अमरनाथ का पवन पावन क्षेत्र कश्मीर मे पडता है। अमरनाथ की यात्रा बड़ी ही पुण्यदायी, भक्ति और मुक्तिदायिनी है। सारे भारत के लोग अमरनाथ यात्रा के लिए उसी चाव से यहां आते है, जैसे काशी, बद्रीनाथ और केदारनाथ आदि तीर्थों को जाते है। इस स्थान की यात्रा कुछ कठिन है। अमरनाथ के बारें में प्राचीन मान्यता के अनुसार यह कथा प्रचलित है कि अमरनाथ गुफा के अंदर सफेद कबूतरों का एक जोड़ा कभी कभी दिखाई पड़ता है। जो भगवान शिव का उपासक है, और जिसने वो अमरनाथ की कथा सुनी है और अमर हो गया है।
समुद्र तल से 1600 फुट की ऊंचाई पर पर्वत में यह लगभग 60 फुट लंबी, 25 से 30 फुट चौड़ी तथा 15 फुट ऊंची प्राकृतिक गुफा है। उसमें हिम के प्राकृतिक पीठ पर हिम निर्मित प्राकृतिक शिवलिंग है।
इस शिवलिंग के बारें मे कई भ्रांत धारणि है। यह बात सच नहीं है कि यह शिवलिंग अमावस्या को नहीं रहता और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से क्रमशः बनता हुआ पूर्णिमा को पूर्ण हो जाता है। इसके बाद कृष्ण पक्ष में धीरे धीरे घटता जाता है।
यह एक भ्रांत धारणा है। यह बात किसने फैलाई , इस बारें में कुछ नहीं कहा जा सकता। बहुत लोगों ने इसे लिखा भी है, परंतु ऐसी कोई बात नहीं है। भिन्न भिन्न तिथियों में यात्रा करके इस तथ्य की पुष्टि कर ली गई है। ऐसी कोई बात नहीं है।
हिम निर्मित शिवलिंग जाड़ों में स्वतः बनता है, और मंदगति से क्षीण होता है। यह कभी भी पूर्णतः लुप्त नहीं होता। कभी पूर्ण लुप्त हुआ भी होगा, इसमें संदेह है। अमरनाथ गुफा में एक गणेश पीठ तथा एक पार्वती पीठ भी हिम से बनता है। पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां सती का कंठ गिरा था।
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अमरनाथ शिवलिंग की अद्भुत व रोचक बातें
इस प्राकृतिक शिवलिंग में कई अद्भुत बातें है। अमरनाथ के हिमलिंग में एक अद्भुत बात यह है, कि यह ठोस पक्की बर्फ का होता है। जबकि गुफा से बाहर दूर दूर तक सदा कच्ची बर्फ ही मिलती है। यदि वर्षा न होती हो, बिदल न हो, धूप निकली हो तो अमरनाथ गुफा में शीत का अनुभव नहीं होता। प्रत्येक दशा में यात्री इस गुफा में एक अद्भुत सात्विकता तथा शांति का अनुभव करते है।
अमरनाथ गुफा क्या है
अमरनाथ की पवित्र गुफा में कोई मानव निर्मित मंदिर नहीं है। न ही यह गुफा मनुष्य ने पहाड़ी को काट काटकर तैयार की है। यह एक खुली, द्वारहीन, उबड़खाबड़ गुफा है, जिसका निर्माण स्वयं प्राकृतिक ने किया है। अमरनाथ गुफा मे बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा होती है। कुछ लोगों का विश्वास है कि अमरनाथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। अमरनाथ की पवित्र गुफा से ने चे ही अमर गंगा का प्रवाह है। यात्री स्नान करके ही गुफा में जाते है। अमरगंगा से लगभग दो फर्लांग चढ़ाई पर जाकर सवारी के घोडे रूक जाते है।
अमरनाथ की यात्रा कब करनी चाहिए या अमरनाथ यात्रा का उत्तम समय क्या है
कहा जाता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण की पूर्णिमा को आए थे, इसलिए उस दिन अमरनाथ की यात्रा का विशेष महत्व है। इस महीने तक अमरनाथ के मार्ग में बर्फबारी गिरी रहती है, परंतु यह यात्रा कठिन है, श्रावण के बाद तो शीघ्र ही वहां ठंडा मौसम प्रारंभ हो जाता है, इसलिए यात्रा के लिए सुविधाजनक श्रावण (अगस्त) का महीना ही है। अमरनाथ की मुख्य यात्रा तो श्रावणी पूर्णिमा को होती है, परन्तु आषाढ़ की पूर्णिमा को भी बहुत यात्री दर्शन के लिए जाते है, परंतु इन्हीं तिथियों में यह यात्रा हो, यह आवश्यक नहीं है। आप मौसम के अनुसार जब यात्रा मार्ग खुले हो यात्रा कर सकते है। वर्तमान मे तो सुरक्षा की दृष्टि और मौसम के अनुकूल भारत सरकार यात्रा मार्ग खोलती है।
अमरनाथ यात्रा मार्ग, अमरनाथ यात्रा रूट, अमरनाथ कैसे पहुंचे
