ब्रिटिश साम्राज्य को पहली गंभीर चुनौती उत्तरीअमेरिका के 13 उपनिवेशों में बसे अंग्रेज नस्ल के अमेरीकियो ने ही दी। उन्होंने ब्रिटिश संसद द्वारा अपने ऊपर कर लगाने के अधिकार को नामंजूर कर दिया, जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में अमरीका ने अपनी आजादी की घोषणा की और टामस जैक्सन ने आजादी का घोषणा-पत्र लिखा। सन् 1775 से सन् 1781 तक चले युद्ध में फ्रांस और स्पेन की मदद से मजबूत हुए अमरीकी देश-भक्तों नें 45,000 ब्रिटिश फौज को परास्त कर दिया यह उपनिवेशवाद पर पडने वाली पहली चोट और नये युग की पदचाप थी, जो अमेरिकी क्रांति के नाम से जानी जाती हैं। अपने इस लेख में हम इसी अमेरिकी क्रांति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—
अमेरिकी क्रांति कब हुई थी? अमेरिका क्रांति के क्या कारण थे? अमेरिकी क्रांति से क्या समझते हैं? अमेरिका में स्वतंत्रता संग्राम का क्या महत्व है? अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के क्या कारण है? अमेरिकी क्रांति के कारण और परिणाम? अमेरिकी क्रांति 1776 में अंग्रेजों की पराजय के कारण क्या थे? अमेरिकी क्रांति के प्रमुख मुद्दों का वर्णन? अमेरिकी क्रांति के प्रश्न और उत्तर? अमेरिका की आजादी कब हुई? अमेरिकी क्रांति के नायक कौन थे? अमेरिका पूर्ण स्वतंत्र कब से हुआ? अमेरिका देश किसका गुलाम था? अमेरिका इंग्लैंड से कब आजाद हुआ? अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के कारण एवं परिणाम? अमेरिकी क्रांति के प्रभाव? अमेरिकी क्रांति क्या है?
अमेरिकी क्रांति का कारण
18 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में ब्रिटेन की ताकत अपनी चरम सीमा पर पहुंचने लगी थी। मशहूर था कि उनके साम्राज्य में कभी भी सूर्य अस्त नही होता। उत्तरी अमेरीका में ही उसके 13 उपनिवेश थे। उस समय जार्ज-तृतीय के पास राजगद्दी थी। अपने ही साम्राज्य के सूर्य से चकाचौंध अंग्रेज यह नही देख पाये कि अमेरीकी उपनिवशों की अदंरूनी ताकत बढ़ती जा रही है और अब वे ज्यादा दिना तक ब्रिटिश सिंहासन ये अधीन नही रह सकेगे। इन उपनिवेशों में रहने वाले भी नस्ल से अंग्रेज़ ही थे, लेकिन वे उत्तरी अमेरीका की आबो-हवा में छः पीढ़ियां गुजार चुके थे। अब उनमें अपने अंग्रेज होने के बजाय अमेरीकी होने का अभिमान पैदा होना शुरू हो चका था। यह सांस्कृतिक अलगाव इस तथ्य से ओर भी बढ़ जाता था कि इन उपनिवेशों पर नियंत्रण करने वाला “हाउस ऑफ कामस” तीन हजार मील दूर लंदन में स्थित था।
अमरीकी अंग्रेजों के हिसाब से उनके घरेलू मामले उनकी अपनी सभाओं के जरिए सुलझने चाहिए थे। वे उनमें ब्रिटिशों की टांग अड़ाना पसंद नही करते थे। वे चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार विदेश नीति और समुंद्री व्यापार तक ही अपने आप को सीमित रखे।
अमेरिकीयों की ये सभाएं धीरे धीरे ताकतवर होती जारी थी। सन् 1761 से 1763 के बीच अर्ल ऑफ ब्यूट (Earl of Bute) के मंत्रीमंडल ने और उसके उत्तराधिकारी जॉर्ज ग्रनविल (George Grenville) की प्रधानता वाली सरकार ने उत्तरी अमेरीका में
