चित्रकला चित्रकार के गूढ़ भावों की अभिव्यंजना है। अंतर्जगत की सजीव झांकी है। वह असत्य वस्तु नहीं कल्पना की वायु से पोषित नहीं, ठोस और ध्रुव सत्य है। उसमें जीवन का वैभव और सत्य सौंदर्य निहित है। कला में कलाकार का व्यक्तित्व मुखरित हो उठता है। उसकी अंतश्चेतना के दर्शन होते हैं। सच्चा कलाकार वह है। जो न केवल एक रूकी हुई परम्परा का पुनरूद्धार करता है, प्रत्युत उस ऊंची कला का दिग्दर्शन करता है। जो सत्य, शिव, सुंदरम की समष्टि है, ध्याष्टी नहीं, जो झिलमिल नीलाकाश के रजत प्रागंण में सौंदर्य के समस्त प्रसाधन बिखेरती है। जो श्रेय प्रेरणा की लहर है। और जिसमें मानव जीवन की बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी रंगीनियां खेल करती हैं। भारतीय नारी कलाकारों में श्रीमती अमृता शेरगिल का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्योंकि उन्होंने अल्पकाल में ही आधुनिक कलाकारों में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया था। कला क्षेत्र में नारियों का सदैव अभाव रहा है। एक पश्चात्य विद्वान ने तो यहां तक कहा था कि विश्व में जितने भी बड़े बड़ें चित्रकार या मूर्तिकार हुए हैं, वे सब पुरूष ही है। यह कथन आंशिक रूप से सत्य होते हुए भी श्री अमृता शेरगिल के दृष्याष से इस बात की पुष्टि करता है कि यदि सुविधाएं दी जाएं तो नारी, पुरुष से बहुत आगे बढ़ सकती है। और ऐसा कर दिखाया श्रीमती अमृता शेरगिल ने। अपने इस लेख में हम इसी महान व प्रसिद्ध चित्रकार अमृता शेरगिल की जीवनी, अमृता शेरगिल का जीवन परिचय, अमृता शेरगिल बायोग्राफी के साथ साथ अमृता शेरगिल के चित्रों के बारे में भी विस्तार से जानेंगे।
अमृता शेरगिलअमृता शेरगिल का जन्म, शिक्षा व बाल्यकाल
अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी सन् 1913 को बुडापेस्ट (हंगरी) में हुआ था। उनके पिता खास पंजाब (भारत) के रहने वाले थे, किंतु माता हंगेरियन थी। बाल्यकाल से ही चित्रकला की ओर उनकी विशेष अभिरुचि थी। जब वे पांच वर्ष की हुई तो अपने बाग के पेड़ पौधों के चित्र कागज पर बनाया करती और उनमें रंग भरा करती थी। पहले तो किसी का ध्यान उनकी चित्रकारी पर नहीं गया, किंतु धीरे धीरे उनकी मां अपनी पुत्री की चित्रकारी से प्रभावित हुईं और भारत आने पर उन्होंने अमृता के लिए एक अंग्रेज चित्रकार शिक्षक नियुक्त कर दिया। तीन वर्ष तक उस अंग्रेज शिक्षक के तत्वावधान में वे चित्रकला का अध्ययन करती रही और अपनी विलक्षण प्रतिभा सच्ची लगन कठोर परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति से बहुत कम आयु में ही कुशल चित्रकार बन गई। अमृता की योग्यता और बुद्धिमत्ता पर वह अंग्रेज चित्रकार शिक्षक भी दंग रह गया और उसने शेरगिल दम्पति को बाहर विदेशों में अपनी पुत्री को चित्रकारी की उच्च कोटि की शिक्षा दिलाने की सम्मति दी। सन् 1924 में शेरगिल परिवार इटली चला गया।
Amrita shergill paintingsचित्रकारी में लगन व प्रसिद्धि