दर्शनार्थियों का एक बड़ा जत्था प्रतिवर्ष श्रीनगर से श्रावण-सुदी पंचमी को रवाना होता है। इसका नेतृत्व कश्मीर शारदा पीठाधीश्वर करते है। जुलूस के साथ एक रौम्य निर्मित दंड शिवजी के झंडे के साथ भी आगे चलता है। साधु, नागा, महंत, संत, वैरागी, संन्यासी और गृहस्थ आदि सभी तरह के लोग श्रृद्धा पूर्वक भारत के सभी भागों से श्रीनगर में एकत्रित होने के बाद इस दिन प्रस्थान करते है। अमरनाथ के लिए इस वार्षिक संघ को सभी प्रकार की सहायता कश्मीर राज्य के धर्मार्थ विभाग की ओर से मिलती है। राज्य के सरकारी कर्मचारी पुलिस आदि का प्रबंधन भी अच्छा खासा होता है। अमरनाथ यात्रा जत्थे पर आतंकी हमला से सुरक्षा के लिए भारी फोर्स की भी व्यवस्था सरकार द्वारा रहती है। कपड़ें, छोलदारी, दवाखाना आदि यात्री दल के साथ रहता है।
अमरनाथ यात्रा का पैदल मार्ग पहलगांव से शुरु होता है। पहलगाम से चंदनवाड़ी 8 मील है। पहला पड़ाव चंदनवाड़ी मे होता है यहां कुछ समय आराम किया जाता है। मार्ग साधारण व अच्छा है। चंदनवाड़ी में अच्छे होटल है। भोजन आदि का सामान ठीक मिल जाता है। लिदर नदी के किनारे किनारे मार्ग जाता है।
चंदनवाड़ी से शेषनाग यह मार्ग 7मील का है। दूसरा पड़ाव शेषनाग में होता है यहां रात्रि विश्राम किया जाता है। यहां डाकबंगला है, परंतु मेले के दिनों में भीड़ बहुत होती है। उस समय तंबू लगाकर ठहरना पड़ता है। तंबू पहलगांव से किराए पर ले जाना होता है। मेले के अतिरिक्त दिनों में तंबू आवश्यक नहीं। चंदनवाड़ी से शेषनाग के बीच में 3 मील की कड़ी चढ़ाई है। शेषनाग झील का सौंदर्य तो अद्भुत है। यहां ठहरने के लिए होटल भी उपलब्ध है।
पंचतरणी इस यात्रा मार्ग का तीसरा पड़ाव है। शेषनाग से पंचतरणी 8.5 मील का मार्ग है। शेषनाग से आगे का मार्ग हिमाच्छादित है। इस मार्ग में चलते समय हाथों तथा मुख पर वैसलीन लगानी चाहिए। जहां जी मचलाए वहां खटाई चूसने से आराम मिलता है।
पंचतरणी से अमरनाथ का पावन धाम 3.5 मील है। अमरनाथ में ठहरने का स्थान नही है। यात्रियों को पंचतरणी में जलपान करके अमरनाथ जाना चाहिए। यहां स्नान तथा दर्शन करके शाम तक यात्री पंचतरणी लौट आते है। पंचतरणी में रात्रि विश्राम के लिए धर्मशाला है। यात्रा के दिनों मे होटल भी है।
इस यात्रा में यात्री पहले दिन पहलगाम से चलकर रात्रि विश्राम शेषनाग में करते है। दूसरे दिन शेषनाग से चलकर अमरनाथ तक जाते है, और वहां से दर्शन करके लौटकर पंचतरणी में विश्राम करते है। तीसरे दिन पंचतरणी से चलकर प्रायः पहलगांव पहुंच जाते है। इस प्रकार यह केवल तीन दिन की पैदल यात्रा है।
आवश्यक सामग्री
हिम प्रदेशीय यात्राओं में अमरनाथ की यात्रा सबसे छोटी यात्रा है, सबसे सुगम, और सबसे अधिक यात्री इसी यात्रा में जाते है। इस यात्रा के लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं है।
ऊनी कपडें, ऊनी मौजे, एक छड़ी, तीन कंबल, थोडी खटाई, सूखे आलूबुखारे, बरसाती, टॉर्च, और शक्य हो तो स्टोव। यह सारा सामान पहलगाव से खरीदा जा सकता है। बरसाती साथ न हो तो पहलगाम से किराए पर भी मिल सकती है। भोजन का सामान भी न ले जाएं तो आगे भोजन मिलता रहता है। कुछ जलपान का सामान जरूर साथ ले लेना चाहिए। यात्रा के लिए पैदल जाना हो तो सामान ढोने के लिए कुली ले जाना पड़ता है। सवारी के घोडे रूपए लेकर वापसी तक को मिल जाते है। वृद्धों के लिए पालकी भी मिल जाती है। तीन चार यात्री साथ हो तो सामान ढोने के लिए खच्चर लेना सुविधा जनक होता है।
अमरनाथ यात्रा की व्यवस्था अमरनाथ साइन बोर्ड करती है। यात्रा पंजीकरण, होटल बुकिंग, एयर बुकिंग और अन्य जानकारियो के लिए आप अमरनाथ साइन बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते है
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