ब्रिटिश फौजों की संख्या बढ़ा दी। ब्रिटेन ने अमरीकी अंग्रेजों से कहा कि वे पश्चिम की तरफ पैर न फैलाएं। रेड इडियना के लिए बडे-बडे इलाके आरक्षित कर दिय गये। इससे अमेरीकियों का माथा ठनका। उन्होंने इसे अपनी बढ़ती हर आजादी के रास्ते में जान बुझकर डाला गया रोडा समझा।
ब्रिटेन का दूसरा कदम भी अमरीकियों को नाराज करने वाला साबित हुआ। उनका समुंद्री व्यापार नियंत्रित कर दिया गया ओर उन पर संसद दवारा कर लगा दिय गया। सन् 1764 का चीनी कानून (Sugar Act) जिसमें कच्ची शक्कर पर प्रति गेलन 3 पैसे शुल्क लगता था ओर सन् 1765 का स्टाम्प कानून अमेरीकियों को एक आंख न भाया। अमरीकियों के लिए अपने सभी कानूनी दस्तावेज ओर दूसरे कागजों पर कर के रूप में स्टाम्प लगाना मजबूरी बन गयी।
अमेरीकियों ने विरोध में आवाज उठायी और कहा कि जब हाउस ऑफ कामन्स (House of Commons) में हमारा प्रतिनिधित्व नही होता तो संसद हम पर कर कैसे कर लगा सकती है? नारा लगा नो रिप्रजटेशन, नो टैक्सेशन (No Representation, No Texsetion)। जगह-जगह सभाएं और जलसे होने लगे, जिनमे स्टाम्प कानून वापस लेने की मांग की जाती थी। अमेरिका भेजे गए स्टाम्प नष्ट कर दिए गए और स्टाम्प कमिश्नरों से जबरन स्टांप फड़वा दिया गया। कई अमेरिकी शहरों में इस कानून के खिलाफ दंगें भड़क उठे। लंदन पर दवाब डालने के लिए अमेरिकीयों ने माल मंगाना कम कर दिया। ब्रिटिश व्यापारियों का भुगतान रोक दिया गया।
अमेरिकी क्रांतिब्रिटेन इस विरोध प्रदर्शन से आश्चर्य चकित रह गया। उसे स्टाम्प कानून वापस लेना पड़ा। लेकिन संसद में एक्ट पास करके और अगले साल जॉर्ज तृतीय की सरकार ने फिर नये टैक्स लगाकर विवाद पैदा कर दिया। अब चाय, शीशा, कागज व आयल पर कर लगने लगा। इससे होने वाली आमदनी से ब्रिटेन, अमेरिका में अपनी स्थिति मजबूत करने लगा। नतीजा यह निकला कि विद्रोह की आग फिर सुलग पड़ी और एक आंदोलन का आह्वान किया गया तथा अमेरिकी क्रांति के लिए उपनिवेशों ने एकत्र होना शुरू किया। जो उपनिवेश इस आंदोलन में शामिल नही हुए, उनका हक्का-पानी बंद कर देने की धमकी दी गयी। ब्रिटन को ये कर वापस लेने पडे़। केवल संसद का अधिकार जताने के मकसद से चाय पर कर लगा रह गया।
तभी सन् 1768 में लाल कुर्ती के ब्रिटिश सैनिक बास्टन(Boston) में नागरिकों से उलझ गये। कस्टम कमिश्नरों को बचाने के चक्कर में सैनिकों ने पांच नागरिकों को गोली से उडा दिया। अंग्रेजों ने मामले के नाजुकपन का अहसास करके सेना फौरन वापस बुला ली पर इस घटना से सभी कॉलानियां में ब्रिटिश विरोधी भावनाएं फेल गयी। सन् 1773 तक छिट-पुट घटनाओ में इस आक्रोश की अभिव्यक्ति होती रही। यह वर्ष प्रधानमंत्री लार्ड नोर्थ (Lord North) के चाय कानून का था, जिसके चलते ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी चाय पर लगने वाले भारी कर से मुक्ति मिल गयी ओर वह उसे सीधे अमरीका में बेचने लगी। ब्रिटिश चाय एक तरह से अमरीकियों के लिए सस्ती हो गयी थी। पर अमरीकियों ने महंगी डच चाय खरीदना पसंद किया, क्योकि ब्रिटिश चाय खरीदने का मतलब होता संसद दवारा अपने ऊपर कर लगाने के अधिकार को मान्यता देना। अमरीकियों ने इस्ट इंडिया कंपनी की चाय बरबाद करना शुरू कर दी। सन् 1773 के दिसबंर में तीन जहाजों में भरी चाय बोस्टन के बंदरगाह में खराब होने के लिए छोड दी गई। यह घटना बोस्टन टी-पार्टी के नाम से मशहूर है।
