अक्षरा देवी सिद्ध पीठ कहां है – अक्षरा सिद्ध पीठ का इतिहास Naeem Ahmad, September 1, 2022February 17, 2023 अक्षरा देवी सिद्ध पीठ उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के उरई नगर से 26 किलोमीटर की दूरी पर सैदनगर में स्थित है। सिद्ध नगर जिसे अब सैदनगर के नाम से जाना जाता है उरई झाँसी राजमार्ग पर एट कस्बे से अक्षरा देवी सिद्ध पीठ तक पहुँचने के लिए रास्ता जाता है। सिद्धपीठ की त्रिगुणात्मक शक्ति से भरपूर यह सिद्ध नगर अपने अतीत की कहानी कहता हुआ दृढ़ता के साथ स्थिर है। Contents1 अक्षरा देवी सिद्ध पीठ का इतिहास2 अक्षरा देवी सिद्ध पीठ का वास्तुशिल्प3 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- अक्षरा देवी सिद्ध पीठ का इतिहास वेतवा के किनारे स्थित सैदनगर कभी मुर्जदी कपड़े व नील का एक बहुत बड़ा जाना माना व्यापारिक केंद्र था। समूचे भारतवर्ष में रंगों की आपूर्ति का श्रेय भी इसको प्राप्त था। शाहजहाँ के शासन काल में उसके साले सलावत खाँ ने जब इस क्षेत्र का आधिपत्य सम्भाला , तभी सैय्यद नाम के एक फकीर सूफी का इस क्षेत्र में प्रवेश हुआ। उसका इतना प्रभाव बढ़ा कि लोग इस क्षेत्र को उसके नाम से सैय्यद नगर कह कर पुकारने लगे और तब 800-900 वर्ष पूर्व सिद्ध बाबा द्वारा बसाया गया यह सिद्ध नगर, सैय्यद नगर बन गया। बाद में यही सैय्यद नगर ग्रामीण भाषा में बदलाव के कारण सैदनगर हो गया। गजेटियर के अनुसार सन 1700 ई० में स्थानीय गर्वनर सैय्यद लतीफ था जिसने बुन्देलों को एक लाख रूपया देकर वहाँ से हटाया था। यहाँ के लोगों की यह मान्यता है कि 800-900 वर्ष पूर्व सिद्ध बाबा द्वारा यहाँ पर “श्री यन्त्र” की स्थापना करके इसे अक्षरा सिद्ध पीठतीर्थ का नाम दिया गया। शास्त्रों में कहा गया है कि ” शरीरम मानसम् भौम॑ साधु सम्मेलन तथा आत्मशोधि करादीनि तरणं तीर्थ मुच्यते ।” अर्थात् शारीरिक मानसिक, भौम तथा साधु सम्मेलन जैसे आत्मा के शोध करने या पार करने को तीर्थ कहते हैं। तीर्थ शब्द का “ती”और “र्थ “से अर्थ निकलता है कि तीन अर्थों की सिद्धि जहाँ को वह तीर्थ होता है। संसार में अर्थ धर्म काम और मोक्ष ये चार अर्थ हैं। इनमें से धन तो तीर्थ यात्रा में खर्च होता है तथा शेष तीन धर्म, काम और मोक्ष इन तीनों के प्राप्ति स्थान को तीर्थ कहते हैं। “अक्षरा” तीर्थ में मां छिन्नमस्ता द्वारा धर्म, माँ रक्तदन्तिका द्वारा काम और माँ अक्षरा द्वारा मोक्ष का प्राप्ति होती है। अक्षरा देवी सिद्ध पीठ सैदनगर वराह पुराण में एक प्रसंग आता है कि वेत्रवती जो कि आज वेतवा नदी के नाम से जानी जाती है के वेतव्रत नाम का एक पुत्र था। यह वेतव्रत अत्यन्त शक्तिशाली तथा आसुरी प्रवृत्ति का था जो कि सदैव ही सज्जन दृन्दों एवं देवताओं का अपकार्य किया करता था। इससे क्षुब्ध होकर देवगणों ने माँ जगदम्बा की स्तुति की और माँ जगदम्बा ने स्तुति से प्रसन्न होकर स्वयं उपस्थित हो देवगणों को भय मुक्त होने का वरदान दिया तथा स्वयं रक्तदन्तिका के रूप में अवतरित होकर उस आतातायी वेतव्रत का संहार किया। तत्पश्चात देवताओं ने उनकी स्तुति की। यह स्तुति दुर्गा सप्तशती में इस प्रकार है — त्वं खाहा त्वं ख॒धा त्वं हि षटठकारः स्वरात्मिका। सुधा त्वमक्षेरे नित्य त्रेधाना त्रात्मिका स्थिता ॥ अर्ध मात्रा स्थिता नित्या आनुद्चार्या विशेषतः ॥ अर्थात् हे देवी ! तुम्ही स्वाहा , तुम्ही स्वधा और तुम्ही षट्कार हो।स्वर भी तुम्हारे स्वरूप हैं। तुम्हीं जीवनदायनी सुधा हो। नित्य अक्षर प्रणव में अकार, उकार और मकार इन तीनों मात्राओं के अतिरिक्त जो बिन्दु रूपा अर्द्धमात्रा है, जिसका विशेष रूप से उच्चारण नहीं किया जा सकता है वह भी तुम्ही हो। वराह पुराण की कथा का भौगोलिक स्तर पर जब हम विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि वेतवा भोपाल के ऊपर से अपने आदि श्रोत से प्रारम्भ होकर हमीरपुर में यमुना में मिल जाती है। उसकी इस सम्पूर्ण यात्रा में सैदनगर को छोड़कर अन्य कोई माँ का ऐसा स्थान नहीं है। फलस्वरूप इस क्षेत्र के विषय में वराह पुराण की उक्त कथा से