वहां जाकर अमृता आर्ट स्कूल में दाखिल हो गई, किंतु उन्हें संतुष्टि नहीं हुई। भारत लौटने पर उन्होंने यही पर अभ्यास करना आरंभ किया और सामने किसी को बैठाकर अथवा तेल रंगों में चित्र करने लगी। 15 वर्ष की आयु में ही वे इतनी सुंदर चित्रकारी करने लगी कि जो कोई भी उनके बनाएं चित्रों को देखता सहसा विश्वास न करता। अंत मे अपने माता पिता के साथ वे पेरिस गई और विश्व प्रसिद्ध कलाकार पीरै वेना की शिष्य हो गई, पांच वर्ष तक निरंतर पेरिस में रहकर उन्होंने चित्रकला का परिमार्जित ज्ञान प्राप्त किया और धीरे धीरे पाश्चात्य पद्धति पर तेल रंगों में बड़े बड़े कैनवसों पर चित्र बनाने की अभ्यस्त हो गई। उनके चित्र विशिष्ठ कला प्रदर्शनियों द्वारा प्रदर्शित किएं जाने लगे और पत्रों में भी छापे गये। तत्पश्चात वे ग्रेंड सैलो की सदस्य बना ली गई, जो कि एक भारतीय युवती के लिए बहुत ही सम्मान और गौरव का पद था।
Amrita shergill paintingsभारतीय चित्रकला की ओर आकर्षित
भारत आने पर उन्होंने भारतीय चित्रकला का गहरा अध्ययन किया और उसकी विशेषताओं और बारीकियों को समझा। एक ओर पेरिस का विलासमय वातावरण दूसरी ओर भारत की दयनीय दशा, एक ओर वैभव और चमक दमक, दूसरी ओर मूक वेदना का करूणा चीत्कार। अमृता दुविधा में पड़ गई, किसे छोड़े किसे अपनाएं। अंत मे उन्होंने अनुभव किया कि वे एक ऐसी स्थिति में पहुंच गई है कि जहां वे स्वतंत्र है। उन्हें कोई बंधन नहीं, वे अपनी इच्छा अनुसार अपनी कला का मुख मोड सकती है। उन्नीसवीं शताब्दी के पारांभिक चरण में भारतीय चित्रकला पर इण्डो ग्रीक और बौद्ध कला का विशेष प्रभाव था। धीरे धीरे गुप्तकालीन कला पर भी लोगों का ध्यान आकृष्ट हुआ और भारतीय कलाकारों ने गुप्तकालीन चित्रकला की सूक्ष्मांकन प्राणली को अपनाया। ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के पश्चात तो रही सही भारतीय कला भी नष्ट हो गई थी, किन्तु आकस्मात बंगाल में कला की पुनर्जागृति हुई और रवीन्द्रनाथ टैगोर, नंदलाल बोस, बेठप्पा और जामिनी राय जैसे कलाविदों का प्राकट्य हुआ। उनकी चित्रकला में बाहरी चमक दमक और आकर्षक रंगों का तो बहुलता से प्रयोग किया गया, किन्तु मौलिक कला तत्वों का स्फुरण न हो सका। अमृता शेरगिल की पेंटिंग ने इस क्षेत्र में एक नवीन प्रतिक्रिया की और आधुनिक भारतीय कला को विकसित और संवर्दित करने के लिए नया कदम उठाया। उनहोंने अन्य कलाकारों की भांति अजंता और राजपूत कला का अधानुकरण न करके अपनी कला में पाश्चात्य और पूर्वीय कला के आवश्यक तत्वों को लेकर उनका सफल समन्वय किया। उनकी प्रारंभिक भारतीय पद्धति की चित्रकृतियों मे तो राजपूत कला का कुछ प्रभाव झलकता है, किन्तु बाद में तो उन्होंने कला क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति की और दो सर्वथा स्वतंत्र एक भिन्न देशों के प्रमुख कला तत्वों को लेकर एक भौतिक रूप दिया तथा एक नवीन शैली का प्रवर्तन किया।
Amrita shergill painting
