अजमेर भारत के राज्य राजस्थान का एक प्राचीन शहर है। अजमेर का इतिहास और उसके हर तारिखी दौर में इस शहर ने इतिहास के पन्नो में अपने लिए एक खास जगह बनायी है। यूं तो यह शहर हर दौर में किसी न किसी कारण से महत्पूर्ण रहा है। लेकिन ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह की वजह से इस शहर नो जो मुकाम और प्रसिद्धि हासिल की वो शायद ही भारत के किसी और शहर ने कि होगी। आज के समय में भी अजमेर को दुनियाभर के लोग ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के कारण ही जानते है। दुनियाभर से तमाम पर्यटक सैलानी और श्रद्धालुओ का ख्वाजा की दरगाह पर जियारत करने के लिए वर्ष भर तांता लगा रहता है।
अजमेर का इतिहास
अजमेर का इतिहास जानने से पहले अजमेर कहा स्थित है। यह जान लेते है। अजमेर भारत के उत्तर-पश्चिम में अरावली पर्वतके दामन में बसा है। जिसके चारो तरफ कई छोटी छोटी पहाडिया है।अजमेर के पूर्व किशनगढ राज्य तथा पश्चिम में सरस्वती नदी तथा उत्तर में गोगरा घाटी तथा दक्षिण में अरावली पर्वत है। अजमेर राजस्थान की राजधानी जयपूर से लगभग 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तथा भारत की राजधानी दिल्ली से अजमेर की दूरी लगभग 405 किलोमीटर है।
अजमेर की ऐतिहासिक इमारतेअजमेर की स्थापना
अजमेर की स्थापना दूसरी शताब्दी में राजा वासुदेव ने की थी। एक दूसरे मत के मुताबिक कहा जाता है कि अजमेर की स्थापना राजा अजयपाल ने की थी। कहा जाता है कि पुराना शहर वर्तमान शहर के दक्षिण-पश्चिम में था। जिसकी गवाही का अनुमान आज भी यहा स्थित खंडहरो द्वारा लगाया जा सकता है। अजमेर को प्राचीन समय से विभिन्न कालो में अलग अलग नामो से पुकारा गया है। जैसे जेदरूक, जपमीर, अदमीर, जियांगीर और जलोपुर आदि।
शताब्दी ईसा के प्रसिद्ध बुद्ध राजा कनिष्क जिनकी मृत्यु 120 ई° को हुई इस क्षेत्र पर उनका राज था। राजा कनिष्क की मृत्यु के बाद उसके पुत्र हवेश्क ने 140 ई° तक बडी बडी आन बान से इस क्षेत्र पर शासन किया। हवेश्क केबाद राजावासुदेव गद्दी पर बैठा। एक मत के अनुसार कहा जाता है की वासुदेव ने ही अपने शासन के दौरान अजमेर की नीव रखी थी। परंतु वह अपने बाप दादा की तरह एक मजबूत शासक साबित न हुआ और जगह जगह उसके खिलाफ बगावत होने लगी। बागियो में अनहलपुर का राजा अजयपाल भी था। इसकी राजधानीतख्त पटन((गुजरात) थी वह कनिष्क खानदान के अधीन था और उन्हे टेक्स दिया करता था। अजयपाल ने बागियो को एकत्र कर राजा वासुदेव की सेना को पराजित कर दिया और राजपूताना के कई इलाको पर अपना कब्जा कर लिया। इसमे अजमेर का इलाका भी शामिल था। अजयपाल ने अजमेर को अपनी राजधानी बनाकर एक अलग राज्य स्थापित कर लिया। यहा इस मत को बल मिलता है कि अजमेर की बुनियाद राजा वासुदेव ने पहले ही डाल दी थी। जब अजयपाल ने वासुदेव को पराजित करके अजमेर को अपनी राजधानी घोषित किया तो अजयपाल ने अजमेर का विस्तार किया। यह अजमेर का इतिहास का सच है।
इसके अजयपाल अजमेर पर राजा के रूप में कई सालो तक राज करता रहा। 330ई° में गुप्तवंश के साहसी राजा चंद्रगुप्त ने सारे उत्तरी व राजपूताना क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया। इस प्रकार अजमेर पर पाचवी शताब्दी तक गुप्त वंश शासन रहा। गुप्तवंश के शासन काल मे मध्य एशिया के वहशी कबिलो ने भारत पर हमला किया और एक बडे क्षेत्र कै तबाह व बर्बाद कर डाला। गुप्तवंश का शासन भी इनकी वहशत व दरिदंगी के तूफान में बह गया। लगभग 150 साल तक राजपूताना क्षेत्र में अफरा तफरी का दौर रहा।