बहुत अधिक सांनिध्य प्रतित होती है। वास्तव में अक्षरा तीर्थ सिद्धपीठ श्रेणी की एक कड़ी यूं बन जाती है क्योंकि यह सृष्टि के आदि क्रम से जुड़ा हुआ है। भारतीय साहित्य में गुरूरे ब्रह्मा, गुरूरे विष्णु, गुरूरे देवौ महेश्वरः कहा गया है किन्तु यह बात उतनी सहज नहीं है। जब हम ब्रह्मा , विष्णु और महेश को उनके कार्य के अनुसार अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि गुरू अपने शिष्य के अज्ञान का जब निवारण करता है तब वह महेश का कार्य करता है। मिथ्या अहं को काटते हुए जब गुरू अपने शिष्य के मन के यथार्थ ज्ञान की रक्षा करता है तब वह विष्णु का कार्य करता है और जब अज्ञान हटाते हुए व ज्ञान की रक्षा कते हुए वह जब नयी बातों का शिक्षण करता है तब वह ब्रह्मा का कार्य करता है। आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने कहा है कि:– शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शकः प्रभावितुम् ” अर्थात् भगवान अपनी शक्ति से शबलित होकर ही अपना कार्य करने में समर्थ होते हैं अन्यथा नहीं। फिर ब्रह्मा, विष्णु व महेश की भी अपनी शक्तियाँ हैं जो महासरस्वती, महालक्ष्मी तथा महाकाली के नाम से जानी है। ये तीनों शक्तियाँ ही सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की सूचक हैं। इन शक्तियों के अभाव में कोई भी नहीं रह सकता है। न शिवेन बिना देवी न देव्याश्य बिना शिवः। नानयोन्तरम॑ किमििच्चन्द्र चन्द्रिकयोरिव ।। यही तीनों महा शक्तियाँ महात्रिकोण में त्रय रूप में स्थित हैं इच्छादि शक्तिन्नितयं पशोः सत्वादिसज्ञकम्। महत् व्यद्न॑ चिन्तयानि गुरूवक्जा दनुत्तरात ॥ और इन्हीं तीनों महाशक्तियों के महात्रिकोण से ” श्री यन्त्र ” का पूजन का विधान है जिसमें इनकी स्थिति को भी स्पष्ट किया गया है – महालक्ष्मी पूर्व भागे, महाकाली च दक्षिणे । महासरस्वती पश्च कोण यंत्रस्य संस्थिता॥ अर्थात् महालक्ष्मी त्रिकोण के पूर्व भाग में महाकाली त्रिकोण के दक्षिणी भाग में तथा महा सरस्वती त्रिकोण के पश्चिमी भाग में स्थित होती हैं। अस्तु सिद्धपीठ के लिए महा त्रिकोण में शक्तियों की प्राण प्रतिष्ठा परमावश्यक है। अक्षरा देवी सिद्ध पीठ का अवलोकन करने से महा त्रिकोणीय स्थिति स्पष्ट हो जाती है। इस सिद्धपीठ पर भी पूर्व भाग में महालक्ष्मी स्वरूपा अक्षरांचल पर्वत पर माँ अक्षरा का स्थान है, दक्षिण में सिद्धाबली पर्वत श्रृंखला पर महाकाली स्वरूपा माँ रक्त दन्तिका का स्थान है और पश्चिमी भाग में डीकांचल पर्वत श्रंखला पर वेतवा के उस पार डिकौली ग्राम में माँ सरस्वती का स्थान है। इसी डीकांचल पर्वत श्रंखला पर 64 योगनियों के भी स्थान हैं जो कि अत्यन्त दुर्लभ हैं। इसी सारी स्थिति में अक्षरा तीर्थ मात्र एक तीर्थ ही नहीं वरन एक सिद्धपीठ प्रमाणित होता हैं। अक्षरा देवी सिद्ध पीठ का वास्तुशिल्प माँ अक्षरा देवी सिद्ध पीठ का यह स्थान पश्चिमा भिमुख है। इसका गर्भगृह चौकोर है जिसके ऊपर विमान तथा कलश स्थापित है। माँ अक्षरा देवी का स्वरूप त्रिशूल के अग्र भाग की भाँति पिण्डीय स्वरूप में है। इस गर्भगृह के पश्चिम में अराधना मण्डप तथा उत्तर में भगवान शंकर का स्थान है। इस गर्भगृह के दक्षिण में वरान्डिका है जिसकी दक्षिणी भुजा से संग्लन चबूतरे पर नरसिंहावतार की विशाल मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मंदिर के पश्चिम में शंखाकार स्वरूप में प्रकृति द्वारा निर्मित एक कुण्ड है जिसकी गहराई के विषय में कोई वास्तविक ज्ञान नहीं है। कहा जाता है कि वर्ष में एक बार जीवन को अमरत्व प्रदान करने वाले आयुर्वेदिक शेलोदक का प्रादुर्भाव इस कुण्ड में होता है। इस मंदिर के उत्तर में एक विशाल तालाब है जिसके दक्षिणी सिरे पर सुन्दर मजबूत पक्के घाट बने हैं। इस तालाब के दक्षिणी किनारे पर कालपी के खत्रियों द्वारा निर्मित एक धर्मशाला थी जो कि अब रखरखाव के अभाव में धूल धूसरित हो रही है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जो दतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश तीर्थ स्थलउत्तर प्रदेश पर्यटन