लंदन में इस कारवाई के खिलाफ नाराजगी पैदा हुई, नॉर्थ मंत्रिमंडल ने तय किया कि बॉस्टन और मेसाचुसटस को इसके लिए सबक सिखाया जाये। चार दमनकारी कानून पास किये गये पांचवा कानून क्युबक कानून (Quebec Act) था। अमरोकियों ने इन पांचो कानूनों को सहन न कर सकने लायक करार दिया। कानून पर अमल के लिए लाल कुर्ती के सैनिक बॉस्टन में भेजे गए पर मसाचूसटस में सन् 1774 के हेमत में शहर के बाहर एक क्रांतिकारी सरकार की स्थापना की गई। फौज की तैयारी होने लगी। ब्रिटिश गवर्नर थॉमस कुक (Thomas Cook) को लगा की उसकी फौज इस बगावत से नहीं निपट पायेगी इसलिए उसने लंदन से और फौज की मांग की। सन् 1774 में फिलाडेल्फिया में पहली कॉन्टिनेंटल कांग्रेस हुई, जिसे 12 उपनिवेशों ने अपने प्रतिनिधि भेजे। जॉर्ज वाशिंगटन, जॉन ऐडम्स, समुअल ऐडम्स और पाटक हेनरी जैसे प्रतिष्ठित अमेरिकी नेता इस कांग्रेस में शामिल हुए। इस कांग्रेस ने प्रण किया कि अगर ब्रिटिश सैनिकों ने बॉस्टन से आगे बढ़कर मसाचूसटस पर हमला किया तो वहां के भाईयों की हर किमत पर रक्षा की जायेगी। ब्रिटेन से कहा गया कि वह सन् 1763 में बनाए गए हर कानून को वापस ले। क्योंकि यह मानवता प्राकृतिक अधिकार के विरोधी हैं। कांग्रेस ने एक एसोसिएशन बनाई जो ब्रिटिश चीजों का आयात और उपयोग रोकने का एक जरिया थी। यह भी तय किया गया कि अगर ब्रिटेन ने माने तो अमेरिकी चावल को छोड़कर हर चीज के निर्यात पर भी पाबंदी लगा दी जाएं। जिस जिस ने इन पाबंदियों का विरोध किया, उसे अमेरिकी आजादी के नाएं प्रवक्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा। हर जगह अमेरिकी फौज परेड करती हुई दिखने लगी।
अमेरिकी क्रांति के युद्ध की शुरुआत
सन् 1775 में ब्रिटेन ने अपनी प्रभु सत्ता जबरन स्थापित करने की शुरुआत की। जनरल गज को आदेश दिए गए। 18 अप्रैल 1775 को गए के दस्ते बॉस्टन से कॉनकोर्ड (Concord) गए। ताकि अमेरिकी फौज की सप्लाई को नष्ट कर सके। लक्सीग्टन (Lexington) में अमेरिका क्रांति की पहली लड़ाई हुई। अंग्रेज फौज को बॉस्टन तक पीछे हटना पड़ा। इस तरह अमेरिका की आजादी के लिए युद्ध की शुरुआत हुई।
ब्रिटेन जुलाई 1776 तक अपनी फौजें अमेरिका पहुंचा पाया। तब तक कांटीनेंटल कांग्रेस ने जॉर्ज वाशिंगटन को अमरीकी फौज का कमांडर नियुक्त कर दिया था। अमरीकियों ने बॉस्टन से अंग्रेजों को भगा दिया और उनके समर्थकों के प्रतिरोध को कुचल डाला। 2 जुलाई 1776 का कांटीनेंटल कांग्रेस ने आजादी का दावा पेश किया। दो दिन बाद थॉमस जैक्सन दवारा लिखित स्वतंत्रा का घोषणा-पत्र जारी किया गया। इस घोषणा पत्र में मानवता का आतंक और कुशासन के खिलाफ विद्रोह करने का अधिकार
दिया गया था। इसी के साथ सभी उपनिवेशों में ब्रिटिश सरकार बैठ गयी और अमरीकी राज्यों का पहला रूप सामने आया।
