-बड़े जहाज भी आसानी से माल लाद कर तट तक चले आते थे। पर अफसोस है कि अब न तो उस बंदरगाह का पता चलता है और न वह स्तम्भ ही वहां पर है। हां उसकी स्मृतियां वहां के अवशेषों में आज भी विद्यमान है। अब केवल उसकी कहानियां ही हमें पढ़ने को मिलती हैं। यूरोपीय देशों मे एक और भी प्रसिद्ध तथा आश्चर्यजनक प्रकाश स्तम्भ है जो आज भी विद्यमान है। एडिस्टन लाइट हाउस के नाम से यह प्रकाश स्तंभ संसार भर में प्रसिद्ध है। यह स्तम्भ भी आदमी की कारीगरी का सुन्दर जीवित उदाहरण है। इसकी बनावट में यद्यपि कोई विशेष चमत्कार नही है तब भी अच्छे से अच्छे कारीगरों का सिर भी इसे देखकर चकरा जाता है। इस स्तम्भ को बने अभी बहुत दिन नही हुए हैं। दो सौ वर्ष पहले इसको बनवाया गया था। तब से आज तक यह पर्वत को तरह दृढ़ खड़ा हुआ हैं। कहते हैं कि इस प्रकाश स्तम्भ को पहले दो बार बनवाया गया था और दोनों ही बार आदमी की शक्ति पर समुद्र ने विजय प्राप्त की थी। दोनों ही बार समुंद्र के थपेडों से प्रकाश स्तम्भ गिर पड़ा था। तब तीसरी बार उसे बनवाया गया और तब से उसे बने लगभग दो सौ वर्ष हो गये, वह ज्यों का त्यों खड़ा है। इस स्तम्भ की बनावट आदि देखकर जान पडता है सैंकड़ों वर्षो तक यह ऐसे ही खड़ा रहेगा। जिस एडिस्टन के प्रकाश स्तम्भ का उल्लेख हम कर रहे हे वह समुद्र में स्थित एक पहाड़ी चट॒टान पर बनाया गाया है। प्लाइमाउथ मे पश्चिम और दक्षिण की ओर कुछ दूर हट कर समुद्र में यह स्तम्भ खडा हुआ है। इसके सब से नजदीक का नगर रोमीय है जो प्रकाश स्तम्भ से दस मील की दूरी पर है। इससे पहले इस स्थान पर जो प्रकाश स्तम्भ बना हुआ था उसका बनना सन् 1696 ई में आरम्भ हुआ था और सन् 1700 में स्तम्भ बनकर तैयार हुआ था। इस स्तम्भ को सर्वप्रथम हेनरी विन्सटॉनल नाम के अंग्रेज ने बनवाया था। पर दुर्भाग्यवश वह स्तम्भ अधिक दिनो तक नहीं रह सका। तीन वर्ष बाद ही नवबर के महीने में एक रात जोरों का तूफान उठा। उस समय हेनरी कई और आदमियों के साथ स्तम्भ की चौथी मंजिल पर चढ़कर उसकी मरम्मत करवा रहे थे। तभी अचानक वह स्तम्भ अपने बनाने वालो को लिये हुए समुद्र में गिर पड़ा। सन् 1706 ई में फिर स्तम्भ को बनाने का काम शुरू किया गया। रेडियाई नामक एक कारीगर को यह काम सौंपा गया। उस कारीगर ने वहां पर लकड़ी का एक बहुत ऊंचा और मजबूत प्रकाश स्तम्भ बनाया। परन्तु दुर्भाग्य से सन् 1755 में आग लग जाने से रेडियाई का सारा श्रम जलकर राख हो गया। कहते हैं कि लकडी का बड़ा स्तम्भ बहुत ही मजबूत था और यदि आग न लगती तो संभवतः सैकडो वर्षों तक वह खड़ा रहता। आज जो प्रकाश स्तम्भ वहां पर खडा है उसे स्मिटन नामक एक अंग्रेज ने बनवाया है। यह स्तंभ ऊपर से नीचे तक पत्थर का बना हुआ है। इसकी बनावट गोल है। परन्तु नीचे का भाग जितना चौडा है, ऊपर का भाग उतना चौड़ा नहीं है। ऊपर का हिस्सा कुछ पतला होता गया है। स्तम्भ के शिखर पर कोर्निश हैं और उस पर रोशनी करने का एक स्थान बना हुआ है। स्तम्भ के आगे वाले हिस्से में चारों तरफ बरामदा है और भीतर आने जाने के लिये एक दरवाजा भी बना हुआ है। स्तम्भ पर ऊपर चढने के लिये सीढ़ियां बनी हुई है और बीच में पहरेदारों के रहने के लिये सुन्दर आवास भी बना