आखिरकार अजमेर पर चौहान राजाओ का शासन हो गया। और उन्होने इसे एक स्थायी राज्य की हैसियत देकर यहा बडे विकास कार्य कराए। नवी शताब्दी के अंत में गज़नी के हाकिम अमीर नसीरूद्दीन सुबुकतगीन ने भारत पर हमला किया। काबुल और पंजाब के राजा जयपाल ने इसका डटकर मुकाबला किया। 979ई° में राजा अजयपाल और अमीर सुबुकतगीन की सेना के बीच भिषण युद्ध हुआ। जिसमे राजा जयपाल को हार का मुह देखना पडा। और राजा अजयपाल ने टैक्स देने के वादे के साथ सुबुकतगीन के साथ संधि कर ली।
लाहौर पहुच कर राजा जयपाल अपना वादा भूल गया। और अमीर सुबुकतगीन के खिलाफ फिर से युद्ध की तैयारी करने लगा। वतन, धर्म, जाति के नाम पर उसने अजमेर, कालिंजर, दिल्ली और कन्नौज के ताकतवर राजाओ से मदद मांगी। इन राजाओ ने तुरंत अपनी सेना राजा जयपाल की सहायता के लिए भेज दी। थोडे ही समय में जयपाल ने एक बडी सेना एकत्र कर ली।
अमीर सुबुकतगीन को जब यह पता चला तो वह जयपाल की बडी सेना से घबराया नही। वह पूरे धेर्य के साथ जयपाल की सेना से भीड गया। उसकी बहादुर सेना ने जयपाल की विशाल सेना के छक्के छुडा दिए। और काबुल व पेशावर के पूरे क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया। राजा जयपाल युद्ध में पराजय का अपमान सह न सका और उसने आत्महत्या कर ली। इसके बाद उसका पुत्र आनंद गोपाल गद्दी पर बैठा। ऊधर सुबुकतगीन की 996ई° में मृत्यु हो गई। और उसकी जगह उसका पुत्र महमूद गज़नवी गद्दी पर बैठा। आनंदपाल ने अपनेए पिता का बदला लेने के लिए सुल्तान महमूद गजनवी से छेडछाड शुरू कर दी। पहले तो वह हार कर कश्मीर भाग गया। लेकिन फिर उसने अपने बाप की तरह 1006ई° एक बडी सेना एकत्र की जिसमे अजमेर, ग्वालियर , कन्नौज, उज्जैन आदि राजाओ की भी सेनाए शामिल थी। इस विशाल सेना ने पेशावर के निकट सुल्तान महमूद गजनवी की सेना का मुकाबला किया। भीषण युद्ध के बाद महमूद गज़नवी की सेना ने आनंदपाल की सेना को हरा दिया और कांगडा तक चढाई कर दी। इसके बाद महमूद गजनवी ने भारत पर कई राज्यो में हमले किए और मथुरा, कन्नौज और सोमनाथ आदि से बहुत सारा खजाना लेकर वापस हुआ। 1024ई° में महमूद गजनवी ने अजमेर पर हमला किया। अजमेर के राजा भीलदेव ने हारने के बाद इस्लाम कबूल कर लिया और तख्त से अलग हो गया। सुलतान महमूद गजनवी ने अपने सेनापति साहू को अजमेर का शासन सौप दिया और खुद वापस गज़नी चला गया। जहा 1030ई° को महमूद गजनवी की मृत्यु हो गई।
अजमेर का इतिहास में 1044ई° को राजपूतो का सितारा फिर चमका। उन्होने अजमेर के मुस्लिम शासक को कत्ल करके सारंगदेव को अजमेर गद्दी पर बैठा दिया। सारंगदेव की कुछ दिनो बाद मृत्यु हो गई। और अजमेर की हकूमत राजा अनादेव के हाथ में आ गई। उसने अजमेर में एक बडा तालाब बनवाया जो आज भी अनासागर के नाम से जाना जाता है। अनादेव के बाद राजा पृथ्वीराज चौहान ने यहा शासन किया। पृथ्वीराज के शासन में अजमेर में बहुत विकास किया गया। और इसी दौर ख्वाजा गरीब नवाज मईनुद्दीन चिश्ती अजमेर में आए। राजा पृथ्वीराज ने यहा तारागढ का किला सुर्ख पत्थरो से बनवाया। यह किला इतना मजबूत और सुंदर था की दूसरे राजपूत राज्य इससे ईषर्या करते थे। राजा पृथ्वीराज चौहान का अजमेर का इतिहास में बहुत योगदान रहा है।