अमृता शेरगिल के चित्रों में पहाड़ी दृश्यों का बहुत सुंदर चित्रण किया गया है। साधारण जीवन दशा, आशा निराशा, सुख दुख के आकुल विह्वल भावों को उन्होंने अपने आकर्षक रंगों और रेखाओं द्वारा अत्यंत खूबी से व्यक्त किया है। नवयुवतियां, कहानी वक्ता, नारी आदि चित्रों में भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति के सफल समन्वय की अद्धितीय झांकी मिलती हैं। मानों अमृता ने पाश्चात्य कला तत्वों का अन्वेषण कर और भारतीय चित्रकला पर दृष्टिपात करके अपनी तन्मयता में एक नवीन प्रेरणा पाई हो। उन्होंने कला में पैठ कर जीवन के निगूढ़ सत्य के सम्मित्रण का सर्वोकृष्ट स्वरूप प्रस्तुत किया और इस प्रकार उनके चित्रों में अंतर का चिंतन साकार हो उठा। उनके अंतस्तल का बोझिल भार आलोक बन कर छा गया।
Amrita shergill paintingsइसके अतिरिक्त उनकी कला में ऐसी निर्भिकता, शक्ति और यथार्थता थी की वे अपनी तूलिका के सूक्ष्म रेखांकनों एव पूर्व और पश्चिम के मिश्रित अलौकिक कला समन्वय से दर्शकों को मुग्ध कर लेती थी। तीन बहिनें, पनिहारिन, वधू श्रंगार आदि उनके चित्रों में जीवन का निगूढ़ सौंदर्य सन्निहित है। उनका प्रोफेशनल मॉडल एक अमर चित्र है। जिसमें मार्मिक भावों की सुंदर अभिवयंजना हुई है। अमृता शेरगिल की कला पर गोगिन और अजंता चित्रकला का विशेष प्रभाव है।
Amrita shergill paintingsदाम्पत्य जीवन, व्यवहार व मृत्यु
कलात्मक सजगता के साथ साथ वे एक संवेदनशील नारी र आदर्श पत्नी भी थी। अमृता शेरगिल का विवाह सन् 1932 में विक्टर एगन से हुआ था। उनका दाम्पत्य जीवन बहुत ही सुख और आनंद से बिता। वे अत्यंत स्नेहशील, मिलनसार और मधुर स्वभाव वाली थी। जो कोई भी उनसे एक बार मिल लेता था, वह उनसे बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता था। उन्हें निर्धन, निर्दम्भ , निस्पृह लोगों से बातचीत करने में बहुत सुख होता था। यदि कोई साधारण गरीब जिसे चित्रकारी का कुछ भी ज्ञान नहीं होता था, उनके चित्रों को पसंद करता और उनकी प्रशंसा करता तो वे फूली नही समाती थी। ऐसे व्यक्तियों से वह सख्त नफरत करती थी, जो कला की पूर्ण जानकारी का दावा तो करते थे, किन्तु कला को परखना और समझना नहीं जानते थे। ऐसे ही एक अवसर पर उन्होंनेशिमला कला प्रर्दशनी से पुरस्कार अस्वीकार कर दिया था, क्योंकि प्रर्दशनी ने अमृता के उन चित्रों को वापिस कर दिया था, जो उनकी दृष्टि में उच्चतम कलात्मक चित्र थे और जिन पर पेरिस कला प्रर्दशनी से स्वीकृति मिल चुकी थी। उन्होंने ऐसी संस्था से पुरस्कार लेने में अपमान समझा जिसे जिसे चित्र परखने तक की योग्यता न थी।

5 दिसंबर सन् 1941 मेंलाहौर में अमृता शेरगिल की मृत्यु हो गई, अपनी 29 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने इतनी ख्याति प्राप्त कर ली थी कि वे विश्व प्रख्यात कलाकार मानी जाने लगी थी। निःसंदेह यदि वे कुछ ओर वर्ष जीवित रहती तो कला क्षेत्र में असाधारण क्रांति मचा देती और भारतीय कलाकारों के लिए नई कला साधना का मार्ग प्रशस्त कर जाती, किन्तु देव की विडंबना वे एक ऐसी अविकसित कली थी जो अपनी सुगंध बिखेरे असमय मे ही आंखों से ओझल हो गई।
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