ब्रिटेन ने इस क्रांति को कुचलने के लिए 45000 सैनिक भेजे सन् 1776 के अंतिम छः महीनों में ब्रिटेन की फौज ने न्यूयार्क से कनाडा तक विद्रोहियों की धज्जियां उड़ा दी। जनरल विलियम हाव के नेतृत्व में वाशिंगटन की फौज को न्यूयार्क से डलावयर नदी तक खदेड दिया गया। पर इसी के बाद अमेरीकनों की जीत का सिलसिला शुरू हुआ। वाशिंगटन ने साल खत्म होते होते एक बड़ी जीत हासिल की। नए साल में ब्रिटिश हमला फिर शरू हुआ पर तब तक अमेरीकियों को अंग्रेजों के दुश्मन फ्रांस से हथियार और पैसा मिलना शुरू हो गया था। जनरल हाव ने फिगाडाल्फया पर तो कब्जा कर लिया पर वाशिंगटन की फौजों को नष्ट नही कर सका। अमरीकी जनरल हारानिया के नेतृत्व में एक फौज ने ब्रिटिश जनरल जॉन बरगान की फौज को करारी शिकस्त दी। यह पहला ब्रिटिश आत्मसमर्पण था।
इस घटना के बाद में अमेरिकीयों की ताकत बहुत बढ़ गयी। फ्रांस और स्पेन ब्रिटेन से सात साल के युद्ध की हार का बदला लेने का मौका तलाश रहे थे। उन्होंने ने बिना मांगे सहायता दी। फरवरी 1778 में फ्रांस ने अमेरिकी आजादी की मान्यता दे दी और संयुक्त राज्य अमेरिका से फौजी संधि कर ली। इससे ब्रिटेन और फ्रांस के बीच युद्ध शुरू हो गया। सन् 1779 में स्पेन ने अमेरिकी युद्ध में हस्तक्षेप किया। ब्रिटेन का धीरे धीरे कई यूरोपीय देशों से झगडा शुरू हो गया। अब पूरा यूरोप या तो ब्रिटेन का दुश्मन था या तटस्थ। यह पूरी स्थिति अमेरिकी क्रांति के हक में जाती थी। वह अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में बदल गई। उसके लिए इंग्लिश चैनल जिब्राल्टर और भूमध्य सागर से लेकर अफ्रीका के पश्चिमी तट, हिंद महासागर और वेस्टइंडीज में भी लड़ाई लड़ी जाने लगी।
इस परिस्थिति से परेशान होकर ब्रिटेन ने एक आयोग भेजकर अमरीका को ब्रिटिश साम्राज्य के तहत स्वायत्तता दने का प्रस्ताव रखा पर अब देर हो चुकी थी। अमेरिकी कांग्रेस ने इस पर गोर तक नही किया। ब्रिटिश सेनापति क्लिंटन की फौज न्यूयॉर्क में जा रही थी और वाशिंगटन की फौज चौकन्नी रहकर इस गतिविधि को परख रही थी क्लिंटन ने दक्षिणी राज्यों पर हमला किया, जहा ब्रिटिश समर्थक टारी ज्यादा थे। पर वहां के अमेरीकियों ने छापामार युद्ध शुरू कर दिया। ब्रिटिश सेनापति लार्ड कानवालिस द्वारा नॉर्थ करोलिना पर कब्जा करने की कोशिश जनरल ग्रीन ने नाकामयाब कर दी। इस के बाद दूसरे हमले में ग्रीन ने बिटिश फौजों को दक्षिण में बहुत बुरी तरह हरा दिया।
वर्जीनिया में कानवालिस ने 7000 की फौज जमाकर यार्क टाउन में अड्डा जमाया, पर तभी फ्रांस ने वाशिंगटन की मदद के लिए एडमिरल डी ग्राम के नेतृत्व में अटलांटिक मेंअपना बेडा भेज दिया। बेडे ने ब्रिटिश बेड़े को परास्त करके कानवालिस की सप्लाई लाइन काट दी। वाशिंगटन ने अपनी और फ्रांसीसी फौज के साथ कानवालिस पर दक्षिण में जमीनी हमला किया। अब 7000 ब्रिटिश सैनिकों के मुकाबले वाशिंगटन के पास बड़ी संख्या में फौजी थे। मजबूरी में 19 अक्तूबर 1781 का कानवालिस ने हथियार डाल दिए। सन् 1782 में ब्रिटेन में नॉर्थ सरकार इसी पराजय के कारण गिर गई और उसेसंयुक्त राज्य अमेरीका की आजादी का स्वीकार करना पडा। ब्रिटेन की सारी दुनिया में कई जगह पराजय हुई। हर जगह उपनिवशवाद को धक्का लगा। लोक प्रिय सरकारों की स्थापनाएं हुई, और इस तरह अमेरिकी क्रांति की लड़ाई के साथ अमेरिका को आजादी मिली और अमेरिकी क्रांति के युद्ध ने कई आजादी के युद्धों को प्ररेणा दी।
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