सन् 1191 ई° में सुलतान शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने भारत पर हमला किया। पृथ्वीराज चौहान और दूसरे हिन्दू राजाओ ने गौरी का मुकाबला तरावडी के मैदान में किया। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी घायल हुआ और उसको हार का मुह देखना पडा। गौरी को इस हार का बहुत दुख था। उसने 1193 में फिर से भारत पर हमला किया। पृथ्वीराज और अन्य हिन्दू राजाओ की संयुक्त सेना के साथ फिर से तारावडी के मैदान में भीषण युद्ध हुआ। इस भीषण युद्ध मे हिन्दू राजाओ की सेना को हार का सामना करना पडा। और पृथ्वीराज सहित कई हिन्दू राजा इस युद्ध में शहीद हो गए। इस युद्ध में विजयी होने के बाद मुहम्मद गौरी ने अजमेर और दिल्ली पर कब्जा कर लिया। और भारत में इस्लामी हकुमत की नींव रखी।
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भारत में इस्लामी हुकूमत की स्थापना के बाद अजमेर और दिल्ली पर लगभग ढाई सौ साल तक मुस्लिम शासको का शासन रहा। सन् 1380 ई° में सुलतान फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के बाद दिल्ली का केन्द्रीय शासन कमजोर हो गया। दिल्ली की गद्दी के कई दावेदार हो गए जिनमे आआपसी रंजिश हो गई। राजपूतो ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया। और सन् 1400 ई° में अजमेर पर फिर से कब्जा कर लिया। लगभग 55 साल तक मेवाड के राजपूतो ने अजमेर पर शासन किया। 1445 में मांडो के बादशाह ने अजमेर पर कब्जा कर लिया। 1505 में फिर से मेवाड राजपूतो ने अजमेर पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया।
28 साल के बाद 1533 ई° में गुजरात के बादशाह ने भीषण युद्ध के बाद मेवाडो से अजमेर को छीन लिया। लेकिन अगले ही साल मारवाड के राठौर खानदान ने गुजरात की सेना को अजमेर से खदेड दिया और 1556ई° तक अजमेर पर शासन करते रहे।
अजमेर का इतिहास में 1556 में मुगलो का अवागमन हुआ। जलालुद्दीन अकबर ने अजमेर को फतह कर अपने कब्जे में ले लिया। और 16वी शताब्दी के मध्य में अजमेर ताकतवर मुगल सम्राज्य एक हिस्सा बन गया। मुगल बादशाहो ने अजमेर में बहुत विकास कराया बडी बडी मजबूत इमारतो का निर्माण कराया। कई मुगल बादशाह ख्वाजा गरीब नवाज को मानते थे और वहा हाजरी भी देते थे। सन् 1556 से 1743 तक का दौर अजमेर के लिए बहुत खास रहा है। औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल हूकूमत बिखरने लगी तख्त के कई दावेदारो ने हूकूमत की जडे खोखली कर दी। मुगल सम्रज्य अपने पतन की ओर जाने लगा। कई छोटे छोटे राज्य और नवाब अपने राज्य बना बैठे। बिखराव के इस दौर में 1756 में ग्वालियर के राजा सिधिया ने अजमेर पर कब्जा कर लिया। 1787 तक अजमेर मराठो के कब्जे में रहा। 1787 में राठौरो ने मराठो को अजमेर से निकाल दिया और चार साल तक अजमेर पर हूकुमत की। 1796 में मराठो ने फिर से अजमेर पर कब्जा कर लिया। सन् 1818 में बाबूराव सिंधिया और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच एक संधि से अजमेर ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार में चला गया। 1947 तक अजमेर पर अंग्रेजो का राज रहा। 1947 से भारत की आजादी के बाद अजमेर भारत के प्रसिद्ध शहर के रूप में जाना जाने लगा राज्यो के गठन के बाद अजमेर राजस्थान का प्रमुख शहर बन गया और वर्तमान में यह राजस्थान राज्य का एक जिला है।
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