हुआ है। कहते हैं कि यह स्तम्भ भी बहुत मजबूत है और सैकडो वर्षो तक ऐसे ही खड़ा रह जाय तो कोई आश्चर्य नही है। ऊपर चोटी पर जहां रोशनी रखी जाती है, वहीं उस पर एक रिफ्लेक्टर रखा हुआ है। उस रिफ्लेक्टर को ढकने के लिये ताबे का एक ढक्कन बना हुआ है और इस ढक्कन पर बड़ी तेज कलई की हुई है, जिससे बहुत दूर से आने वाले जहाजों को भी इसकी चमक मिलती है। इसका कारण प्रकाश बहुत दूर तक देखा जा सकता है। इनके अतिरिक्त और भी कई अद्भुत प्रकाश स्तम्भों का उल्लेख मिलता है, जेनेवा उपसागर के पश्चिम में एक प्रकाश स्तम्भ अब तक बना हुआ है। एक ऊंची पहाडी पर यह प्रकाश स्तम्भ बनाया गया है। इसीलिए बहुत दूर से ही यह दिखाई पडने लगता है। यह स्तम्भ भी बनावट की कारीगरी मे आश्चर्यजनक है। सचमुच मे इसके निर्माण मे बनाने वालो को अद्भुत कौशल का परिचय देना पड़ा होगा। इस स्तम्भ को किसने बनवाया और कब बना इसका पता नही चलता है। ‘एनकोना’ नाम के बन्दरगाह मे भी एक प्रकाश स्तम्भ है जो आजकल के बड़े से बड़े कारीगरों को चुनौती दे रहा है। लोगों का कहना है कि एनकोना का यह प्रकाश स्तम्भ अठारहवी शताब्दी का बना हुआ है। इस बन्दरगाह में एक ही बड़ा लम्बा-चौडा घाट है। उसी घाट के एक किनारे पर बहुत ही ऊंचा एक प्रकाश स्तम्भ बना हुआ है। विद्वानों का कहना है कि वेनाविटल नाम के एक प्रसिद्ध कारीगर ने इस स्तम्भ को बनाया था। यह इतना ऊंचा और मजबूत बना हुआ है कि देखने वाले दंग रह जाते हैं। ऊपर से नीचे तक यह स्तम्भ पत्थर का बना हुआ है। इसके ऊपर जाने के लिये स्तम्भ में चक्रदार सीढ़ियां बनी हुई है। इनके अतिरिक्त भी संसार में और भी कई छोटे-बडे प्रकाश स्तम्भ बने हुए हैं। परन्तु कारीगरी की दृष्टि से वे इतने महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसीलिए उनका यहां उल्लेख करना ठीक नहीं जान पड़ता। इन सब प्रकाश स्तम्भों में अलेक्जेंड्रिया का प्रकाश स्तम्भ यदि आज होता तो निश्चय आजकल के इंजीनियरों को उससे बहुत कुछ सीख मिलती। उस स्तम्भ की भव्यता और विशालता आदि के कारण ही हमने उसे ‘आकाश दीप” कहना उपयुक्त समझा। तीन सौ हाथ ऊंचे प्रकाश स्तम्भ को, जिसकी रोशनी एक सौ मील की दूरी तक जाती है, उसे “आकाश दीप’ नहीं तो और क्या कहेंगे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- रूस में अर्जुन का बनाया शिव मंदिर हो सकता है? आखिर क्या है मंदिर का रहस्य संसार के हर हिस्से मे वहां की प्राचीन कला-कृतियों की कोई न कोई निशानी देखने को मिलती है। उन्हे देखकर Read more गोल्डन गेट ब्रिज - सेंफ्रांससिसकों का झूलता पुल गोल्डन गेट ब्रिज--- सभ्यता के आदिकाल से ही आदमी ने अपने आराम के लिये तरह-तरह के सुन्दर-पदार्थों का अन्वेषण किया Read more पीसा की झुकी मीनार कहा है - पीसा की मीनार किसने बनवाया अठारहवीं शताब्दी के भ्रमणकारियों द्वारा विश्व के जिन सात आश्चर्यों की सूची में अन्य जिन सात आश्चर्यों की सूची सम्मिलित Read more कोलोसियम क्या होता है क्या आप जानते है कोलोसियम कहा स्थित है संसार में समय-समय पर आदमी ने अपने आराम, सुख और मनोरंजन के लिये तरह-तरह की वस्तुओ का 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